NCERT Solution for Class 6 Hindi Chapter 2 बचपन – Bachpan
Class 6 Hindi Chapter 2 बचपन (कृष्णा सोबती) का सम्पूर्ण पाठ की हिन्दी व्याख्या एवं अभ्यास प्रश्न को सरल भाषा में समझाया गया है
पाठ-परिचय– इस पाठ में लेखिका ने अपने बचपन की यादों का वर्णन किया है। लेखिका के अनुसार बचपन में हें परिवार के नियंत्रण में रहना पड़ता था। अपने मोजे धोने और जूते पालिश करने का काम उन्हें स्वयं करना ड़ता था। बचपन में मनोरंजन के नाम पर ग्रामोफोन ही एकमात्र साधन था। लेखिका को बचपन में पहनी जाने वाली अपनी पोशाकें भली-भांति याद हैं। बचपन में लेखिका को कुलफी, कचौड़ी, समोसा बहुत अच्छे लगते थे, शहतूत।।
(1)
डॉ. मैं इन दिनों कुछ बड़ा बड़ा यानी उम्र में सवाना महसूस करने लगी है। शायद इसलिए कि पिछली शताब्दी में पैदा हुई थी। मेरे पहनने में भी काफी बदलाव आए हैं। पहले मैं रंग बिरंगे कपड़े रही। नीला जामुनीकाला चॉकलेटी अब मन कुछ ऐसा करता है कि सफेद पहनो । गहरे नहीं, हलके रंग मैने पिछले दशकों में तरह-तरह की पोशाक पहनी है। पहले फ्रॉक, फिर निकर वॉकर, स्कर्ट, लहँगे गरारे और अब चूड़ीदार पाजामा और घेरदार कुर्ते ।
सन्दर्भ एवं प्रसंग प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-1’ में संकलित पाठ ‘बचपन’ से लिया गया है। इसकी लेखिका कृष्णा सोबती है। इसमें लेखिका अपने बचपन के पहनावे में होने वाले परिवर्तन की चर्चा कर रही है।
व्याख्या लेखिका आज बड़ी हो चुकी है। वह बच्चों को अपने बचपन से लेकर अब तक के पहनावे में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी देते हुए कह रही हैं कि उसका जन्म पिछली शताब्दी में हुआ था जिसके कारण उसे बड़ी होने अर्थात् उम्र के हिसाब से समझदार होने का अहसास हो रहा है। शताब्दी बदल चुकी है और परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है। अत: लेखिका के रहन-सहन और पहनावे मैं भी परिवर्तन आ गया था। बचपन में बच्चों को चटक-मटक वाले रंग-बिरंगे कपड़े अच्छे लगते हैं। लेखिका भी बाल सुलभ स्वभाव से प्रभावित थी और नीले- जामुनी, ग्रे, काले, चॉकलेटी आदि रंग-बिरंगे कपड़े पहना करती थीं। अब बढ़ती उम्र के कारण लेखिका का मन हल्के रंग के कपड़े पहनने का करता है। गहरा रंग बीते हुए बचपन की तरह पीछे छूट गया है। अतः अब सफेद कपड़े अधिक पसंद आने लगे हैं और लेखिका सफेद कपड़े पहनने लगी है। बचपन में बच्चे फ्रॉक, निकर-वॉकर, स्कर्ट, लहँगे गरारे आदि पसंद करते हैं। लेखिका भी इन सब से वंचित नहीं रही है। परन्तु अब जब से वो समझदार हो गयी है तब से वह साधारण चूड़ीदार और घेरदार कुर्ते पहनती हैं। बचपन की उस रंगीन जिन्दगी को वह आज भी याद करती है।।
(2)
सरवर, मुझे आज भी बूट पॉलिश करना अच्छा लगता है। हालांकि अब नई-नई किस्म के शू आ चुके हैं । कहना होगा कि ये पहले से कहीं ज्यादा आरामदेह हैं। हमें जब नए जूते मिलते, उसके साथ ही छालों का इलाज शुरू हो जाता । जब कभी लम्बी सैर पर निकलते, अपने पास रुई जरूर रखते । जूता लगा तो रुई मोजे के अंदर । हाँ, हमारे- तुम्हारे बचपन में तो बहुत फर्क हो चुका है । हर को हमें ऑलिव ऑयल या कैस्टर ऑयल पीना था । यह एक मुश्किल काम था । शनीचर नाक में इसकी गंध आने लगती थी।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग- 1’ में संकलित पाठ ‘बचपन’ से लिया गया है। इसकी लेखिका कृष्णा सोबती है। इसमें लेखिका जूतों के बारे में बता रही है।
