NCERT Solutions for Class 11th: Hindi chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर ( Bhartiy Gayikaon mein bejod-Lata mangeshakar)
इस पोस्ट में हमने NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर में हमने सम्पूर्ण अभ्यास प्रश्न को सरल भाषा में लिखा गया है। हमने Class 11th Hindi Vitan Chapter 1 भारतीय गायिकाओं में बेजोड़ लता मंगेशकर Questions and Answer बताएं है। इसमें NCERT Class 11th Hindi वितान Chapter 1 Notes लिखें है जो इसके नीचे दिए गए हैं।
पेज नम्बर 18
अभ्यास-प्रश्न उतर
प्रश्न 1. लेखक ने पाठ में ‘गानपन’ का उल्लेख किया है। पाठ के सन्दर्भ में स्पष्ट करते हुए बताएँ कि आपके विचार में इसे प्राप्त करने के लिये किस प्रकार के अभ्यास की आवश्यकता है ?
उत्तर-‘गानपन’ का अर्थ है, ‘गाने का ऐसा अन्दाज जो एक आम (साधारण) व्यक्ति को भी भाव-विभोर कर दे। संगीत में ‘गानपन’ का मौजूद रहना परमावश्यक है, तभी वह संगीत रसिक वर्ग में रंजकता उत्पन्न कर सकेगा। अतः गायक-गायिकाओं को ‘गानपन’ को प्राप्त करने के लिये निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिये। इसके लिये उन्हें गीत, आघात, सुलभता और लोच आदि तत्वों को गायन में महत्व देना चाहिये। उन्हें आसान लयकारी में सुरीली, भावपूर्ण व रसयुक्त गायकी का अभ्यास करना चाहिये। गायन में स्वर, लय, ताल व शब्दार्थ का उचित तालमेल बिठाने का अभ्यास करना चाहिये। इस प्रकार ‘गानपन’ को प्राप्त करने के लिये श्रोताओं को रसविभोर कर देने वाली गायकी के निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है।
प्रश्न 2. लेखक ने लता की गायकी की किन विशेषताओं को उजागर किया है ? आपको लता की गायकी में कौन-सी विशेषताएँ नजर आती हैं ? उदाहरण सहित बताइए। संगीत की लोकप्रियता और सामान्य मनुष्य में संगीत विषयक अभिरुचि के विकास का श्रेय लता को देते हुए लेखक ने लता की गायकी को निम्न विशेषताओं से युक्त बतलाया है-
उत्तर-
- गानपन -लता की लोकप्रियता का मुख्य कारण यह ‘गानपन’ अर्थात् गाने का ऐसा अंदाज जो आम व्यक्ति को भी भाव-विभोर कर दे। लता का कोई भी गाना हो, उसमें शत-प्रतिशत यह गानपन मौजूद मिलेगा।
- स्वरों की निर्मलता- लता के गाने की एक और विशेषता है, उसके ‘स्वरों की निर्मलता’। लता के स्वरों में कोमलता और मुग्धता है। लता का जीवन की ओर देखने का दृष्टिकोण ही मानो उसके गायन की निर्मलता में झलक रहा है।
- नादमय उच्चार ‘नादमय उच्चार’ लता के गायन की एक और विशेषता है। उसके गीत के किन्हीं दो शब्दों का अन्तर स्वरों के आलाप द्वारा बड़ी सुन्दर रीति से भरा रहता है और ऐसा प्रतीत होता है कि वे दोनों शब्द विलीन होते-होते एक-दूसरे में मिल जाते हैं। यह बात पैदा करना बड़ा कठिन है, परन्तु लता के साथ यह बात अत्यन्त सहज और स्वाभाविक हो जाती है।
प्रश्न 3.लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है, जबकि श्रृंगारपरक गाने वे बड़ी उत्कटता से गाती है, इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं ? हम इस
उत्तर- कथन से सहमत नहीं हैं कि ‘लता ने करुण रस के गानों के साथ न्याय नहीं किया है।’ यह सत्य है कि लता शृंगारपरक गाने बड़ी उत्कटता से गाती हैं, परन्तु करुण रस के गाने भी उन्होंने उतनी ही रसोत्कटता के साथ गाये हैं। लता द्वारा गाये गये ‘ए’ मेरे वतन के लोगों’ —गीत से तो करुण रस की ऐसी धारा प्रवाहित हुई, जिसे सुनकर प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू सहित सम्पूर्ण देशवासियों की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। लता ने और भी कई करुण रस से ओत-प्रोत गाने गाये हैं, जो कि रसोत्कटता की दृष्टि से शृंगारपरक गानों से कम महत्व नहीं रखते हैं।
