Alankar ke Udaharan| अलंकार के उदाहरण,भेद,
अनुप्रास अलंकार वर्ण या वर्ण-समूह के एकाधिक बार आने पर अनुप्रास अलंकार होता है।
- कानन कठिन भयंकर भारी क और भ व्यंजन के दो-दो बार आने में अनुप्रास अलंकार है।
- तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। त वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है ।
छेकानुप्रास के उदाहरण
- हरि सा हीरा छाँड़ि के करें आन की आस ।
- अति आनंद मगन महतारी।
- चेत कर चलना, कुमारग में कदम धरना नहीं।
वृत्यानुप्रास के उदाहरण
- भटक भावनाओं के भ्रम में, भीतर ही था भूल रहा। चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही थीं जल-थल में।
- गंधी गंध गुलाब को गँवई गाहक कौन ।
- जदपि सुजाति, सुलच्छनी, सुबरन, सरस, सुवृत्त ।
- भूषण बिनु न बिराजई, कविता, वनिता, मित्त ।।
श्रुत्यानुप्रास के उदाहरण
- तुलसीदास सहित निसि-दिन देखत तुम्हारि निठुराई ।
- दिनांत था, थे दिननाथ डूबते सधेनु आते गृह ग्वाल-बाल थे।
अन्त्यानुप्रास के उदाहरण
- नभ लाली, चाली निसा, चटकाली धुनि कीन ।
- संत हृदय नवनीत समाना।
- कहा कविन, पै कहई न जाना।
लाटानुप्रास के उदाहरण
- पूत सपूत तो क्यों धन संचै ?
- पूत कपूत तो क्यों धन संचै ?
- राम-भजन जाके अहै, विपत्ति सुमंगल ताहि ।
- राम भजन जाके नहीं, विपत्ति सुमंगल ताहि ।।
- पराधीन जो नर नहीं, सुख-संपत्ति ता हेत ।
- पराधीन जो नर, नहीं सुख-संपत्ति ता हेत ।।
यमक अलंकार के उदाहरण
- काली घटा का घमंड घटा।
- कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय । बा खाए बौराय जग, वा पाए बौराय ॥
- माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर । कर का मनका डारि दे. मन का मनका फेर ।।
- तो पर बारौं उरबसी, सुन राधिके सुजान । तू मोहन के उर बसी ह्वै उरबसी समान ।।
- तीन बेर खाती थीं वे तीन बेर खाती हैं।
- बर जीते सर मैन (कामदेव), के ऐसे देखे मैं न । हरिनी के नैनान लें, हरि नीके (अच्छे) ये नैन ।
- मूरत मधुर मनोहर देखी। भयउ बिदेह (जनक) बिदेह (देह-रहित) बिसेखी।
- आयो सखि ! सावन विरह सरसावन, लाग्यौ है बरसावन सलिल चहुँ ओर तें ।
श्लेष अलंकार के उदाहरण
- जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय । बारे उजियारो करे, बढ़े अँधेरो होय ||
- मेरी भव बाधा हरी, राधा नागरि सोइ । जा तन की झाई परै, स्याम हरित दुति होइ ।।
- चिर जीवौ जोरी जुरे, क्यों न सनेह गंभीर । को घटि या वृषभानुजा, बे हलधर के वीर ||
- सुबरन को ढूँढ़त फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर
- रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
- बलिहारी नृप कूप की, गुण बिन बूँद न देहि ।
उपमा अलंकार के उदाहरण
- पीपर पात सरिस मन डोला। (मन=उपमेय, पीपर पात = उपमान, सरि वाचकशब्द, डोला= साधारण धर्म) (उत्तराखंड PSI – 2008)
- उषा सुनहले तीर बरसती जय लक्ष्मी-सी उदित हुई ।
- मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ ।
- रति सम रमणीय मूर्ति राधा की ।
- सिंधु सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह ।
- तब तो बहता समय शिला-सा जम जाएगा। 7. कनक-से दिन मोती-सी रात। सुनहली साँझ गुलाबी प्रात (दो उपमाएँ)
- एक रम्य उपवन था नंदन वन-सा सुंदर ।
