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Reading: Class 12 Hindi Chapter 8 तुलसीदास Question & Answer
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Class 12 Hindi Chapter 8 तुलसीदास Question & Answer

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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Chapter 8 तुलसीदास, कवितावली और लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप

गोस्वामी तुलसीदास

Contents
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Chapter 8 तुलसीदास, कवितावली और लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलापClass 12 Hindi Aniwaray लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप
तुलसीदास
कवि-गोस्वामी तुलसीदास

Class 12 Hindi Aniwaray तुलसीदास

(कवितावली, लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप )

कवि परिचय • गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत् 1589 के लगभग हुआ था। इनकी जन्मस्थली उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद के गाँव राजापुर को माना जाता है। आत्माराम दुबे इनके पिता और हुलसी उनकी माता थी। कथित अशुभ नक्षत्र में जन्म लेने के कारण माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया था। संत नरहरिदास ने इनको रामभक्ति में दीक्षित किया। पत्नी रत्नावली के उपालम्भ ने इन्हें वैरागी बना दिया। संवत् 1680 श्रावण शुक्लपक्ष की सप्तमी को गंगा तट पर इन्होंने शरीर छोड़ा।

साहित्यिक परिचय-तुलसी हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल की सगुणोपासक धारा की राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। इनकी भाषा सरल, विषयानुरूप तथा तत्समता से युक्त है। तुलसी ने दोहा, चौपाई, सोरठा, छप्पय, सवैया, कवित्त, गेय पद आदि छन्दों का प्रयोग किया है। समस्त रसों तथा अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग किया है। तुलसी का काव्य समन्वयवाद का श्रेष्ठ उदाहरण है। अपने काव्य के माध्यम से तुलसी ने समाज के मार्ग दर्शन तथा संगठन का स्तुत्य कार्य किया है।

रचनाएँ– गोस्वामी जी की प्रामाणिक रचनाएँ दोहावली, गीतावली, कवितावली, कृष्ण गीतावली, रामचरितमानस, रामाज्ञा प्रश्नावली, रामलला नहछू, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण तथा वैराग्य संदीपनी आदि मानी जाती हैं।

सप्रसंग व्याख्याएँ

कवितावली (उत्तरकांड से)

1.

किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट, 

चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी। 

पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि, 

अटत गहन-गन अहन अखेटकी ।। 

ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि, 

पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी । 

‘तुलसी’ बुझाइ एक राम घनस्याम ही तें, 

आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी ॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की रचना ‘कवितावली’ से अवतरित है। इस अंश में महाकवि तुलसीदास ने अपने युग की समाज में व्याप्त निर्धनता का वर्णन किया है।

व्याख्या– वह कहते हैं कि मजदूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर, चंचल, कुशल अभिनेता, चोर, दूत तथा बाजीगर सभी पेट भरने में लगे हुए हैं। लोग पेट भरने के लिए ही पढ़ाई कर रहे हैं तथा अनेक विद्याओं और कलाओं को सीख रहे हैं। कोई जीविका की खोज में पहाड़ों पर चढ़ रहा है तो कोई दिनभर शिकार की तलाश में घने जंगलों में भटक रहा है। पेट भरने के लिए लोग उचित-अनुचित काम कर रहे हैं। कुछ तो मजबूरी में अपने बेटा-बेटियों को भी बेच रहे हैं। तुलसी कहते हैं कि पेट की यह आग (भूख) समुद्र में लगने वाली आग से भी अधिक भयंकर होती है। इसे केवल रामरूपी घनश्याम (काला बादल) ही शान्त कर सकते हैं।

विशेष– (i) तुलसीयुगीन समाज की भीषण निर्धनता का मार्मिक व सजीव वर्णन हैं इस कष्ट से राम कृपा ही छुटकारा दिलाएगी, यह संकेत किया है। 

(ii) कवित्त छन्द है, तद्भव तथा देशज शब्दों का प्रयोग है। अलंकारों का प्रयोग भाषा सौन्दर्य से वृद्धि कर रहा है।

2 

खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि, 

बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी। 

जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस, 

कहैं एक एकन सो ‘कहाँ जाई, का करी ?” 

