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Class 10 Sanskrit Chapter 8 सूक्तय Hindi Translation

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NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 8 Hindi & English Translation

सूक्तय

सूक्तय पाठ-परिचय– यह पाठ मूलतः तमिल भाषा के ‘तिरक्कुरल्’ नामक ग्रंथ से लिया गया है। यह ग्रन्थ तमिल भाषा का वेद कहलाता है। इसके रचनाकार ‘तिरुवल्लुवर’ हैं। प्रथम शताब्दी इसका रचना काल स्वीकार किया गया है। धर्म, अर्थ और काम का प्रतिपाद्य है यह ग्रंथ । यह तीन भागों में विभक्त है। तिरु शब्द श्रीवाचक है अर्थात् तिरु का अर्थ है ‘श्री’ ।

पिता यच्छति पुत्राय बाल्ये विद्याधनं महत् । पिताऽस्य किं तपस्तेपे इत्युक्तिस्तत्कृतज्ञता ||1||

हिन्दी – अनुवादः बाल्यकाल में पिता ही पुत्र को महान् विद्यारूपी धन प्रदान करता है। पिता इसके लिये कितनी तपस्या करता है। यह उसका अहसान है।

English translation: It is the father who bestows great learning wealth on the son during his childhood. The father does a lot of penance for this. It is his favor.

अवक्रता यथा चित्ते तथा वाचि भवेद् यदि। तदेवाहुः महात्मानः समत्वमिति तथ्यतः ।। 2 ।।

हिन्दी – अनुवादः सरलता जैसे मन में हो वैसी ही वाणी में भी होनी चाहिये। वास्तव में यही महापुरुष या महान् आत्मा का समत्व कहलाता है।

English translation: Simplicity should be there in speech as it is in mind. In fact, this is called the equanimity of a great man or a great soul.

त्यक्त्वा धर्मप्रदां वाचं परुषां योऽभ्युदीरयेत् । परित्यज्य फलं पक्वं भुङ्क्तेऽपक्वं विमूढधीः ।। 3 ।।

हिन्दी अनुवादः – धर्म प्रदान करने वाली वाणी को त्याग कर जो कठोर वाणी बोलता है वह मूढमति पके हुए फल को त्याग कर कच्चे फल को ही खाता है।

English translation: – The one who speaks harsh words by abandoning the speech that bestows religion, he eats only raw fruits leaving ripe fruit.

विद्वांस एव लोकेऽस्मिन् चक्षुष्मन्तः प्रकीर्तिताः । अन्येषां वदने ये तु ते चक्षुर्नामनी मते ।। 4 ।।

हिन्दी अनुवादः विद्वान लोगों को ही इस लोक में आँखों वाला कहा गया है। अन्य के मुख (आनन) पर जो आँखें होती हैं, वे तो नाम की आँखें मानी गई हैं।

English translation: In this world only learned people have been called the ones with eyes. The eyes which are on the face (anan) of others are considered to be the eyes of the name.

यत् प्रोक्तं येन केनापि तस्य तत्त्वार्थनिर्णयः । कर्तुं शक्यो भवेद्येन स विवेक इतीरितः ॥5॥

हिन्दी अनुवादः जिस किसी के द्वारा जो कहा गया है वह उसका यथार्थ निर्णय है, वह करने में समर्थ होना चाहिये, वह विवेक कहलाता है।

English translation: One who should be able to make what has been said is his correct decision, that is called Vivek.

वाक्पटुधैर्यवान् मंत्री सभायामप्यकातरः । स केनापि प्रकारेण परैर्न परिभूयते ।।6।।

हिन्दी अनुवादः-वाणी में चतुरता, धैर्ययुक्त, सभा में भी जो साहसी हो, ऐसा मंत्री किसी भी प्रकार किया जा सकता है।

English translation:- Clever in speech, patient, courageous in the meeting, such a minister can be made in any way.

य इच्छत्यात्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च । न कुर्यादहितं कर्म स परेभ्यः कदापि च ।।7।।

हिन्दी अनुवादः – जो व्यक्ति अपना भला तथा बहुत सारे सुख चाहता है उसे दूसरे के लिये कभी कोई अहित कर्म नहीं करना चाहिये।

English translation: – The person who wants his own good and many happiness should never do any bad deed for others.

आचारः प्रथमो धर्मः इत्येतद् विदुषां वचः । तस्माद् रक्षेत् सदाचारं प्राणेभ्योऽपि विशेषतः । 18 ।।

हिन्दी अनुवादः सदाचार पहला धर्म है। यह विद्वानों का वचन है, इसलिये विशेष रूप से प्राणों की बाजी लगाकर भी सदाचार की रक्षा करनी चाहिये।

English translation: Virtue is the first religion. This is the word of the scholars, that’s why even at the risk of life, morality should be protected.

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प्रश्न । एकपदेन उत्तर लिखत-

(क) पिता पुत्राय बाल्ये किं यच्छति ?

उत्तर विद्याधनम्।

(ख) विमूढधीः कीदृशीं वाचं परित्यजति ?

