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Reading: Hindi Class 11th: पाठ 6 अक्कमहादेवी Question काव्य खंड
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Hindi Class 11th: पाठ 6 अक्कमहादेवी Question काव्य खंड

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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 6 अक्कमहादेवी Question & Answer

इस पोस्ट में हमने NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 6 अक्कमहादेवी में हमने सम्पूर्ण अभ्यास प्रश्न को सरल भाषा में लिखा गया है। हमने Class 11th Hindi Aroh Chapter 6 अक्कमहादेवी Questions and Answer बताएं है। इसमें NCERT Class 11th Hindi Aroh Chapter 6 Notes लिखें है जो इसके नीचे दिए गए हैं।

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अक्कमहादेवी
NCERT Solutions for Class 11 Hindi chapter 6 अक्कमहादेवी

हे भूख ! मत मचल
प्यास, तड़प मत
हे नींद ! मत सता
क्रोध ! मचा मत उथल-पुथल
हे मोह ! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
हे मद ! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
ओ चराचर ! मत चूक अवसर
आई हूँ संदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का ।

प्रश्न 1. कवयित्री ने ईश्वर की आराधना में किसको बाधक माना है ?

उत्तर- मनुष्य के मन में अनेक भाव उठते रहते हैं। इनको मनोविकार कहा जाता है। भूख, प्यास, ईर्ष्या, क्रोध, लोभ, मद इत्यादि कुछ मनोविकार हैं। कवयित्री ने माना है कि ये मनोविकार ईश्वर की आराधना में बाधा पहुँचाते हैं। ईश्वर की उपासना के लिए इन पर विजय पाना आवश्यक है।

प्रश्न 2. कवयित्री ने मनोविकारों को सम्बोधित करके उनसे क्या कहा है ?

उत्तर- कवयित्री ने मनोविकारों को सम्बोधित किया है। उसने कहा है कि वे उसको अपने प्रभाव से मुक्त रखें। भूख-प्यास उसे व्याकुल न करे, नींद सताये नहीं, क्रोध उत्तेजित होकर उथल-पुथल न मचाए, मोह पाश में बाँधे नहीं, लोभ ललचाये नहीं, ईर्ष्या जलाये नहीं। समस्त चराचर प्राणियों को इनसे मुक्ति मिले जिससे वे ईश्वर की आराधना कर सकें।

प्रश्न 3. कवयित्री ने चराचर प्राणियों से क्या कहा है ?

उत्तर – कवयित्री ने समस्त चराचर प्राणियों से कहा है कि ईश्वर की आराधना का उचित अवसर उनको मिला है। समस्त मनोविकारों से मुक्त होकर उनको इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

प्रश्न 4. कवयित्री विश्व को किसका संदेश देना चाहती है ?

उत्तर – कवयित्री चन्नमल्लिकार्जुन की भक्त है। चन्नमल्लिकार्जुन भगवान शिव को कहते हैं। कवयित्री चन्नमल्लिकार्जुन का संदेश समस्त विश्व को देना चाहती है। इस संदेश को ग्रहण करके उस पर आचरण करने से पूर्व समस्त मनोविकारों से चित्त को मुक्त करना आवश्यक है।

हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
तो कोई कुत्ता आ जाए
और यदि मैं झुकूँ उसे उठाने
तो वह गिर जाए नीचे
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवयित्री ने ईश्वर से भीख मँगवाने की प्रार्थना क्यों की है?

उत्तर- कवयित्री ईश्वर की भक्ति सच्चे मन से करना चाहती है। ईश्वर की सच्ची भक्ति के लिए भक्त का अहंकाररहित होना आवश्यक है। उसे किसी सांसारिक वस्तु का स्वामी नहीं होना चाहिए। उसके पास अपना कुछ भी नहीं होना चाहिए। अपने मन के घमण्ड को मिटाने के लिए कवयित्री चाहती है कि ईश्वर उससे भीख मँगवाये।

प्रश्न 2. कवयित्री क्यों चाहती है कि उसे भीख में कुछ भी न मिले?