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत, 

साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी 

दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु । 

दुरित – दहन देखि तुलसी हहा करी ॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की रचना ‘कवितावली’ से उद्धृत है। कवि अपने युग की भुखमरी तथा जीविकाविहीन किसान, व्यापारी, भिखारी आदि विभिन्न वर्गों की दयनीय अवस्था का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या– अपने युग की गरीबी तथा भुखमरी का वर्णन करते हुए गोस्वामी, तुलसीदास ने कहा है कि किसानों को खेती करने की सुविधा तथा साधन प्राप्त नहीं है। भिखारी को भीख तथा दान नहीं मिलता। व्यापारी का व्यापार ठीक तरह नहीं चल रहा है। नौकरी पेशा लोगों को नौकरी नहीं मिलती है। लोग बेरोजगार हैं।

आजीविका के अभाव में वे चिन्ता के कारण दुखी हैं। लोग एक-एक से (एक-दूसरे से) पूछते हैं-ऐसी दशा में हम कहाँ जाएँ और क्या करें? वेदों और पुराणों में बताया गया है, संसार में भी दिखाई देता है कि है राम ! संकट के समय आप ही सब पर दया करते हैं। हे दीनबंधु। गरीबी के रावण ने इस दुनिया को दबा रखा है। पापों की आग जलती देखकर तुलसी के मुँह से हाय-हाय निकल रही है अर्थात् पापों की प्रबलता से संसार बहुत दुखी है, है राम! आप ही उसकी रक्षा कर सकते हैं।

विशेष– (i) तुलसीयुगीन समाज में भुखमरी की भीषण समस्या है। ‘कहाँ जाई, का करी’ शब्दों से लोगों की विवशता, वेदना तथा भय परिलक्षित होता है। 

(ii) पापों की प्रबलता से बढ़ रहे दुखों की आग को भगवान राम ही अपनी कृपा- वर्षा से शीतल कर सकते हैं।

3. 

घूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ । 

काहू की बेटीसों बेटा न व्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ ॥ 

तुलसी सरनाम गुलाम है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ। 

माँग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ ॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की रचना ‘कवितावली’ से अवतरित है। इस अंश में कवि लोक-निन्दा या प्रशंसा की परवाह किए बिना स्वयं को भगवान राम का दास बता रहे हैं।

व्याख्या– राम के परम भक्त तुलसी कहते हैं कि मुझे लोग यदि धूर्त कहें अथवा परमहंस कहें तो इस निन्दा अथवा प्रशंसा का कोई प्रभाव मुझ पर नहीं पड़ेगा। कोई मुझको राजपूत अथवा क्षत्रिय कहकर बड़प्पन प्रदान करे अथवा जुलाहा या बुनकर कहकर छोटा बनाए, तब भी मैं इसकी परवाह नहीं करूँगा। मुझे किसी की बेटी से अपने बेटे की शादी तो करनी नहीं जो मैं अपने को बड़ा आदमी दिखाने की कोशिश करूँ।

मैं किसी की जाति बिगाड़ना भी नहीं चाहता अर्थात् यदि लोग मुझे छोटा और नीचा समझेंगे तो कोई अपनी जाति बिगड़ने के डर से अपनी लड़की से मेरे लड़के की शादी नहीं करेगा यह चिन्ता भी मुझे नहीं है। तुलसी तो श्रीराम का लोकप्रसिद्ध दास है। जिसको जो अच्छा लगे,

वह उससे कह सकता है। वह तो भिक्षा माँगकर भोजन करता है और मस्जिद में जाकर सो जाता है। उसे न किसी से कुछ लेना है और न किसी को कुछ देना है। फिर उसे लोगों की इन बातों की क्या परवाह ?

