Sanskrit Class 9 Shemushi Chapter 3 गोदोहनम् Hindi Translation & Questions Answers
गोदोहनम् – यह पाठ कृष्णचंद्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्व्यूहम्’ नामक ग्रंथ से सम्पादित किया गया है। यह एक नाटक है जिसमें ऐसे व्यक्ति का कथानक है जो धनधान्य और सुखी बनने की धारणा से अपनी गाय को एक महीने भर तक दूध नहीं निकालता है। जिससे महीने के अन्त में जब वह साथ दूध एक निकालने की इच्छा से वह पुनः दूध दोहन करने जाता है। तब गाय का दूध थनो में सूख जाता है।
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(प्रथमम् दृश्यम्)
(मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति ) (ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः । )
चन्दन: – अहा ! सुगन्धस्तु मनोहरः (विलोक्य) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा )
आस्वादयामि तावत्। (मोदकं गृहीतुमिच्छति )
मल्लिका:- (सक्रोधम्) विरम। विरम मा स्पृश! एतानि मोदकानि । किमर्थ क्रुध्यसि ! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिह्वालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षमः अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम् ?
मल्लिका:- सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति।
सरलार्थ
(मल्लिका लड्डू बनाती हुई धीरे सी आवाज में भगवान् शिव की स्तुति कर रही है।) (तब लड्डुओं की सुगन्ध का लेता हुआ खुश मन से चन्दन प्रवेश करता है।)
चन्दन – हाय! सुगन्ध तो मनमोहक है। (देखकर) हो! लड्डू बन रहे हैं? (खुश होकर) तब तो चक लेता हूँ। (चन्दन लड्डू को लेना चाहता है।)
मल्लिका – (क्रोधित होकर) ठहरो। ठहरो। इन लड्डुओं को मत स्पर्श करो।
चन्दन – किसलिए क्रोधित हो रही हो? तुम्हारे हाथ के बनाये हुए लड्डुओं को देखकर मैं मुंह में पानी भर आया। इसे नियन्त्रित करने में असहाय हूँ, क्या तुम इसे नहीं जानती हो ?
मल्लिका – हे नाथ! अच्छी तरह से जानती हूँ। लेकिन ये लड्डू पूजा के लिए बनाए हैं।
चन्दनः तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। प्रसादं च देहि।
मल्लिका – भो! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दि
प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः ।
चन्दनः – सखिभिः सह। न मया सह (विषादं नाटयति)
मल्लिका – आम् । चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलायाः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः । तावत्, गृह व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय ।
सरलार्थ
चन्दन – तब तो जल्दी ही पूजन आरंभ करो और प्रसाद दीजिए।
मल्लिका – अरे, इसमें पूजा नहीं होगी। मैं अपनी सहेलियों के साथ कल प्रातः काशी विश्वनाथ मन्दिर जाऊँगी, वहाँ हम सभी गङ्गा नदी में स्नान कर और धार्मिक यात्रा करेंगी।
चन्दन – सहेलियों के साथ मेरे साथ नहीं (दुःख प्रकट करता है)
मल्लिका – हाँ। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सब जा रही हैं। इसलिए मेरे साथ तुम्हे आने का औचित्य नहीं है। हम सभी एक सप्ताह के बाद में लौट आयेंगे। तब तक तुम घर की व्यवस्था और गाय के दूध दुहने की व्यवस्था का अच्छे से पालन करना।
(द्वितीय दृश्य)
चन्दनः – अस्तु । गच्छ सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
चन्दनः – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु । दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्ध
करिष्यामि । (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति )
उमा – मातुलानि मातुलानि।
चन्दनः – उमे अहं तु मातुलः । तव मातुलानि तु गङ्गास्नानार्थं काशीं गता अस्ति । कथय !
किं ते प्रियं करवाणि?
