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Reading: Hindi Class 11th: पाठ 8 निर्मला पुतुल Questions काव्य खंड
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Hindi Class 11th: पाठ 8 निर्मला पुतुल Questions काव्य खंड

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18 Min Read
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NCERT Solutions for Class 11th Hindi chapter 8 निर्मला पुतुल Questions and Answer

इस पोस्ट में हमने NCERT Solutions for Class 11th: पाठ 8 निर्मला पुतुल में हमने सम्पूर्ण अभ्यास प्रश्न को सरल भाषा में लिखा गया है। हमने Class 11th Hindi Aroh Chapter 8 निर्मला पुतुल Questions and Answer बताएं है। इसमें NCERT Class 11th Hindi Aroh Chapter 8 Notes लिखें है जो इसके नीचे दिए गए हैं।

निर्मला पुतुल
NCERT Solutions for Class 11th Hindi chapter 8 निर्मला पुतुल

Read Also :- सबसे खतरनाक पाठ 7 कक्षा 11 सोल्यूशन

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. ‘माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है ?

उचर ‘माटी का रंग’ वाक्यांश का प्रयोग करके कवयित्री ने संथाल के लोकजीवन की विशेषताओं की ओर संकेत किया है। वह बताना चाहती है कि ये संथाल के लोग झारखण्डी भाषा का प्रयोग करते हैं। उनके जीवन में उल्लास होता है। उनके मन में मधुरता होती है। वे भोले होते हैं परन्तु आत्म-सम्मान के लिए उनमें संघर्ष करने की भावना तथा अक्खड़पन होता है। का क्या अभिप्राय है ?

प्रश्न 2. भाषा में झारखण्डीपन का क्या अभिप्राय है?

उत्तर- भाषा में झारखण्डीपन का अभिप्राय है-झारखण्ड की भाषा की स्वाभाविकता तथा मौलिकता उच्चारण में झारखण्ड की भाषा की विशेषताओं का ध्यान रखना। झारखण्ड के निवासी जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते हैं, उसको उसी प्रकार बिना किसी बनावट के अथवा बिना अन्य भाषाओं की मिलावट के प्रयोग करना भी इसका अभिप्राय है।

प्रश्न 3. दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है ?

उत्तर- कवयित्री मानती है कि झारखण्डी लोगों का मन पवित्र होता है। वे स्वभाव से भोले होते हैं। परन्तु उनमें अक्खड़पन और जुझारूपन भी होता है। स्वभाव के भोलेपन के साथ अक्खड़पन और संघर्षशीलता का गुण कवयित्री को विरोधी नहीं पूरक हो दिखाई देता है। प्राय: भोले लोग ही अनीति के विरुद्ध तनकर खड़े होते हैं तथा संघर्ष करते हुए कठोर रुख अख्तियार करते है। चालाक मनुष्य तो बुराई के विरोध को भी हानि-लाभ से गुणा करके देखता है। भोले लोगों को अत्याचार सहन नहीं होता और वे विरोध के लिए उत्तर पड़ते हैं। अतः कवयित्री चाहती है। कि दिल के भोलेपन के साथ उनके अक्खड़पन तथा जुझारूपन की भी रक्षा हो।

प्रश्न 4 प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है ?

उत्तर प्रस्तुत कविता में आदिवासी समाज की कुछ बुराइयों का भी वर्णन किया गया है। शहर की दूषित संस्कृति के कारण संथाल समाज में नंगापन आ गया है। लोग अमर्यादापूर्ण आचरण करने लगे है। धरती हरियाली के अभाव में नंगी दिखाई दे रही है। लोगों के आपसी सम्बन्धों में ठण्डापन आ गया है।

प्रश्न 5. ‘इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है से क्या आशय है?