प्रश्न 4.”संगीत का क्षेत्र ही विस्तीर्ण है। वहाँ अबतक अलक्षित, असंशोधित और अदृष्टिपूर्व ऐसा खूब बड़ा प्रान्त है, तथापि बड़े जोश से इसकी खोज और उपयोग चित्रपट के लोग करते चले आ रहे हैं”- इस कथन को वर्तमान फिल्मी संगीत के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिये।
उत्तर-संगीत का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत है। वहाँ नए-नए प्रयोग की बहुत गुंजाइश है। संगीत दिग्दर्शकों ने ऐसे अनेक विषय खोज निकाले हैं, जिनका आज तक संगीत में प्रयोग नहीं किया गया और वर्तमान फिल्मी संगीत में वे इन पर नवीन रसानुकूल प्रयोग कर रहे हैं व मधुर गीतों से संगीत का भंडार भर रहे हैं। अनेक पुरानी धुनों में परिवर्तन अथवा संशोधन कर उनके नवीनीकरण द्वारा संगीतकार वर्तमान फिल्मी संगीत में ऐसे अनेक गीतों की रचना कर रहे हैं, जिन्हें पुरानी व नई धुनों का मिला-जुला रूप कहा जा सकता है। बहुत-सी धुनें, राग व स्वर तो ऐसे हैं, जिनकी ओर आजतक किसी की दृष्टि भी नहीं गई है, परन्तु संगीत क्षेत्र के लोग बड़े जोश से इन धुनों, रागों आदि की खोज व उपयोग करते चले आ रहे हैं व वर्तमान फिल्मी संगीत में इनका प्रयोग कर नित नये गीतों की रचना कर रहे हैं। फलस्वरूप फिल्मी संगीत का क्षेत्र दिनोंदिन अधिकाधिक विकसित होता जा रहा है।
प्रश्न 5.चित्रपट संगीत ने लोगों के कान बिगाड़ दिए- अकसर यह आरोप लगाया जाता रहा है। इस सन्दर्भ में कुमार गंधर्व की राय और अपनी राय लिखें।
उत्तर-कुमार गंधर्व लोगों के द्वारा लगाये गये इस आरोप को पूर्णतया अनुचित ठहराते हुए कहते हैं कि चित्रपट संगीत ने लोगों के कान खराब नहीं किये हैं, उल्टे सुधार दिये हैं। आज लोगों को शास्त्र – शुद्ध और नीरस गाना नहीं चाहिये, उन्हें तो सुरीला और भावपूर्ण गाना चाहिये और यह क्रान्ति चित्रपट संगीत ही लाया है। चित्रपट संगीत के कारण संगीत के विविध प्रकारों से लोगों का परिचय हो रहा है। उनका स्वर ज्ञान बढ़ रहा है। सुरीलापन क्या है? उसकी समझ भी उन्हें होती जा रही है। आजकल के नन्हें-मुन्ने बच्चे भी स्वर में ही गुनगुनाते हैं। इस प्रकार चित्रपट संगीत समाज की संगीत विषयक अभिरुचि में प्रभावशाली मोड़ लाया है।
प्रश्न 6.शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का आधार क्या होना चाहिए ? कुमार गंधर्व की इस सम्बन्ध में क्या राय है ? स्वयं आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर-कुमार गंधर्व के अनुसार शास्त्रीय एवं चित्रपट दोनों तरह के संगीतों के महत्त्व का मूल आधार उनकी ‘रसोत्कटता’ व ‘रंजकता’ होनी चाहिये। अर्थात् रसिक को आनन्द देने का सामर्थ्य जिस संगीत में अधिक हो, उसी का अधिक महत्व माना जाना चाहिये। इस विषय में मेरा मत भी लेखक से भिन्न नहीं है। रंजकता से रहित संगीत तो बिलकुल ही नीरस होगा, अतएव उसे ही संगीत के महत्व का मूल आधार माना गया है।
प्रश्न 1. चित्रपट संगीत व शास्त्रीय संगीत के प्रमुख अन्तरों को सविस्तार लिखो।
उत्तर- ‘चित्रपट संगीत’ शास्त्रीय संगीत से सर्वथा भिन्न है। जहाँ गंभीरता शास्त्रीय संगीत का स्थायी भाव है, वहीं जलदलय (द्रुतलय) और चपलता चित्रपट संगीत का मुख्य गुणधर्म है। चित्रपट संगीत का ताल प्राथमिक अवस्था का ताल होता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में ताल अपने परिष्कृत रूप में पाया जाता है।
चित्रपट संगीत में आधे तालों का उपयोग किया जाता है, जबकि शास्त्रीय संगीत में पूरे तालों का उपयोग होता है। चित्रपट संगीत की लयकारी बिलकुल अलग होती है, आसान होती है। यहाँ गीत और आघात को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। सुलभता और लोच को अग्र स्थान दिया जाता है, जबकि शास्त्रीय संगीत की लयकारी अत्यन्त कठिन होती है। तथापि चित्रपट संगीत गाने वाले को शास्त्रीय संगीत की उत्तम जानकारी होना आवश्यक है।
Read Also :- Class 11 All Subject Solution