- सफरी से चंचल घने, मृग से पीन सुऐन । कमल पत्र से चारु ये, राधा जू के नैन । (मालोपमा एक उपमेय (‘राधा जू के नैन’ और तीन उपमान)
रूपक अलंकार के उदाहरण
- एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास ।
- संसार की समरस्थली में धीरता धारण करो ।
- पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ।
- रामचरित – सर बिनु अन्हवाये। सो श्रम जाइ न कोटि उपाये ।
- धूम धुंआरे काजर कारे, हम ही बिकरारे बादर । मदन राज के वीर बहादुर, पावस के उड़ते फणिधर ।
- राम नाम सुंदर कर-तारी। संसय-बिहँग उड़ावन हारी ।।
- उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बाल-पतंग । बिगसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग ।
- अंबर- पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी (शिक्षक ग्रेड-11-2011) 9. जितने कष्ट-कंटकों में है जिनका जीवन-सुमन खिला । गौरव-गंध उन्हें उतना ही यत्र-तत्र सर्वत्र मिला ।।
उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
- सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात । मनो नीलमणि सैल पर, आप पर्यो प्रभात ।
- पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से। (मानवीकरण भी) मानो झूम रहे हों तरु भी, मंद पवन के झोंकों से
- चमचमात चंचल नयन, बिच घूंघट पट झीन। मानह सुरसरिता विमल, जल बिछुरत जुग मीन ।।
- छिप्यौ छबीले मुख लसै नीले अंचल चीर । मनौ कलानिधि झलमलै, कालिंदी के नीर ॥
- लता भवन तें प्रकट भे, तेहि औसर दोउ भाइ। (राम और लक्ष्मण) निकले जन जुग (जोड़ा ) बिमल बिधु (चंद्र), जलद पटल बिलगाइ ।।
- अति कटु बचन कहति कैकेई । मानहु लोन जरे पर देई ।।
- बढ़त ताड़ को पेड़ यह चूमन को आकाश ।
- नील परिधान बीच सुकुमार, खुल रहा मृदुला – अधखुला अंग । खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघवन बीच गुलाबी रंग ।।
- घिर रहे थे घुंघराले बाल, अंस (कंधा) अवलंबित मुख के पास । नील घन शावक से सुकुमार, सुधा भरने को विधु के पास ।।
संदेह अलंकार के उदाहरण
- यह काया है या शेष उसी की छाया (उर्मिला के कृशकाय विरही शरीर के बारे में लक्ष्मण को संशय) क्षण भर उनको कुछ नहीं समझ में आया।
- विरह है अथवा यह वरदान।
- कैध रितुराज काज, अवनि उसाँस लेत, किधीं यह ग्रीष्म की, भीषण लुआर है?
- ये हैं सरस ओस की बूँदें, या हैं मंजुल मोती ? 5. तारे आसमान के हैं आए मेहमान बन (मानवीकरण भी ) या कि कमला ही आज आके मुस्काई है।
- मद भरे ये नलिन नयन मलीन हैं, अल्पजल में या विकल लघु मीन हैं। या प्रतीक्षा में किसी की शर्वरी (रात्रि),बीत जाने पर हुए ये दीन हैं ।
भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण
- चंद्र समझकर चकोर तुम्हारे मुख के पीछे-पीछे दौड़ता है।
- पाय महावर दैन को, नाइन बैठी आय । फिरि फिरि जानि महावरी, ऍड़ी मीड़ति जाय ।।
- बेसर- मोती दुति झलक, परी अधर पर आनि । पट पोंछति चूनो समुझि, नारी निपट अयानि ।।
- कपि कर हृदय बिचार, दीन्ह मुद्रिका डारि तब ।
- जानि असोक अंगार, सीय (सीता) हरषि उठकर गयौ ।।
- ओस बिंदु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान ।
- वृंदावन विहरत फिरे, राधा नंदकिशोर ।
- नीरद दामिनि जानि संग, डोले बोलें मोर।।
विभावना अलंकार के उदाहरण
- बिनु पद चलें, सुनै बिनु काना। कर बिनु कर्म करे बिधि (निराकार ईश्वर) नाना ||