उमा – मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति । तत्र त्रिशत- सेटकमितं दुग्धम् अपेक्षते । एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया ।
चन्दनः – (प्रसन्नमनसा ) त्रिशत-सेटकपरिमितं दुग्धम् शोभनम् दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम् ।
सरलार्थ
चन्दन – ठीक है। जाओ। अपनी सहेलियों के साथ धार्मिक यात्रा का आनन्दित उठाओ। मैं सबकुछ कर दुंगा। तुम्हारा यात्रा कल्याणकारी होवे।
चन्दन – मल्लिका तो धार्मिक यात्रा के लिए चली गई है। ठीक है। दूध-दोहन करने के बाद प्रातः नाश्ते का प्रबन्ध करूँगा (चन्दन स्त्री का वेष धारण करके व दूध का पात्र हाथ में लेकर नन्दिनी (गाय) के पास जाता है।)
उमा – मामीजी, मामीजी।
चन्दन – उमा! मैं तो तेरा मामा हूँ। तुम्हारी मामी तो गङ्गा स्नान के लिए काशी गई हुई है। कहो। तुम्हारे क्या काम (कार्य) करूं?
उमा – मामाजी दादाजी कहा हैं कि एक महीने के बाद हमारे घर में एक बड़ा उत्सव मनाया जाएगा। उसमें तीन सौ लीटर दूध की आवश्यकता है। यह व्यवस्था आपको करनी है।
चन्दन – (खुश मन से) तीन सौ लीटर दूध ठीक है, दूध की व्यवस्था हो जायेगी, ऐसा दादाजी से तुम कह देना।
उमा – धन्यवाद मामाजी ! अब मैं जाती हूँ। (वह उलझाती जाती है।)
(तृतीयं दृश्यम्)
चन्दन: – (प्रसन्नो भूत्वा अङ्गुलिषु गणयन्) अहो सेटक-त्रिशतकानि पयांसि। अनेन तु बहुधनं लप्स्ये (नन्दिनीं दृष्ट्वा ) भो नन्दिनि तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि (प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति ।)
चन्दनः – (चिन्तयति) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्धं सुरक्षितं न तिष्ठति । इदानीं किं करवाणि? भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि । ( एवं क्रमेण सप्त दिनानि व्यतीतानि सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति।)
मल्लिका – (प्रविश्य) स्वामिन्! प्रत्यागता अहम् । आस्वादय प्रसादम् । (चन्दनः मोदकानि खादति वदति च ।)
चन्दन: – मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
मल्लिका – (साश्चर्यम्) एवम्। धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम्?
सरलार्थ
चन्दन – (खुश होकर, अंगुलियों पर गिनता हुआ) अहो ! तीन सौ लीटर दूध से तो बहुत अधिक धन प्राप्त करूँगा। (नन्दिनी को देखकर) हे नन्दिनी! तुम्हारी कृपा से तो मैं धनवान हो जाऊँगा (खुश चन्दन गाय की बहुत सेवा करता है।)
चन्दन – (विचार करता है) महीने के बाद में ही दूध की जरूरत है। यदि रोजाना दोहन (दूध निकालना) करता हूँ तो दूध सुरक्षित नहीं रहेगा। अब क्या करूँ? अच्छा है, महीने के बाद में ही पूर्ण रूप से दूध का दोहन करूंगा। (इस तरह क्रम से सात दिन बीत गये। एक सप्ताह के बाद मल्लिका लौट आती है।)
मल्लिका – (प्रवेश करके) नाथ! मैं आई हूं। प्रसाद चखो (ग्रहण करो)।
(चन्दन लड्डू खाता हुआ, कहता है।)
चन्दन: – मल्लिका! तुम्हारी यात्रा तो अच्छी तरह से सफल हो गई? काशी विश्वनाथ की कृपा से प्रिय समाचार सुनाता हूँ।
मल्लिका – (हैरानी से) ऐसा है। धर्मयात्रा के अलावा और क्या प्रिय है?
चन्दनः -ग्रामप्रमुखस्य गृहे महोत्सवः माताले भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभिः दातव्यम् अस्ति ।
मल्लिका – किन्तु एतावन्मात्रं दुग्धं कुतः प्राप्स्यामः ।
चन्दनः – विचारय मलिसके। प्रतिदिन दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति । अत एव दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः ।
मल्लिका – स्वामिन्! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः । अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः । अनेन अधिकाधिक दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः ।(द्वावेव धेनोः सेवायां निरतौ भवतः । अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयतः । कदाचित् विषाणयोः तैलं लेपयतः तिलकं धारयतः रात्रौ नीराजनेनापि तोषयतः )
चन्दनः – मल्लिके! आगच्छ । कुम्भकारं प्रति चलावः । दुग्धार्थ पात्रप्रबन्धोऽपि करणीयः ।(द्वावेव निर्माती)
सरलार्थ
चन्दन – गाँव के मुखिया के यहां एक महीने के बाद में महोत्सव होगा। उसमें तीन सौ लीटर दूध हमारे द्वारा दिया जाना है।
मल्लिका – किन्तु इतना दूध कहाँ से मिलेगा?
