Class 11 Hindi Aroh Chapter 1 नमक का दारोगा Questions and Answer
Board | CBSE, RBSE And All |
Textbook | NCERT |
Subject | Hindi |
Class | 11 |
Chapter | 1 नमक का दारोगा |
‘नमक का दारोगा’ प्रेमचन्द की आदर्शवादी कहानी है जिसमें यह बताया गया है कि जो ईमानदारी, नैतिकता, धर्म एवं सत्य पर दृढ़ रहते हैं अन्तिम विजय उन्हीं की होती है। मुंशी वंशीधर ने अलोपीदीन की रिश्वत ठुकरा दी और अपनी ईमानदारी का परिचय दे दिया। भले ही उन्हें विभाग से निलम्बित कर दिया गया हो पर अलोपीदीन उनकी ईमानदारी से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपनी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर दिया। इसीलिए इस कहानी का शीर्षक हो सकता है— सत्यमेव जयते।
English Translation:- Namak Ka Daroga’ is an idealistic story by Premchand, in which it has been told that those who remain firm on honesty, morality, religion and truth, the ultimate victory is theirs. Munshi Vanshidhar rejected Alopidin’s bribe and showed his honesty. Even though he was suspended from the department, Alopidin was so impressed by his honesty that he appointed him as the permanent manager of his estate. That is why the title of this story can be- Satyamev Jayate.
प्रश्न 1. कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों ?
उत्तर- ‘नमक का दारोगा’ प्रेमचन्द द्वारा रचित एक आदर्शवादी कहानी है जिसके सर्वाधिक प्रभावशाली पात्र मुंशी वंशीधर हैं। वे ही इस कहानी के नायक हैं तथा सम्पूर्ण घटनाओं के केन्द्र-बिन्दु हैं। उनके चरित्र के उज्ज्वल पक्ष को प्रस्तुत करना ही कहानीकार का मूल उद्देश्य है। वंशीधर एक योग्य, कर्त्तव्यपरायण, ईमानदार, नैतिकतावादी, स्वाभिमानी एवं साहसी व्यक्ति हैं। उनकी चारित्रिक दृढ़ता अनुकरणीय है। प्रेमचन्द जी ने उनके रूप में एक आदर्श पात्र की परिकल्पना की है तथा कहानी से यह संदेश दिया है कि जो सत्य, न्याय, ईमानदारी एवं नैतिकता पर टिका रहता है, अन्तिम विजय उसी की होती है।
मुंशी वंशीधर ने पण्डित अलोपीदीन को नमक की चोरबाजारों करते हुए गिरफ्तार किया था। उन्हें बड़ी रिश्वत देने का प्रयास किया गया पर वे डिगे नहीं। अलोपीदीन अपने धन-बल से अदालत से छूट गए किन्तु उनके हृदय पर वंशीधर की ईमानदारी की ऐसी छाप पड़ी कि उन्होंने वंशीधर को ऊंचे वेतन पर अपनी जमींदारी का मैनेजर नियुक्त कर दिया। इस प्रकार सत्य एवं ईमानदारी की विजय का उद्घोष करते हुए प्रेमचन्द ने इसे आदर्शवादी कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है। यही कारण है कि कहानी का पात्र मुंशी वंशीधर हमें सबसे अधिक प्रभावित करता है।
प्रश्न 2. ‘नमक का दारोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं ? उत्तर- पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्त्व के दो प्रमुख गुण हैं- 1. धन की शक्ति से परिचित होना, 2. गुण ग्राहका
1. धन की शक्ति से परिचय-पंडित अलोपीदीन धन की ताकत से परिचित थे और जानते थे कि पैसे से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता था। धन की जिस शक्ति को पंडित जी सबसे बड़ी ताकत मान रहे थे उसे धर्म (सत्य) ने पैरों तले कुचल दिया। किन्तु कचहरी में सारे वकील, मुख्तार, अलोपीदीन ने पैसे के बल पर अपने पक्ष में कर लिए, परिणामतः अलोपीदीन बाइज्जत बरी हो गए और मुंशी वंशीधर नमक के दारोगा पद से निलम्बित कर दिए गये।
2. गुण ग्राहक – अभी तक अलोपीदीन को ऐसा कोई व्यक्ति न मिला था जो वंशीधर की तरह ईमानदार और कर्त्तव्यपरायण हो। अपने धन के बल पर वे चाहे जिसको खरीद सकते थे और मन मुताबिक झुका लेते थे, पर वंशीधर को वे नहीं झुका सके। उनको अपनी विशाल सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए ऐसे ही दृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति की आवश्यकता थी।
