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Reading: NCERT Solutions for Class 11th: पाठ-5 गलता लोहा हिंदी
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NCERT Solutions for Class 11th: पाठ-5 गलता लोहा हिंदी

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26 Min Read
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इस पोस्ट में हम आपके लिए NCERT Class 11 Hindi Aroh  Book के Chapter-5 गलता लोहा का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि वे इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। इसके अलावा आप इस कहानी के अभ्यास प्रश्न भी पढ सकते हो। Galata loha Summary of NCERT Class 11 Hindi Aroh Chapter 5

Class 11 Hindi Aroh Chapter 5 गलता लोहा Questions and Answer | कक्षा 11 हिंदी पाठ गलता लोहा

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठ के साथ

प्रश्न 1. कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें जिसमें किताबों की विद्या और घन चलाने की विद्या का जिक्र आया है ? 

उत्तर- धनराम पढ़ने में फिसड्डी था। मास्टर त्रिलोक सिंह को जब वह तेरह का पहाड़ा दिनभर घोटा लगाने के बाद भी नहीं सुना पाया तो मास्टर साहब ने कड़वी जवान का प्रयोग किया, “तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है रे! विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें ?” इतना कहकर उन्होंने पाँच-छः दर्शतियाँ उसे धार लगाने को दे दीं। किताबों की विद्या का ताप लगाने की सामर्थ्य धनराम के पिता की न थी, किन्तु जैसे ही धनराम थोड़ा बड़ा हुआ कि उसके पिता गंगाराम ने उसे हथौड़े से लेकर घन चलाने की विद्या में पारंगत कर दिया और वह एक पक्का लोहार बन गया।

प्रश्न 2. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था? 

उत्तर- धनराम लोहार होने से नीची जाति का था, जबकि मोहन ब्राह्मण होने से ऊंची जाति का था। साथ ही धनराम पढ़ने में कमजोर, जबकि मोहन पढ़ने में होशियार था। मास्टर साहब ने इसीलिए मोहन को ‘मॉनीटर’ बना दिया था। उन्हें विश्वास था कि बड़ा होकर वह उनका तथा स्कूल का नाम रोशन करेगा। इस कारण से धनराम मोहन से स्पर्धा नहीं करता था। उसने मन ही मन स्वीकार कर लिया था कि मोहन उच्च वर्ग का है तथा उसे कोई ऊँचा काम करना है। वह छोटे वर्ग का है तो उसे अपना पैतृक व्यवसाय ही करना है, इन्हीं सब कारणों से वह मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता था।

प्रश्न 3 धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है।

उत्तर- उच्च जाति के होने से ब्राह्मण टोले का कोई व्यक्ति शिल्पकार और क्यों ? टोले में आकर नहीं बैठता था। बस वे लोग अपने काम से आते तथा खड़े-खड़े काम करवाकर चले जाते। ब्राह्मणों से अपने दरवाजे पर बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा का हनन था। मोहन ने इसके विरुद्ध आचरण किया। वह धनराम की भट्टी पर आया और वहीं कनस्तर पर बैठकर धनराम से स्कूली दिनों की बातें करने लगा।

इस बात पर धनराम को आश्चर्य हो रहा था। आश्चर्य का दूसरा कारण यह था कि मोहन ने सधे हुए हाथों से लोहे की छड़ पर प्रहार करके उसे गोल आकार दे दिया था। मोहन की कुशलता पर उसे इतना आश्चर्य नहीं हुआ, जितना उसे निरभिमान व्यवहार पर हुआ। पुरोहित का पुत्र होने पर भी मोहन ने धनराम लोहार के काम में दक्षता प्राप्त कर ली थी, यह बात धनराम को आश्चर्य में डालने के लिए पर्याप्त थी।

प्रश्न 4. मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके जीवन का एक नया अध्याय क्यों कहा है ? 