उत्तर- कवयित्री मान रही है कि यह समय शहर की अप-संस्कृति की वृद्धि का है। शहरीकरण ने संथाली जीवन की मौलिकता में अनेक परिवर्तन ला दिए हैं। वहाँ का पर्यावरण दूषित कर दिया है, परन्तु ऐसी स्थिति में भी वहाँ के लोकजीवन में अनेक सद्गुण तथा विशेषताएँ हैं। जिनको बचाना आवश्यक है। वहाँ जो थोड़ा-सा विश्वास, आशा और आकांक्षा बची है, उनको बचाना जरूरी है। उन्हीं के शब्दों में- थोड़ा-सा विश्वास थोड़ी-सी उम्मीद थोड़े-से सपने आओ, मिलकर बचाएँ ।

प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौन्दर्य को उद्घाटित कीजिये-
(क) ठण्डी होती दिनचर्या में जीवन की गर्माहट
(ख) थोड़ा-सा विश्वास थोड़ी-सी उम्मीद थोड़े-से सपने आओ, मिलकर बचाएँ।

उत्तर- काव्य-सौन्दर्य-
(क) ‘ठण्डी होती दिनचर्या’ एक लाक्षणिक प्रयोग है। इसका आशय है वह दैनिक क्रिया-कलाप जिसमें न उत्साह हो न उमंग। जो एक बँधी-बँधाई गति से चलता जाता हो। ‘जीवन की गर्माहट’ में भी सांकेतिकता है। गर्माहट जीवन की सजगता एवं उमंग-उत्साह का प्रतीक है। इन दोनों कथनों में सांकेतिक भाषा के कारण प्रतीकात्मकता है। इन पंक्तियों का अर्थ- गाम्भीर्य प्रशंसनीय है। मुक्त छन्द अतुकान्त है, किन्तु शैली में प्रवाह है। भाषा सरल है।

(ख) (i) कवयित्री ने शहरी दुष्प्रभाव के उपरान्त भी संथाली लोकजीवन के बचे हुए सद्गुणों और विशेषताओं की रक्षा का आग्रह किया है। अपनी मातृभूमि के प्रति कवयित्री का प्रेम प्रशंसनीय है।
(ii) इस छन्द में हिन्दी और उर्दू के शब्दों का मिश्रित प्रयोग अत्यन्त प्रभावशाली बन पड़ा है।
(iii) मुक्त छन्द है जो तुकान्त नहीं है। कथन अत्यन्त प्रभावशाली है।

प्रश्न 7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?

उत्तर- प्राकृतिक वातावरण के बीच बसी बस्तियों में प्रकृति का पवित्र और मौलिक प्रभाव रहता है। वहाँ का जीवन अकृत्रिम तथा नैसर्गिक होता है। शहर की आबो-हवा मे प्रकृति से दूरी, अपवित्रता, बनावटीपन, छल-कपट आदि बुराइयाँ होती है। उसमें नीरसता, उत्साहहीनता, एक ढर्रे पर चलती हुई बंधी-बँधाई जिन्दगी तथा संवेदनहीनता होती है। बस्तियों को इन बुराइयों से बचाना आवश्यक है।

कविता के आस-पास

प्रश्न 1. आप अपने शहर या बस्ती की किस चीज को बचाना चाहेंगे ?

उत्तर- हम अपने शहर या बस्ती की मौलिक विशेषताओं को बचाना चाहेंगे क्योंकि उसकी पहचान विश्व में इन्हीं चीजो से होती है।हम यह भी चाहेंगे कि कुछ ऐतिहासिक धरोहरों की भी रक्षा हो, जो हमारे शहर की शान हैं।

प्रश्न 2. आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।

उत्तर- आदिवासी समाज पर शहरी सभ्यता के बढ़ते प्रभाव के कारण उसकी मौलिकता नष्ट हो रही है। शिक्षा के प्रसार, संचार साधनों के विस्तार तथा नगर की संस्कृति से सम्पर्क के कारण आदिवासी समाज का जीवन बदल रहा है तथा पर्यावरण के विनाश के कारण प्रदूषण भी बढ़ रहा है। आदिवासी समाज अपना नैसर्गिक आकर्षण खोता जा रहा है।

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. बस्तियों के नंगी होने का क्या आशय है ?