चन्दन – विचार करो मल्लिका रोजाना दूध का दोहन करके यदि एकत्रित करेंगे तो यह सुरक्षित नहीं रहेगा। इसलिए रोजाना दूध का दोहन नहीं करेंगे। उत्सव के दिन ही सम्पूर्ण दूध का दोहन करेंगे।
मल्लिका – नाथ! तुम तो सबसे चतुर हो। आपका अति उत्तम विचार है। अब दूध का दोहन छोड़कर केवल नन्दिनी की सेवा ही करेंगे। जिससे अधिक से अधिक दूध महीने के अन्त में प्राप्त कर सके। (दोनों गाय की सेवा में लग जाते हैं। इस क्रम में तेल और गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी-कभी गाय के दोनों सींगों पर तेल का लेप करते हैं, तिलक धारण करके और रात में प्रज्ज्वलित दीपक से अर्चना (प्रार्थना) करके उसे खुश करते हैं।)
चन्दन – मल्लिका! आओ। कुम्हार के पास जाते हैं। दूध के लिए बर्तन का प्रबन्ध भी तो करना है। (दोनों निकल जाते हैं।)
(चतुर्थ दृश्यम्)
कुम्भकार – (घटरचनायां लीनः गायति )
ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतोः रचयामि घटानहम्।
जीवनं भङ्गुरं सर्वं यथैष मृत्तिकाघट:।।
सरलार्थ
कुम्भकार – (घड़ा बनाते हुए गाता है) जिस प्रकार यह मिट्टी का घड़ा टूटकर नष्ट होने वाला है, ठीक उसी प्रकार सभी का जीवन नष्ट होने वाला है, यह जानकर भी मैं आजीविका के लिए घड़ो का निर्माण करता हूं।
चन्दनः – नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि किं दास्यसि ?
देवेश – कथं न? विक्रयणाय एव एते। गृहाण घटान्। पञ्चशतोत्तर-रूप्यकाणि च देहि ।।
चन्दनः – साधु परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एवं दातुं शक्यते।
देवेशः– क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं न दास्यामि ।
मल्लिका – (स्वाभूषणं दातुमिच्छति ) तात! यदि अधुनेव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि,
एतत् आभूषणम्।
देवेशः – पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम् । गृहाण नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एवं घटमूल्यम् ददातु।
उभौ – धन्योऽसि तात! धन्योऽसि।
सरलार्थ
चन्दन -प्रणाम करता हूँ तात। मुझे पन्द्रह घड़े चाहिए । क्या दोगे?
देवेश – क्यों नहीं? ये सभी (घड़े) बेचने के लिए है। घड़ों को ले जाइए और पांच सौ रुपये दे दीजिए।
चन्दन – ठीक है। लेकिन मूल्य तो दूध बेचकर ही दिया जाएगा है।
देवेश – क्षमा कीजिए बूटा पैसों के बिना तो एक बड़ा भी नहीं दूंगा।
मल्लिका – (अपना आभूषण देना चाहती है) तात यदि अभी पैसे देना आवश्यक है तो यह आभूषण पकड़ दीजिए।
देवेश – बेटी। मैं पाप कर्म नहीं करता हूँ। मैं किसी भी तरह से तुमको आभूषणों से रहित नहीं करना चाहता हूँ। खुद इच्छानुसार घड़े ले जाओ दूध बेचकर ही मूल्य दे देना।
दोनों – धन्य होतात। धन्य हो ।
(पंचम दृश्यम्)
(मासानन्तरं सन्ध्याकालः। एकत्र रिक्ताः नूतनघटाः सन्ति । दुग्धक्रेतारः अन्ये च ग्रामवासिनः अपरत्र आसीनाः )
चन्दनः – ( धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय मल्लिकाम् आह्वयति) मल्लिके सत्वरम्
आगच्छ ।
मल्लिका – आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत् ।
चन्दनः – (यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति । चन्दनश्च पात्रेण सह पतति ) नन्दिनि । दुग्धं देहि । किं जातं ते? (पुनः प्रयासं करोति ) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि । (चीत्कारं कुर्वन् पतति ) (सर्वे आश्चर्येण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति )
सरलार्थ
(एक महीने के बाद सायंकाल (का दृश्य) एक ओर खाली नये पड़े हैं, और दूसरी ओर दूध खरीदने वाले अन्य बीते हुए हैं।)
चन्दन – (गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण करके, मल्लिका को बुलाता है) मल्लिका शीघ्र ‘आओ।
मल्लिका – आ रही हूँ स्वामी। तब तक दूध का दोहन प्रारम्भ करो।
चन्दन – (जब गाय के पास जाकर दूध दुहना चाहता है, तब गाय पीछे के पैर से प्रहार करती है और चन्दन पात्र (बर्तन) के साथ ही गिर जाता है) नन्दिनी दूध दीजिए। तुमको क्या हो गया
है?. (फिर से प्रयास करता है) हाय! मारा गया हूँ (चीत्कार करता हुआ गिर जाता है)
(सभी आश्चर्य से चन्दन को और आपस में देखते हैं।
मल्लिका – चीत्कारं भुत्वा, झटिति प्रविश्य) नाथ किं जातम् ? कथं त्वं रक्तरज्जितः ?