उत्तर- मोहन अपने गाँव के रमेश बाबू के साथ जब लखनऊ आया तब उसके जीवन का नया अध्याय प्रारम्भ हुआ। गाँव का बुद्धिमान् छात्र नगर के स्कूल में अपनी पहचान तक न बना पाया। यही नहीं अपितु रमेश बाबू उससे घरेलू नौकर की तरह काम करवाते, जिससे उसे पढ़ने का समय ही नहीं मिलता।

आठवीं की पढ़ाई के बाद उन्होंने उसे आगे पढ़ाने के स्थान पर तकनीकी स्कूल में प्रवेश दिलवाकर कुशल कारीगर बना दिया और वह कारखाने में अपने लायक काम खोजने लगा। कहाँ तो वह ऊँचा अफसर बनने के सपने देख रहा था और उसके पिताजी की आँखों में भी यही सपने पल रहे थे और कहाँ वह एक बेरोजगार कारीगर मात्र बन पाया इसीलिए लखनऊ आने के बाद के जीवन को लेखक ने मोहन के जीवन का नया अध्याय माना है।

प्रश्न 5. मास्टर त्रिलोक सिंह के किस कथन को लेखक ने जबान का चाबुक कहा है और क्यों ?

उत्तर- मास्टर त्रिलोक सिंह ने धनराम से तेरह का पहाड़ा सुनाने को कहा और जब वह नहीं सुना सका तो जो व्यंग्य वचन मास्टर साहब ने उससे कहे उन्हीं को लेखक ने ‘जबान का चाबुक’ कहा है। उन्होंने उसकी बुद्धि पर व्यंग्य करते हुए कहा- “तेरे दिमाग में तो लोहा भरा है तो विद्या का ताप कहाँ लगेगा इसमें।” जबान के चाबुक का अर्थ है-व्यंग्य बाण छोड़ना। मास्टर त्रिलोक सिंह ने जवान के चाबुक का प्रयोग करते हुए जो धनराम से कहा उसका निष्कर्ष यह था

कि तू तो लोहार है, कुछ पढ़ना-लिखना तेरे वश की बात नहीं, तुझे तो लोहार का ही काम करना है। ऐसा कहकर मास्टर साहब ने उसे पाँच-छः दरांतियाँ धार लगाने को दे दी और इस कथन ने धनराम के मन में भी हीन भावना के साथ-साथ पढ़ने-लिखने के प्रति अरुचि भर दी। उसके मन में यह बैठ गया कि पढ़-लिखकर क्या करूंगा ? अन्ततः मुझे करनी तो लोहारगीरी ही है।

प्रश्न 6. (i) बिरादरी का यही सहारा होता है। 

(क) किसने किससे कहा ? 

(ग) किस आशय से कहा ? 

(घ) क्या कहानी में यह आशय स्पष्ट हुआ है ?

(ख) किस प्रसंग में कहा ?

उत्तर- (क) यह बात मोहन के पिता पंडित वंशीधर तिवारी ने अपनी बिरादरी के युवक रमेश से कही है।

(ख) मोहन की पढ़ाई के प्रसंग में यह कथन कहा गया है। 

(ग) यह इस आशय से कहा है जिससे रमेश बाबू मोहन को अपने साथ लखनऊ ले जाएँ और उसकी शिक्षा का प्रबंध कर दें।

(घ) वंशीधर तिवारी ने जिस आशय से अपने पुत्र मोहन को रमेश बाबू के साथ भेजा था वह पूरा न हो सका। रमेश के घर मोहन नौकर की तरह रहता था। आठवीं कक्षा के बाद उसकी पढ़ाई छुड़वा दी गई और उसे एक तकनीकी स्कूल में दाखिल करवाकर ‘लोहार’ के पेशे का काम सिखा दिया गया। 

(ii) उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी कहानी का यह वाक्य-

(क) किसके लिए कहा गया है ?

(ख) किस प्रसंग में कहा गया है ? 

(ग) यह पात्र विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है ?

उत्तर- (क) यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है। 

(ख) मोहन ने धनराम लोहार के यहाँ एक लोहे की छड़ को गोले के आकार में कुशलता से बदल दिया था। इसी प्रसंग में यह वाक्य कहा गया है।

(ग) इससे मोहन की पेशेगत कुशलता का परिचय मिलता है। उसमें जातीय अभिमान रंचमात्र भी नहीं था, उसने लोहार के हुनर को भली-भाँति सीखा था, जातीय अभिमान को तोड़कर अपेक्षाकृत निम्न समझे जाने वाले कार्य को महत्व दिया, धनीराम लोहार के प्रति अपनी आत्मीयता दिखाकर अपनी उदारता का परिचय दिया।

