कक्षा 12 हिंदी वितान पाठ 4 डायरी के पन्ने
डायरी के पन्ने लेखिक-परिचय- ऐन फ्रैंक का जन्म 12 जून, 1929 को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में और मृत्यु नाज़ियों के यातनागृह में 1945 के फरवरी या मार्च महीने मैं। ऐन फ्रैंक की डायरी दुनिया की सबसे ज्यादा पढ़ी गई किताबों में से एक है। मूलतः डच भाषा में 1947 में प्रकाशित यह कृति अंग्रेजी में दी डायरी ऑफ़ द यंग गर्ल शीर्षक से 1952 में प्रकाशित हुई। तब से इसके संपादित, असंपादित, आलोचनात्मक, विस्तृत-अनेक तरह के संस्करण आ चुके हैं, इस पर फिल्म, नाटक, धारावाहिक इत्यादि का निर्माण हो चुका है और यह डायरी किसी-न-किसी वजह से लगातार चर्चा में रही है।
पाठ-परिचय– ‘डायरी के पन्ने’ सर्वप्रथम डच भाषा में 1947 में प्रकाशित हुई थी। बाद में अंग्रेजी में ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ शीर्षक से सन् 1952 में प्रकाशित हुई। यह डायरी नाजियों द्वारा यहूदियों पर ढाये गये जुल्मों की भोक्ता तेरह वर्षीया ऐन फ्रैंक ने संवेदनशील शैली में अपने जन्मदिन पर उपहारस्वरूप मिली गुड़िया किट्टी को संबोधित करके लिखी।
कक्षा 12 हिंदी वितान पाठ 4 डायरी के पन्ने के अभ्यास प्रश्नोत्तरी
प्रश्न। यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज है। एक ऐसी आवाज, जो किसी सन्त या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है। इल्या इहरनदुर्ग की इस टिप्पणी के संदर्भ में ऐन फ्रैंक की डायरी के पठित अंशों पर विचार करें।
उत्तर- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर की सेनाओं ने यहूदियों पर अनेक तरह के जुल्म ढहाये थे। साठ लाख यहूदी जो जर्मनी में रहते थे, इन यातनाओं के भोक्ता रहे थे लेकिन उनकी इस पीड़ा को व्यक्त करने वाला कोई नहीं था। ऐसे समय एक तेरह बरस की लड़की ने इस भोगे हुए यथार्थ को एक डायरी के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। अतः लेखक इल्या इहरनवुर्ग ने यह टिप्पणी की कि “एक ऐसी आवाज, जो किसी सन्त या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण लड़की की है।” वास्तव में वह एक उच्च परिवार की एक सामान्य लड़की थी जिसने इस डायरी को लिखा था।
नाजियों द्वारा बुलावा आने पर यह निश्चित था कि यहूदियों को यातना शिविरों में भय और आतंक के साये में रखा जाएगा। सा रणतया यहूदियों को राशन, बिजली आदि का कष्ट भोगना पड़ता था। स्त्रियों का सम्मान भी सुरक्षित नहीं था। सोलह बरस की मार्गोट को बुलावा आने के बाद फ्रैंक परिवार को अज्ञातवास के लिए गुप्त स्थान पर जाना पड़ा, जहाँ ब्लैक आउट के परदे लगे
कमरों में दिन-रात रहना, नाजियों के बुलाने का हर क्षण भय, गिरफ्तारी, हवाई हमला, सेंधमारी से चोरी होना ये सब कष्ट सहने पड़ते थे। तेरह वर्षीय ऐन फ्रैंक ने अपने जन्मदिन के उपहार में मिली डायरी में इन दो वर्षों की यातनाओं को पत्र रूप में लिखा है। यहूदियों पर होने वाले जुल्मों की यह एक जीवंत कहानी बन गई है।
प्रश्न 2 “काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफसोस ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला ।” क्या आपको लगता है कि ऐन के इस कथन में उसके डायरी लेखन का कारण छिपा है ?