एक सप्ताह बाद ही वे वंशीधर के घर आए और वंशीधर को अपनी जमींदारी का स्थायी मैनेजर नियुक्त करने का स्टाम्प लगा पत्र देते हुए कहा कि कृपया आप इस पद को स्वीकार कीजिए। छह हजार वार्षिक वेतन के साथ अनेक सुविधाएँ, नौकर-चाकर, सवारी, बँगला मुफ्ता यह उस समय बड़ा वेतन था। अलोपीदीन ने कहा- मुझे विद्वान् और अनुभव या कार्यकुशलता की दरकार नहीं, मुझे तो आप जैसा ईमानदार, दृढ़-प्रतिज्ञ, कर्त्तव्यपरायण एवं धर्मनीति पर स्थिर रहने वाला व्यक्ति ही अपनी जायदाद के मैनेजर के रूप में चाहिए।
प्रश्न 3. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी न किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइये कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं-(क) वृद्ध मुंशी (ख) वकील (ग) शहर की भीड़
उत्तर- प्रेमचंद की कहानियों में यह विशेषता है कि उनके पात्र जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करते हैं। ‘नमक का दारोगा’ कहानी के निम्न पात्र समाज की सच्चाई को उजागर करते हैं।
(क) वृद्ध मुंशी-
(अ) पाठ का अंश-बेटा! नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो । मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है।
(ब) समाज की सच्चाई- वृद्ध मुंशी के माध्यम से कहानीकार ने समाज के उन अभिभावकों का स्वभाव उजागर किया है, जो अपने पाल्यों (पुत्रों) को अच्छे संस्कार देने के स्थान पर धन कमाने के लिए अनैतिक आचरण, रिश्वत, भ्रष्टाचार करने के लिए प्रेरित करते हैं। बेटा ईमानदारी, कर्त्तव्यपरायणता और नीति पर चले इस बात पर बल नहीं बल्कि बल इस बात पर देते हैं कि जल्दी से जल्दी धन कमाकर हमारी आवश्कताओं की पूर्ति करो। हमने अपनी आशाएँ तुम्हीं पर लगा रखी हैं। जब ईमानदारी एवं कर्त्तव्य परायणता के कारण वंशीधर को निलम्बित कर दिया गया, तब वृद्ध मुंशी ने पुत्र को बुरा-भला कहा। अलोपीदीन के घर आने पर वे यही कहते हैं कि क्या करूँ मेरा पुत्र कपूत निकला।
(ख) वकील-
(अ) पाठ का अंश-वकीलों ने फैसला सुना और उछल पड़े। पंडित अलोपीदीन मुस्कराते हुए बाहर निकले। स्वजन-बांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा, उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी।
(ब) समाज की सच्चाई- आज अदालतों में न्याय की विजय नहीं होती, असत्य की विजय होती है। वकील झूठे गवाह तैयार करके किसी भी कमजोर केस को पैसे के बल पर जीत लेते हैं। फिर धनवान् व्यक्ति से मुँहमाँगी रकम प्राप्त कर लेते हैं। आज गरीबों को न्याय नहीं मिल पाता। ईमानदार एवं कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति न्याय के लिए तरसते रह जाते हैं और बेईमान लोग धन के बल पर न्याय को अपने पक्ष में मोड़ लेते हैं, इसी सच्चाई को कहानीकार उजागर कर रहा है।
(ग) शहर की भीड़-
(अ) पाठ का अंश-दुनिया सोती थी पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए वही पंडितजी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं, मानो संसार से सब पापियों का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचने वाला ग्वाला, कल्पित रोजनामचे भरने वाले अधिकारी वर्ग, रेल में बिना टिकट सफर करने वाले बाबू लोग, जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ साहूकार ये सभी देवताओं की भाँति गर्दने चला रहे थे।
(ब) समाज की सच्चाई जब कोई भला या बड़ा व्यक्ति किसी कानूनी शिकंजे में फँस जाता है तो शहर की भीड़ अत्यन्त उत्सुकता से उसका तमाशा देखती है। ऐसे लोग जो गले तक बेईमानी में फँसे हैं, अनैतिक आचरण करते हैं, वे भी टीका-टिप्पणी करने से बाज नहीं आते। अलोपीदीन को हथकड़ी में अदालत जाते हुए जब शहर की भीड़ ने देखा तो लोग तरह-तरह की बातें करने लगे। भले ही वे सब दैनिक जीवन में अनैतिक आचरण करते रहे है। पर आज अलोपीदीन पर छींटाकशी करने का जो अवसर उन्हें मिला था उसका भरपूर लाभ उठा रहे थे।
प्रश्न 4. निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए- नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का • मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।
(क) यह किसकी उक्ति है ?
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है ?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं ?