पाठ के आस-पास

प्रश्न 1. गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फर्क है ? चर्चा करें और लिखें। 

उत्तर- गाँव के स्कूल में मोहन एक मेधावी छात्र माना जाता था और मास्टर त्रिलोक सिंह एवं उसके पुरोहित पिता वंशीधर को उससे बड़ी आशाएँ थीं। मास्टर साहब सोचते कि यह स्कूल का नाम रोशन करेगा तो उसके पिता सोचते कि यह हमारी दरिद्रता दूर करेगा। गाँव में उच्चकुलीन परिवार का होने से उसे सब आदर देते थे और कोई उसे अपना प्रतिस्पद्ध नहीं मानता किन्तु नगर में न तो कुलीनता के कारण मिलने वाला सम्मान था और न उसे कोई मेधावी छात्र मानता। नगर में जो गला काट प्रतियोगिता थी।

प्रश्न 2. एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्त्व आपको कैसा लगता है ? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।

उत्तर- एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह के व्यक्तित्त्व में जहाँ कुछ गुण हैं, वहीं कुछ अवगुण भी हैं, जो इस प्रकार हैं- 

(i) वे कर्त्तव्यपरायण अध्यापक हैं, छात्रों के साथ मेहनत करना, उन्हें प्रोत्साहित करना अपना कर्त्तव्य मानते हैं।

(ii) वे बच्चों की शैक्षिक प्रगति में रुचि लेते हैं और इस बात की चिन्ता करते हैं कि उनका शिष्य अच्छा पद पाकर स्कूल का और उनका नाम रोशन करे।

(iii) मास्टर त्रिलोक सिंह के मन में ऊँच-नीच की भावना व्याप्त है। मोहन और धनराम के साथ उनका व्यवहार एक समान नहीं है। यह उनका अवगुण ही है। 

(iv) कमजोर बच्चों का तिरस्कार करना, संटी से उनकी पिटाई करना या उन पर व्यंग्य बाणों का प्रहार करना किसी अध्यापक को शोभा नहीं देता। यह अवगुण भी त्रिलोक सिंह में है।

प्रश्न 3. ‘गलता लोहा’ कहानी का अन्त एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अन्त हो सकता है ?

उत्तर- मोहन ने धनराम के आफर पर लोहे की छड़ का गोल छल्ला बनाकर अपनी कारीगरी का परिचय देकर सृजन सुख तो प्राप्त कर लिया पर यहाँ लेखक ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या उसने भी अपने परम्परागत पुरोहित व्यवसाय को त्यागकर ‘लोहारगीरी’ का व्यवसाय अपना लिया जिसका तकनीकी प्रशिक्षण उसने प्राप्त किया था। भले ही यह घटना गाँव के लिए अजूबा होती, किन्तु यदि उसके पिता उसकी कारीगरी को देखकर उसे शाबासी देते और उसका उत्साहवर्द्धन करके उसे यह व्यवसाय अपनाने का हौसला बढ़ाते तो कहानी का अन्त और भी सार्थक हो सकता था।

भाषा की बात प्रश्न 1. पाठ में निम्नलिखित शब्द लोहकर्म से सम्बन्धित हैं। किसका क्या प्रयोजन है ? शब्द के सामने लिखिए- 1. धौंकनी, 2. दराँती, 3. संड़ासी, 4. आफर, 5. हथौड़ा ।

उत्तर- धौंकनी- चमड़े की बनी वह बड़ी-सी थैली जो आग को हवा देकर उसे सुलगाती और धधकाती है। दराँती – घास या फसल काटने का औजार 

(हँसिया) संड़ाती – लोहे की दो छड़ों से बना कैंचीनुमा औजार जो गर्म छड़ों या वस्तुओं को पकड़ने के काम आता है। 

आफर-भट्ठी ।

हथौड़ा –लोहा पीटने के काम आने वाला औजार । 

प्रश्न 2. पाठ में ‘काट-छाँटकर’ जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है। पाठ में से पाँच संयुक्त क्रिया-शब्द चुनकर अपने वाक्यों में उनका प्रयोग कीजिए। 

उत्तर- (1) पढ़-लिखकर – हर पिता यह चाहता है कि उसका पुत्र पढ़-लिखकर बड़ा अफसर बने।

