Yamak Alankar-परिभाषा, अर्थ उदाहरण
Yamak alankar:- यमक अलंकार की परिभाषा
यमक अलंकार किसे कहते हैं
परिभाषा – जहाँ एक या एक से अधिक शब्दों की आवृत्ति हो, किन्तु उनके अर्थ भिन्न-भिन्न हों, वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण 1.
‘काली घटा का घमण्ड घटा, नभ-मण्डल तारक-वृन्द खिले । ‘ उपर्युक्त काव्य पंक्ति में शरद ऋतु के आगमन पर उसके सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। वर्षा की समाप्ति पर शरद ऋतु के आने पर काली घटा का घमंड घट गया है। ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है, किन्तु प्रथम ‘घटा’ शब्द का अर्थ ‘बादल की घटा’ है जबकि द्वितीय ‘घटा’ शब्द का अर्थ ‘कम हो गया’ है। अतः यहाँ यमक अलंकार का प्रयोग है।
उदाहरण 2.
“सुन्यौ कहूँ तरु अरक ते, अरक समान उदोतु ।’ उपर्युक्त काव्य पंक्ति में ‘अरक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। यहाँ पहले ‘अरक’ शब्द का अर्थ ‘आक’ (पौधा) तथा दूसरे ‘अरक’ शब्द का अर्थ ‘सूर्य’ है, अतः इस पंक्ति में यमक अलंकार का सौन्दर्य है।
उदाहरण 3.
कहै कवि बेनी, बेनी ब्याल की चुराई लीनी, रति-रति सोभा सब रति के सरीर की।
पहली पंक्ति में ‘बेनी’ शब्द की दो बार आवृत्ति हुई है। पहली बार प्रयुक्त ‘बेनी’ शब्द कवि का नाम है तथा दूसरी बार प्रयुक्त ‘बेनी’ का अर्थ ‘चोटी’ है। इसी प्रकार द्वितीय पंक्ति में ‘रति’ शब्द तीन बार प्रयुक्त हुआ है। पहली बार ‘रति-रति’ का अर्थ रत्ती-रत्ती अर्थात् सारी और दूसरे स्थान पर प्रयुक्त रति का अर्थ- कामदेव की परम सुंदरी पत्नी रति है। इस प्रकार ‘बेनी’ और ‘रति’ शब्दों की आवृत्ति से काव्य सौन्दर्य उत्पन्न हो गया है तथा यमक अलंकार है।
उदाहरण 4.
भजन कह्यौ ताते भज्यौ, भज्यौ न एको बार। दूरि भजन जाते कह्यौ, सो तू भज्यौ गँवार ।।
उपर्युक्त दोहे में ‘भजन’ और ‘भज्यौं’ शब्दों की आवृत्ति हुई है। ‘भजन’ शब्द के दो अर्थ हैं, पहले भजन का अर्थ भजन-पूजन और दूसरे भजन का अर्थ भाग जाना। इसी प्रकार पहले ‘भज्यौ’ का अर्थ भजन किया तथा दूसरे ‘भज्यौ’ का अर्थ भाग गया, इस प्रकार भजन एवं भज्यौ शब्दों की आवृत्ति ने दोहे में चमत्कार उत्पन्न कर दिया है। कवि अपने मन को संबोधित करते हुए कहता है- हे मेरे मन ! जिस परमात्मा का मैंने तुझे भजन करने को कहा, तू उससे भाग खड़ा हुआ और जिन विषय-वासनाओं से भाग जाने के लिए कहा, तू उन्हीं का सेवन करने लगा। इस प्रकार इन भिन्नार्थक शब्दों की आवृत्ति से दोहे में सौन्दर्य (यमक अलंकार है) उत्पन्न हो गया है ।
Yamak alankar | यमक अलंकार | यमक अलंकार के प्रकार, उदाहरण
यमक अलंकार के भेद-
यमक अलंकार के दो भेद होते हैं-
1. अभंग यमक – जहाँ शब्दों की आवृत्ति भंग न हो, क्रम से हो, अभंग यमक होता है।
उदाहरण–
“कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय । वा खाये बौराय जग, या पाये बौराय ।।”
उपर्युक्त दोहे में ‘कनक’ शब्द की आवृत्ति क्रम से दो बार हुई है। किन्तु प्रथम ‘कनक’ शब्द का अर्थ ‘धतूरा’ है तथा द्वितीय ‘कनक’ शब्द ‘स्वर्ण’ (सोने) के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
अतः यहाँ अभंग यमक अलंकार का प्रयोग है।
2. सभंग यमक – जहाँ शब्दांश की आवृत्ति पूर्वक्रम के अनुसार होती है परन्तु शब्द को तोड़कर आवृत्ति देखी जाती है-
उदाहरण–
तो पर वारौं उरबसी सुनि राधिके सुजान।
तू मोहन के उरबसी हवै उरबसी समान ।।
उपर्युक्त पंक्तियों में प्रथम ‘उरबसी’ उर्वशी अप्सरा, द्वितीय ‘उर + बसी’ क्रिया (हृदय में बसने वाली) तथा तृतीय आभूषण विशेष के अर्थ में प्रयुक्त है। अतः यहाँ ‘उरबसी’ शब्द के तीन भिन्न अर्थों में प्रयोग होने से सभंग यमक अलंकार है।
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