NCERT Solutions for Class 10th: Hindi Kshitij Chapter 3 आत्मकथ्य-जयशंकर (Aatmakthy) Questions and Answer
Class | 10th |
Subject | Sanskrit Solution |
Subject | English Solution |
Subject | Maths Solution |
Subject | Science Solution |
Subject | Social Science Solution |
हम आपके लिए NCERT Solutions for Class 10th: पाठ 3 आत्मकथ्य – जयशंकर प्रसाद हिंदी क्षितिज Book के प्रश्न उत्तर लेकर आए हैं। यह आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस पद का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि वे इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। इसके अलावा आप इस कहानी के अभ्यास प्रश्न भी पढ सकते हो। Aatmakthy Summary of NCERT solutions for Class 10th Hindi Kshitij Chapter 3.
‘आत्मकथ्य’ जयशंकर प्रसाद की छायावादी शैली में लिखी कविता है। इसमें जीवन के यथार्थ तथा अभाव की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। कवि ने ललित, सुन्दर एवं नवीन शब्दों तथा बिंबों के द्वारा बताया है कि उनके जीवन की कथा एक सामान्य मनुष्य के जीवन की कथा है। इसमें कुछ भी रोचक एवं प्रशंसनीय नहीं है। इस कविता से प्रसाद जी की विनम्रता तथा आत्मकथा लिखने के बारे में असहमति व्यक्त होती है। यह कविता प्रेमचन्द द्वारा सम्पादित पत्रिका हंस में सन् 1932 में प्रकाशित हुई थी।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है ? (CRSE 2008, 2017)
उत्तर- कवि निम्नलिखित कारणों में आत्मा लिखने से बचना चाहता है
(क) आत्मकथा लिखने वाले स्वयं को व्यंग्य और उपहास का पात्र बना लेते हैं।
(ख) आत्मकथा लिखने से कवि को अपने मन की दुर्बलताओं भूल और जीवन के रोतेपन का उल्लेख करना होगा जो कवि नहीं चाहता है।
(ग) आत्मकथा में उन लोगों के नाम भी आएँगे जिनने कवि को अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रयोग किया है उसे जला । इन लोगों में कांत्र के मित्र भी हो सकते हैं। कवि सन्नतावश नहीं चाहता कि उसके मित्रों की लजित होना पड़े।
(घ) आवाश्या में कवि को अपने अंतरंग प्रेम-प्रसंगों के विषय में भी लिखना पड़ेगा । कवि के लिए सुख के क्षण उसकी जीवन-यात्रा के पाथेय के समान है। इनकी गोपनीयता भंग करना उसे उचित नहीं लगता।
(ङ) नहीं चाहता कि उसकी बेदनाएँ फिर से हरी हो जाएँ। उसका शांत मन फिर आयाओं से भर जाय।
प्रश्न 2, आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर- कवि के अनुसार यह आत्मकथा लिखने का उचित समय नहीं है। उसने जैसे-तैसे अपनी व्यथाओं को भुलाया है। आत्मकथा लिखकर वह अपनी सोई हुई व्यथाओं को जगाना नहीं चाहता । उसका यह भी मानना है कि अभी उसने ऐसा कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं पाई है जिसका वह आत्मकथा में प्रकाशन करके लोगों की प्रशंसा प्राप्त करें ।
प्रश्न 3. स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर- यात्री अपने साथ मार्ग के लिए जो भोजन आदि सामग्री लेकर चलता है, उसे पाथेय कहा जाता है। इसके सहारे यात्रा सुगम हो जाती है। कवि ने अपने जीवन की मधुर स्मृतियों को अपनी जीवन यात्रा का पाथेय बताया है। इन्हों सहारे वह जीवन बिताने में समर्थ हो सका है। कवि के कठिन, दुःख और संघर्षपूर्ण जीवन में मधुर वर्णो की यादें ही उसका सहारा है।
प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया । आलिंगन में आते आते मुसक्या कर जो भाग गया ।
उत्तर – कषि ने अपनी प्रिया को में भरकर गले लगाने के जो सुख सपने देखे थे वे सपने हो रह गए। प्रेम से परिपूर्ण दांपत्य जीवन बिताने की उनको लालसा अधूरी रह गई। जब जब उन्हें लगा कि अब जीवन प्रेम का सुख भोगते हुए बीतेगा तब-तब क्रूर काल उनको प्रिया को उनसे छीन ले गया ।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में । अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में ।