(2) थका-माँदा- जब वह थका-माँदा घर लौटता तो फिर मुँह ढककर सो जाने का मन करता । 

(3) उठा-पटक करना-बच्चे उठा-पटक में लगे

(4) धमा चौकड़ी मचाना-मास्टर साहब के आने से पहले बच्चे धमा चौकड़ी मचा रहे थे। 

(5) उलट-पलट – जब मैं घर गया तो देखा सारा सामान किसी ने उलट-पलट कर दिया है।

प्रश्न 3. ‘बुते’ का प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है। उन्हें छाँटकर लिखिए और जिन सन्दर्भों में उनका प्रयोग है, उन सन्दर्भों में उन्हें स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- पाठ में आए ‘बूते’ शब्द का प्रयोग इन वाक्यों में हुआ है-

(i) बूढ़े वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यहाँ बूते का अर्थ ‘सामर्थ्य’ (शक्ति) है। (ii) दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे। यहाँ ‘बूते’ का अर्थ सहारा है। 

(iii) यही क्या जन्मभर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर-संसार चलाया था, वह भी अब वैसे कहाँ कर पाते थे ? यहाँ बूते का अर्थ ‘बल’ है।

प्रश्न 4. मोहन ! थोड़ा दही तो ला दे बाजार से। मोहन ! ये कपड़े धोबी को तो दे आ। 

मोहन ! एक किलो आलू तो ला दे। 

ऊपर के वाक्यों में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में ‘आप’ सर्वनाम का इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए।

उत्तर- (i) आप थोड़ा दही तो ला दीजिए बाजार से।

(ii) आप ये कपड़े धोबी को दे आएँ। 

(iii) आप एक किलो आलू तो ला दीजिए।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. मोहन हँसिया लेकर कहाँ गया ? और क्यों ?

उत्तर मोहन हँसिया लेकर खेतों की ओर गया था, क्योंकि खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को काटना चाहता था। वृद्ध वंशीधर अब यह काम करने में असमर्थ थे। किन्तु हँसिए की धार कुंद थी इसलिए वह धनराम लोहार के पास धार लगवाने चला गया।

प्रश्न 2. मोहन किन आवाजों को दूर से ही पहचान सकता था ?

उत्तर लोहार के हथौड़े की आवाज को मोहन दूर पहचान लेता था। गर्म लोहे पर पड़ती हथौड़े की आवाज अलग होती थी, ठण्डे लोहे पर पड़ती आवाज अलग और खाली निहाई पर पड़ती हथौड़े की आवाज अलग होती थी।

प्रश्न 3. मोहन और धनराम कौन थे ? 

उत्तर मोहन और धनराम एक ही गाँव के रहने वाले तथा एक ही स्कूल में पढ़े सहपाठी थे। मोहन पुरोहित वंशीधर का बेटा था, जबकि धनराम गंगाराम लोहार का पुत्र था।

प्रश्न 4. वंशीधर तिवारी को अपना काम करने में क्या परेशानियाँ हो रही थीं ?

उत्तर- वंशीधर तिवारी मोहन के पिता थे। वे पुरोहिताई का काम करते थे। अब वृद्ध हो जाने से वे उतना कठिन श्रम एवं व्रत-उपवास आदि न कर सकते थे, इसलिए पुरोहिताई का काम करने में उन्हें कठिनाई होती थी।

प्रश्न 5. मोहन को लेकर मास्टर साहब को क्या उम्मीदें थीं और क्यों ?

उत्तर मोहन को लेकर मास्टर त्रिलोक सिंह को बड़ी उम्मीदें थीं। उनका मानना था कि मोहन एक दिन बड़ा आदमी बनकर स्कूल का नाम ऊंचा करेगा। इसका कारण यह था कि मोहन पढ़ने में बहुत तेज था। वह पूछे गए हर सवाल का सही उत्तर देता था।

प्रश्न 6. मोहन को मास्टर साहब ने क्या-क्या काम सौंप रखे थे ? 

उत्तर मोहन को उन्होंने स्कूल का मॉनीटर बना दिया था। वही प्रातः प्रार्थना का प्रारम्भ करता था। कक्षा में जब किसी छात्र को प्रश्न का उत्तर नहीं आता था तो मोहन से उसका उत्तर पूछा जाता था और सही जवाब देने पर फिसड्डी लड़के को दण्ड देने का काम भी उससे ही कराया जाता था।

प्रश्न 7. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वन्द्वी क्यों नहीं समझता था?