चन्दनः – धेनुः दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्।
(मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते किन्तु, धेनुः दुग्धहीना एव इति अवगच्छति ।)
मल्लिका – (चन्दनं प्रति) नाथ अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् पत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं
कृतम् । सा पीडाम् अनुभवति। अत एव ताडयति ।
चन्दनः – देवि! मयापि ज्ञातं यत् अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत् पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम्। अत एव दुग्धं शुष्कं जातम्। सत्यमेव उक्तम्-
कार्यमद्यतनीयं यत्तदय विधीयताम्।
विपरीते गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम् ॥
सरलार्थ
मल्लिका – (चीत्कार सुनकर, जल्दी से प्रवेश करके) नाथ। क्या हुआ? किस प्रकार तुम खून से लथपथ हुए हो?
चन्दन – गाय दूध दुहने की अनुमति ही नहीं दे रही है। दोहन प्रारम्भ करते ही मुझे मारती है।
(मल्लिका गाय को प्रेम और ममता से बुलाकर दूध दुहने का प्रयत्न करती है, लेकिन गाय दूध से रहित है ऐसा जानती है।)
मल्लिका – (चन्दन की ओर देखकर) नाथ । हम दोनों ने अत्यन्त अनुचित किया है कि एक महीने के पश्चात गाय के दूध का दोहन किया है।गाय को पीड़ा का अनुभव कर रहा है। इसीलिए मार रही है।
चन्दन – देवी! मैंने भी जानता हूं कि हमारे द्वारा सबकुछ अनुचित ही किया गया है कि पूरे महीने बाद दूध का दोहन ही नहीं किया। इसीलिए गाय का दूध सूख गया है। सत्य ही कहा गया है- जो आज का कार्य है, वह आज ही करना चाहिए। जिसकी गति विपरीत है वह निश्चय ही कष्ट प्राप्त करता है।
मल्लिका – आम् भर्तः। सत्यमेव मयापि पठितं यत-
(i) सुविचार्य विधातव्यं कार्य कल्याणकाङ्क्षिणा । –
यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः ॥
किन्तु प्रत्यक्षतया अद्य एव अनुभूतम् एतत् ।
सर्वे – दिनस्य कार्य तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम्। यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम् ।
(जवनिका पतनम् ) (सर्वे मिलित्वा गायन्ति । )
(ii) आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः ।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिवति तदसम् ॥
सरलार्थ
मल्लिका – हाँ नाथ सत्य ही है। मेरे द्वारा भी पढ़ा गया है कि कल्याण चाहने वाले के द्वारा कार्य को अच्छी प्रकार से विचार करके ही करना चाहिए। जो मनुष्य यह बिना विचार किये करता है, वह दुःखी होता है। किन्तु प्रत्यक्ष रूप से आज हो यह अनुभव किया है।
सभी– दिन का कार्य उसी दिन करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है वह निश्चित रूप से कट प्राप्त करता है।
(पर्दा गिरता है) (सभी मिलकर गाते हैं)
शीघ्रता से न करने योग्य, आदान प्रदान और करने योग्य कर्म का महत्त्व समय नष्ट कर देता है।
Shemushi Sanskrit Class 9 Chapter 3 Solutions गोदोहनम्
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