उत्तर- कवि ने इन पंक्तियों में अपनी प्रिया के मुख को मादक और मनमोहक सुंदरता का सांकेतिक शब्दावली में वर्णन किया है। उसके कपोलों की लालिमा को कपि उपा की लालिमा से भी अधिक मनोहारिणी बता रहा है उसकी प्रेयसी के कपोलों की लालिमा लेकर ही उपा अपना सौभाग्य का सिंदूर सजाती थी।
प्रश्न 5. ‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊं मधुर चाँदनी रातों की’ कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ? (रा. मा. प.2014.2017)
उत्तर कवि कहना चाहता है कि वह अपकी प्रिया के साथ बिताए गए आनंदपूर्ण वर्णों का आत्मकथा में वर्णन नहीं कर सकेगा क्योंकि उसकी यह प्रेम कहानी अधूरी ही रह गई। उसने जिस प्रेम से परिपूर्ण दाम्पत्य जीवन का सपना देखा था वह कभी पूरा नहीं हो सका । उसका सुख भूलवश उसकी बाँहों में आते-आते दूर चला गया । आत्मकथा में इन प्रसंगों का वर्णन उसको वियोग-व्यथा को फिर जगा देगा ।
प्रश्न 6. ‘आत्मकथ्य’ कविता को काव्य भाषा की विशेषताएं उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर- ‘आत्मकथ्य’ कविता को भाषा संबंधी विशेषताएं इस प्रकार है
(1) सरल भाषा का प्रयोग कवि ने सरल शब्दों के प्रयोग से अपने मनोभावों को सफलता से किया है, जैसे- ‘मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज पनी ।”
(2) तत्सम शब्द प्रधान भाषा कविता में संस्कृत तत्सम शब्दावली का भी प्रयोग हुआ है, जैसे- “इस गंभीर अनंत, नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास’ ।
(3) सांकेतिक और प्रतीकात्मक भाषा-कवि ने संकेतों और प्रतीकों का प्रयोग करके भाषा को भाव-व्यंजना में अधिक समर्थ बनाया है। शब्दों को लक्षणशक्ति का उपयोग करते हुए बड़े प्रभावशाली ढंग से अपनी भावनाएँ व्यक्त की – मधुप, मुरझाई पत्तियाँ, गागर रीती, चाँदनी रातें, सीवन, कंथा आदि ऐसे ही सांकेतिक और प्रतीकात्मक शब्द है।
प्रश्न 7. कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर – कवि ने अपने सुखमय- सपने को कथा बड़े मार्मिक शब्दों में व्यक्त को है। उसने अपनी प्रिया के साथ जीवन- भर प्रेम-रस से परिपूर्ण समय बिताने का सपना देखा था, किन्तु उसका यह सुखस्वप्न अधूरा ही रह गया। वह अपनी प्रेयसी के साथ चौदनो रातों में मधुर प्रेमालाप और हास-परिहास का सुख गिनती के दिनों तक हो पा सका था । उसका सुख जैसे बाँहों में आते-आते विलीन हो गया। उसे अपनी प्रिया के विर वियोग की मर्मभेदी व्यथा झेलनी पड़ी ।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8. इस कविता के माध्यम से प्रसादजी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- इस कविता के आधार पर प्रसादजी के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ सामने आती है। – था।
वह अत्यन्त विनम्र विनम्रता प्रसादजी एक महान् कवि थे फिर भी उनके मन में नाममात्र को भी अहंकार नहीं थे। वह स्वयं को दुर्बलताओं से युक्त सामान्य व्यक्ति मानते थे।
सज्जन और संकोची प्रसादजी को अपनी आत्मकथा लिखने में संकोच था । यदि यह आत्मकथा लिखते तो उनके अनेक मित्र अपराधबोध से भर जाते । अतः सज्जनतावश उन्होंने आत्मकथा लिखना स्वीकार नहीं किया।
दुर्भाग्य से पीड़ित व्यक्ति प्रादजी को जीवन में आयात पर आघात झेलने पड़े परिवारीजनों का विछे दुःखद दाम्पत्य जीवन और मित्रों का कपट, सब कुछ झेलते हुए भी वह धीर-गम्भीर बने रहे ।
सरल और मर्यादित सरलता प्रसादजी के जीवन की उल्लेखनीय विशेषता थी। अपनी सरलता के कारण उन्हें – धोखे भी खाने पड़े किन्तु वह विचलित नहीं हुए ।
प्रसादजी ने सदा मर्यादाओं का सम्मान किया। ‘प्रेम’ व्यक्ति का निजी मामला है, उसे आत्मकथा लिखकर सार्वजनिक नहीं किया जा सकता ।
प्रश्न 9. आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों ?