व्याख्या – लेखिका सरवर को संबोधित करते हुए जूतों के बारे में बता रही है। लेखिका के अनुसार आज नये-नये तरीके के आरामदायक जूते आ चुके हैं। इनमें पॉलिश करने की आवश्यकता नहीं होती। पहले जब नए जूते आते थे तो वे पैर में काटते थे। इसलिए मोजों के अन्दर रुई लगाकर उन्हें पहनना पड़ता था। कहीं दूर जाना होता था तो रुई साथ में रख ली जाती थी। इस प्रकार नए जूतों के आते ही पैर के छालों का इलाज शुरू कर दिया जाता था क्योंकि नए जूतों से छाले होना अनिवार्य था। आज के जूते कपड़े के पोंछने पर ही चमक जाते हैं। परन्तु हमें अपने जूतों को चमकाने के लिए रोजाना पॉलिश करनी पड़ती थी। आज भी लेखिका को बूट पॉलिश करना अच्छा लगता है परन्तु आज समय बदल गया है। लेखिका कहती है कि अब हमारे तुम्हारे बचपन जैसी स्थिति नहीं है। आज स्थिति बदल चुकी है।
(3)
चने जोर गरम और अनारदाने का चूर्ण ! हाँ, चने जोर गरम की पुड़िया जो तब थी, वह अब भी नजर आती है पुराने कागजों से बनाई गई इस पुड़िया में निरा हाथ का कमाल है । नीचे से तिरछी लपेटते हुए ऊपर से इतनी चौड़ी कि चने आसानी से हथेली पर जाएँ। एक वक्त था जब फ़िल्म का गाना- चना जोर गरम बाबू मैं लाया मज़ेदार, चना जोर गरम- उन दिनों स्कूल के हर बच्चे को आता था। कुछ बच्चे पुड़िया पर तेज़ मसाला बुरकवाते । पूरा गिरजा मैदान घूमने तक यह पुड़िया चलती। एक-एक चना- पापड़ी मुँह में डालने और कदम उठाने में एक खास ही लय-रफ़्तार थी ।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-1’ में संकलित पाठ ‘बचपन’ से लिया गया है। इसकी लेखिका कृष्णा सोबती हैं। इस गद्यांश के माध्यम से लेखिका चना जोर गरम व अनार दाने के चूर्ण को याद करते हुए पुड़िया के आकार व चना- पापड़ी के स्वाद की अनुभूति कर रही है।
व्याख्या – लेखिका की स्मृति में चना जोर गरम व अनार के ‘दाने के चूर्ण की अनुभूति हो रही है। चना जोर गरम की वैसी ही पुड़िया जैसी उसके बचपन में बनती थी, आज भी दिखाई दे जाती है। ये पुड़िया पुराने कागज को हाथ से तिरछा लपेटते हुए शंकु के आकार में बनाई जाती हैं। इसमें ऊपर का हिस्सा इतना चौड़ा होता है कि चने हथेली पर आसानी से आ जाते हैं। इस चना जोर से गरम से जुड़ा एक फिल्मी गाना ‘चना जोर गरम बाबू में लाया मजेदार, चना जोर गरम’ स्कूल के प्रत्येक बच्चे की जुबान पर था। बच्चे ‘चना जोर गरम अपने स्वाद के अनुसार लेते थे, कुछ बच्चे तेज मसाला डलवाते थे। चना जोर गरम की पुड़िया में से एक-एक चना पापड़ी लेकर खाने में इतना आनन्द आता था कि बच्चों की चाल में खास लय और ताल आ जाती थी और पूरा गिरजा मैदान घूमने तक वह पुड़िया चलती थी। गिरजा मैदान के खत्म होते ही वह पुड़िया भी समाप्त हो जाती थी।
(4)
