RBSC Class 10 Sanskrit मङ्गलम् (मङ्गलाचरण)
RBSC Class 10 Sanskrit :- पाठ-परिचय-आरम्भ किए गए कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए अपने इष्ट (आराध्य) को स्मरण करना, मङ्गलाचरण कहलाता है
अर्थात् शुभ की प्रवृत्ति (मङ्गल-करण) एवं अशुभ की निवृत्ति (अमङ्गल – हरण), दो प्रमुख प्रयोजनों से मङ्गलाचरण किया जाता है ।
‘मङ्गलम्’ पाठ में इन्हीं प्रयोजनों से दो वेदमन्त्रों द्वारा परमसत्ता को स्मरण किया गया है। प्रथम मन्त्र यजुर्वेद के 36वें अध्याय का 24वाँ मन्त्र है, जिसके माध्यम से जगत् के नेत्रस्वरूप सूर्यदेव का स्मरण करते हुए चिरायु होने की मङ्गल कामना की गई है
तथा द्वितीय मन्त्र जो ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 89वें सूक्त का प्रथम मन्त्र है, में निर्बाध गति से कल्याणकारी विचार आने की कामना की गई है ताकि हम सदैव प्रगति में तत्पर रहें।
RBSC Class 10 Sanskrit
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् ।
पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदःशतम् ।
शृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं।
अदीनाः स्याम शरदः शतम् । भूयश्च शरदः शतात् ॥1॥ (यजुर्वेद 36.24)
अन्वयः ॐ तत् देवहितं चक्षुः शुक्रम् पुरस्तात् उच्चरत् । (अस्य सहाय्येन वयं) शतं शरदः पश्येम, शतं शरदः जीवेम । शतं शरदः शृणुयाम, शतं शरदः प्रब्रवाम, शतं शरदः अदीनाः स्याम, शतात् शरदः भूयश्च ।
हिन्दी – अनुवाद / भावार्थ– हे परमेश्वर ! वह देवताओं द्वारा धारण किया हुआ नेत्र रूप सूर्यदेव शुक्लवर्ण
अर्थात् देदीप्यमान पूर्व दिशा मैं सर्वप्रथम उदय हो चुका है। (हम इसकी सहायता से) सौ साल तक देखें, सौ वर्ष तक जीवित रहें, (और) सौ वर्ष तक (कानों से) सुनें, सौ
वर्ष तक उत्तम वाणी बोलते रहें (और) सौ वर्ष तक स्वावलम्बी होकर रहें, सौ वर्ष से भी अधिक समय तक अर्थात्
सौ शरद ऋतुओं को पूर्ण करके भी हम पुनः (अधिक काल तक) आनन्दपूर्वक जीवित रहें।
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः ।
देवा नो यथा सदमिद् वृधेऽसन्अप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे ॥2॥
(ऋग्वेद 1.89.1)
हिन्दी अनुवाद / भावार्थ– कल्याणकारी, बाधारहित, किसी के दबाव में न आने वाले, शुभफल प्रदान करने वाले, उन्नतिकारक,
सद्विचार एवं सत्कर्म हमारी ओर सभी ओर से आएँ जिससे कि आलस्यहीन, रक्षा करने वाले, यज्ञफल देने वाले (देवता) प्रतिदिन सदैव हमारी समृद्धि और कल्याण के लिए हों ।