- विरह निवारन को सखी, कौन कहाँ अब बात । (वाचक शब्द नहीं है) सीतल चंदन चंद, लगे जरावन गात ।।
- बिन घनस्याम धाम-धाम ब्रज मंडल में, ऊधो! नित बसति बहार बरसा की है।
- निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ॥
- मुनि तापस जिनते दुख लहहीं। ते नरेस बिनु पावक देहहीं ।।
- नैन नैकु न मानहि, कितो कहीं समझाय ये मुँहजोर तुरंग (घोड़ा) लौं, ऍचत (खींचते ही) हूँ चलि जाय ।।
- लाज भरी आँखियाँ बिहँसी, बलि बोल कहे बिन उत्तर दीन्हीं ।
- आक धतूरे के फूल चढ़ाए ते (बे, शिव), रीझत हैं तिहुँ लोक
- सखि इन नैननि ते घन हारे। बिनहि रितु बरसत निसि बासर सदा मिलन दोउ बारे। के साँई।
- सून्य भीति पर चित्र, रंग नहिं, तनु बिनु लिखा वितेरे (चित्रकार)।
विरोधाभास अलंकार के उदाहरण
- या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोय । ज्यों-ज्यों बूड़े श्याम रंग. त्यों-त्यों उज्वल होय ।।
- वा मुख की मधुराई कहा कहें, मीठी लगे अँखियान लुनाई ।।
- तंत्री-नाद, कवित्त-रस, सरस-राग, रति-रंग । अन-बूड़े बूड़े, तरे जे बूड़े सब अंग ।।
- अचल हो उठते हैं चंचल, चपल बन जाते हैं अविचल । पिघल पड़ते हैं पाहन दल, कुलिश भी हो जाता कोमल ।।
- सज्जन फल देखिय तत्काला। काक होहिं पिक (कोयल) बकहु (बगुला) मराला (हंस) ।।
- जो मन करते नमन हैं, उन्नत वे होते सदा ।
- अवध को अपनाकर त्याग से, वन तपोवन-सा प्रभु ने किया। भरत ने उनके अनुराग से, भवन में वन का व्रत ले लिया।
उदाहरण अलंकार के उदाहरण
- बूंद अघात सहें गिरि जैसे। खल (दुष्ट) के वचन संत सह जैसे ।।
- औसर बीते जतन को, करिबो नहिं अभिराम (अच्छा ) । जैसे पानी बह गए, सेतबंधु (पाल बाँधना) किहिं काम ।।
- तेरा साँई तुज्झ में, ज्यों पुहुपन (पुष्प) में बास । कस्तूरी का मिरग ज्यों, फिरि-फिरे ढूंढे घास ॥
- नीकी पै फीकी लगे, बिन अवसर की बात । जैसे बरनत जुद्ध में, नहिं सिंगार सुहात ।।
- जो पावै अति उच्च पद, ताको पतन निदान ( निश्चित ) । ज्यों तपि तपि मध्याह्न लौं, अस्त होत है भान (भानु) ।
- सिमिट सिमिट जल भरहिं तलावा। जिमि संपति सज्जन गृह आवा ।।
प्रश्न1. अलंकार की विशेषता है– अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं।
2. अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है-भगवान भक्तों की भंयकर भूरि भीति भगाइये।
3. ‘विसमय यह गोदावरी, अमृतन के फल देत।’ पंक्ति में अलंकार है -विरोधाभास
4. यमक अलंकार का उदाहरण है-पीपर पात सरिस मन डोले
5. निम्न में अर्थालंकार है यमक
6. उपमा वाचक शब्द है–ज्यों
7. ‘कालिंदी कूल कदम्ब की डारन।’ पंक्ति में अलंकार है-श्लेष
8. निम्नलिखित में कौन-सी पंक्ति में रूपक अलंकार है– पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने बीर
9. कमल नैन को छांड़ि महातम्, और देव को ध्यावै’ में कौन-सा अलंकार है? अनुप्रास
10. निम्न में कौन एक शब्दालंकार नहीं है?
(क) यमक
11. निम्न में कौन अर्थालंकार नहीं है?
(क) उपमा
12. ‘मुख मयंक सम मंजु मनोहर’ में अलंकार है-
(क) उपमा
13. जहाँ कोई शब्द एक बार प्रयुक्त हो किन्तु प्रसंग भेद से उसके एक से अधिक अर्थ हों, वहाँ अलंकार होता है-
(क) सन्देह
14. ‘अम्बर- पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा – नागरी’ में कौन-सा अलंकार है?
