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Reading: Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणं Hindi Translation
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Sanskrit Dhara Vahini > Class 8 > Class 8 Sanskrit > Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणं Hindi Translation
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Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणं Hindi Translation

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NCERT Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् का हिन्दी अनुवाद

Class 8 Sanskrit Chapter 4

Class 8 Sanskrit Chapter 4 Hindi Translation | Sanskrit Class 8 Chapter 4 Hindi & English Translation | Class 8 Chapter Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Hindi Translation

Contents
NCERT Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् का हिन्दी अनुवाद Sanskrit Class 8 Chapter 4 Questions and Answer|| Class 8 Sanskrit Chapter 4 Hindi Translation सदैव पुरतो निधेहि चरणम् गीतस्य रचनाकार कौन है?

Class 8 Sanskrit Chapter 3 डिजीभारतम्

पाठ-परिचय :- श्रीधर भास्कर वर्णेकर द्वारा रचित गीत चुनौतियों को स्वीकार करते हुए जीवन में आगे बढ़ने का आह्वान किया गया है। सदैव पुरतो निधेहि चरणम् पाठ में जागरण और कर्मठता का संदेश दिया गया है।

Class 8 Sanskrit Chapter 4

(क)

चल चल पुरतो निधेहि चरणम् । सदैव पुरतो निधेहि चरणम् ॥  गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम् ।  विनैव यानं नगारोहणम् ॥ बलं स्वकीयं भवति साधनम् ।  सदैव पुरतो………………।।

अन्वयः – चल चल पुरतः चरणं निधेहि। सदैव पुरतः चरणं निधेहि। निजनिकेतनं ननु गिरिशिखरे (अस्ति) यानं विना एव नगारोहणम् (भवति) । स्वकीयं बलं साधनं भवति । सदैव ‘पुरतः चरणं निधेहि ।

हिन्दी अनुवाद – चलो चलो आगे कदम बढ़ाओ। हमेशा आगे कदम बढ़ाओ। अपना घर निश्चित ही पर्वत की चोटी पर है। बिना यान (वाहन) के ही पर्वत पर चढ़ना है। अपना बल (शक्ति) ही साधन (उपकरण) है/होता है। हमेशा आगे कदम बढ़ाओ ।

(ख)

पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः । हिंस्त्राः पशवः परितो घोराः ॥ सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम् । सदैव पुरतो …………..॥

अन्वयः – पथि विषमा: प्रखराः (च) पाषाणा: (सन्ति) । परितः हिंस्रा: घोरः (च) पशवः (सन्ति) । यद्यपि गमनं णं खलु सुदुष्करम्। सदैव पुरतः चरणं निधेहि ।

हिन्दी अनुवाद-मार्ग में टेढ़े-मेढ़े और नुकीले (तीखे) पत्थर हैं। चारों ओर (तरफ) भयंकर और हिंसक पशु हैं। यद्यपि गमन निश्चय ही अत्यधिक कठिन है। (फिर भी हमेशा ही आगे कदम बढ़ाओ।)

(ग) 

जहीहि भीतिं भज भज शक्तिम् ।  विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम् ॥  कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम् ।  सदैव पुरतो ……………।।

अन्वयः – भीतिम् जहीहि, शक्तिं भज भज तथा राष्ट्रे अनुरक्तिम् विधेहि । सततं ध्येय स्मरणं कुरु कुरु । सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

हिन्दी अनुवाद – भय को त्याग दो। शक्ति को जपो (भजो सेवन करो) और राष्ट्र से प्रेम करो। निरन्तर उद्देश्य का स्मरण करो। हमेशा ही आगे कदम बढ़ाएं।

Sanskrit Class 8 Chapter 4 Questions and Answer|| Class 8 Sanskrit Chapter 4 Hindi Translation

1. पाठे दत्तं गीतं सस्वरं गायत। (पाठ में दिए गये गीत को सस्वर गाओ।)

2. अधोलिखितानां प्रश्नानां उत्तराणि एकपदेन लिखत (नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखिए – )

(क) स्वकीयं साधनं किं भवति ? (अपना साधन क्या होता है ? ) 

(ख) पथि के विषमाः प्रखराः ? (मार्ग में टेढ़े-मेढ़े और नुकीले क्या हैं ?)