विशेष– (i) तुलसीदास की निरभिमानिता, सरलता तथा सर्वधर्म समभाव की भावना प्रकट हो रही है। 

(ii) संसार की निन्दा-स्तुति में तटस्थ, अविचल है।

Class 12 Hindi Aniwaray लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप

1. Class 12 Hindi Aniwaray 

तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत 

अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत ।। 

भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार । 

मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार ||

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की रचना ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ से अवतरित है। इस अंश में संजीवनी लाकर लौटते हनुमान और भरत का संवाद है।

व्याख्या– (संजीवनी को पर्वतसहित उठाकर लंका की ओर उड़ते हनुमान को भरत ने आशंकावर अयोध्या के बाहर ही उतार लिया। हनुमान से लक्ष्मण के युद्ध में मूर्च्छित होने का समाचार जानकर भरत ने उनको बाण पर बैठाकर तुरन्त भेजने का प्रस्ताव किया।) हनुमान ने भरत से कहा

हे नाथ! आपका प्रताप हृदय में रखकर मैं शीघ्र ही चला जाऊँगा। यह कहकर भरत की आज्ञा पाकर उनकी चरण वंदना करके हनुमान चल दिए। हनुमान भरत के बाहुबल, उनके शील-स्वभाव, विनम्रता आदि गुण तथा

राम के चरणों में उनके अपार प्रेम की मन ही मन प्रशंसा कर रहे थे। 

विशेष– (i) हनुमान जी का शील स्वभाव, विनम्रता, राम चरणों में प्रेम आदि विशेषताएँ पद्यांश में वर्णित है। 

(ii) भरत की रामभक्ति की सराहना मन ही मन हनुमान कर रहे हैं।

2. 

उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी ।। 

अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ राम उठाइ अनुज उर लायऊ। 

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ । । 

मम हित लागि तजेहु पितु माता सहेतु विपिन हिम आतप बाता ॥ 

सो अनुराग कहाँ अब भाई उठतु न सुनि मम बच बिकलाई ।। 

जौ जनतेउँ बन बँधु विछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू ।। 

सुत वित नारि भवन परिवारा होकि जाहिं जग वारहिं बारा।। 

अस विचारि जियें जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता ।।

सन्दर्भ तथा प्रसंग प्रस्तुत काव्य हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की रचना ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ शीर्षक मे लिया गया है। इस अंश में मूच्छित लक्ष्मण को राम गले लगाकर करुण विलाप कर रहे हैं।

व्याख्या– वहाँ (बुद्धभूमि, लंका में राम ने लक्ष्मण को देखा उनको मूर्च्छित देखकर राम (साधारण) मनुष्य के समान विलाप करने लगे। आधी रात बीत चुकी थी, हनुमान अभी तक संजीवनी लेकर वापिस नहीं आए थे। तब राम ने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया। वह कहने लगे हे भाई, तुम मुझे किसी प्रकार भी दुखी नहीं देख सकते थे। तुम्हारा स्वभाव अत्यन्त कोमल था।

तुमने मेरे हित के लिए अपने माता-पिता को छोड़ा और वन में आकर बर्फीली सदी, धूप तथा आंधी-तूफान को सहन किया। है भाई, तुम्हारा वह प्रेम अब कहाँ गया? तुम मुझको व्याकुलतापूर्वक इस प्रकार विलाप करते हुए सुनकर भी उठकर क्यों नहीं उठ बैठते ?

यदि मुझे पता होता कि वन में मेरा भाई मुझसे बिछुड़ जाएगा तो में पिताजी के आदेश का पालन कभी नहीं करता। पुत्र, धन, पत्नी, मकान तथा परिवार मनुष्य को संसार में बार-बार प्राप्त हो जाते हैं किन्तु सहोदर भाई पुनः नहीं मिलता। यह सोचकर हे भाई, तुम जाग उठी।

विशेष— (i) राम द्वारा लक्ष्मण के गुणों का वर्णन, हृदय से लगाना, उठने के लिए कहना, व्याकुल विलाप का करुण वर्णन है। 

(ii) शोकसंतप्त राम का विलाप मर्मस्पर्शी है।

3. 

