जयपुर का जन्तर मन्तर सवाई जयसिंह द्वारा १७२४ से १७३४ के बीच निर्मित एक खगोलीय वेधशाला है। यह यूनेस्को के 'विश्व धरोहर सूची' में सम्मिलित है।

इस वेधशाला में १४ प्रमुख यन्त्र हैं जो समय मापने, ग्रहण की भविष्यवाणी करने, किसी तारे की गति एवं स्थिति जानने, सौर मण्डल के ग्रहों के दिक्पात जानने आदि में सहायक हैं।

दुनिया भर में प्रसिद्ध इस अप्रतिम वेधशाला का निर्माण जयपुर नगर के संस्थापक आमेर के राजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने 1728 में अपनी निजी देखरेख में शुरू करवाया था,

सवाई जयसिंह एक खगोल वैज्ञानिक भी थे, जिनके योगदान और व्यक्तित्व की प्रशंसा जवाहर लाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' ('भारत : एक खोज') में सम्मानपूर्वक की है।

महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने हिन्दू खगोलशास्त्र में आधार पर देश भर में पांच वेधशालाओं का निर्माण कराया था।

ये वेधशालाएं जयपुर, दिल्ली, उज्जैन, बनारस और मथुरा में बनवाई गई।

सबसे पहले महारजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने उज्जैन में सम्राट यन्त्र का निर्माण करवाया,

जयपुर के जन्तर मन्तर में स्थित प्रमुख यन्त्र हैं- बृहत सम्राट यन्त्र, लघु सम्राट यन्त्र, जयप्रकाश यन्त्र, रामयंत्र, ध्रुवयंत्र, दक्षिणायन्त्र, नाड़ीवलययन्त्र आदि।

इस वेधशाला में खड़े किये गए यंत्रो में सम्राट, जयप्रकाश और राम यंत्र भी हैं, जिनमें से सम्राट यन्त्र सबसे बड़ा है

सम्राट यन्त्र की ऊंचाई 140 फिट है, जिसके ऊपरी सिरे पर आकाशीय ध्रुव को इंगित किया गया है, साथ ही इस पर समय बताने के निशान बनाए गए हैं