उत्तर धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वन्द्वी इसलिए नहीं मानता था क्योंकि मोहन ऊँची जाति का और वह छोटी जाति का था। बचपन से ही धनराम के मन में जातिगत हीनता की बात बिठा दी गई थी, इसीलिए वह ऊँची जाति के मोहन को अपना प्रतिद्वन्द्वी नहीं मानता था।

प्रश्न 8. धनराम का मोहन के प्रति क्या भाव था ?

उत्तर धनराम और मोहन मित्र थे लेकिन मास्टर साहब के आदेश पर मोहन ने धनराम को बेंत लगाए थे और उसके कान खींचे थे। धनराम के मन में मोहन के प्रति थोड़ी ईर्ष्या भले रही हो, लेकिन वह आरम्भ से ही मोहन के प्रति स्नेह और आदर का भाव रखता था।

प्रश्न 9. वंशीधर का सपना क्या था वह क्यों टूट गया ?

उत्तर वंशीधर अपने पुत्र की पढ़ाई के बारे में बड़े उत्साह से बताया करते थे। उनको विश्वास था कि एक दिन उनका बेटा बड़ा अफसर बनकर आएगा किन्तु जब उन्हें मोहन की वास्तविक दशा का पता चला तो उनका यह सपना टूट गया।

प्रश्न 10. वंशीधर ने मोहन के विषय में धनराम को क्या बताया ?

उत्तर वंशीधर ने अपने पुत्र मोहन के विषय में धनराम को बताया कि उसकी नियुक्ति सेक्रेटेरिएट (सचिवालय) में हो गई है और शीघ्र ही विभागीय परीक्षाएँ देकर वह बड़े पद पर पहुँच जाएगा।

प्रश्न 11. वंशीधर ने दाँत में तिनका दबाकर धनराम को मोहन के बारे में क्यों बताया ?

उत्तर वंशीधर ने दाँत में तिनका दबाकर धनराम को मोहन के बारे में इसलिए बताया क्योंकि वे असत्य भाषण कर रहे थे और चाहते थे कि असत्य भाषण का दोष उन्हें न लगे।

प्रश्न 12. ‘मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धिमान थे’ ये शब्द वंशीधर को बड़ी देर तक कचोटते रहे-क्यों ?

उत्तर मोहन के बारे में उसके पिता से यह जानकर कि वह सेक्रेटेरिएट में लग गया है, धनराम ने टिप्पणी की कि ‘मोहन लला बचपन से ही बड़े बुद्धिमान् थे’ किन्तु ये शब्द वंशीधर को बड़ी देर तक कचोटते रहे क्योंकि उन्होंने मोहन की वास्तविकता के बारे में धनराम को नहीं बताया था। वास्तव में मोहन बेरोजगार था और वंशीधर के सारे सपने टूट चुके थे।

प्रश्न 13. धनराम को किस बात पर आश्चर्य हो रहा था ?

उत्तर धनराम को मोहन की कारीगरी पर उतना आश्चर्य नहीं हुआ जितना कि इस बात पर आश्चर्य हुआ था कि ब्राह्मण परिवार का (एक ऊँची जाति का) व्यक्ति उसकी भट्टी पर बैठकर ‘लोहारगीरी’ के काम में उसका हाथ बँटा रहा था।

प्रश्न 14. धनराम शंकित दृष्टि से इधर-उधर क्यों देख रहा था ?

उत्तर धनराम के लिए यह बात इसलिए अजूबा थी कि गाँव का कोई उच्चकुलीन व्यक्ति लोहार के यहाँ बैठता नहीं था। खड़े-खड़े ही वे अपना काम करा ले जाते थे। यही नहीं उनसे बैठने के लिए कहना उनका अपमान समझा जाता था। किन्तु आज ब्राह्मण कुल का मोहन उसके यहाँ बैठकर उसके काम में हाथ बँटा रहा था।

प्रश्न 15. धनराम के धर्म-संकट से उदासीन मोहन उस समय क्या जाँच रहा था ?

उत्तर धनराम ने चोर नजर से इधर-उधर यह जानने के लिए देखा कि कहीं गाँव का कोई व्यक्ति मोहन को वहाँ बैठा देख तो नहीं रहा, इससे गाँव में अशान्ति फैलने का डर था, क्योंकि यह असाधारण घटना थी।

प्रश्न 16. मोहन की आँखों में क्या भाव था ?