सुत बित नारि भवन परिवारा होहिं जाहिं जग बारहिं बारा ॥ 

अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भाता ॥ 

जया पंख बिनु खग अति दीना मनि विनु पनि करिबर कर हीना 

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही जो जड़ देव जिआयै मोही ॥  

जैह अवध कवन मुहुँ लाई नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ।

बरु अपजस सहते जग नाहीं। नारि हानि विसेष छति नाहीं ॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग प्रस्तुत काव्यहमारीपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ की रचना ‘लक्ष्मण मूर्ख और राम का विलाप’ शीर्षक से लिया गया है। इस अंश में लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर राम उसको गले लगाकर करुण विलाप कर रहे हैं।

व्याख्या– राम विलाप करते हुए कहते हैं-है भाई लक्ष्मण, इस संसार मैं पुत्र, धन, पत्नी, मकान और परिवार बार-बार मिलते-बिढ़ते हैं परन्तु सहोदर भाई एक बार बिछुड़ने पर पुनः नहीं मिलता। यह बात मन में सोचकर तुम जाग जाओ। जिस प्रकार पंखों के न रहने पर पक्षी, मणि के न रहने पर सर्प तथा सूँड के नष्ट हो जाने पर हाथी शक्तिहीन हो जाते हैं इसी प्रकार यदि दुर्भाग्यवश मुझे जीवित रहना भी पड़ा तो मेरा जीवन भी तुम्हारे बिना ऐसे ही दयनीय हो जाएगा।

लोग मेरी निन्दा करेंगे और कहेंगे कि राम ने पत्नी के लिए अपने प्यारे भाई को गँवा दिया। मैं अयोध्या क्या मुँह लेकर लौटूंगा? इससे तो अच्छा था कि मैं स्त्री के अपहरण के अपयश को सहन कर लेता क्योंकि, संसार मैं पत्नी की हानि कोई विशेष हानि नहीं है।

विशेष– (i) राम की व्यथित मनोदशा का वर्णन है। उन्हें अपने भाई लक्ष्मण के अभाव में संसार के सारे रिश्ते व्यर्थ प्रतीत हो रहे हैं। 

(ii) पत्नी, पुत्र, धन, मकान, परिवार की तुलना में भाई के प्रेम को अधिक महत्व राम ने दिया है।

4. 

अब अपलोकु सोकु सुत तोरा सहिहि निदुर कठोर उर मोरा ।।

निज जननी के एक कुमारा तात तासु तुम्ह प्रान अधारा ॥ 

सौपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी सब बिधि सुखद परम हित जानी ॥ 

उतरु काह देहउँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई ॥ 

बहु विधि सोचत सोच विमोचन सवत सलिल राजिव दल लोचन ॥ 

उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपाल देखाई ॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ मैं संकलित कवि गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘लक्ष्मण मूर्ख और राम का विलाप’ शीर्षक से लिया गया है। इस अंश में लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर राम लक्ष्मण को गले लगाकर करुण विलाप कर रहे हैं।

व्याख्या– लक्ष्मण के मूर्च्छाग्रस्त होने पर विलाप करते हुए राम कहते है- हे पुत्र ! अब पत्नी के अपहरण का अपयश तथा तुम्हारे बिछुड़ने का यह शोक दोनों मेरे इस निष्ठुर और कठोर हृदय को सहने ही होंगे। तुम अपनी मा के एकमात्र पुत्र थे। हे भाई, तुम उसके प्राणाधार थे।

सब प्रकार सुखदायी तथा परम हितैषी जानकर उसने तुम्हारा हाथ पकड़कर मेरे हाथ में दिया था। अब मैं उसको जाकर क्या उत्तर दूंगा। हे भाई, तुम उठकर मुझे समझाते क्यों नहीं हो?