(क) उपमा
15. “या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोय । ज्यों-ज्यों बड़े स्याम रंग त्यों-त्यों उज्जवल होय।।’ इन पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
(क) विभावना
16. ‘कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाइ । उहि खाए बौरात नर, इह पाए बौराइ। “ में कौन-सा अलंकार है ? अनुप्रास
17. ‘चरण कमल बन्दौ हरि राई’ में कौन-सा अलंकार है? – अनुप्रास
18. “मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों”, में कौन-सा अलंकार है?
(क) अनुप्रास
19. “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात पर सिल पर परत निशान।। “ उपर्युक्त पंक्तियों में कौन सा अलंकार है ?
(क) उत्प्रेक्षा
20. “सूर-सूर तुलसी ससि उडगन केशवदास । और कवि खद्योत सम जहँ तहँ करी प्रकास।।” इन पंक्तियों में किस अलंकार का प्रयोग है?
(क) सन्देह
Alankar ke Udaharan अनुप्रास अलंकार के उदाहरण, भेद, अर्थ
रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-
1. निकल रही थी कर्म वेदना करुणा विकल कहानी-सी । ..………..
2. चरण कमल बंदौ हरिराई ।……………
3. ताड़ वृक्ष मानो छूने चला अम्बर तल को।……….
4. नील कमल सी आँखें उसकी जाने क्या-क्या कह गईं।………..
5. मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों।………….
6. “मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ।” काव्य पंक्ति में …………..अलंकार है।
7. “भगवान भक्तों की भयंकर भूरि बिसारिये” काव्य पंक्ति में ‘भ’ वर्ण की के कारण …. .. अलंकार है।
8. मंगन को देखि पट देत बार-बार है। काव्य पंक्ति में ………..अलंकार है।
9. सुन्यौ कहूँ तरु अरक ते, अरक समान उदोतु । पंक्ति में ‘अरक’ शब्द की …………… हुई है। दोनों बार अर्थ अलग हैं। ……………अलंकार है ।
10. “काली घटा का घमण्ड घटा, नभ मण्डल तारक वृन्द खिले ।” पंक्ति में ………… अलंकार है।
1. उपमा अलंकार 2. रूपक अलंकार 3. उत्प्रेक्षा अलंकार 4. उपमा अलंकार
5. रूपक अलंकार। 6. विरोधाभास, 7. आवृत्ति, अनुप्रास। 8. श्लेष, 9. आवृत्ति, यमक । 10. रूपक ।
अलंकार की परिभाषा,50 उदाहरण, श्लेष अलंकार के उदाहरण, यमक के उदाहरण
प्रश्न 1. अलंकार की परिभाषा लिखिए।
उत्तर – काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते हैं।
प्रश्न 2. अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर अलंकार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- (1) शब्दालंकार तथा (2) अर्थालंकार।
प्रश्न 3. अनुप्रास अलंकार का लक्षण बताइए।
उत्तर जहाँ काव्य में एक वर्ण या अनेक वर्णों की एक बार या अनेक बार क्रम सहित आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
प्रश्न 4. यमक अलंकार का उदाहरण दीजिए।
उत्तर काली घटा का घमण्ड घटा, नभ मण्डल तारक वृन्द लिखे ।
प्रश्न 5. ‘शोभा-सिन्धु न अन्त रही री ‘ इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर पंक्ति में ‘शोभा’ उपमेय पर ‘सिन्धु’ उपमान का आरोप किया गया है, अतः ‘रूपक’ अलंकार है।
प्रश्न 6. यमक अलंकार का लक्षण तथा उदाहरण लिखिए।
उत्तर जहाँ एक या अनेक शब्दों की एक या अनेक बार आवृत्ति हो और उनके अर्थ भिन्न-भिन्न हों। वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण – “सारंग ने सारंग गह्यौ सारंग बोल्यौ आइ। जो सारंग मुख ते कहे, मुख कौ सारंग जाइ।।
प्रश्न 7. श्लेष अलंकार की परिभाषा और उदाहरण दीजिए।
उत्तर जहाँ एक ही शब्द अनेक अर्थों को प्रकट करता हुआ केवल एक बार प्रयुक्त होता है, वहाँ श्लेष अलंकार होता है, यथा- ‘दक्षिण में रहकर भी मैं उत्तर का अभिलाषी हूँ।’ ‘यहाँ ‘उत्तर’ शब्द का एक बार प्रयोग हुआ है। तथापि इसके दो अर्थ (पत्रोत्तर तथा उत्तर दिशा) है, अतः यहाँ श्लेष अलंकार है ।
