NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 5 गज़ल (दुष्यंत कुमार) – हिंदी आरोह काव्य खंड
इस पोस्ट में हमने NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 5 गज़ल में हमने सम्पूर्ण अभ्यास प्रश्न को सरल भाषा में लिखा गया है। हमने Class 11th Hindi Aroh Chapter 5 गज़ल Questions and Answer बताएं है। इसमें NCERT Class 11th Hindi Aroh Chapter 5 Notes लिखें है जो इसके नीचे दिए गए हैं।
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प्रश्न 1. ‘कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए’ का तात्पर्य क्या है ?
उत्तर- कवि यहाँ स्वतन्त्रता मिलने से पूर्व भारत के लोगों की आकांक्षाओं का वर्णन कर रहा है। लोग देश की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहे थे। वे सोच रहे थे कि जब भारत में अपना राज्य हो जायेगा तो प्रत्येक घर में दीपक जलाये जायेंगे और हर घर रोशनी से जगमगा उठेगा। अर्थात् आजाद भारत में प्रत्येक नागरिक शोषण से मुक्त होगा और सुख-शान्ति तथा सम्पन्नता का जीवन जीयेगा। लोगों को इस बात का पूरा विश्वास था,परन्तु कुटिल और स्वार्थी राजनीतिज्ञों के कारण देश शोषण, गरीबी और आर्थिक बदहाली से त्रस्त है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित पंक्ति में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए- ‘यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है’
उत्तर- दरख्त विशाल वृक्ष को कहते हैं। उनकी छाया घनी और शीतल होती है तथा धूप से रक्षा करती है। परन्तु दरख्तों की छाया में भी धूप लगने का निहितार्थ भिन्न है। दरख्त भारत के भ्रष्ट और अकुशल राजनेताओं की ओर इंगित करता है। जिन भारतीय शासकों और नेताओं से लोगों को सुख-सुविधाओं के विकास की आशा थी, वे अपने भ्रष्ट आचरण और अकुशलता के कारण लोगों के कष्टों को बढ़ा रहे हैं। कवि ने यह बात ‘वृक्ष और छाया के प्रतीकों द्वारा कही है।
प्रश्न 3. ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए इस पंक्ति में किन लोगों की ओर संकेत किया गया है ? सफ़र का क्या आशय है?
उत्तर – ‘ये लोग कितने मुनासिव है इस सफर के लिए प्रस्तुत पंक्ति में शायर ने जिस ‘सफ़र’ के बारे में बताया है कि वह देश के विकास तक पहुँचने का सफर है। आजादी के बाद भारत विकास की ओर चलना चाहता है परन्तु विकास की इस यात्रा के पथिक लगनशील और सामर्थ्यवान नहीं है। देश का विकास और नव निर्माण देशवासियों की कर्मठता, परिश्रम और लगन से ही होगा परन्तु भारतीय जन अकर्मण्य, आलसी तथा भाग्यवादी हैं। वे अपनी गरीबी तथा देश के पिछड़ेपन को अपना भाग्य मानकर चुप बैठ जाते है और देश के उत्थान के लिए प्रयास नहीं करते। ऐसे लोग इस विकास यात्रा के पथिक बनने के योग्य ही नहीं है, शायर को यह बात अत्यन्त दुःख देती है।
प्रश्न 4. खुदा को ‘आदमी का ख्वाब’ कहने का क्या आशय है ?
उत्तर- शायर मानता है कि ईश्वर की कल्पना आदमी ने ही की है। पाश्चात्य विचारक एवं समाजशास्त्री भी लोक के अनुसार वह मानता है कि ईश्वर मनुष्य की कल्पना की उपज है। यह कल्पना एक हसीन नज़ारे की तरह है, जिससे आदमी को सुख मिलता है। आदमी अपनी सफलता असफलता का श्रेय ईश्वर को देकर जिम्मेदारी से बच जाता है। अपनी गरीबी और शोषण को ईश्वर की मर्जी कहकर अपने निकम्मेपन को छिपा लेता है। किसी अज्ञात शक्ति से भय तथा उपकृत होने की भावना ही ईश्वर को उसके मन में जन्म देती है। इस तरह ईश्वर मनुष्य की एक सुन्दर कल्पना है।
प्रश्न 5. गज़ल की क्या विशेषताएँ होती हैं ?
उत्तर- गजल को हिन्दी में लाने का श्रेय दुष्यन्त कुमार को जाता है। गजल एक ऐसी काव्य विधा है जिसमें सभी शेर अपने आपमें पूर्ण तथा एक-दूसरे से स्वतन्त्र होते हैं। उनमें किसी प्रकार का कोई क्रम नहीं होता। इन शेरों को मिलाकर एक रचना (गज़ल) का रूप देने के लिए दो बातों का ध्यान रखा जाता है। गज़ल में पहले शेर की दोनों पंक्तियों को तुक मिलाती है। बाद में प्रत्येक शेर की दूसरी पंक्ति की तुक भी उसी प्रकार मिलती है। जैसे- कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें उम्र भर के लिए।
दूसरी बात है कि विषय-वस्तु के स्तर पर, मिजाज का ध्यान रखना। गज़ल में शीर्षक देने का चलन नहीं होता। प्रत्येक शेर अपने आप में स्वतन्त्र होने के कारण उसका कोई केन्द्रीय भाव नहीं होता।
प्रश्न 6. भाव स्पष्ट कीजिए-
वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेकरार हूँ आवाज में असर के लिए।
उत्तर- शायर ने यहाँ पहली पंक्ति में लोगों के इस विचार को प्रकट किया है कि व्यवस्था अत्यन्त कठोर और क्रूर होती है। उसमें परिवर्तन नहीं हुआ करता। व्यवस्था में परिवर्तन होगा, ऐसा सोचना पत्थर से सिर टकराना है। सिर फूट जायेगा लेकिन पत्थर नहीं टूटेगा। इसी विश्वास के कारण लोग गरीबी और शोषण के विरुद्ध खड़े नहीं होते। परन्तु शायर का कर्त्तव्य होता है कि वह लोगों को निहित स्वार्थ तथा दोषपूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा दे। वह बताये— शोषण के विरुद्ध आवाज उठाओ, मेरे देशवासियो ! तुम्हारी मजबूत सम्मिलित आवाज बहरे शासकों को अवश्य सुनाई देगी। कवि आवाज का असर जानने के लिए बेकरार है, क्योंकि उसका विश्वास है कि बुराई के विरुद्ध उठी आवाज निरर्थक नहीं जाती। इसी से मिलता-जुलता भाव निम्नलिखित शेर में भी व्यक्त हुआ है- कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता। एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।
प्रश्न 7. “ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए”-कवि ने यहाँ किस एहतियात का जिक्र किया है ?
उत्तर- ‘बहर’ उर्दू कविता में छन्द को कहते हैं। शायर अपनी बात छन्दों में ही व्यक्त करता है। शोषण भरी शासन व्यवस्था का विरोध शायर ही करता है। वही लोगों को संघर्ष की प्रेरणा देता है । परन्तु शासन व्यवस्था कठोर और निर्दयी होती है। वह शायर का दमन करती है, उसकी वाणी-स्वातन्त्र्य पर रोक लगा देती है। ऐसी अवस्था में शायर को सावधानी रखनी पड़ती है। अपने कर्त्तव्य (लोगों को जगाने और शोषण का विरोध करने) को सावधानी से पूरा करना होता है। सावधानी बहर (छन्द) से नहीं छन्द के रचनाकार शायर को रखनी होती है। अर्थात् कवि को समाज में चेतना लाने का कार्य बहुत ही सावधानीपूर्वक करना है।