उत्तर- हम जीवन मूल्यों का सम्मान करने वाले, जीवन के किसी भी क्षेत्र में संघर्ष और कर्मठता से विशिष्ट स्थान पाने वाले महान व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे। ऐसे लोगों की आत्मकथाएँ पढ़ने से हमारी जीवन मूल्यों में आस्था बढ़ती है, आत्म-विश्वास बढ़ता है तथा हमें चुनौतियों का सामना करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न 10. कोई भी अपनी आत्मकथा लिख सकता है। इसके लिए विशिष्ट या बड़ा होना जरूरी नहीं हरियाणा राज्य के गुड़गाँव में घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली बेबी हालदार की आत्मकथा ‘आलो आधारि’ बहुतों के द्वारा सराही गई । आत्मकथात्मक शैली में अपने बारे में कुछ लिखिए ।
उत्तर- संकेत परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी नहीं है। छात्र स्वयं लिखें। इसके लिए उत्तमपुरुष वाचक सर्वनाम मैं, मेरा, मुझे, हम इत्यादि तथा सम्बन्धित क्रिया पदों का प्रयोग करें ।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया इस कथन से कधि का क्या आशय है ?
उत्तर- कवि के जीवन में प्रेम का सुख बहुत कम समय तक सीमित रहा। उसने अपनी जोर प्रेम सुख पाने के सपने देखे थे किन्तु उसे अपनी प्रिया के साथ चाँदनी बने और निर्मल हास-परिहास से पूर्ण प्रेमा कुछ मिल पाई। यह प्रेम-मुखको में भरकर आनंदित होने के सौभाग्य से वंचित रह गए।
प्रश्न 2. जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में इस पंक्ति में कवि ने किसका वर्णन किया है ?
उत्तर की प्रेयसी परम रूप भी उसके पलों की लालिमा उसकी लालिमा को भी करने वाल थी उसके मुख का सौन्दर्य महा मादक और मनोहारी उप उसके सिन्दूर के रूप में माँग में भरती थी तथा अपने सौभाग्य को प्रकट कर दी। इसमें ने अपनी इसी मादक सौन्दर्य को प्रकट किया है।
प्रश्न 3. क्या यह अच्छा नहीं कि मैं औरों की सुनता मीन रहूँ ?’ का आशय क्या है?
उत्तर- कवि का अपनी कमजोरियों और दोषों को दूसरों के सामने प्रकट कर नहीं समझा। इससे उसे दूसरों को टीका-टिप्पणी के कुछ भी मिलने वाला नहीं है। अतः वह अपने परिचितों को सुना और चुप रहना हो उचित मानता है।
प्रश्न 4. ‘छोटे से जीवन की बड़ी कथा लिखने से कवि का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर- कवि को मान्यता है कि उसके जीवन में कोई ऐसी उल्लेखनीय विशेषता नहीं जिसे वह आत्मकथा में पड़कर लिखे और सम्मान पाए। वह एक सामान्य छोटा-सा व्यक्ति है। उसके जीवन से किसी को कोई प्रेरणा मिलने की संभावना नहीं है। अपने जीवन के बारे में बढ़-चाका लिखने को हो कवि में बड़ी कथा लिखना कहा है। इस कचन का तात्पर्य यह है कि जीवन को सामान्य बातों को पढ़-चढ़कर लिखना कवि को उचित नहीं लगा ।
प्रश्न 5. कवि ने अपनी आत्मकथा को ‘भोली’ क्यों कहा है ?