उतर- (क) यह उक्ति मुंशी वंशीधर के पिता (वृद्ध मुंशी) की है।
(ख) जैसे पूर्णिमा को चाँद पूरा होता है फिर उसका घटना प्रारंभ हो जाता है और अमावस्या आते-आते वह पूरी तरह लुप्त हो जाता है। इसी प्रकार मासिक वेतन एक बार पूरा मिलता है और उसमें से प्रतिदिन खर्च होता रहता है जिससे वह घटता जाता है और एक दिन पूरा खर्च हो जाता है। इसलिए मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद कहा गया है।
(ग) नहीं, इस कथन से मैं सहमत नहीं हूँ। एक पिता यदि अपने पुत्र को रिश्वत लेने के लिए कहे तो यह किसी प्रकार भी उचित नहीं है। पिता का कर्त्तव्य है कि वह अपने पुत्र को अच्छे संस्कार दे न कि रिश्वत लेने के लिए प्रेरित करे।
प्रश्न 5. ‘नमक का दारोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- नमक का दारोगा कहानी के दो अन्य शीर्षक हो सकते हैं-
1. सत्यमेव जयते 2. ईमानदारी का फल । 1. ‘नमक का दारोगा’ प्रेमचन्द की आदर्शवादी कहानी है। जिसमें यह बताया गया है कि जो ईमानदारी, नैतिकता, धर्म एवं सत्य पर दृढ़ रहते हैं अन्तिम विजय उन्हीं की होती है। मुंशी वंशीधर ने अलोपीदीन की रिश्वत ठुकरा दी और अपनी ईमानदारी का परिचय दे दिया। भले ही उन्हें विभाग से निलम्बित कर दिया गया हो पर अलोपीदीन उनकी ईमानदारी से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपनी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर दिया। इसीलिए इस कहानी का शीर्षक हो सकता है- सत्यमेव जयते।
2. शीर्षक कहानी की जान होता है, क्योकि शीर्षक देखकर ही लोग कहानी की विषय-वस्तु का अनुमान कर उसे पढ़ना प्रारंभ करते हैं। वंशीधर की ईमानदारी ही इस कहानी की मुख्य घटना है और उस ईमानदारी का फल उन्हें ऊँचे वेतन वाली नौकरी के रूप में अलोपीदीन ने प्रदान किया। इसलिए कहानी का उपयुक्त शीर्षक ‘ईमानदारी का फल’ भी हो सकता है।
प्रश्न 6. कहानी के अन्त में अलोपीदीन द्वारा वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अन्त किस प्रकार करते ?
उत्तर- कहानी के अन्त में अलोपीदीन द्वारा वंशीधर को अपनी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करने के उपयुक्त कारण ये हैं-
1. अलोपीदीन वंशीधर की ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता देखकर दंग थे। आज की दुनिया में ऐसा ईमानदार आदमी मिलना कठिन था।
2. अलोपीदीन अनुभवी व्यक्ति थे। जो व्यक्ति चालीस हजार की रिश्वत ठुकरा सकता है, वह कितना ईमानदार एवं कर्तव्यपरायण होगा। ऐसा विश्वासपात्र व्यक्ति उन्हें फिर कहाँ मिल सकता था ? इसीलिए उन्होंने वंशीधर को अपनी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त कर दिया।
3. अलोपीदीन बहुत बड़े जमींदार थे। उनके पास अनुचित उपायों से अर्जित ढेरों धन भी था। लेकिन इस सारे वैभव की सुरक्षा और सुप्रबंध के लिए मुंशी वंशीधर जैसे विश्वासपात्र कर्मचारी की आवश्यकता थी वैसा व्यक्ति मिलना आज के समाज में बहुत कठिन था। अतः अलोपीदीन ने एक परखे हुए व्यक्ति (वंशीधर) को सबसे उपयुक्त पात्र माना। वंशीधर को मैनेजर बनाकर पंडित अलोपीदीन का स्वार्थ तो सिद्ध हो ही गया, पाप का प्रायश्चित भी हो गया।
पाठ के आसपास के प्रश्न
प्रश्न 1. दारोगा वंशीधर गैर-कानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है लेकिन कहानी के अन्त में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से क्या वंशीधर का ऐसा करना उचित था ? आप उसकी जगह होते तो क्या करते ?
उत्तर- दारोगा वंशीधर ने गैरकानूनी काम करने पर पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार किया था और ऐसा करके अपने कर्त्तव्य का पालन ही किया था। किन्तु अलोपीदीन से उनकी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी। अतः जब अलोपीदीन वंशीधर के घर नौकरी का अच्छा-खासा प्रस्ताव लेकर आए तो वंशीधर ने उसे स्वीकार करके कोई गलत काम नहीं किया। आज के समाज में स्वीकृत चरित्र के मानदण्डों के हिसाब से तो मुझे इस प्रस्ताव को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन अनुचित और गैर-कानूनी कार्यों से कमाई गई सम्पत्ति का संरक्षक बनने को मेरी अन्तरात्मा शायद स्वीकार नहीं कर पाती।
प्रश्न 2. नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों ?
उत्तर- नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी इसलिए ललचाता था कि ओहदा भले ही बड़ा न हो किन्तु इसमें ऊपरी आमदनी (रिश्वत) बहुत थी इसलिए लोग अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर भी इस पद पर नौकरी करने को ललचाते थे। वर्तमान समय में भी कई पद इस प्रकार के हैं जिनमें ऊपरी आमदनी बहुत है। आयकर अधिकारी, व्यापार कर अधिकारी, सीमाशुल्क अधिकारी के साथ-साथ कुछ पद ऐसे भी हैं जिनमें अधिकतर रौब रुतबा एवं ऊपरी आमदनी बहुत अधिक है। पुलिस विभाग में उच्चाधिकारी, जिले के कलक्टर या मुख्य विकास अधिकारी का पद इसी श्रेणी का है। इन पदों के अधिकार भी हैं और ऊपरी आमदनी भी। अतः लोग इन पदों को पाने के लिए ललचाते हैं।
प्रश्न 3. अपने अनुभवों के आधार पर बताइए कि जब आपके तर्कों ने आपके भ्रम को पुष्ट किया हो।
उत्तर- एक बार मैं घर से बाहर निकल रहा था। बिजली अचानक चली गई और रात का अँधेरा था। दरवाजे के बाहर तीन फीट की रस्सी का टुकड़ा टेढ़ा-मेढ़ा पड़ा था। मुझे भ्रम हुआ कि शायद साँप है। तभी ऐसा लगा जैसे यह टुकड़ा हिल रहा है। शायद हवा चलने से उसमें कुछ हरकत हुई। मुझे लगने लगा कि निश्चय ही यह सर्प है और मैं सहायता के लिए पुकारता हुआ घर के भीतर जा पहुँचा। घर से दो-तीन लोग लाठी लेकर आए और जब लाठी से उस टुकड़े को टटोला गया तब पता चला कि यह तो रस्सी है, साँप नहीं।
प्रश्न 4. ‘पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया। वृद्ध मुंशीजी द्वारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गयी थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए-
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।
(ग) पढ़ना-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा : साक्षरता अथवा शिक्षा ? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं ?)