संसार को शोक से मुक्ति देने वाले राम अनेक प्रकार से शोक कर रहे हैं। उनके कमल की पंखुड़ियों के समान नेत्रों से आँसू बह रहे हैं। शिवजी ने यह कथा सुनाते हुए पार्वती से कहा- हे उमा, राम अखंड परमब्रह्म है। भक्तों पर कृपा करके ही उन्होंने यह नर- लीला दिखाई है।

विशेष– (i) मर्यादा पुरुषोत्तम राम एक सहृदय भाई की तरह करुण विलाप कर रहे हैं। 

(ii) मार्मिक उक्तियों द्वारा गोस्वामी तुलसीदास ने करुण रस की सृष्टि की है।

5. 

प्रभु प्रलाप सुनि कान दिकल भए बानर निकर। 

आइ गयउ हनुमान जिमि कठना मुँह बीर रस ॥ 

हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतम्य प्रभु परम सुजाना ॥

तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई ॥

हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता ॥ 

कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा ॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक आरोह में संकलित, गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ शीर्षक से अवतरित है। इस अंश में हनुमान संजीवनी बूटी लेकर लौट आते हैं। सभी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं।

व्याख्या- प्रभु राम के प्रलाप को अपने कानों से सुनकर बानर-दल व्याकुल हो उठा। उसी समय हनुमान वहाँ आ पहुँचे तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे करुण रस के साथ वीर रस आकर मिल गया हो।

राम प्रसन्न होकर हनुमान से गले मिले। अत्यन्त चतुर प्रभु राम हनुमान के प्रति अत्यन्त कृतज्ञता अनुभव कर रहे थे। तब वैद्यराज सुषेण ने तुरन्त ही मूच्छित लक्ष्मण को दवा दी और वह प्रसन्न होकर उठकर बैठ गए। राम ने अपने भाई लक्ष्मण को वक्षस्थल से लगाकर उनसे भेंट की। बानरों और भालुओं का समस्त समूह हर्षित हो उठा।

तत्पश्चात् हनुमान ने वैद्य सुषेण को उनके स्थान पर उसी प्रकार पहुँचाया जिस प्रकार वह पहले उसको वहाँ से लेकर आए थे। (लक्ष्मण के मूच्छित होने पर हनुमान जामवन्त के कहने पर लंका से वैद्य सुषेण को उसके घर सहित उठा लाए थे।)

विशेष– (i) शोक और करुणा की धारा के मध्य हनुमान अकस्मात ऐसे प्रकट हुए मानो करुण रस में अचानक वीर रस प्रकट हो गया हो। 

(ii) लक्ष्मण के स्वस्थ होने पर भगवान राम सहित वानर भालुओं का समुदाय हर्षित हो गया।

6. 

यह वृतांत दसानन सुनेऊ। अति विषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ ॥ 

ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा ॥ 

जागा निसिचर देखिअ कैसा मानहुँ कालु देह धरि बैसा ॥

कुंभकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई ॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ शीर्षक से लिया गया है। इस अंश में लक्ष्मण के स्वस्थ होने का समाचार सुनकर रावण सिर धुनता हुआ कुंभकरण के पास जाता

व्याख्या– सुषेण वैद्य के उपचार से लक्ष्मण के ठीक होने का वृत्तान्त रावण ने सुना, तो वह अत्यन्त दुखी हुआ तथा बार-बार अपना सिर पीटने लगा । व्याकुल होकर वह कुंभकर्ण के पास पहुँचा और अनेक उपाय करके उसको जगाया। जागने पर वह राक्षस कुंभकर्ण ऐसा प्रतीत हुआ जैसा मृत्यु शरीर धारण कर साक्षात् आकर उपस्थित हुई हो। कुंभकर्ण ने रावण से पूछा- हे भाई! बताओ, तुम्हारा मुँह किस कारण से सूख रहा है।

विशेष– (i) जब रावण को लक्ष्मण के होश में आने का समाचार मिला तो वह सिर धुनने लगा। उसे लगा कि उसकी मुसीबतें और बढ़ गईं। अब फिर से उसे लक्ष्मण जैसे वीर का सामना करना पड़ेगा। 

(ii) कुंभकरण से मिलते समय रावण बुरी तरह घबराया तथा दुखी था।

7. 

कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी ॥ 

तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे ॥ 

दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी भट अतिकाय अकंपन भारी ॥

अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा ॥

सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान

जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान ॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग-उपर्युक्त काव्यांश गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘रामचरित मानस’ से उद्धृत है। पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ शीर्षक से लिया गया है। इस अंश में रावण की व्याकुलता और कुंभकर्ण की वेदना प्रकट हो रही है।

व्याख्या– तब रावण ने अभिमानपूर्वक वह सारी कहानी बताई कि वह किस तरह सीता का अपहरण कर लाया था। उसने कहा- (तब राम से युद्ध छिड़ने पर) बानरों ने सभी राक्षसों का वध कर दिया और बड़े-बड़े राक्षस योद्धाओं को मारा डाला। कटुभाषी दुर्मुख, देवताओं का शत्रु सुररिपु, नरभक्षी, मनुज अहारी, विशाल शरीर वाला अतिकाय, अकंपन, भारी शरीर वाला आदि राक्षस-योद्धा मारे जा चुके हैं और भी दूसरे सहोदर आदि युद्ध में धैर्य न खोने वाले राक्षसवीर युद्धभूमि में मृत पड़े हैं।

रावण की इन बातों को सुनकर कुंभकर्ण बिलख उठा। उसने कहा- हे मूर्ख! तू जगज्जननी सीता का अपहरण कर लाया है। अब भी अपना कल्याण चाहता है? अर्थात् अब तेरा बचना संभव नहीं है।

विशेष— (i) रावण का अभिमान एवं कुंभकर्ण की पश्चात्ताप जनित वेदना प्रकट हुई है। 

(ii) कुंभकरण ने जान लिया कि जगतजननी सीता के अपहरण से सर्वनाश सुनिश्चित है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवितावली से उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।

उत्तर– तुलसी की कवितावली से हमारी पाठ्य-पुस्तक में उद्धृत छंदों में कवि ने अपने समय की समाज की आर्थिक दशा का स्पष्ट चित्रण किया है। उस समय भीषण गरीबी थी और लोगों को पेट भरने के लिए भोजन नहीं मिलता था। किसान, वणिक, भिक्षुक तथा नौकरी पेशा लोग सभी में बेकारी फैली हुई थी। पेट की भूख शांत करने के लिए लोग तरह-तरह के काम करते थे और कभी-कभी तो अपनी संतान को बेचने के लिए भी बाध्य हो जाते थे।

प्रश्न 2. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।

उत्तर– तुलसी ने ‘कवितावली’ में अपने युग की गरीबी तथा भुखमरी का उपचार राम की भक्ति बताया है। तुलसी का यह काव्य- सत्य आज का युग सत्य नहीं हो सकता। तुलसी राम भक्त थे और अपने विश्वास के अनुरूप ऐसा कह सकते थे। आज का युग तो अर्थ प्रधानता का है। समाज में शोषण का प्राधान्य है। धन की शक्ति राजसत्ता को भी नचाती है। तब राम की भक्ति मात्र से भुखमरी और गरीबी से छुटकारा होना एक असंभव कल्पना है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भी कहते हैं- ‘बनता बस उद्यम ही विधि है, मिलती जिससे सुख की निधि है।’

प्रश्न 3. तुलसी ने यह कहने की जरूरत क्यों समझी ?

‘धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ । काहू की बेटी से बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ ।’ ‘इस सवैया में’ ‘काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब’ कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता ?

उत्तर– तुलसी ने यह बात उन अहंकारी लोगों को लक्ष्य करके कही है जो जाति, परिवार आदि के नाम पर उनका उपहास किया करते थे। कोई उनको कुछ भी माने उन्हें चिन्ता नहीं। उन्हें किसी की पुत्री से अपने पुत्र का विवाह भी नहीं करना जिससे ऊँची जाति वालों की जाति पर धब्बा लगे यदि तुलसी ‘काहू के बेटा सों बेटी न व्याहव’ ऐसा कहते तो इससे एक स्वस्थ सामाजिक संकेत जाता। इससे बेटियों के स्वाभिमान की रक्षा होती। बेटे वालों को उनकी धन लोलुपता अहंकार का सही उत्तर मिल जाता।

प्रश्न 4. धूत कहौवाले छंद में ऊपर से सरल और निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं ?