उत्तर- कवि बताना चाहता है कि उसने अपना सारा जीवन सरलता और छल-कपट से रहित है। गे जाने पर भी उसे इसका आभास नहीं हुआ तथा उसने किसी को उगने के बारे में सोचा तक नहीं इस भोलेपन को लोग मुका नाम दिया करते हैं। ऐसी आत्मकथा को पढ़कर भला उसके मित्रों को क्या लाभ होगा ।
प्रश्न 6. ‘किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले/अपने को समझो -कवि-कचन किनके प्रति है तथा कवि के स्वभाव की किस विशेषता का इससे परिचय मिलता है?
उत्तर- यह कवि-कथन कवि के मित्रों तथा परिचितों के प्रति है। कवि की उदारता तथा गम्भीरता का इससे पता चलता है। कवि नहीं चाहता कि उसकी आत्मकथा पड़कर उसके परिचितों में अपराध बोध उत्पन्न हो और इनको लगे कि उन्होंने कवि की उपलब्धियों को अपना कहकर अपनी तथाकथित सफलता का प्रदर्शन किया है। इस कारण कवि अपनी कहानी लिखना नहीं चाहता है।
प्रश्न 7. ‘आत्मकथ्य’ नामक रचना में कवि ने किन-किन शैलियों का प्रयोग किया है ?
उत्तर- कवि ने अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए अनेक शैलियों का आश्रय लिया है। कशैली तो पूरी रचना में व्याप्त है। इसके अतिरिक्त कवि ने प्रतीकात्मक शैली को अपनाया है। मधुप, मुरझाई पत्तियाँ तो गागर चांदनी रातें सीवन, कंधा आदि प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अपनी भावनाओं को किया है। शैल का भी प्रयोग किया है। तुम सुनकर गागा रीती’, ‘उपत गाया ‘को’ ‘छोटे से जीवन “आज कहूँ आदि। व्यंग्यात्मक शैली को झलक भी रचना में उपस्थित है ऐस भरने वाले।
प्रश्न 8. ‘जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कवि ने अपनी प्रिया के साथ सुख के थोड़े से क्षण हो बिताये थे। उसकी सुन्दर यो उ पोल लाल थे। उनकी लालिमा के सामने उषा की लालिमा भी फीकी पड़ जाती थी। लगता था जैसे अपने सौभाग्य प्रकट करने के लिए तथा अपनी माँग में कवि की प्रिया के कपोलों से लालिमा लेकर हो सिन्दूर के रूप में ।
प्रश्न 9. कवि ने स्वयं को ‘थका पथिक’ क्यों कहा है ? अथवा कविता में थका पथिक कौन है ? (CBSE 2012
उत्तर- कवि का जीवन निरंतर संघर्ष करते भीता है। उसने अपनी प्रिया के साथ जो चाँदनी राते हँसते खिलखिला उनको मधुर स्मृति के सहारे वह अपनी जीवन-यात्रा के पथ पर बढ़ता रहा है। उसने अनेक मानसिक कष्ट है और लोग उसकी भावनाओं से खेलते रहे हैं। अब उसके जीवन में आशा और संघर्ष करते-करते थक चुका है। इसी कारण कवि जयशंकर प्रसाद ने स्वयं को एक आधिकारिक रूप बनाया।
प्रश्न 10 के पचिक की पंधा’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ? इसका क्या अभिप्राय है? (CBSE 2012)
उत्तर- कवि को अपनी प्रिया से हास-परिहास करते हुए बिताने का अल्पकालीन अनमोल पहियों की यादों के सहारे ही उसने जीवन बिताया है। जिस प्रकार यात्रा पर जाते समय यात्री अपना भोजना लेकर चलता है, मार्ग में भूख लगने पर यही उसका सहारा होता है, उसी प्रकार कवि के जीवन को किया उसकी संघर्षपूर्ण जीवन यात्रा में उसे सहारा देती रही है। इन खादों को ही किकी कहा गया है।
प्रश्न 11. ‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि प्रसाद ने महान कवि की विनता किस प्रकार व्यक्त की है? (रा.मा.प. 2015)
उत्तर- जयशंकर प्रसाद एक महान कवि और प्रतिष्ठित साहित्यकार अमर महाकाव्य के प्रणेता थे। इस पर भी उनका स्वयं को छोटा या साधारण व्यक्ति कहना उनकी विनम्रता, शालीनता और अहंकारशून्यता को प्रकाशित करता है। अपनी दुर्बलताओं और असफलताओं को सार्वजनिक रूप में स्वीकार कर उनकी का प्रमाण है।
प्रश्न 1. ‘आत्मकथ्य’ कविता पढ़ने पर आपको क्या प्रेरणा मिलती है ?