उत्तर- पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया का तात्पर्य है कि तुम्हारी शिक्षा व्यर्थ चली गयी। शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान देकर विवेक प्रदान करती है, जिससे व्यक्ति में अपना भला-बुरा सोचकर निर्णय लेने की क्षमता आती है। किन्तु वंशीधर ने इतनी अच्छी नौकरी पाकर भी विवेक से काम नहीं लिया और अलोपीदीन जैसे धनवान् व्यक्ति को गिरफ्तार कर उनसे बैर मोल ले लिया। यह बात वृद्ध मुंशीजी (वंशीधर के पिता) के गले नहीं उतर रही थी। इतना अच्छा पद मिलने के बाद भी जो ईमानदारी दिखाता हो, फिर उसे वृद्ध मुंशीजी मूर्ख तो मानेंगे ही।
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो। कभी-कभी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उसकी पढ़ाई-लिखाई व्यर्थ है क्योंकि जीवन के वास्तविक अनुभव से वह शून्य है। बाहुबली जब किसी पढ़े-लिखे को धमकाते हैं और अपना रौब गालिब करते हैं, तब मुझे लगता है कि पढ़ाई-लिखाई व्यर्थ है। गुण्डों की समाज में धाक है, पढ़े-लिखों को कोई पूछता नहीं। (ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो-
मेरे परिवार में मेरे पिता एक सफल वकील हैं। बड़े भाई डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर हैं और मेरी माँ भी कॉलेज की प्रधानाचार्या हैं। इसे देखकर मुझे लगा कि शिक्षा प्राप्त करना कभी व्यर्थ नहीं हो सकता।
(ग) ‘पढ़ना-लिखना’ शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त है, साक्षरता के अर्थ में नहीं। शिक्षा और साक्षरता समानार्थी नहीं है। जिसे केवल अक्षर ज्ञान हो और जो अपना नाम लिख लेता हो, किताव पढ़ सकता हो वह साक्षर होता है, किन्तु जो ज्ञानवान् है, शिक्षित है, विवेकवान् है उसे लोग पढ़ा-लिखा कहते हैं।
प्रश्न 5. ‘लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’ वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है ?
उत्तर- लड़कियों की तुलना घास-फूस से करके लेखक ने उनके प्रति अच्छा भाव नहीं दिखाया है। समाज में लड़कियों की स्थिति घास-फूस की तरह बताई है जो अनचाहे ही उग आती हैं और जल्दी ही बढ़ने लगती है। घास-फूस की कोई देखभाल नहीं की जाती। इसी प्रकार समाज में लड़कियों के खान-पान की कोई व्यवस्था नहीं करता। फिर भी वे बहुत जल्दी बड़ी हो जाती हैं। और उनके विवाह की चिंता घरवालों को सताने लगती है। यही इस वाक्य के द्वारा व्यक्त किया गया है।
प्रश्न 6. “इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आये। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करने वाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आये। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।” अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? उपर्युक्त टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए लिखें।
उत्तर- अलोपीदीन धनवान्, साधन-सम्पन्न और चलते पुरजा व्यक्ति थे। ऐसे व्यक्ति गैरकानूनी काम करते हुए भी कानून के पंजे में नहीं फँसते। धन-बल से वे जिसे चाहें खरीद सकते हैं और जो चाहें करा सकते हैं।
मेरे पड़ोस में भी एक चलते पुरजा धनवान सज्जन निवास करते हैं। पर एक दिन जब उनके यहाँ आयकर की टीम का छापा पड़ा
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प्रश्न 1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
उत्तर- वृद्ध मुंशीजी ने अपने बेटे वंशीधर को समझाते हुए कहा कि नौकरी मे ‘ओहदा’ उतना महत्त्वपूर्ण नहीं जितनी महत्त्वपूर्ण ऊपरी आमदनी है। ‘ओहदा’ तो पीर का मजार है जिसके दर्शन करने लोग आते हैं पर असली कमाई तो मजार पर चढ़ने वाली चादरों और चढ़ावे से होती है, अतः इसी पर निगाह रखनी चाहिए। उनके कथन का आशय यह था कि ओहदा चाहे छोटा ही क्यों न हो पर ऊपरी आमदनी अधिक हो, ऐसी नौकरी तुम्हें अपने लिए तलाशनी है।
प्रश्न 2. इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलम्बन ही अपना सहायक था ?
