Class 9 Sanskrit Chapter 5 भ्रान्तो बाल: Hindi & English Translation
NCERT Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 5 bhranto balh ( भ्रान्तो बाल: ) Questions and Answer
भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम । किन्तु तेन सह केलिभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत् । यतस्ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणा बभूवुः । तन्द्रालुर्बालो लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन्नेकाकी किमप्युद्यानं प्रविवेश । स चिन्तयामास – विरमन्त्वेते वराकाः पुस्तकदासाः । अहं पुनरात्मानं विनोदयिष्यामि । ननु भूयो द्रक्ष्यामि क्रुद्धस्य उपाध्यायस्य मुखम् । सन्त्वेते निष्कुटवासिन एव प्राणिनो मम वयस्या सन्तु इति ।
हिन्दी अनुवाद-कोई भटका (पथभ्रष्ट) बालक विद्यालय जाने के समय पर खेलने के लिए बाहर निकल गया। लेकिन उसके साथ खेलकूद में समय बिताने के लिए, उस समय कोई भी साथी (मित्र) उसे नहीं मिल रहा था। क्योंकि वे सभी पहले दिन के (विद्यालय में पठित) पाठों को याद कर विद्यालय जाने की जल्दी में थे। आलसी वह बालक लज्जा (शर्म) के कारण उनकी निगाह बचाकर अकेला ही किसी उद्यान (बाग) में चला जाता है। उसने सोचा- “रहने दो इन बेचारे पुस्तकदासों को अर्थात् ये किताबी कीड़े मेरे साथ खेलने नहीं चलते हैं तो रहने दो। मैं तो अपना मनोरंजन ही करूंगा। नहीं तो फिर से उस कुपित शिक्षक का मुँह देखना पड़ेगा। (विद्यालय में गया तो) ठीक है, मैं इन कोटरवासियों (वृक्ष के कोटर रूपी घर में रहने वाले) पक्षियों को ही साथी बना लेता हूँ।” (पक्षी ही मेरे साथ खेलने वाले साथी होंगे।)
English Translation– Some stray child went out to play at the time of going to school. But at that time he could not find any companion (friend) to spend time in sports with him. Because they were all in a hurry to go to school remembering the lessons of the first day. Because of shame, that lazy child goes to a garden alone, keeping his eyes off them. He thought- “Leave these poor book slaves, that is, if these bookworms do not want to play with me, then leave them. I will entertain myself. Otherwise, I will have to see the face of that angry teacher again. (When I went to school) OK Yes, I make these kotarvasis (living in the tree’s hollow house) birds as companions. (Birds will be my only playmates.)
अथ स पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडाहेतोराह्वयत् । स द्विस्त्रिरस्याह्वानमेव न मानयामास । ततो भूयो भूयः हठमाचरितबाले सोऽगायत्-वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा इति । तदा स बालः ‘कृतमनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन’ इत्यन्यतो दत्तदृष्टिचटक मेकं चञ्च्वा तृणशलाकादिकमाददानमपश्यत् । उवाच च – “अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। एहि क्रीडावः । त्यज शुष्कमेतत् तृणम् स्वादूनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि” इति । स तु ‘नीडः कार्यो बटद्रुमशाखायां तद्यामि कार्येण’ इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्रो बभूव ।
हिन्दी अनुवाद– उसके बाद उसने बगीचे में जाते हुए भ्रमर को देखा तो उसे अपने साथ खेलने के लिए बुलाया। दो-तीन बार उसके बुलाने पर भी वह भ्रमर नहीं माना। तब उस बालक के बार-बार हठ (जिद) करने पर वह गाने लगा अर्थात् “हम तो मधु (फूलों का मीठा रस, शहद) का संचय करने में व्यस्त हैं।” (हमारे पास खेलने को समय नहीं है)। तब उस बालक ने “व्यर्थ में, गर्व (घमण्ड) से युक्त इस कीड़े को रहने दो।” अतः दूसरी ओर निगाह करने पर, चोंच में वास (सूखी घास) के तिनके ले जाते हुए चटक (नर चिड़िया) को देखा और (वह) बोला- “अरे प्रिय चिड़े। (चिड़िया के बच्चे) तुम मनुष्य (मेरे) मित्र बनोगे, चलो खेलते हैं। छोड़ो इस सूखी घास को, मैं तुम्हें स्वादिष्ट खाने के लिए उपयुक्त कौर दूंगा। परन्तु वह तो ‘वटवृक्ष की शाखा’ (टहनी) पर घोंसला बनाना है, इसलिए मुझे तो कार्य (करना) है, मैं जा रहा हूँ। यह कहकर अपना कार्य करने में व्यस्त हो गया।
English Translation– After that he saw Bhramar going to the garden and called him to play with him. Even after calling him two or three times, he did not agree. Then when the child insisted again and again, he started singing, that is, “We are busy in collecting honey.” (We don’t have time to play). Then the boy said, “In vain, leave this worm full of pride.” So looking the other way, he saw Chatak (the male bird) carrying straws of vas (dry grass) in his beak and (he) said – “O dear bird.(bird babies) You humans will be (my) friend, let’s play. Leave this dry grass, I will give you a suitable mouthful to eat. But he has to build a nest on the ‘branch of banyan tree’ (twig), so I have to work (to do), I am going. Saying this he got busy in doing his work.