शाम को रंग-बिरंगे गुब्बारे । सामने जाखू का पहाड़ । ऊँचा चर्च । चर्च की घंटियाँ बजतीं तो दूर-दूर तक उनकी गूँज फैल जाती । लगता, इसके संगीत से प्रभु ईशू स्वयं कुछ कह रहे हैं।सामने आकाश पर सूर्यास्त हो रहा है। गुलाबी सुनहरी धारियाँ नीले आसमान पर फैल रही हैं। दूर-दूर फैले पहाड़ों के मुखड़े गहराने लगे और देखते-देखते बत्तियाँ टिमटिमाने लगीं। रिज पर की रौनक और माल की दुकानों की चमक के भी क्या कहने । स्कैंडल पॉइंट की भीड़ से उभरता कोलाहल ।
सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-1’ में संकलित पाठ ‘बचपन’ से लिया गया है। इसकी लेखिका कृष्णा सोबती है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखिका शिमला के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णनकर रही है।
व्याख्या– बचपन में लेखिका ने शिमला रिज पर बहुत भौज-मस्ती की थी। शाम को गिरजा मैदान में रंग-बिरंगे गुब्बारे बेचने वाले आ जाते हैं और जाखू के पहाड़ पर स्थित ऊँचे गिरजाघर के सामने खड़े हो जाते हैं। लोग प्रभु ईसा मसीह से प्रार्थना करने के लिए यहाँ इकट्ठे हो जाते हैं और वातावरण में गिरजाघर की घंटियों की आवाज गूँजने लगती है, जिससे लेखिका को लगता है कि इन घंटियों की ध्वनि के मधुर संगीत के माध्यम से प्रभु ईसा मसीह कोई संदेश दे रहे हैं। शाम का वक्त होने से सूर्य अस्त होने जा रहा है। जिसके कारण नीले आकाश मण्डल में गुलाबी सुनहरी धारियाँ फैल गयी हैं। पहाड़ अन्धकार की छाया में और अधिक गहरे लगने लगे और माल रोड पर लाइट जगमगाने लगी। पहाड़ के सबसे ऊपर का किनारा अस्त होते सूर्य की रोशनी में लम्बा होकर अपनी परछाई से माल रोड की सड़क की शोभा बढ़ा रहा है। टिमटिमाती रोशनी में वहाँ की दुकानों की चमक बढ़ गई है तथा स्कैंडल पॉइंट पर चहल-पहल बढ़ गई थी।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखिका बचपन में इतवार की सुबह क्या-क्या काम करती थीं ?
उत्तर– लेखिका बचपन में इतवार (रविवार) की सुबह अपने मोजे धोर्ती और अपने जूतों पर पालिश करती थीं ।
प्रश्न 2. “तुम्हें बताऊँगी कि हमारे समय और तुम्हारे समय में कितनी दूरी हो चुकी है” इस बात के लिए लेखिका क्या-क्या उदाहरण देती हैं ?
उत्तर लेखिका बताती हैं कि उनके समय में कुछ घरों में ग्रामोफोन होते थे, रेडियो और टेलीविजन नहीं थे । उनके समय की कुल्फी अब आइसक्रीम हो गई है कचौड़ी समोसे, पैटीज में बदल गए हैं। शहतूत, फालसे और खसखस के शरबतों की जगह अब कोक और पेप्सी आ गई है । पहले कोक की जगह लेमनेड और विमटो चलती थीं ।
प्रश्न 3. पाठ से पता करके लिखो कि लेखिका को चश्मा क्यों लगाना पड़ा ? चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्या कहकर चिढ़ाते थे ?
उत्तर– लेखिका को चश्मा इसलिए लगाना पड़ा क्योंकि वे रात में टेबल लॅप के सामने काम करती थीं । चश्मा लगाने पर लेखिका का चेहरा अजीब-सा लगता होगा । चचेरे भाई ने मजाक में लेखिका की चश्मा लगाने पर लंगूर जैसी सूरत बताई थी ।
प्रश्न 4. लेखिका बचपन में कौन-कौन सी चीजें मजा ले-लेकर खाती थीं ? उनमें से प्रमुख फलों के नाम लिखो।
उत्तर– लेखिका बचपन में चाकलेट और कई तरह के फल मजा ले-लेकर खाती थीं । शिमला के काफल, रसभरी, कसमल आदि फल उन्हें अच्छे लगते थे । इनके अलावा चना जोर गरम और चेस्टनट भी उन्हें बहुत अच्छे लगते थे।