उत्तर- वंशीधर जब नौकरी खोजने के लिए निकले तो उनके पिता ने सीख दी कि ओहदे (पद) पर नहीं अपितु ऊपरी आमदनी पर ध्यान देना अर्थात् ऐसी नौकरी खोजना जिसमें पद चाहे छोटा हो क्यों न हो पर ऊपरी आमदनी अधिक होनी चाहिए।
वंशीधर आज्ञाकारी पुत्र थे, अतः पिता की बातें ध्यान से सुनीं, परन्तु वे ईमानदार, विवेकवान् एवं कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति थे। इस संसार में धैर्य हो उनका मित्र था, बुद्धि हो उन्हें मार्ग दिखाने वाली पथ-प्रदर्शक थी और उन्हें केवल अपने आत्मबल का ही सहारा था।
प्रश्न 3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
उत्तर- रात के समय जब नमक के दारोगा पद पर नवनियुक्त मुंशी वंशीधर की आँखें खुलीं तो उन्हें बैलगाड़ियों की गड़गड़ाहट और मल्लाहों का शोर सुनाई पड़ा। वे समझ गए कि अवश्य ही कुछ गड़बड़ है। रात के समय इतना शोर क्यों है ? जरूर कोई गोलमाल है, इस तर्क ने उनका भ्रम पुष्ट कर दिया है, अतः वरदी पहनकर और रिवाल्वर लेकर वे घोड़े पर चढ़कर मामले की तहकीकात करने पुल पर जा पहुँचे।
प्रश्न 4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसा चाहती हैं नचाती हैं।
उत्तर- अलोपीदीन जानते थे कि धन की महिमा अपार है। लक्ष्मी (धन) की शक्ति से वे परिचित थे और जानते थे कि लक्ष्मी न्याय, नीति को अपनी इच्छानुसार नचा सकती है, क्योंकि धन के बल पर न्याय और नीति को खरीदा जा सकता है। धन की विजय होती है. न्याय और नीति को आहत होना पड़ता है।
प्रश्न 5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी ?
उत्तर- अलोपोदीन को जब गैर-कानूनी नमक का व्यवसाय करते पकड़ लिया गया और हथकड़ी लगाकर अदालत ले जाया गया तो लोग तरह-तरह की आलोचनाएं एवं टीका-टिप्पणी करने लगे। ऐसे-ऐसे लोग जो स्वयं अनेक प्रकार की बेईमानी करते थे, गैर-कानूनी काम करते थे, अलोपीदीन की निन्दा इस तरह कर रहे थे, कि जैसे ये स्वयं देवताओं को भांति निष्पाप और पवित्र हो। किन्तु सच्चरित्रता, कर्तव्यनिष्ठा, स्वच्छ व्यवहार और नैतिकता आदि गुणों के महत्व पर लोगों का ध्यान नहीं जाता था। उनकी ओर से लोगों ने आंखें बंद कर रखी थीं, वे सो रहे थे।
प्रश्न 6. खेद ऐसी समझ पर! पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।
उत्तर- वृद्ध मुंशी को जब यह पता चला कि उनका बेटा मुशी वंशीधर नमक का दारोगा बनकर भी ऊपरी कमाई नहीं करता, रिश्वत नहीं लेता तो उन्हें उसको विवेक-बुद्धि पर तरस आने लगा। वे मन ही मन बड़बड़ाते कि मुझे तो इसकी समझ पर खेद है, इसकी पढ़ाई-लिखाई व्यर्थ गई, क्योंकि यह तो अपना भला बुरा ही नहीं सोच पाता। ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलता। ऊपरी आमदनी करके घर की हालत सुधारता, यह तो सूखी तनख्वाह ही लेता है। इसे नौकरी करने और ऊपरी कमाई करने की तमीज ही नहीं है। इसीलिए वे वंशीधर पर असंतोष व्यक्त करते हुए सोच रहे थे कि इसकी पढ़ाई-लिखाई अकारथ (व्यर्थ) चली गई।
प्रश्न 7. धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
उत्तर- अलोपीदीन को अपने धन की शक्ति पर बड़ा विश्वास था और वे सोचते थे कि धन (रिश्वत) से किसी को भी खरीदा जा सकता है, किन्तु जब मुंशी वंशीधर ने उनकी भारी रिश्वत की पेशकश ठुकरा दी और अपने जमादार को हुक्म दिया कि पंडित अलोपीदीन को गैर-कानूनी नमक का व्यवसाय करने पर हिरासत में ले लो, तब ऐसा लगा जैसे धन को ताकत क्षीण हो गई, वह परास्त हो गया और धर्म जीत गया। इसीलिए कहानीकार ने लिखा है कि धन को पैरों तले कुचल डाला।
प्रश्न 8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
उत्तर- अलोपीदीन को हथकड़ी लगाकर अदालत में ले जाया गया। अलोपीदीन धनवान व्यक्ति थे। अदालत में सब उन्हीं के पक्षधर थे। अमले (कर्मचारी), वकील, मजिस्ट्रेट सबको उन्होंने धन से सन्तुष्ट कर रखा था। मुकद्दमा लड़ने के लिए वकीलों की पूरी फौज तैयार की गई थी। यह सब अलोपीदीन के धन का प्रताप था। दूसरी ओर मुंशी वंशीधर के पास केवल सत्य और धर्म का बल था।
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Question 1. Which character in the story impresses you the most and why?