तदा खिन्नो बालकः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति । तदन्वेषयाम्यपरं मानुषोचितं विनोदयितारमिति परिक्रम्य पलायमानं कमपि श्वानमवालोकयत् । प्रीतो बालस्तमित्थं संबोधयामास रे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? आश्रयस्वेदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् । अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति । कुक्कुरः प्रत्यवदत्- यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य । रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि ॥ इति ।
हिन्दी अनुवाद– इसके बाद दुःखी हुए उस बालक ने पक्षी मनुष्यों के पास नहीं आते, इसलिए मनुष्य की तरह मनोरंजन करने वाले किसी अन्य (प्राणी) को देखता (खोजता) हूँ (ऐसा सोचकर) घूमकर उसने भागे जाते हुए एक कुत्ते को देखा। प्रसन्न हुए बालक ने उसे इस प्रकार से सम्बोधित किया- “अरे । मनुष्य के मित्र ! क्यों तुम इस गर्मी के दिन में (व्यर्थ) भटक रहे हो? इस पेड़ के नीचे की सघन और शीतल (ठण्डी) छाया का आश्रय लो। मैं भी तुम्हारे जैसे किसी, साथ खेलने वाले (सहयोगी) की तलाश में था।” कुत्ते ने उत्तर दिया- “जो मुझे पुत्र की भाँति प्रसन्नतापूर्वक भोजन देता है (पोषण करता है) उस स्वामी के घर की रक्षाकर्म (रखवाली) को करने में मैं जरा भी असावधानी नहीं कर सकता।” (अतः मैं जा रहा हूँ।)
English Translation- After this, the sad child said that birds do not come near humans, so looking (thinking) I am looking for some other (creature) that entertains like humans, he saw a dog running away. The delighted child addressed him thus- “O friend of man! Why are you wandering (in vain) on this hot summer day? Take shelter of the dense and cool shade under this tree. I too Was looking for someone like you as a playmate.” The dog replied “I cannot be negligent at all in protecting the house of that lord who gives me food (nourishes) with pleasure like a son.” (So I’m leaving.)
सर्वे एवं निषिद्धः स बालो विघ्नितमनोरथः सन्-‘कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकृत्ये निमग्नो भवति । न कोऽप्यहमिव वृथा कालक्षेपं सहते । नम एतेभ्यः यैर्मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता । अथ स्वोचितमहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालामुपजगाम। ततः प्रभृति स विद्याव्यसनी भूत्वा महतीं वैदुषीं प्रथां सम्पदं च अलभत् ।
हिन्दी अनुवाद – सभी के द्वारा इस प्रकार से मना कर दिए जाने पर खण्डित काम (निराश) वह बालक किस प्रकार से इस संसार में प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कार्य में तल्लीन रहता है। मेरी तरह कोई भी व्यर्थ में समय व्यतीत नहीं करता। इन सभी (प्राणियों) को नमन है जिन्होंने मुझमें आलस्य के प्रति घृणा उत्पन्न कर दी। अतः मैं भी अपने योग्य कार्य करता हूँ, यह सोचकर वह शीघ्र पाठशाला में चला गया। तब से लेकर वह (भ्रान्त) बालक विद्याभ्यासी बनकर महान् विद्वज्जनयोग्य प्रसिद्धि को तथा सम्पदा ( धन-धान्य) को प्राप्त हुआ ।
English translation– Being rejected by everyone in this way, how that child who is frustrated, how every living being in this world remains engrossed in his own work. No one wastes time like me. Salutations to all these (creatures) who have made me hate laziness. Therefore, thinking that I also do my worthy work, he quickly went to school. From then onwards, that (deluded) child became a scholar and attained great scholarly fame and wealth (wealth and grain).