उत्तर अपने द्वारा बनाए गए छड़ के गोले की निर्दोष बनावट देखकर मोहन की आँखें प्रसन्नता और सन्तुष्टि से चमक रही थीं। इस चमक में न तो धनराम से होड़ करने की भावना थी और न हारने जीतने का भाव। वह तो एक कारीगर के आत्मसन्तोष की चमक थी।

बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘गलता लोहा’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर- ‘गलता लोहा’ प्रतीकात्मक शीर्षक है जिसका अर्थ है कि अब वह जमाना नहीं रहा जब लोग जातीय उच्चता और कुलीनता के अभिमान में उन व्यवसायों को नहीं अपनाते थे जो नीच जाति के व्यवसाय माने जाते थे। पुरोहित-पुत्र मोहन ने परम्परागत पैतृक व्यवसाय पुरोहिताई को न अपनाकर उस लोहारगीरी को अपनाने का मन बना लिया, जिसमें उसने दक्षता प्राप्त की है। इस प्रकार अब जातीय अभिमान का लोहा गल रहा है। यही लेखक इस कहानी के शीर्षक से व्यक्त करना चाहता है। यह शीर्षक पूरी तरह उपयुक्त कहा जा सकता है।

प्रश्न 2. रमेश बाबू ने मोहन को आठवीं के बाद हाथ का काम क्यों सिखाया ?

उत्तर- रमेश बाबू की मान्यता थी कि बी. ए., एम. ए. करने का कोई लाभ नहीं है। इससे व्यक्ति को रोजगार नहीं मिलता, जबकि हाथ के कारीगर को रोजगार प्राप्त करने में आसानी होती है। इसका दूसरा कारण यह भी था कि वे नहीं चाहते थे कि यह उच्च शिक्षित होकर उनसे बराबरी करे। ऐसा होने पर वे उससे नौकरों की तरह काम कैसे ले सकते थे? अतः अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए रमेश बाबू ने मोहन को आठवीं के बाद हाथ का काम सिखाया।

प्रश्न 3. मोहन को नदी पार के स्कूल से उसके पिता ने क्यों निकाल लिया ?

उत्तर- गाँव के स्कूल से निकलने के बाद मोहन को उसके पिता ने नदी पार के एक स्कूल में भर्ती करा दिया और वहीं एक यजमान के यहाँ उसके रहने की व्यवस्था कर दी। छुट्टियों में वह नदी पार करके घर आ जाया करता था। एक बार नदी में अचानक पानी आ जाने से वह अन्य घसियारों के साथ-साथ बहते बहते बचा तब भयभीत होकर उसके पिता ने उसे स्कूल से निकाल लिया। 

प्रश्न 4. गलता लोहा कहानी के प्रमुख पात्र मोहन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- मोहन गलता लोहा (शेखर जोशी) नामक कहानी का प्रमुख पात्र (नायक) है। गाँव में मेधावी समझे जाने वाले मोहन से अध्यापक त्रिलोक सिंह और उसके पिता पण्डित वंशीधर तिवारी ने बड़ी आशाएँ लगा रखी थीं, पर वे सफल न हो सकीं। उच्च जाति में उत्पन्न साधनहीन मोहन प्रतिभाशाली एवं प्रखर बुद्धि का छात्र है, परन्तु उसकी परिस्थितियाँ अत्यन्त कठिन हैं। वह स्वभाव से धीर, गम्भीर, शान्त एवं सहनशील है।

धनाभाव के कारण वह अपनी बिरादरी के रमेश बाबू के घर लखनऊ में रहकर नौकरों जैसा काम करके भी वह जैसे-तैसे पढ़कर कुशल कारीगर बन जाता है, परन्तु बेरोजगारी का दंश अन्ततः उसे लोहारगीरी करने पर विवश कर देता है। उसमें उस जातीय अभिमान का लेश भी नहीं बचा है जो उसके गाँव के कुलीन लोगों में दिखाई देता है। वह अपने घर की दयनीय स्थिति से परिचित है। अतः रमेश बाबू के दुर्व्यवहार के बारे में अपने पिता को नहीं बताता।

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