Answer- ‘Namak Ka Daroga’ is an idealistic story composed by Premchand whose most influential character is Munshi Vanshidhar. He is the hero of this story and is the focal point of the entire events. The main objective of the storyteller is to present the bright side of his character. Vanshidhar is an able, dutiful, honest, ethical, self-respecting and courageous person. His strength of character is exemplary. Premchand ji has envisioned an ideal character in his form and has given this message from the story that the one who stays on truth, justice, honesty and morality, the final victory is his.
Munshi Vanshidhar had arrested Pandit Alopidin while stealing salt. An attempt was made to give him a huge bribe but he did not budge. Alopidin was released from the court with his money power but his heart was so impressed by Vanshidhar’s honesty that he appointed Vanshidhar as the manager of his zamindari on a high salary. Thus proclaiming the victory of truth and honesty, Premchand has presented it as an idealistic story. This is the reason why the character of the story, Munshi Vanshidhar impresses us the most.
Question 2. Which two aspects of Pandit Alopidin’s personality emerge in the story ‘Namak Ka Daroga’?
Answer- Two main qualities of Pandit Alopidin’s personality are- 1. Being familiar with the power of money, 2. Qualities of customer
1. Introduction to the power of money-Pandit Alopidin was familiar with the power of money and knew that everything could be achieved with money. The power of money, which Pandit ji was considering as the biggest power, was crushed under the feet of religion (truth). But in the court, all the lawyers, Mukhtar, Alopidin did it in their favor on the power of money, as a result, Alopidin was acquitted and Munshi Vanshidhar was suspended from the post of salt inspector.
2. Qualities Customer – So far Alopidin had not found such a person who was as honest and dutiful as Vanshidhar. With the help of their wealth, they could buy whomever they wanted and make them bow down as per their wish, but they could not make Vanshidhar bow down. He needed a man of such strong character to protect his vast wealth.
Only a week later, he came to Vanshidhar’s house and gave a stamped letter appointing Vanshidhar as the permanent manager of his zamindari and said that please accept this post. Along with six thousand annual salary, many facilities, servants, rides, bungalow mufta, this was a big salary at that time. Alopidin said – I don’t need scholar and experience or efficiency, I just want a person like you who is honest, firm-committed, dutiful and stable on religious ethics as the manager of my property.
Question 3. Almost all the characters in the story reveal some or the other truth of the society. In the context of the following characters, quoting that passage from the text, state which truth of the society they reveal – (a) Old scribe (b) Lawyer (c) Crowd of the city
Answer- The specialty of Premchand’s stories is that his characters present the reality of life. The following characters of the story ‘Namak Ka Daroga’ reveal the truth of the society.
(a) old scribe-
(A) Part of the lesson – Son! Do not pay attention to the position in the job, this is the tomb of the pir. The eye should be kept on offerings and sheets. Finding work that has some top income. Monthly salary is like the full moon, which appears for one day and disappears gradually. Upper income is a flowing source that always quenches the thirst. The upper income is given by God, it is because of this that he is blessed.
(b) The truth of the society – Through the medium of the old scribe, the storyteller has exposed the nature of the guardians of the society, who indulge in unethical behavior, bribery, corruption to earn money instead of imparting good manners to their sons. inspire. Son, we don’t emphasize on honesty, dutifulness and policy, but we emphasize on the fact that by earning money as soon as possible, fulfill our needs. We have pinned our hopes on you. When Vanshidhar was suspended due to honesty and devotion to duty, then the old scribe abused the son. On coming to Alopidin’s house, he says what to do, my son has turned out to be a cripple.
(b) advocate-
(A) Part of the text – The lawyers heard the verdict and jumped. Pandit Alopidin came out smiling. Kin and relatives looted the money. The ocean of generosity rose up, its waves shook the very foundations of the court.
(B) The truth of the society- Today justice does not prevail in the courts, untruth prevails. Lawyers win any weak case on the power of money by preparing false witnesses. Then they get exorbitant amount from the rich person. Today the poor do not get justice. Honest and dutiful people yearn for justice and dishonest people turn justice in their favor on the power of money, this truth is being exposed by the storyteller.
(c) City congestion-
(A) Excerpt of the text- The world used to sleep but the tongue of the world used to wake up. If you see in the morning, the same thing was heard from the mouth of everyone, child and old. Whoever was commenting on this behavior of Panditji, there were showers of condemnation, as if the sins of all the sinners were cut off from the world. The cowherd who sells water in the name of milk, the officer class who fills fictitious daily books, the babu people who travel without ticket in the train, the Seth moneylender who makes fake documents, all these were running their necks like gods.
(B) The reality of the society When a good or big person gets trapped in some legal trap, the crowd of the city watches his spectacle with great curiosity. Such people who are stuck in dishonesty till their neck, behave unethically, they also do not desist from commenting. When the crowd of the city saw Alopidin going to the court in handcuffs, people started saying different things. Even though they all have been behaving unethically in daily life. But today they were taking full advantage of the opportunity they got to sneer at Alopidin.
Question 4. Read the following lines carefully – Don’t pay attention to the position in the job, this is the tomb of the pir. The eye should be kept on offerings and sheets. Finding work that has some upper income. Monthly salary is like the full moon, which appears for one day and disappears gradually. Upper income is a flowing source that always quenches the thirst. Salary is given by man, it does not increase due to this. God gives the upper income, it is because of this that he is blessed, you yourself are a scholar, what should I explain to you.