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- कारक विभक्तिः
Class 9 Sanskrit Chapter 5 Questions answers
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक पद में उत्तर लिखिए-)
(क) कः तन्द्रालुः भवति?
उत्तर बाल:।
(ख) बालकः कुत्र व्रजन्तं मधुकरम् अपश्यत् ?
उत्तर पुष्पोद्यानम्।
(ग) के मधुसंग्रहव्यग्राः अवभवन् ?
उत्तर मधुकरा:।
(घ) चटक: कया तृणशलाकादिकम् आददाति?
उत्तर चंचवा।
(ङ) चटकः कस्य शाखायां नीडं रचयति?
उत्तर वटद्रुमस्य।
(च) बालकः कीदृशं श्वानं पश्यति?
उत्तर पलायमानम्।
(छ) श्वानः कीदृशे दिवसे पर्यटसि?
उत्तर निदाघदिवसे।
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत– (अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए- )
(क) बालः कदा क्रीडितुं अगच्छत्?
उत्तरम् – बालः विद्यालयगमनकाले क्रीडितुं अगच्छत् ।
(ख) बालस्य मित्राणि किमर्थं त्वरमाणा अभवन्?
उत्तरम् – बालस्य मित्राणि पाठं स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः अभवन् ।
(ग) मधुकरः बालकस्य आह्वानं केन कारणेन तिरस्कृतवान् ।
उत्तरम् – मधुकरः मधुसंचये व्यस्त आसीत् अनेन सः तस्य आह्वानं तिरस्कृतवान् ।
(घ) बालकः कीदृशं चटकम् अपश्यत् ?
उत्तरम् – बालकः तृणानाददानं चटकं अपश्यत् ।
(ङ) बालकः चटकाय क्रीडनार्थं कीदृशं लोभं दत्तवान्?
उत्तरम् – बालक: लोभं ददन् उवाच-त्यज शुष्कं तृणं अहं ते स्वादुभोजनं दास्यामि ।
(च) खिन्नः बालकः श्वानं किम् अकथयत्?
उत्तरम् – खिन्नः बालकः अकथयत्रे मनुष्याणां मित्र । किं पर्यटसि वृथा ? आगच्छ अत्र शीतलछायायां
(छ) भग्नमनोरथः बालः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तरम् – भग्नमनोरथः बालः अचिन्तयत् जगति सर्वे निज निजकार्ये व्यस्ताः, अहमिव न कोऽपि वृथा अहमपि स्वोचितं करोमि।
प्रश्न 3. निम्नलिखितस्य श्लोकस्य भावार्थं हिन्दीभाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत-
यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य ।
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि ॥
उत्तर– हिन्दी अनुवाद इस संसार में सफल जीवन हेतु प्रत्येक प्राणी को स्वोचित कर्म को नियमित रूप से करना होता है। सम्पूर्ण प्रकृति जैसे सूर्य का प्रतिदिन समय पर उदित होना, वृक्षों का समय पर फलना-फूलना, बादलों का समय पर बरसना, यही संकेत करता है कि इसी प्रकार मनुष्य को भी अपना-अपना कर्म समय पर नियमित रूप से करना चाहिए। क्योंकि जीव-जन्तु भी ऐसा ही करते हैं। जैसे प्रस्तुत श्लोक में कुत्ते का अपने कर्म (स्वामिभक्ति) को बड़ी तत्परता से करते हुए दिखाया गया है। वह रक्षा कर्म में थोड़ी भी असावधानी नहीं करता।
English Translation– For a successful life in this world, every living being has to perform his own actions regularly. The entire nature, like the rising of the sun on time every day, the flowering of trees on time, the raining of clouds on time, indicates that in the same way, human beings should also do their work regularly on time. Because animals also do the same. For example, in the present verse, the dog has been shown doing its duty (self-devotion) with great readiness. He doesn’t do the slightest bit of carelessness in his defense work.