(ग) सततं किं करणीयम् ? (निरन्तर क्या करना चाहिए ? )

(घ) एतस्य गीतस्य रचयिता कः ? (इस गीत के रचनाकार कौन हैं ? )

(ङ) सः कीदृशः कविः मन्यते ? (वे किस प्रकार के कवि माने जाते हैं ? )

उत्तरम् – (क) बलम् (बल) । 

(ख) पाषाणा: (पत्थर) । 

(ग) ध्येयस्मरणम् (उद्देश्य का स्मरण) । 

(घ) श्रीधरभास्करः वर्णेकर : (श्रीधर भास्कर वर्णेकर) । 

(ङ) राष्ट्रकविः (राष्ट्रवादी कवि)।

3. मञ्जूषातः क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत (मञ्जूषा से क्रियापदों का चयन करके रिक्तस्थानों की पूर्ति करो । )

(निधेहि, विधेहि, जहीहि, देहि, भज, चल, कुरु)

(क) त्वं विद्यालयं………….. ।

(ख) राष्ट्रे अनुरक्तिं……………।

(ग) महयं जलं……………….।

(घ) मूढ ! ………..धनागमतृष्णाम् ।

(घ) …………….. गोविन्दम् ।

(च)सततं ध्येयस्मरणं…………..।

उत्तर:- (क) चल, (ख) विधेहि, (ग) देहि, (घ) जहीहि, (ड्) भज, (च) कुरु।

प्रश्न 4. (अ) उचितकथनानां समक्षम् ‘आम्’, अनुचित कथनानां समक्षं ‘न’ इति लिखत ।

उत्तरम्

(क) निजनिकेतनं गिरिशिखरे अस्ति। [आम्]

(ख) स्वकीयं बलं बाधकं भवति । [न]

(ग) पथि हिंस्राः पशवः न सन्ति । [न]

(घ) गमनं सुकरम् अस्ति । [न]

(ङ) सदैव अग्रे एव चलनीयम् । [आम्]

(आ) वाक्यरचनया अर्थभेदं स्पष्टीकुरुत ।

उत्तरम् – (i) परितः (चारों ओर)-ग्रामं परितः वृक्षाः।

पुरतः (सामने)-विद्यालयस्य पुरतः उद्यानमस्ति ।

(ii) नग: (पर्वत)-हिमालयः सर्वश्रेष्ठः नगः वर्तते ।

नाग (सर्प) – नाग: भयंकरः भवति ।

(iii) आरोहणम् (चढ़ना)-प्रधानाध्यापकः प्रातःकाले

ध्वजारोहणं करोति ।

अवरोहणम् (उतारना) – सायंकाले ध्वजस्य अवरोहणं भवति । 

(iv) विषमाः (असामान्य) – मार्गे विषमाः पाषाणा: सन्ति ।

समाः (सामान्य) – सज्जनाः सर्वदा समाः भवन्ति ।

प्रश्न 5. मञ्जूषातः अव्ययपदानि चित्वा रिक्त स्थानानि पूरयत

(एव खलु तथा परितः पुरतः सदा विना)

उत्तरम् – 

(क) विद्यालयस्य पुरतः एकम् उद्यानम् अस्ति ।

(ख) सत्यम् एव जयते ।

(ग) किं भवान् स्नानं कृतवान् खलु ? 

(घ) सः यथा चिन्तयति तथा आचरति ।

(ङ) ग्रामं परितः वृक्षाः सन्ति ।

(च) विद्यां विना जीवनं वृथा । 

(छ) सदा भगवन्तं भज ।

प्रश्न 6. विलोमपदानि योजयत

उत्तरम् – 

पुरतः                     पृष्ठतः 

परकीयम्                स्वकीयम्

भीतिः                    साहस:

अनुरक्तिः                विरक्तिः

गमनम्                    आगमनम्

प्रश्न 7. ( अ ) लट्लकारपदेभ्यः लोट्-विधिलिङ्लकार पदानां निर्माणं कुरुत

लट्लकारे         लोट्लकारे         विधिलिङ्लकारे

यथा-पठति        पठतु              पठेत्

उत्तरम्-

लट्लकारे         लोट्लकारे         विधिलिङ्लकारे

खेलसि             खेल                 खेले

खादन्ति            खादन्तु             खादेयुः

पिबामि।            पिवानि।           पिबेयम्

हसत:              हसताम्             हसेताम्

नयाम                नयामः              नयेम

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सदैव पुरतो निधेहि चरणम् गीतस्य रचनाकार कौन है?

सदैव पुरतो निधेहि चरणम् गीतस्य रचनाकार श्रीधर भास्कर वर्णेकर है। इस पाठ में जीवन में आगे बढ़ने का आह्वान किया गया है।

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