उत्तर- शहरी सभ्यता और संस्कृति का तेजी से फैलता हुआ प्रभाव आदिवासियों की बस्तियों पर पड़ रहा है तथा वे उससे प्रभावित होकर उसे ग्रहण कर रहे हैं। इससे आदिवासियों की संस्कृति की मौलिकता नष्ट हो रही है। आदिवासियों के जीवन में नगरों की नग्नता, अश्लीलता आदि बुराइयाँ प्रवेश कर रही हैं। जंगलों का विनाश हो रहा है। इससे वहाँ की प्राकृतिक सुषमा नष्ट हो रही है तथा वातावरण में प्रदूषण बढ़ रहा है।

प्रश्न 2. कवयित्री आदिवासी बस्तियों को शहरी आबो-हवा से क्यों बचाना चाहती है ?

उत्तर- कवयित्री चाहती है कि आदिवासियों के जीवन की मौलिकता बनी रहे, वह नष्ट न हो। आदिवासियों के जीवन में बढ़ते हुए शहरीकरण से उसके नष्ट होने का खतरा बढ़ रहा है। शहरी आबो-हवा आदिवासियों की संस्कृति के लिए हितकर नहीं है।

प्रश्न 3. पूरी बस्ती के हड़िया में डूबने का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- आदिवासी जन शहर की सभ्यता-संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं और उसको अपना रहे हैं। शहरों में प्रचलित नशा करने की आदत उन पर भी हावी होती जा रही है। वे स्मैक, अफीम आदि हानिकारक नशीले पदार्थों का प्रयोग कर रहे हैं। इनसे उनका स्वास्थ्य नष्ट हो रहा है तथा वे हड्डियों के ढाँचे में बदलते जा रहे हैं। कवयित्री उनको नशे से बचाना तथा स्वस्थ रखना चाहती है। हड़िया में डूबने का अर्थ हड्डियों का ढाँचा बनने से हैं।

प्रश्न 4. ‘आओ मिलकर बचाएँ’ कविता का क्या संदेश है ?

उत्तर – ‘आओ, मिलकर बचाएँ’ कविता में कवयित्री निर्मला पुतुल ने आदिवासी जीवन के संकट की चर्चा की है। कवयित्री स्वयं आदिवासी समाज से सम्बन्धित है। उसको शहरी अपसंस्कृति के प्रभाव के कारण आदिवासी सभ्यता-संस्कृति की मौलिकता नष्ट होने का खतरा है। शहरी संस्कृति के दुर्गुण आदिवासी जीवन के सौन्दर्य को नष्ट कर रहे हैं। उनमें नग्नता और अश्लीलता बढ़ रही है स्मैक आदि नशीले पदार्थों के सेवन से उनका स्वास्थ्य नष्ट हो रहा है। उद्योग-धंधों की स्थापना होने से जंगल का क्षेत्र घट रहा है और प्राकृतिक सुन्दरता मिट रही है। कवयित्री ने इस कविता के माध्यम से आदिवासियों के जीवन को बचाने का संदेश दिया है। उसने इस दिशा में मिलजुलकर काम करने को कहा है।

प्रश्न 5. उपर्युक्त पद्यांश में किसका वर्णन किया गया है ?

उत्तर- उपर्युक्त पद्यांश में झारखण्ड प्रदेश के संथाल परगना का वर्णन किया गया है। इसमें झारखंड के संथाली लोक- जीवन पर शहरी सभ्यता के कारण मँडरा रहे संकट के बारे में बताया गया है तथा उसको बचाने का आह्वान लोगों से किया गया है।

प्रश्न 6. कवयित्री ने आदिवासियों से किस प्रकार का जीवन व्यतीत करने का आग्रह किया है ?