प्रश्न 4. ‘भ्रान्तो बालः’ इति कथायाः सारांशं हिन्दी भाषया आङ्ग्लभाषया वा लिखत ।
उत्तर- प्रस्तुत कहानी में एक भ्रान्त (पथभ्रष्ट) बालक को अपने अध्ययनकर्म की अपेक्षा खेलकूद में व्यर्थ में समय बिताते हुए दिखाया गया है कि संसार में जब अन्य सभी प्राणी, जीव-जन्तु भी अपने-अपने कर्म को तल्लीन होकर करते हैं तो मनुष्य को भी अपना कर्म अवश्य करना चाहिए, उसे समय को व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। वह बालक कभी भ्रमर को अपने साथ खेलने के लिए आह्वान करता है, तो कभी चटक को, कभी कुत्ते को। परन्तु सभी स्वोचित कर्म में तल्लीन होने के कारण उसके साथ कोई भी खेलने को तैयार नहीं होता। थककर उसे यह एहसास होता है कि उसे भी अपने कर्म के प्रति प्रमाद नहीं करना चाहिए अपितु विद्यालय जाकर विद्या ग्रहण करनी चाहिए। और कुछ समय पश्चात् उसी बालक ने विद्वत्ता में सफलता (प्रसिद्धि) प्राप्त की तथा खूब धन-सम्पत्ति को भी प्राप्त किया।
प्रश्न 5. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) स्वानि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि ।
उत्तरम् – कीदृशानि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि?
(ख) चटकः स्वकर्मणि व्यग्रः आसीत् ।
उत्तरम् – चटकः कस्मिन् व्यग्रः आसीत्?
(ग) कुक्कुरः मानुषाणां मित्रम् अस्ति ।
उत्तरम् – कुक्कुरः केषां मित्रम् अस्ति ?
(घ) सः महतीं वैदुषीं लब्धवान् ।
उत्तरम् – सः काम् लब्धवान् ?
(ङ) रक्षानियोगकरणात् मया न भ्रष्टव्यम् इति ।
उत्तरम् – कस्मात् मया न भ्रष्टव्यम् इति ?
प्रश्न 6. ‘एतेभ्यः नमः’ इति उदाहरणमनुसृत्य नमः इत्यस्यात।
उत्तरम् – (i) नमः शिवायः ।
(ii) गुरवे नमः ।
(iii) शारदायै नमः।
(iv) पित्रे नमः ।
(v) परमात्मने नमः ।
प्रश्न 7. ‘क’ स्तम्भे समस्तपदानि ‘ख’ स्तम्भे च तेषां विग्रहः दत्तानि तानि यथासमक्षं लिखत-
‘क’ स्तम्भ | ‘ख’ स्तम्भ |
(क) दृष्टिपथम् | दृष्टे: पन्था: |
(ख) पुस्तकदासा: | पुस्तकानां दासा: |
(ग) विद्याव्यसनी | विद्याया: व्यसनी |
(घ) पुष्पोद्यानम् | पुष्पणां उद्यानम् |
(अ) अधोलिखितेषु पदयुग्मेषु एकं विशेष्यपदम् अपरञ्च विशेषणपदम्। विशेषणपदम् विशेष्यपदं च थक्-पृथक् चित्वा लिखत-
उत्तर | विशेषणम् | विशेष्यम् |
खिन्न: बाल: | खिन्न: | बाल: |
पलायमानं श्वानम् | पलायमानम् | श्वानम् |
प्रीत: बालक: | प्रीत: | बालक: |
स्वादूनि भक्ष्यकवलानि | स्वादूनि | भक्ष्यकवलानि |
त्वरमाणा: वयस्या: | त्वरमाणा: | वयस्या: |