Shlesh Alankar परिभाषा उदाहरण
Shlesh Alankar श्लेष अलंकार की परिभाषा
श्लेष अलंकार किसे कहते हैं
काव्य में जहाँ एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ प्रकट होकर चमत्कार की अनुभूति कराते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण 1.
‘बलिहारी नृप कूप की, गुन बिन बूँद न देइ।’ प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘गुन’ शब्द में श्लेष है। ‘गुन’ शब्द के यहाँ दो अर्थ ग्रहण किए गए हैं। नृप (राजा) के पक्ष में ‘गुन’ का अर्थ है-गुण या विशिष्टता तथा कूप (कुएँ) के पक्ष में ‘गुन’ का अर्थ है- रस्सी । अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
उदाहरण 2.
‘विमलाम्बरा रजनी वधू, अभिसारिका सी जा रही।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘विमलाम्बरा’ शब्द के दो भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। रजनी अर्थात् रात्रि के पक्ष में ‘विमलाम्बरा’ शब्द का अर्थहै-विमल (स्वच्छ) अम्बर (आकाश) वाली तथा अभिसारिका के पक्ष में ‘विमलाम्बरा’ का अर्थ है-स्वच्छ वस्त्रों वाली । अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
उदाहरण 3.
‘पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।’ प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘पानी’ शब्द के विभिन्न सन्दर्भों में भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। मोती के सन्दर्भ में ‘पानी’ का अर्थ ‘चमक’ है, मनुष्य के सन्दर्भ में ‘पानी’ का अर्थ ‘प्रतिष्ठा’ है व चून के सन्दर्भ में ‘पानी’ का अर्थ ‘जल’ है, अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
उदाहरण 4.
चरन धरत चिंता करत, चितवत चारिहुँ ओर । सुबरन को ढूँढ़त फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर ।।’
प्रस्तुत दोहे की दूसरी पंक्ति में ‘सुबरन’ का प्रयोग किया गया है, जिसे कवि, व्यभिचारी एवं चोर तीनों ही खोज रहे हैं। यहाँ सुबरन के तीन अर्थ हैं-कवि अच्छे शब्द, व्यभिचारी अच्छा रूप-रंग तथा चोर स्वर्ण ढूँढ़ रहा है, अर्थात् यहाँ श्लेष अलंकार है।
उदाहरण 5.
‘मंगन को देखि पट देत बार-बार है।
इस काव्य पंक्ति में पट के दो अर्थ हैं, पहला अर्थ है – व्यक्ति याचक को देखकर बार-बार वस्त्र देता है तथा दूसरा अर्थ है – व्यक्ति याचक को देखते ही दरवाजा बंद कर लेता है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार का सौन्दर्य परिलक्षित होता है।
Shlesh Alankar for Class 12 Hindi Vyakaran
श्लेष अलंकार के भेद– श्लेष अलंकार के दो भेद माने गए हैं–
- अभंग पद श्लेष तथा
- सभंग पद श्लेष ।
जब शब्द के विभिन्न अर्थ शब्द के टुकड़े किए बिना ही स्पष्ट हो जाते हैं, तो अभंग पद श्लेष अलंकार माना जाता है, जैसे- ‘पानी गये न ऊबरै’ पंक्ति में भी ‘पानी’ शब्द के टुकड़े किये बिना ही उसके तीनों अर्थ स्पष्ट हो जाते हैं।
किन्तु, जहाँ विभिन्न अर्थों की प्राप्ति हेतु शब्द के टुकड़े करने पड़ें, वहाँ सभंग पद श्लेष अलंकार माना जाता है, जैसे-“चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर । को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर ।। ‘ उपर्युक्त दोहे में ‘वृषभानुजा’ शब्द के दोनों अर्थों की प्राप्ति इस शब्द के टुकड़े करने पर ही होती है- ‘वृषभानु + जा’ (वृषभानु की पुत्री – राधा) तथा ‘वृषभ + अनुजा (बैल की बहन – गाय) । अतः यहाँ सभंग पद श्लेष है।