(a) Whose statement is this?
(b) Why is the monthly salary called the full moon?
(c) Do you agree with this statement of a father?
Answer- (a) This statement is of Munshi Vanshidhar’s father (old Munshi).
(b) As the moon becomes full on the full moon, then its occurrence starts and by the time the new moon comes, it disappears completely. Similarly, the monthly salary is received in full once and expenses are kept on daily, due to which it keeps on decreasing and one day it is fully spent. That’s why the monthly salary has been called the full moon.
(c) No, I do not agree with this statement. If a father asks his son to take bribe, it is not fair in any way. It is the duty of the father to give good manners to his son and not to encourage him to take bribe.
Question 5. Explain the basis of the story ‘Namak Ka Daroga’ giving any two other titles.
Answer- There can be two other titles of the story Namak Ka Daroga-
1. Satyamev Jayate 2. Fruit of honesty. 1. ‘Namak Ka Daroga’ is an idealistic story by Premchand. In which it has been told that those who remain firm on honesty, morality, religion and truth, only they get the final victory. Munshi Vanshidhar rejected Alopidin’s bribe and showed his honesty. Even though he was suspended from the department, Alopidin was so impressed by his honesty that he appointed him as the permanent manager of his estate. That is why the title of this story can be- Satyamev Jayate.
2. The title is the life of the story, because only after seeing the title, people guess the content of the story and start reading it. Vanshidhar’s honesty is the main event of this story and the result of that honesty is provided to him by Alopidin in the form of a high paying job. Therefore, the suitable title of the story can also be ‘Fruit of honesty’.
Question 6. What could be the reason behind Alopidin appointing Vanshidhar as manager at the end of the story? Answer with reason. How would you end this story?
Answer: At the end of the story, the appropriate reasons for Alopidin appointing Vanshidhar as the permanent manager of his estate are:
1. Alopidin was stunned to see Vanshidhar’s honesty and dutifulness. Such an honest man was hard to find in today’s world.
2. Alopidin was an experienced person. The person who can reject a bribe of forty thousand, how honest and dutiful he must be. Where else could he find such a trustworthy person? That’s why he appointed Vanshidhar as the permanent manager of his property.
3. Alopidin was a big landlord. He also had a lot of money earned through unfair means. But it was very difficult in today’s society to find a trustworthy employee like Munshi Vanshidhar for the security and well-management of all this splendor. Therefore, Alopidin considered a tested person (vanshidhar) to be the most suitable person. By making Vanshidhar the manager, Pandit Alopidin’s selfishness was not only proved, but his sin was also atoned for.
questions around the text
Question 1. Daroga Vanshidhar arrests Pandit Alopidin for illegal activities, but at the end of the story, this same Pandit Alopidin gets ready for the manager’s job after being fascinated by the kind heartedness of this Pandit. In your opinion, was Vanshidhar justified in doing so? What would you have done if you were in his place?
Answer- Daroga Vanshidhar had arrested Pandit Alopidin for doing illegal work and by doing so he had only performed his duty. But he had no personal enmity with Alopidin. So when Alopidin came to Vanshidhar’s house with a good job offer, Vanshidhar did nothing wrong by accepting it. According to the standards of character accepted in today’s society, I should not have had any objection in accepting this proposal. But my conscience may not accept being the custodian of property earned through unfair and illegal activities.
Question 2. Seniors used to yearn for the post of inspector of the salt department. In the present society, which would be such a position that people would be eager to get and why?
Answer- Elders used to get tempted for the post of Inspector of Salt Department because even though the post may not be big but it had a lot of top income (bribery) that’s why people were tempted to work on this post even after leaving a good job. At present also there are many posts of this type in which there is a lot of upper income.
Along with Income Tax Officer, Business Tax Officer, Customs Officer, there are some posts in which most of the status and upper income is very high. The post of High Officer, District Collector or Chief Development Officer in the Police Department belongs to this category. These positions have rights as well as upper income. So people are tempted to get these posts.
Question 3. On the basis of your experiences, tell when your arguments have confirmed your confusion.
Answer- Once I was going out of the house. The electricity suddenly went off and it was dark at night. A three feet long piece of rope was lying crooked outside the door. I got confused that maybe there is a snake. Then it felt as if this piece was moving. Perhaps the wind caused some movement in it. I started feeling that it was definitely a snake and I reached inside the house calling for help. Two-three people brought sticks from the house and when the piece was felt with the stick, it was found that it was a rope and not a snake.
Question 4. ‘Reading and writing all went in vain. This thing was said by old Munshiji in a specific context. Tell on the basis of your personal experiences-
(a) When you have found reading and writing useless.
(b) When you have found reading and writing worthwhile.
(c) In what sense ‘reading and writing’ would have been used: literacy or education? (Do you consider these two to be the same?)
Answer- Reading and writing all went in vain means that your education went in vain. Education gives a person wisdom by giving him knowledge, due to which a person gets the ability to take decisions by thinking about his own good and bad. But Vanshidhar did not work with discretion even after getting such a good job and by arresting a rich person like Alopidin, took enmity with him. This thing was not acceptable to old Munshiji (Vanshidhar’s father). Even after getting such a good post, the one who shows honesty, then the old Munshiji will consider him a fool.