उत्तर- कवयित्री ने चाहा है कि ईश्वर उससे भीख मँगवाये। वह भीख माँगने जाये तो भीख में उसे कुछ भी प्राप्त न हो। भीख में कुछ भी प्राप्त न होने से उसके मन में अकिंचनता की वृद्धि होगी तथा उसको ईश्वर की आराधना में सुगमता होगी।

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1.’लक्ष्य प्राप्ति’ में इन्द्रियाँ बाधक होती हैं। इसके संदर्भ में तर्क दीजिए।

उत्तर- आध्यात्मिक दृष्टि से मनुष्य का लक्ष्य है – ईश्वर की प्राप्ति । इन्द्रियाँ इस लक्ष्य को पाने में मनुष्य के लिए बाधक होती हैं। इन्द्रियाँ उसको विभिन्न सांसारिक सुखों की अनुभूति कराती हैं। इन्द्रियाँ सुस्वादु तथा सुन्दर पदार्थों के प्रति मनुष्य के मन को ले जाती हैं। भूख और प्यास उसको अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं। क्रोध, लोभ, मद, मोह आदि विकार मनुष्य को अपने जाल में फँसा लेते हैं। इनमें उलझा उसका मन ईश्वर की अनुभूति में केन्द्रित नहीं हो पाता। ‘ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या’ कहा गया है। परन्तु जगत् का यह मिथ्या स्वरूप परम मनोहर और आकर्षक है। जब तक मनुष्य को यह संसार सुन्दर, सत्य और सुखद लगता है, तब तक ईश्वर की ओर उसका ध्यान जाता नहीं है। दसों इन्द्रियाँ मन को वश में कर भटकाती रहती हैं।

प्रश्न 2. ‘ओ चराचर ! मत चूक अवसर’ इस पंक्ति का आशय – स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- कवयित्री अक्कमहादेवी शिव भक्त थीं। वह संसार के समस्त स्थावर और जंगम जीवों को सावधान करती हैं कि उनको ईश्वर से मिलने का जो अवसर प्राप्त हुआ है, वह उनको अपने हाथ से जाने नहीं देना है। यह जीवन शिव की आराधना करने का अवसर उनको प्रदान कर रहा है, ऐसा न हो कि संसार के माया-मोह में पड़कर शिव की आराधना का यह अवसर हाथ से निकल जाय।

प्रश्न 3. ईश्वर के लिए किस दृष्टान्त का प्रयोग किया गया है? ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइये।

उत्तर- कवयित्री ने ईश्वर के लिए जूही के फूल का दृष्टान्त प्रयोग किया है। जूही का फूल सुन्दर, कोमल और सुगन्धित होता है। ईश्वर में भी भक्तों और ज्ञानियों ने ऐसी ही विशेषताओं की उपस्थिति मानी है। ईश्वर को अनंत सौन्दर्य का भंडार, कोमल हृदय और सारी सृष्टि में व्याप्त माना गया है।

प्रश्न 4. अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है ?

उत्तर- अपना घर से तात्पर्य इस भौतिक संसार से है। जब तक मनुष्य को इस भौतिक संसार की वस्तुएँ सुन्दर और सुख- दायक लगती हैं तब तक वह इन्हीं में उलझा रहता है। इस उलझन में पड़ा मनुष्य ईश्वर के कल्याणकारी स्वरूप का साक्षात्कार नहीं कर पाता। सांसारिक सुखों से विरक्त होकर ही वह ईश्वर को पा सकता है।

प्रश्न 5. दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है ? और क्यों ?

उत्तर- दूसरे वचन में कवयित्री ने ईश्वर से कामना की है कि वह उसे संसार की चीजों से वंचित कर दे। वह अपना घर भूल जाय तथा अपनी आवश्यकता पूरी करने को उसे भीख भी माँगनी पड़े तो उसे भीख न मिले। यदि कोई भीख देने को हाथ बढ़ाये तो वह वस्तु उसकी झोली में न आकर नीचे गिर जाय। जब उसे उठाने के लिए वह नीचे झुके तो कुत्ता उसे झपटकर छीन ले जाए। कवयित्री ने ईश्वर से यही कामना की है। इस कामना का उद्देश्य अपने मन को पवित्र और अहंकार-मुक्त करना है, क्योंकि स्वयं को मिटाकर ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है।