प्रश्न 8. कोकिल, केकी, कीर कूंजते हैं कानन में’- इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है। जहाँ कविता में वर्णों की आवृत्ति से चमत्कार उत्पन्न किया जाता है, वहाँ अनुपास अलंकार होता है। यहाँ ‘क’ वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है। अतः अनुप्रास अलंकार है ।
प्रश्न 9. अज तर्यौना ही रह्यौ, श्रुति सेवत इक अंग । नाक बास बेसरि लह्यौ, बसि मुकुतन के संग ।। उपर्युक्त दोहे में कौन-सा अलंकार है और क्यों
उपर्युक्त दोहे में श्लेष अलंकार है । इसमें अनेक शब्दों के एक से अधिक अर्थ हैं; जैसे- तर्यौना = एक आभूषण तथा नहीं तर सका। श्रुति = कान तथा वेद। नाक = नासिका तथा स्वर्ग । बेसरि = नाक का आभूषण तथा महत्वहीन । अतः इसमें श्लेष अलंकार है।
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प्रश्न 10. हलधर के प्रिय हैं सदा केशव और किसान।’ इस पंक्ति में निहित अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस पंक्ति में निहित अलंकार श्लेष है। जहाँ कविता में एक शब्द अनेक अर्थ व्यक्त करता है, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। इस पंक्ति में ‘हलधर’ शब्द के ‘बलराम’ तथा ‘बैल’ अर्थ हैं। अतः श्लेष अलंकार है।
प्रश्न 11. प्रस्तुत पंक्ति में अवस्थित अलंकार को स्पष्ट कीजिए- ‘गंगाजल-सा पावन मन है’।
उत्तर इस पंक्ति में उपमा अलंकार है। जहाँ कवि दो वस्तुओं में गुण-धर्म के आधार पर समानता प्रदर्शित करता है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। यहाँ ‘मन’ की समानता ‘गंगाजल’ से की गई है। ‘पावनता’ समान धर्म है तथा ‘सा’ वाचक शब्द है।
प्रश्न 12. ‘साल वृक्ष दो अति विशाल थे, मानो प्रहरी हों वन के।’ इन पंक्तियों में स्थित अलंकार का नाम और लक्षण बताइए।
उत्तर पंक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार है । जहाँ कवि उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त करता है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ ‘साल के वृक्षों’ में कवि ने ‘प्रहरी’ की सम्भावना व्यक्त की है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
प्रश्न 13. काली घणी कुरूप, कस्तूरी कांटा तुलै।” उतर इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? सकारण उत्तर लिखिए। इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है क्योंकि इसमें ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।
प्रश्न 14. “मारिए आसा सांपनी, जिन डसिया संसार।” इस पंक्ति में निहित अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस पंक्ति में रूपक अलंकार है क्योंकि इसमें ‘आसा’ उपमेय में ‘सानी’ उपमान का अभेद आरोप है।
प्रश्न 15. “सुनतहिं जोग लगत ऐसौ अलि! ज्यों करुई ककरी।” इस पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस पंक्ति में उपमा अलंकार है क्योंकि यहाँ ‘जोग’ की तुलना कड़वी ककड़ी से की गई है।
प्रश्न 16. “विपति भए धन ना रहै, रहै जो लाख करोर। नभ तारे दिपि जात हैं, ज्यो रहीम भए भोर ।।
उत्तर इस दोहे में उदाहरण अलंकार है। प्रथम पंक्ति के कथन को द्वितीय पंक्ति के उदाहरण द्वारा पुष्ट किया गया है।
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प्रश्न 17. भजन कयौ तासों भज्यौ, भज्यौ न एकौ बार दूरिभजन जासों कह्यौ, सो तँ भज्यौ गँवार।।” इस दोहे में स्थित अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस दोहे में यमक अलंकार की योजना हुई है क्योंकि ‘भजन’ तथा ‘भज्यों’ शब्दों का एकाधिकार बार भिन्न अर्थों में प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 18. ” तारा सौ तरनि धूरि धारा में लगत” इस पंक्ति में प्रयुक्त अलंकार का परिचय लिखिए।