उत्तर- कवयित्री को शहर की अपसंस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण आदिवासियों की संस्कृति तथा जीवन शैली पर गहराते हुए संकट आभास है। वह उसको इस संकट से बचाना चाहती कवयित्री झारखंड तथा संथाल के लोगों से आग्रह करती है कि इसके लिए वे बाह्य प्रभाव से बचें। वे अपनी ही वेशभूषा, भाषा और दिनचर्या को बनाये रखें।

प्रश्न 7. ‘ठंडी होती दिनचर्या में जीवन की गर्माहट का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- झारखंड के संथाल क्षेत्र के निवासी अपनी जीवन शैली का त्याग कर रहे हैं। इस कारण उनके लोकजीवन की सुन्दरता तथा मौलिकता मिट रही है। कवयित्री चाहती है कि संथाली लोगों को अपने जीवन की मौलिकता के प्रति उदासीनता छोड़नी चाहिए। उनको अपनी संस्कृति को बनाये रखना चाहिए। इसी से उनके जीवन में गर्माहट आयेगी अर्थात् उनका उत्साह तथा साहस पुनः अपनी ही जीवन पद्धति को अपनाने से लौटेगा।

प्रश्न 8. झारखंडीपन का क्या आशय है ?

उत्तर- झारखंड भारत का एक प्रदेश है। इसमें ‘ई’ तथा ‘पन’ प्रत्यय जुड़ने से झारखंडीपन शब्द बना है। यह भाववाचक संज्ञा है। इसका अर्थ है – झारखंड प्रदेश के जीवन की विशेषता । कवयित्री ने यहाँ भाषा के झारखंडीपन की बात कही है। कवयित्री चाहती है कि वहाँ के लोग अपने ही प्रदेश की भाषा का प्रयोग करें। उसकी शैली तथा शब्द भी झारखंड की भाषा के ही हों।

प्रश्न 9. भीतर की आग का क्या आशय है ?

उत्तर- उपर्युक्त पद्यांश में झारखंड के लोगों के जीवन का वर्णन हुआ है। इसमें झारखंडी लोगों के गुणों के बारे में बताया गया है। भीतर की आग एक प्रतीक है, जो उनके साहस, उत्साह, पराक्रम तथा वीरता आदि गुणों को सूचित करती है। कवयित्री का कहना है कि संथाली लोगों को अपने इन आन्तरिक सद्गुणों को बनाये रखना चाहिए।

प्रश्न 10. धनुष की की धार से क्या बात प्रकट की गई है ?

उत्तर- धनुष की डोरी, तीर का नुकीलापन तथा कुल्हाड़ी की धार से झारखंड के आदिवासियों के जीवन का चित्रण किया गया है। धनुष तथा बाण उनके प्रिय अस्त्र हैं, जिनसे वे शत्रुओं तथा जंगली पशुओं का सामना करते हैं। कुल्हाड़ी उनके जीवनयापन का साधन है। कुल्हाड़ी से वे जंगलों के पेड़ों की लकड़ियाँ काटते हैं। इन संकेतों से कवयित्री ने झारखंडी लोगों की जीवन शैली का चित्रण किया है।

प्रश्न 11. झारखंड के प्राकृतिक वातावरण का वर्णन कीजिए।

उत्तर- झारखंड एक सुन्दर प्रदेश है। वहाँ का प्राकृतिक वातावरण अत्यन्त मनोरम है। वहाँ निर्मल जल वाली नदियाँ बहती हैं। वहाँ के पहाड़ शांत और सुन्दर हैं। वहाँ के निवासी संगीत-नृत्य कुशल हैं। वहाँ की मिट्टी से सौंधी गंध उठती है। वहाँ हरी-भरी फसलें लहराती हैं।

प्रश्न 12. आदिवासियों के गुणों का वर्णन कीजिए।

उत्तर- झारखंड का संथाल परगना आदिवासियों की पैतृक भूमि है। वहाँ के रहने वाले संथाली कहलाते हैं। वे संथाली भाषा बोलते हैं। धनुष-बाण उनके प्रिय अस्त्र हैं। कुल्हाड़ी से वे जंगल से लकड़ियाँ काटकर अपना जीवनयापन करते हैं। वे अक्खड़ और जुझारू होते हैं। किन्तु मन से भोले और पवित्र चित्त वाले होते हैं। वे उत्साही तथा साहसी होते हैं। वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं।

प्रश्न 13. उपर्युक्त पद्यांश में किसका वर्णन है ?