अन्य बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. ‘हे भूख ! मत मचल (प्रथम वचन) का केन्द्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- कवयित्री अक्कमहादेवी ने इस वचन में भगवान शिव की भक्ति करने का संदेश दिया है। भक्ति मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं। महादेवी ने इस बाधक तत्त्वों का उल्लेख कर उनसे बचने को कहा है। इसके लिए कोई उपदेश न देते हुए कवयित्री ने उन मनोविकारों की मनुहार की है जो ईश्वराधना में बाधा पहुँचाते हैं। भूख-प्यास ईश्वर में ध्यान केन्द्रित नहीं होने देते। क्रोध,मोह, लोभ, मद और ईर्ष्या जब तक मन में रहते हैं, मनुष्य ईश्वर का ध्यान नहीं कर पाता। कवयित्री ने इन विकारों से निवेदन किया है कि वे अपना प्रभाव उस पर न डालें। कवयित्री ने कहा है कि मनोविकारों के प्रभाव से मुक्त होकर हम सच्चे मन से ईश्वर के प्रति समर्पित हो सकते हैं।

प्रश्न 2. द्वितीय वचन (हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर) का भाव लिखिए |

उत्तर- हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर में कवयित्री ने ईश्वर को उदार तथा दयालु बताया है। कवयित्री ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित होना चाहती हैं, किन्तु संसार के माया-मोह, लोभ और क्रोध उसके समर्पण में बाधक हो रहे हैं। यह मेरा घर है, यह मेरा भाई है, आदि मोह भरे विचार उसके मन को ईश्वर की भक्ति लगन से नहीं करने देते। मैं और मेरा अहंकार कवयित्री को ईश्वर के निकट पहुँचने नहीं दे रहा। ईश्वर की निकटता, ईश्वर की प्राप्ति तभी संभव है जब साधक में अकिंचनता का भाव हो। सांसारिक पदार्थों का स्वामित्व उसे अहंकारी बनाता है। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना कर रही है कि वह अपना घर पूरी तरह भूल जाएँ, उसे माँगने पर भीख न मिले तथा कोई कुछ दे तो वह भी उसके पास न पहुँचे। इस अकिंचनता की प्राप्ति के साथ ही चन्नमल्लिकार्जुन के प्रति उसका समर्पण पूर्ण हो जायेगा।

प्रश्न 3. पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध अक्कमहादेवी ने अपने आक्रोश को किस प्रकार प्रकट किया ?

उत्तर- अक्कमहादेवी अपूर्व सुन्दरी थीं। एक स्थानीय राजा ने उनके अद्भुत सौन्दर्य पर मुग्ध होकर उनसे विवाह करना चाहा। अक्कमहादेवी ने विवाह के लिए राजा के सामने तीन शर्तें रखीं। शर्तों का पालन न होने पर अक्कमहादेवी ने उसी समय राजभवन छोड़ दिया। उन्होंने राजमहल छोड़ने के साथ ही वहाँ से निकलते ही अपने शरीर के समस्त वस्त्र उतारकर फेंक दिए । वस्त्र उतारना वस्त्रों का परित्याग मात्र नहीं था, उसके पीछे अक्कमहादेवी का पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध आक्रोश छिपा था। दिगम्बर होना पुरुषों के लिए तो मान्य है परन्तु स्त्रियों के लिए वह वर्जित है। अक्कमहादेवी ने इस वर्जना के विरुद्ध विद्रोह किया था और सिद्ध किया था कि जो कार्य पुरुष कर सकता है। वह स्त्री भी कर सकती है। इसमें कुछ भी अनुचित और निंदनीय नहीं है। इस प्रकार अक्कमहादेवी ने महावीर जैसे महापुरुषों के समक्ष खड़े होने का प्रयास किया था।

प्रश्न 4. मीरा के काव्य में जो सरसता है, क्या वैसी ही सरसता अक्कमहादेवी की कविता में भी है?

उत्तर- मीरा का काव्य श्रीकृष्ण के प्रति उनके समर्पण का काव्य है। मीरा ने श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व माना है। ‘जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई’ कहकर मीरा ने उन्हें अपना पति बताया है। मीरा अपने पति की चिर – वियोगिनी है। उसमें तड़प और पीड़ा है। पीड़ा और दर्द की यह गहराई ही मीरा के काव्य की सरसता का रहस्य है। उसमें वियोग श्रृंगार रस का सजीव चित्रण हुआ है। अक्कमहादेवी भी अपने आराध्य चन्नमल्लिकार्जुन के प्रति समर्पित थीं। परन्तु उनकी कविता में मीरा जैसा विरह का दर्द और पीड़ा नहीं है। उनकी कविता ईश्वर के प्रति समर्पण की प्रेरणा भले ही देता हो परन्तु उसमें मीरा के काव्य जैसी सरसता नहीं है।

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