उत्तर इस पंक्ति में उपमा अलंकार है क्योंकि कवि ने ‘तरनि’ (सूर्य) को ‘तारा’ के समान दिखाया है।
प्रश्न 19. “शीतल वाणी में आग लिए फिरता इस पंक्ति मेंउपस्थित अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस पंक्ति में विरोधाभास अलंकार है। जहाँ कथन में परस्पर विरोधी बात कही जाए किन्तु भाव ग्रहण द्वारा विरोध न रहे, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। ‘शीतल वाणी में आग’ ऐसा ही कथन है।
प्रश्न 20. ‘बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से कि जैसे घुल गई हो।” इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है क्योंकि कवि ने लालिमा से युक्त प्रातःकालीन नीले आकाश, में लाल केसर से घुली काली सिल की सम्भावना व्यक्त की है।
प्रश्न 21. उपमा तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का अन्तर समझाइए
उत्तर उपमा और उत्प्रेक्षा- उपमा में उपमेय को उपमान के समान बताया जाता है, परन्तु उत्प्रेक्षा में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती हैं। यथा-
उपमा- ‘लघु तरणि हंसिनी-सी सुन्दर’।
‘तरणि’ को ‘हंसिनी’ के समान सुन्दर बताया गया है। उत्प्रेक्षा- लघु तरणि मानो हंसिनी तिरती
लहर पर, यहाँ ‘तरणि’ में ‘हंसिनी’ की सम्भावना प्रकट की गई है।
प्रश्न 22. रूपक अलंकार का लक्षण तथा उदाहरण लिखिए।
उत्तर जहाँ उपमेय में उपमान का भेद-रहित आरोप दिखाया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है । इस अलंकार में उपमेय को उपमान का रूप प्रदान करते हुए वर्णन होता है, इसी कारण यह रूपक अलंकार कहलाता है।
उदाहरण – “अम्बर- पनघट में डुबो रही, तारा-घट उषा-नागरी । “
यहाँ ‘अम्बर’ उपमेय में ‘पनघट’ उपमान का भेद-रहित आरोप है। इसी प्रकार ‘तारा’ में ‘घट’ का तथा ‘उषा’ में ‘नागरी’ का भेद-रहित आरोप है, अतः रूपक अलंकार है।
प्रश्न 23. उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण तथा उदाहरण लिखिए।
उत्तर जहाँ कवि उपमेय और उपमान में भिन्नता रहते हुए भी उपमेय में उपमान की सम्भावना प्रस्तुत करता है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उदाहरण- लट लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मधुहिं पिए । यहाँ लटों के लटकने में ‘मधुपगन’ (भौंरों) की सम्भावना व्यक्त की गई है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है ।
उत्प्रेक्षा अलंकार में मनु, जनु, मानो, जानो, मनहु, जनहु, ज्यों आदि ‘वाचक’ शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 24. अनुप्रास तथा यमक अलंकार का अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर अनुप्रास अलंकार वर्णों की आवृत्ति पर आधारित होता है, किन्तु यमक अलंकार में शब्द की आवृत्ति होती है तथा हर बार अर्थ भिन्न होता है। यथा – अनुप्रास-लट लटकनि मनु मत्त
‘मधुपगन मादक मदहिं पिए । यहाँ ल, ट, तथा म वर्णों की आवृत्ति हुई है । यमक-कर से कर कर्म उठो जग में, पद से चल ऊँचा पद पाओ । इस उदाहरण में ‘कर’ तथा ‘पद’ शब्दों की आवृत्ति हुई है। प्रथम ‘कर’ का अर्थ हाथ तथा द्वितीय कर का अर्थ ‘करना’ है। इसी प्रकार ‘पद’ के अर्थ क्रमशः ‘पैर तथा ‘स्थान’ हैं ।
अलंकार के 20 उदाहरण, यमक अलंकार के उदाहरण, यमक अलंकार के उदाहरण, उपमा अलंकार के उदाहरण
प्रश्न 25. उपमा तथा रूपक अलंकार का अंतर समझाइए ।
