हनुमान चालीसा || Hunuman Chalisa ||
पवन पुत्र:- हनुमान चालीसा एक प्रसिद्ध हिंदू भजन है, जो हनुमान जी की महिमा का गुणगान करता है। यह चालीसा 40 श्लोकों से मिलकर बनी है, जिन्हें तुलसीदास ने लिखा था। इसमें हनुमान जी की कुशलता, वीरता, और उनके भक्तों पर प्रभाव का वर्णन है। यह भजन उनके प्रशंसकों द्वारा उनके प्रति श्रद्धा और आदर का अभिव्यक्ति के रूप में प्रयोग किया जाता है। चालीसा का पाठ करने से मान्यता है कि भक्त हनुमान जी के कृपादृष्टि से संयम, शक्ति, और सुख को प्राप्त कर सकते हैं।
हनुमान जी हिंदू धर्म के प्रमुख देवता में से एक हैं। उन्हें वानर राजा के पुत्र के रूप में जाना जाता है। हनुमान जी को सामर्थ्य, वीरता, और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। उनका ध्यान राम भक्ति में करने पर माना जाता है, और वे प्रभु राम के सबसे प्रिय भक्त में एक हैं। हनुमान जी की कथाएँ रामायण में मिलती हैं, जो उनके वीरता और निःस्वार्थ प्रेम को दर्शाती हैं। उनकी पूजा और भजन भारतीय संस्कृति में व्यापक है।
श्री हनुमान चालीसा के लेखक तुलसीदास हैं। वे एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और संत थे, जिन्होंने रामायण, हनुमान चालीसा, और अन्य धार्मिक ग्रंथों की रचना की। उनका जन्म सन् 1532 में हुआ था। तुलसीदास की रचनाओं में भक्ति, प्रेम, और आध्यात्मिकता का उत्कृष्ट व्यक्तित्व को दर्शाया गया है। उनकी काव्य-रचनाएँ आज भी हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में सम्मिलित हैं और लोग उन्हें श्रद्धा से पढ़ते हैं।
हनुमान चालीसा का पाठ करने के कई फायदे होते हैं:
- शांति और सुख: हनुमान चालीसा का पाठ करने से मान्यता है कि भक्त को शांति और सुख मिलता है।
- भक्ति में वृद्धि:चालीसा के पाठ से हनुमान जी की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है और भक्ति में उत्साह उत्पन्न होता है।
- शत्रु नाश: चालीसा का पाठ करने से भक्त के शत्रुओं का नाश होता है और उन्हें सुरक्षित रखता है।
- मनोबल और आत्मविश्वास: हनुमान चालीसा का पाठ करने से मानव का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- रोगनाशन: इस चालीसा के पाठ से रोगों का नाश होता है और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- कष्टों का निवारण: हनुमान चालीसा का पाठ करने से भक्त के कष्टों और संकटों का निवारण होता है और उन्हें संबल मिलता है।
- कार्य सिद्धि: यह चालीसा कार्यों की सफलता और सिद्धि के लिए भी प्रसिद्ध है, और भक्त को उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं। दोहा :
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
सरल अर्थ– श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।
सरलअर्थ– हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन (याद) करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों व दोषों को हर लिजिए।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
सरलार्थ:- हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है, तुम ज्ञान के सागर हो। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों में, स्वर्ग लोक में, भूलोक में और पाताल लोक में आपकी कीर्ति और यश है।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
सरलार्थ:- हे पवनसुत अंजनी नंदन श्री हनुमान! आपके समान तीनों लोकों में दूसरा बलवान कोई नहीं हैं।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
सरलार्थ:- हे महावीर बजरंग बली!आप विशेष पराक्रम वाले हैं। आप दुर्बुध्दि का विनाश करते हैं, और सद्बुद्धि वालों के साथी, सहायक हैं।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
सरलार्थ:- श्री हनुमानजी आप का सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
सरलार्थ:- आपके हाथ में वज्र और पताका है और कन्धे पर मूंज की जनेऊ की शोभा है।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
सरलार्थ:- महादेव के अवतारी! हे केसरी नंदन आपके शौर्य और महान यश की पूरे जगत में वन्दना होती है।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
सरलार्थ:- आप प्रकान्ड विद्या निधान हैं, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम के काज करने के लिए हर पल आतुर रहते हो।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सरलार्थ:- आप श्री रामचरित सुनने में आनन्द रस लेते हैं। भगवान श्री राम, सीता और लक्ष्मण आपके हृदय में हर पल बसे रहते हैं।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
सरलार्थ:- आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप लके लंका को जलाया।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
सरलार्थ:- आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के कार्य को सफल किया।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
सरलार्थ:- आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को नया जीवन दिलाया । जिससे श्री राम ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सरलार्थ:- श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत बड़ाई की और कहा कि तुम मेरे भरत के जैसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सरलार्थ:-श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया कि तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
सरलार्थ:- श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते हैं।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
सरलार्थ:- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
सरलार्थ:- आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
सरलार्थ:- आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
सरलार्थ:- जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
सरलार्थ:- आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
सरलार्थ:- संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सरलार्थ:- श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले हैं, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
सरलार्थ:- जो भी आपकी शरण में आते हैं, उस सभी को आनन्द प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक हैं, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
सरलार्थ:- आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते हैं।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
सरलार्थ:- जहां महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहां भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
सरलार्थ:- वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते हैं और सब पीड़ा मिट जाती है।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सरलार्थ:- हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
सरलार्थ:- तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
सरलार्थ:- जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
सरलार्थ:- चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
सरलार्थ:- हे श्री राम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
सरलार्थ:- आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते
है।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
सरलार्थ:- आप निरंतर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
सरलार्थ:-आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते हैं और जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते हैं।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
सरलार्थ:- अंत समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते हैं और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलाएंगे।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
सरलार्थ:- हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
सरलार्थ:- हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सब पीड़ा मिट जाती हैं।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
सरलार्थ:- हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
सरलार्थ:- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
सरलार्थ:- भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी हैं, जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
सरलार्थ:- हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।