उत्तर- उपर्युक्त पद्यांश में झारखंड के संथाल परगना तथा वहाँ के निवासी आदिवासियों के जीवन का वर्णन है। कवयित्री ने बताया है कि आदिवासियों का जीवन अपने आप में संपूर्ण है तथा उनको वहाँ अपनी आवश्यकता की प्रत्येक वस्तु मिल जाती है। उनका जीवन प्रकृति के अनुकूल है तथा उस प्रदेश के प्राकृतिक वातावरण में वे प्रसन्नता के साथ रहते हैं।

प्रश्न 14.झारखंड के लोगों के जीवन की क्या विशेषताएँ हैं

उत्तर- झारखंड के रहने वाले आदिवासियों का जीवन सरल तथा प्रकृति के अनुकूल है। वे स्वाभाविक तथा बनावट से रहित जीवन जीते हैं। वे खुशी के मौकों पर नाचते तथा गाते हैं। उसी प्रकार शोक के अवसर पर रोते भी हैं। सभ्यता उनके प्राकृतिक जीवन में बाधक नहीं है। वे मिल-जुलकर रहते हैं।

प्रश्न 15. झारखंड के लोगों के जीवन में हँसने-रोने की प्रवृत्ति के बारे में कवयित्री ने क्या कहा है ?

उत्तर – कवयित्री ने कहा है कि झारखंड के लोगों के जीवन में हँसने रोने का महत्वपूर्ण स्थान है। वे खुशी के अवसर पर खुलकर नाचते-गाते हैं और हँसते हैं तो शोक को प्रकट करने में उसी प्रकार निःसंकोच रोते भी हैं। सभ्यता का बनावटी आचरण इसमें बाधा नहीं डालता। उनकी ये वृत्तियाँ स्वाभाविक तथा प्राकृतिक हैं। वे संवेदनशील मनुष्य हैं। अभी भी शहर की बनावटी सभ्यता उनको दूषित नहीं कर पाई है। वे सुख-दुःख में मिल-जुलकर रहते हैं।

प्रश्न 16. अविश्वास के दौर में कवयित्री क्या चाहती हैं ?

उत्तर- आज विश्व में चारों ओर अविश्वास का वातावरण है। कोई किसी की बात पर विश्वास नहीं करता। कवयित्री चाहती है कि आदिवासी लोग इस दोष से बचे रहें। आदिवासियों के जीवन में अब भी विश्वास तथा आशा के भाव बचे हुए हैं। अब भी उनके मन में कुछ सपने तैरते हैं। कवयित्री चाहती है कि आदिवासियों में ये बातें बची रहें। कवयित्री नहीं चाहती कि समय के चक्र में पड़कर उनकी यह विशेषताएँ नष्ट हो जायें।

प्रश्न 17. बहुत कुछ बचा है अब भी हमारे पास से कवयित्री की किस मनःस्थिति का पता चलता है ?

उत्तर- समय बदल रहा है और आदिवासियों का जीवन भी बदल रहा है। समय धीरे-धीरे आदिवासी जीवन की मौलिकता को मिटा रहा है, परन्तु अब भी उनकी अनेक अच्छाइयाँ बची हुई हैं। प्रयास करके उनको बचाया जा सकता है। कवयित्री के इन विचारों से पता चलता है कि वह आशावादी है तथा मानवीय क्षमता पर उसको पूरा भरोसा है।

प्रश्न 18. ‘थोड़े से सपने’ का क्या आशय हैं ?

उत्तर – आदिवासियों का जीवन बदल रहा है। उनमें शहरी सभ्यता के दुर्गुण प्रवेश करते जा रहे हैं, परन्तु प्रतिस्पर्द्धापूर्ण शहरी सभ्यता उनकी कुछ विशेषताओं को मिटा नहीं सकी है। वे अब भी आशावादी हैं तथा अपने सुनहरे भविष्य के सपने देखते हैं। ‘थोड़े से सपने’ उज्ज्वल भविष्य के लिए उनके मन से उठने वाली सुन्दर कल्पनाएँ हैं।

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