(a) When you have found reading and writing useless. Sometimes a person feels that his education is useless because he is devoid of real experience of life. When Bahubali threatens an educated person and shows his power, then I feel that education is useless. Goons are in danger in the society, no one asks the educated. (b) When you have found it worthwhile to read and write-
In my family my father is a successful lawyer. Elder brother is a professor in degree college and my mother is also the principal of the college. Seeing this, I felt that getting education can never be in vain.
(c) ‘Reading’ is used in the sense of education, not in the sense of literacy. Education and literacy are not synonymous. The one who knows only letters and can write his name, can read a book is literate, but the one who is knowledgeable, educated, intelligent is called educated.
Question 5. ‘There are girls, they go on growing like weeds.’ What reality of the status of girls in the society does the sentence reveal?
Ans- The author has not shown a good attitude towards the girls by comparing them with grass. The status of girls in the society has been described as like a weed which grows unwantedly and starts growing soon. Weeds are not taken care of. Similarly, no one makes arrangements for the food and drink of the girls in the society. Yet they grow up very quickly. And the family members start worrying about their marriage. This is what is expressed by this sentence.
Question 6. “Not because of why Alopidin did this deed but because of how he came into the clutches of the law. Why should such a man, who has immense wealth and exceptional eloquence, come under the clutches of the law? Everyone sympathized with him. How would you react seeing people like Alopidin around you? Write keeping the above comment in mind.
Answer – Alopidin was a wealthy, resourceful and well-to-do person. Such persons do not get trapped in the claws of the law even after doing illegal work. With money power, they can buy whatever they want and get whatever they want done.
A very wealthy gentleman lives in my neighborhood as well. But one day when the income tax team raided his place
Next Questions Please explain
Question 1. Do not pay attention to the position in the job, this is the tomb of the pir. The eye should be kept on offerings and sheets.
Answer– Old Munshiji explaining to his son Vanshidhar said that the ‘position’ in the job is not as important as the upper income. ‘Ohda’ is the tomb of the Pir, which people come to visit, but the real income is made from the sheets and offerings made on the tomb, so one should keep an eye on this. The meaning of his statement was that even if the position is small but the upper income is high, you have to find such a job for yourself.
Question 2. In this wide world, patience was his friend, wisdom was his guide and self-reliance was his helper.
Answer– When Vanshidhar went out to find a job, his father taught him not to pay attention to the rank (post) but to pay attention to the upper income, that is, to find a job in which the position may be small Why not, but the upper income should be more.
Vanshidhar was an obedient son, so listened to his father’s words carefully, but he was an honest, prudent and dutiful person. Patience was his friend in this world, wisdom was the guide to show him the way and he only had the support of his self-power.
Question 3. Logic confirms the fallacy.
Answer– When the eyes of the newly appointed scribe Vanshidhar opened at night, he could hear the rumbling of bullock carts and the noise of boatmen. They understood that there must be something wrong. Why is it so noisy at night? There must be some breakup, this logic has confirmed his illusion, so wearing uniform and carrying a revolver, he mounted a horse and went to the bridge to investigate the matter.
Question 4. Justice and policy are all the toys of Lakshmi, she makes them dance as she wants.
Answer – Alopidin knew that the glory of wealth is immense. He was familiar with the power of Lakshmi (money) and knew that Lakshmi can make justice and policy dance according to her wish, because justice and policy can be bought on the power of money. Money wins. Justice and policy have to be hurt.
Question 5. The world used to sleep, but the tongue of the world was awake?
Answer– When Alopodin was caught doing illegal salt business and was taken to the court in handcuffs, people started making various criticisms and comments. Such people, who themselves used to do many kinds of dishonesty, used to do illegal things, were condemning Alopidin in such a way that he was innocent and pure like the gods themselves. But people did not pay attention to the importance of qualities like good character, conscientiousness, clean behavior and morality. People from his side had closed their eyes, they were sleeping.
Question 6. Sorry for such an understanding! Reading and writing all went in vain.
Answer– When the old Munshi came to know that his son Mushi Vanshidhar does not earn top income even after being a salt keeper, does not take bribe, then he started feeling sorry for his conscience. They grumble in their heart that I am sorry for his understanding, his education and writing went in vain, because he cannot even think about his own good or bad. Such an opportunity does not come often. He would have improved the condition of the house by earning extra income, but he only takes a dry salary. It doesn’t have the manners to do a job and earn extra money. That’s why they were expressing dissatisfaction on Vanshidhar thinking that his studies went in vain.
Question 7. Religion crushed wealth under its feet.
Ans- Alopidin had great faith in the power of his money and thought that anyone can be bought with money (bribe), but when Munshi Vanshidhar rejected his offer of huge bribe and ordered his jamadar that Pt. Take Alopidin into custody for doing illegal salt business, then it seemed as if money lost its power, it was defeated and religion won. That is why the storyteller has written that money was crushed under his feet.
Question 8. There was a war between religion and money in the field of justice.
Ans– Alopidin was taken to the court in handcuffs. Alopidin was a rich man. Everyone in the court was in favor of him. He had satisfied all the employees, lawyers, magistrates with money. An entire army of lawyers was prepared to fight the case. All this was the glory of Alopidin’s wealth. On the other hand, Munshi Vanshidhar had only the power of truth and religion.