अथवा
‘आत्मकथ्य’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए। (रा.मा.शि. बोर्ड 2023)
उत्तर- ‘आत्मकथ्य’ में कवि ने मुक्तभाव से अपने जीवन और विचारों के हर पक्ष को सांकेतिक रूप में सार्वजनिक कर दिया है। उन्होंने स्वीकार किया है कि उनमें अनेक दुर्बलताएँ रही है। मित्रों ने ही उन्हें स्वार्थ सिद्धि का साधन बनाया यह तथ्य भी संकेत में बताया है। उनका जीवन-प्रेम सुख से वंचित रहा। वह एक सामान्य व्यक्ति है। सरलता को उन्होंने जीवन दर्शन बनाया है। प्रसादजी ने आत्मकथा लिखने में अपनी असमर्थता और संकोच को सहजता से स्वीकार किया है।
उन्होंने अपने जीवन में दुर्बलताओं का होना भी माना है। इस प्रकार उन्होंने सत्य को स्वीकार करने का साहस दिखाया है। उन्होंने सस्ती लोकप्रियता और छद्म सम्मान से समझौता नहीं किया है। आत्मकथा न लिखने के पीछे उनको जनता और उदार हृदयता प्रमाणित होती है। ये सभी तथ्य प्रसादजी को सरलता, विनम्रता और उदारता से परिचित कराते हैं और उनके प्रति हमारे हृदय में सम्मान जगाते हैं। हमको सच्चाई स्वीकार करने को प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 2. ‘आत्मकथ्य’ कविता से प्रसादजी के मानव जीवन के प्रति तथा आत्मकथा लेखन के प्रति क्या विचार सामने आते हैं ?
उत्तर- कवि ने भौरों तथा पत्तियों के उदाहरणों द्वारा मानव जीवन की नश्वरता की ओर संकेत किया है। इससे जीवन के प्रति उनका निराशाजनक दृष्टिकोण सामने आता है। अनेक धोखे खाने पर भी कवि ने सरलता में अपना पूर्ण विश्वास प्रकट किया है। कवि ने सारा जीवन छल-कपट रहित तथा सरलतापूर्ण बिताया है। उसे सरलता के कारण अनेक भूर्ती और धोखों का सामना करना पड़ा है। इतने पर भी कवि अपने सरल व्यवहार से पूर्व संतुष्ट है।
वह नहीं चाहता कि आत्मकथा में सरलता के कारण पहुंचे आघातों का विवरण देकर वह सरलता को व्यंग्य और उपहास का पात्र बनाए। सरलता का सम्मान गिराना कवि को स्वीकार नहीं है। लेखक को दृष्टि में आत्मकथा लेखन की कोई उपयोगिता नहीं है। आत्मकथा लिखने वाले लोग स्वयं अपने को ही व्यंग्य और उपहास का पात्र बनाते हैं अपनी दुर्बलताओं भूलों को सार्वजनिक करना कवि को दृष्टि में निरर्थक है।
प्रश्न 3. ‘आत्मकथ्य’ कविता में छायावादी काव्य की किन विशेषताओं को स्थान मिला है ?
उत्तर- कविता में छायावादी काव्य शैली को अनेक विशेषताएँ उपस्थितावादी कवियों ने वर्णनात्मक शैली के स्थान पर आत्मपरक शैली अपनाई है। उन्होंने अपने सुख-दुःख, भावनाएँ और व्यक्तिगत अनुभूतियों का मुक्तभाव से प्रकाशन किया है। इस कविता में प्रसादजी ने अपने हृदय की भावनाओं को हो उद्घाटित किया है। छायावादी कविता में प्रकृति को जीवंत मानकर उसे अपनी मनोभावना व्यक्त करने का माध्यम बनाया गया है। ऋवि प्रसाद ने भी भरों, पत्तियों, चाँदनी रातों के माध्यम से अपने हृदय को भावनाएँ व्यक्त की है।