उत्तर उपमा अलंकार में कवि दो वस्तुओं की गुण, धर्म, व्यापार आदि के आधार पर समानता प्रदर्शित करता है। इसमें प्रस्तुत (उपमेय) को अप्रस्तुत (उपमान) के समान बताया जाता है। यह समानता ‘समान धर्म’ तथा ‘वाचक शब्द’ द्वारा व्यक्त की जाती है।रूपक में उपमेय में उपमान का भेद-रहित आरोप किया जाता है। समान धर्म और वाचक शब्द का उल्लेख नहीं होता। यथा – उपमा-‘कमल समान मृदुल पग तेरे’। यहाँ ‘पग’ उपमेय की ‘कमल’ उपमान से समानता दिखाई गई है। समान धर्म ‘मृदुल’ है तथा वाचक शब्द ‘समान’ है। यहाँ उपमा अलंकार के चारों तत्व विद्यमान हैं अतः उपमा अलंकार है।
रूपक – चरन कमल बंदौं हरि राई । इस उदाहरण में ‘चरन’ उपमेय में ‘कमल’ उपमान का भेद रहित आरोप है। समान धर्म तथा वाचक शब्द का उल्लेख नहीं है। अतः रूपक अलंकार है।
प्रश्न 26. निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त अलंकारों का नाम बताते हुए उनके लक्षण लिखिए-
(क) ‘पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून ।’
उत्तर श्लेष अलंकार है । जहाँ एक ही शब्द अनेक अर्थों को प्रकट करता हुआ, केवल एक बार प्रयुक्त होता है, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। उक्त पंक्ति में ‘पानी’ शब्द के अनेक अर्थ प्रकट हो रहे हैं। अतः श्लेष अलंकार है।
(ख) ‘माया-दीपक नर पतंग, भ्रमि-भ्रमि इवै पड़न्त ।’
उत्तर रूपक अलंकार है । जहाँ उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप दिखाया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। उक्त पंक्ति में दीपक को माया का रूप तथा ‘नर’ को ‘पतंग’ का रूप दिया गया है। अतः रूपक अलंकार है।
अनुप्रास अलंकार, श्लेष अलंकार,यमक अलंकार,उपमा अलंकार, विरोधाभास अलंकार,रूपक अलंकार
प्रश्न 27. निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों का नाम लिखते हुए, उनके लक्षण लिखिए-
(क) उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल-पतंग | विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन श्रृंग ।।
उत्तर रूपक अलंकार – जहाँ उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप किया जाता है वहाँ रूपक अलंकार होता है।
(ख) निकसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाइ।
उत्तर उत्प्रेक्षा अलंकार – जहाँ उपमेय और उपमान में भिन्नता रहते हुए भी जनु, जानहु, मनु, मानहु आदि शब्दों द्वारा उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
प्रश्न 28. यमक तथा श्लेष अलंकारों का अंतर सोदाहरण लिखिए।
उत्तर नगन का अर्थ नगों (रत्नों) से है तथा दूसरे का नग्न से। अतः यहाँ यमक अलंकार है । श्लेष अलंकार में एक ही शब्द अनेक अर्थ प्रकट करता हुआ कविता की शोभा बढ़ाता है । यथा-‘पानी गए न ऊबरै मोती, मानुस चून । ‘ यहाँ ‘पानी’ शब्द के अर्थ हैं-दमक, प्रतिष्ठा तथा जल। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है ।
प्रश्न 29 यमक एवं श्लेष अलंकारों का एक-एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर यमक का उदाहरण-‘विरज, विरज भयौ पावसी फुहार ते।’ (प्रथम विरज का अर्थ ब्रजभूमि तथा द्वितीय विरज का अर्थ धूलरहित है।) श्लेष का उदाहरण- मुदित देख घनश्याम को, ब्रजजन और मयूर । (यहाँ ‘घनश्याम’ शब्द के काले बादल तथा श्रीकृष्ण अर्थ में प्रयुक्त होने से श्लेष अलंकार है।) जहाँ कविता में एक शब्द एक से अधिक बार आता है तथा भिन्न अर्थ व्यक्त करता है, वहाँ यमक अलंकार होता है, यथा-नगन जड़ातीं थीं वे नगन जड़ती हैं।’ यहाँ ‘नगन’ शब्द दो बार आया है।
प्रश्न 30. “वह मथुरा काजर सी कोठरी, जे आवें ते कारे।तुम कारे सुफलक सुत कारे, कारे मधुप भँवारे।” उपर्युक्त पंक्तियों में उपस्थित अलंकार कौन-सा है। उसके लक्षण भी लिखिए।
उत्तर इन पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार है। जहाँ कविता में एक या अधिक वर्णों की आवृत्ति होती है वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। यहाँ ‘क’ तथा ‘र’ वर्णों की कई बार आवृत्ति हुई है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 31. “मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय ।