उत्तर- जर्मन आतंक के कारण यहूदियों को गुप्त स्थानों पर छिपकर जीवन गुजारना होता था। ऐसे ही दो यहूदी परिवारों के आठ सदस्य एक गुप्त स्थान पर रह रहे हैं। ऐन फ्रैंक उनमें सबसे छोटी मात्र तेरह बरस की बालिका थी। नाजियों की निगाह से बचने के लिए खिड़की, दरवाजे यहाँ तक परदे खोलकर भी नहीं रहा जा सकता था। ऐसे में एक छोटी बालिका अपने मन की बात किससे कहे। मम्मी, मिस्टर डसेल और मिसेज वान-दान सदैव उसकी कमियाँ निकालते रहते थे। उन्हें उसकी बालोचित चेष्टाएँ जैसे फिल्मी नायक-नायिकाओं की तस्वीरों का संग्रह करना भी अच्छा नहीं लगता था।
उस परिवार में पीटर उसे अच्छा लगता था, वह उसकी प्रेम दीवानी थी, उसके बिना एक दिन भी नहीं निकाल सकती थी, लेकिन वह उससे भी खुलकर नहीं मिल सकती। अतः उसने अपने मन के भावों को अभिव्यक्त करने के लिए डायरी लिखना शुरू किया। किसे सम्बोधित करे, उसकी भावनाओं को कोई नहीं समझता था। अत: जन्मदिन पर मिली किट्टी नामक गुड़िया को ही सम्बोधित करके अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए ही उसने डायरी लिखना शुरू किया था।
प्रश्न 3. “प्रकृति प्रदत्त प्रजनन शक्ति के उपयोग का अधिकार बच्चे पैदा करें या न करें अथवा कितने बच्चे पैदा करें- – इसकी स्वतन्त्रता स्त्री से छीनकर हमारी विश्व व्यवस्था ने न सिर्फ स्त्री को व्यक्तित्व-विकास के अनेक अवसरों से वंचित किया है बल्कि जनाधिक्य की समस्या भी पैदा की है।” ऐन की डायरी के 13 जून 1944 के अंश में व्यक्त विचारों के सन्दर्भ में इस कथन का औचित्यउ
त्तर- ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में नाजियों द्वारा यहूदियों पर ढाये गये जुल्मों की पीड़ा को व्यक्त किया है। युद्ध का कारण पुरुषों को अपनी शारीरिक शक्ति पर होने वाले घमण्ड को ही माना जा सकता है। युद्ध में जख्मी या मृत पुरुषों की पूजा की जाती है जबकि संसार की निरंतरता को बनाये रखने की सामर्थ्य रखने वाली स्त्री का सम्मान तक नहीं किया जाता। स्त्री को मात्र बच्चे पैदा करने वाली किसी निर्जीव मशीन की तरह सदैव प्रताड़ित किया जाता है।
विश्व – व्यवस्था में नारी के महत्व को समझा जाना जरूरी है। प्रकृति प्रदत्त प्रजनन शक्ति को नियोजित किया जाना चाहिए। आज नारी अपने अधिकार को समझ रही है, उसे स्वतन्त्रता होनी चाहिए कि वह बच्चे पैदा करे या न करे अथवा कितने करे। बच्चा जनने से उसका शारीरिक आकर्षण क्षीण होता है। जन्म देने की प्रक्रिया बड़ी पीड़ादायक है। अतः उसकी पीड़ा को युद्ध में घायल या शहीद हुए सैनिकों से कम नहीं आँकना चाहिए।
यदि समाज नारी का सम्मान नहीं करेगा तो वह स्वयं इस ओर अग्रसर होगी। ऐसा हो भी रहा है। आज विश्व में जिन क्षेत्रों को सभ्य समझा जाता है वहाँ बच्चा जनना अनिवार्य कार्य नहीं रह गया है। आने वाले समय में यह धारणा और बढ़ेगी जिसमें औरतों का बच्चे पैदा करने वाले की लाइन लगी।
Class 12 Hindi Vitaan Chapter 3 Important Questions