उत्तर– ‘धूत कहाँ अवधूत कहौ’- इस छंद को पढ़ने से पता चलता है कि तुलसी को अपने जीवन में लोगों की निन्दा-आलोचना का बहुत अधिक सामना करना पड़ा था। लोग तुलसी की जाति को लेकर भी उनकी निन्दा करते थे। लोग उनको धूर्त, अवधूत, राजपूत, जुलाहा आदि कहकर उनकी खिल्ली उड़ाते थे। इन पंक्तियों द्वारा तुलसी ने इन अहंकारी और घटिया लोगों को चुनौती दी है। तुलसी ने स्वयं को दुनियादारी से मुक्त रामभक्त बताया है। ये पंक्तियाँ उनको एक स्वाभिमानी राम भक्त सिद्ध करती हैं। मैं उनके कथन से सहमत हूँ।

प्रश्न 5. व्याख्या करें

(क) मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता। जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओहू ।। 

(ख) जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना ।

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही जो जड़ दैव जिआवै मोही ।।

(ग) माँग के खैबो, मसीत को सोइबो, लैबो को एक न दैवो को दोऊ ।।

(घ) ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी ।।

उत्तर– (क) इस अंश की व्याख्या के लिए देखिए ‘लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप व्याख्या सं. 2 

(ख) इस अंश को व्याख्या के लिए देखिए ‘लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप व्याख्या सं. 3

(ग) व्याख्या के लिए देखिए- ‘कवितावली – उत्तर कांड से’ का व्याख्या सं. 3 

(घ) व्याख्या के लिए देखिए ‘कवितावली उत्तर कांड से’ व्याख्या सं. 1

प्रश्न 6. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर- लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर और जीवन के लिए संकट का आभास पाकर राम व्यथित हो उठते हैं और एक साधारण मनुष्य की तरह, विलाप करने लगते हैं। वह यह भी याद नहीं रखते कि वह एक साधारण मनुष्य नहीं है, परम ब्रह्म है, परमेश्वर है। तुलसी ने यहाँ राम का चित्रण एक साधारण मनुष्य के रूप में ही किया है, परमेश्वर के रूप में नहीं वह भाई के सम्भावित चिरवियोग से पीड़ित एक सामान्यजन ही हैं। राम का यह रूप अत्यन्त मनोहर है तथा एक सहृदय होने के नाते हम इससे सहमत हैं।

प्रश्न 7 शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है ? 

उत्तर– आधी रात बीत जाने पर भी हनुमान के संजीवनी लेकर न लौटने पर राग अत्यन्त व्याकुल होकर विलाप करने लगे। बानर भी राम की दशा देखकर बहुत दुखी थे। चारों और शोक का वातावरण था। ऐसे समय हनुमान के बूटी लेकर आ जाने से सभी प्रसन्न हो गए। शोक के स्थान पर उत्साह और आशा का वातावरण छा गया। इसीलिए कवि ने इस परिवर्तन को करुण रस के बीच बीर रस का संचार होना कहा है।

प्रश्न 8. जैह अवध कवन मुहुँ लाई नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ॥ बरु अपजस सहतेंड जग माहीं। नारि हानि विसेष छत नाहीं ॥ आई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है ?

उत्तर– राम के ये कथन उनके प्रताप के ही अन्तर्गत आते हैं। प्रलाप में व्यक्ति भावुकतावश कुछ भी कह देता है। उसका अपने मन और वाणी पर नियन्त्रण नहीं रहता। इससे यह सिद्ध नहीं होता कि राम की दृष्टि में भाई के प्राणों का मूल्य पत्नी को गँवा देने से अधिक है। यह नारी के प्रति उनको कुटिलभावना का परिचायक नहीं है। इस काव्य-सत्य में राम का सामाजिक दृष्टिकोण नहीं खोजा जा सकता।

तुलसीदास
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