जा तन की झाँई परे, स्याम हरित दूति होय।। ” इस दोहे में निहित अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस दोहे में श्लेष अलंकार है। जब वाक्य में एक शब्द का एक से अधिक अर्थों में प्रयोग हो तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है। उपर्युक्त दोहे में ‘स्याम’ तथा ‘हरितदुति’ शब्दों का क्रमशः श्रीकृष्ण तथा पाप और हरा, प्रसन्न तथा प्रभावहीन अर्थों में प्रयोग हुआ है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
प्रश्न 32. “सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलौने गात ।
इस दोहे में उत्प्रेक्षा अलंकार की योजना हुई है।
उत्तर जहाँ भेद होते हुए भी उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ श्रीकृष्ण के पीताम्बर युक्त श्याम शरीर में कवि ने नीलमणि के शैल पर प्रभातकालीन धूप की संभावना व्यक्त की है। अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है। मनौ नीलमनि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।” उपर्युक्त दोहे में किस अलंकार की योजना हुई है ? लक्षण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 33. “या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोई।ज्यों-ज्यों बड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होइ ।। “ इस दोहे में उपस्थित अलंकार को लक्षण देते हुए स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर इस दोहे में विरोधाभास अलंकार है। जहाँ कथन में विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास प्रतीत होता है किन्तु अर्थ करने पर विरोध समाप्त हो जाता है, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। प्रस्तुत दोहे में स्याम (काला) रंग में डूबने पर भी उज्ज्वल होते जाना विरोधी कथन है किन्तु स्याम रंग का अर्थ श्रीकृष्ण से प्रेम और उज्ज्वल का अर्थ पवित्र लिए जाने पर विरोध नहीं रह जाता। अतः यहाँ विरोधाभास अलंकार है।
प्रश्न 34. “ऐल फैल, खैलभैल खलक में गैल गैल गजन की ठैल पैल सैल उस लत है।” उपर्युक्त दोहे में विद्यमान अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर इस दोहे में अनुप्रास अलंकार है। जहाँ एक या अधिक वर्णों की एक या अनेक बार आवृत्ति होती है, भले उनके स्वर (मात्राएँ) अलग हों, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। दोहे में ‘ल’ तथा ‘ग’ वर्णों की आवृत्ति हुई है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 35. “मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ।” इस पंक्ति में उपस्थित अलंकार को स्पष्ट करते हुए उसका लक्षण भी लिखिए।
उत्तर इस पंक्ति में रूपक अलंकार है। जहाँ कवि प्रस्तुत वस्तु (उपमेय) पर अप्रस्तुत वस्तु (उपमान) का भेदरहित आरोप करता है। वहाँ रूपक अलंकार होता है। उपर्युक्त पंक्ति में ‘स्नेह’ उपमेय पर ‘सुरा’ उपमान का आरोप किया गया है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
प्रश्न 36.“नंदन वन-सी फूल उठी वह छोटी-सी कुटिया मेरी।” (सुभद्रा कुमारी चौहान ) प्रस्तुत पंक्ति में उपस्थित अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर प्रस्तुत पंक्ति में उपमा अलंकार है। जहाँ कवि प्रस्तुत वस्तु (वर्णित वस्तु) का गुण, धर्म या क्रिया के आधार पर अप्रस्तुत वस्तु से तुलना करता है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। इस पंक्ति में कवयित्री ने कुटिया (प्रस्तुत वस्तु) की तुलना नंदनवन (अप्रस्तुत वस्तु) से की क्रिया इस तुलना का आधार है।’फूल उठना’ है। अतः यहाँ उपमा अलंकार है।