उत्तर धर्मप्रदाम्।

(ग) अस्मिन् लोके के एव चक्षुष्मन्त प्रकीर्तिता ?

उत्तर विद्वान्स:।

(घ) प्राणेभ्योऽपि कः रक्षणीयः ?

उत्तर सदाचारः।

(ङ) आत्मनः श्रेयः इच्छन् नरः कीदृशं कर्म न कुर्यात् ? 

उत्तर परेभ्योऽहितम्।

(च) वाचि किं भवेत् ?

उत्तर धर्मप्रदा ।

प्रश्न 2. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत-

(क) संसारे विद्वांसः ज्ञानचक्षुभि: नेत्रवन्तः कथ्यन्ते ।

उत्तरम् – संसारे के ज्ञानचक्षुभिः नेत्रवन्तः कथ्यन्ते ?

(ख) जनकेन सुताय शैशवे विद्याधनं दीयते । 

उत्तरम् – जनकेन कस्मै शैशवे विद्याधनं दीयते ?

(ग) तत्वार्थस्य निर्णय: विवेकेन कर्तुं शक्यः । 

उत्तरम् – कस्य निर्णय: विवेकेन कर्तुं शक्यः ?

(घ) धैर्यवान् लोके परिभवं न प्राप्नोति ।

उत्तरम् – धैर्यवान् कुत्र परिभवं न प्राप्नोति ?

(ङ) आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः परेषाम् अनिष्टं न कुर्यात् । 

उत्तरम्- आत्मकल्याणम् इच्छन् नरः केषाम् अनिष्टं न कुर्यात् ।

प्रश्न 3. पाठात् चित्वा अधोलिखितानां श्लोकानाम् अन्वयम् उचित पदं क्रमेण पूरयत-

(क) पिता …….. बाल्ये महत् विद्याधनम् यच्छति अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः ..………।

उत्तरम् – पिता पुत्राय बाल्ये महत् विद्याधनम् यच्छति अस्य पिता किं तपः तेपे इत्युक्तिः कृतज्ञता ।

(ख) येन ……. यत् प्रोक्तं तस्य तत्वार्थ निर्णयः येन कर्तुं स: ……… इति……।

उत्तरम् – येन केनापि यत् प्रोक्तं तस्य तत्वार्थ निर्णयः येन कर्तुं शक्यो भवेत्, सः विवेक इति ईरितः ।

(ग) य आत्मनः श्रेयः …….. सुखानि च इच्छति, परेभ्य अहितं ……….. कदापि च न ……. |

उत्तरम् – यः आत्मनः श्रेयः प्रभूतानि सुखानि च इच्छति, परेभ्य अहितं कर्म कदापि च न कुर्यात् ।

प्रश्न 5 मञ्जूषाया तदभावात्मकसूची विचित्य अलिखित कथनाना समक्ष लिखत-

(क) विद्याधनं महत

(ख) आचारः प्रथमो धर्मः

(ग) चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम् ।

मञ्जूषा – आचरेण तु संयुक्तः सम्पूर्ण फल भाग्भवेत्। मनसि एकं वचसि एक कर्मणि एकं महात्मनाम्। विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् । सं वो मनांसि जानताम् । विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम्। आचारप्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणाः

उत्तर– (क) विद्याधनं महत

(i) विद्याधनं सर्वधन प्रधानम् ।

(ii) विद्याधनं श्रेष्ठं तन्मूलमितरद्धनम् ।

(ख) आचारः प्रथमो धर्मः

(i) आचरेण तु संयुक्तः सम्पूर्ण फल भाग्भवेत्।

(ii) आचार प्रभवो धर्मः सन्तश्चाचारलक्षणाः

(ग) चित्ते वाचि च अवक्रता एव समत्वम् । 

(i) मनसि एकं वचसि एकं कर्मणि एकं महात्मनाम्

(ii) सं वो मनांसि जानताम्

प्रश्न 6 (अ) अधोलिखिताना शब्दानापुरत उचित विलोम शब्द चित्वा लिखत-

(क) पक्व: (परिपक्व, अपक्व, क्वचितः)

(ख) विमूढधीः (सुधी, निधिः मन्दधीः)

(ग) कातरः (अकरुणः, अधीरः, अकातरः)

(घ) कृतज्ञता (कृपणता, कृतघ्नता, कातरता)

(ङ) आलस्यम् (उद्विग्नता, विलासिता, उद्योगः)

(च) परुषा (पौरुषी, कोमला, कठोरा)

उत्तरम (क) अपक्व, (ख) सुधी, (ग) अकातरः, (घ) कृतघ्नता, (ङ) उद्योग:, (च) कोमला।

(आ) अधोलिखितानां शब्दाना जयः समानार्थक शब्दा मञ्जूषाया चित्वा लिखन्ताम् ।

उत्तरम- (क) प्रभूतम् – भूरि, विपुलम्, बहु

(ख) श्रेय: – शुभम्, शिवम्, कल्याणम्

(ग) चित्तम् – मनः, मानसम्, चेत: 

(घ) सभा – परिषद्, संसद, सभा

CLASS 10 SANSKRIT CHAPTER 10

सूक्तय
सूक्तय

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