एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी पाठ 5 प्रेमचंद के फटे जूते (Ncert Solutions for class 9 Hindi Kshitij chapter 7 )
विद्यार्थी इस आर्टिकल के माध्यम से एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 हिंदी पाठ 5 प्रेमचंद के फटे जूते प्राप्त कर सकते हैं। हमने आपके लिए कक्षा 9 हिंदी पाठ 7 के प्रश्न उत्तर सरल भाषा में बनाए हैं। कक्षा 9 हिंदी के प्रश्न उत्तर पाठ 5 प्रेमचंद के फटे जूते (ncert solutions for class 9 hindi kshitij chapter 5) के प्रश्नों को पढ़कर विद्यार्थी अच्छी तैयारी कर सकते हैं कक्षा 9 विषय हिंदी अध्याय 5 प्रश्न उत्तर को कक्षा 9 के हिंदी सिलेबस को ध्यान में रखकर बनाया गया है। कक्षा 9 वीं हिंदी अध्याय 5 question and answer के माध्यम से परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।
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प्रश्न 1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचन्द का जो शब्द-चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचन्द के व्यक्तित्व की कौन-कौनसी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर- प्रस्तुत शब्द-चित्र से प्रेमचन्द के व्यक्तित्व की निम्न विशेषताएं व्यक्त होती हैं-
(1) उनका जीवन संकट एवं अभावों में व्यतीत हुआ। (2) उन्हें दिखावा पसन्द नहीं था और किसी से मांगना अच्छा नहीं लगता था। उन्होंने जीवनभर मर्यादाओं का पालन किया।
(3) उनका व्यक्तित्व बाहर-भीतर एक जैसा सादगी और सहजता से भरा था।
(4) उन्होंने समाज में व्याप्त सदियों पुरानी मान्यताओं को ध्वस्त किया।
(5) वे परिस्थितियों के गुलाम नहीं थे। वे बाधाओं से बचकर नहीं, उनसे संघर्ष कर आगे बढ़ते थे।
(6) वे स्वाभिमानी थे, उनका स्वभाव समझौतावादी नहीं था। इस प्रकार प्रस्तुत व्यंग्य निबन्ध से प्रेमचन्द के व्यक्तित्व को संघर्षशील, अपराजेय, मर्यादित, स्वाभिमानी,सादगीयुक्त एवं पिसी-पिटी परम्पराओं का विरोधी बताया गया है।
प्रश्न 2. सही कथन के सामने (v) का निशान लगाइए-
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आयी है। (×)
(ख) लोग तो इस चुपड़कर फोटो खिंचवाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।(√)
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य-मुस्कान मेरे हौसले बढ़ाती है।(×)
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अंगूठे से इशारा करते हो।(×)
प्रश्न 3. नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं।
उत्तर- व्यंग्य – टोपी सम्मान की प्रतीक और जूता सामर्थ्य या अधिकार का प्रतीक है। व्यंग्य यह है कि शक्तिशाली व्यक्ति के चरणों में अनेक लोग झुकते हैं। आज की दुनिया में गुणी लोग भी अपने स्वाभिमान को भुलाकर शक्तिशाली अर्थात् धनवान लोगों की सेवा में खड़े रहते हैं। जूता देना एक मुहावरा भी है। इस तरह अब जूतों की कीमत बढ़ गई है।
(ख) तुम परदे का महत्त्व नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
उत्तर- व्यंग्य- यहाँ परदे का सम्बन्ध इज्जत से है। लोगों के द्वारा असलियत को छिपाने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य है। लोग अपनी बुराइयों को ढकने का निरन्तर प्रयास करते हैं, परन्तु प्रेमचन्द के पास परदे में छिपाने लायक कुछ भी नहीं था। वे स्वभाव से जैसे बाहर थे, वैसे ही भीतर भी थे।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अंगुली से इशारा करते हो।
उत्तर-व्यंग्य- व्यक्ति जिन चीजों को घृणा योग्य समझता है, उनकी तरफ हाथ की बजाय पाँव की अंगुली में इशारा करता है। प्रेमचन्द ने भी जिसे समाज में घृणा योग्य समझा उसकी और अपने पाँव की अंगुली से इशारा किया अर्थात् उसे अपने जूते की नोक पर रखा, उसके विरुद्ध संघर्ष किया।
प्रश्न 4. पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल में यह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस सन्दर्भ में प्रेमचन्द के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती है?
उत्तर- लेखक ने पहले सोचा कि संसार में अधिकतर लोग अपने घर पर पहनने के और बाहर पहनने के कपड़ों में अन्तर रखते हैं। परन्तु प्रेमचन्द का व्यक्तित्व सादगी भरा था। वे जैसे बाहर थे वैसे ही मन से भी थे। प्रायः देखने में आता है कि लोगों के व्यक्तित्व में एकरूपता नहीं होती है। इस कारण ये दिखाई कुछ देते हैं और होते कुछ और हैं। फिर लेखक ने सोचा कि प्रेमचन्द के व्यक्तित्व में ऐसी भिन्नता या बनावटीपन नहीं हो सकता। वे तो सदा एक जैसे सहज रहे। इसी से लेखक ने अपना विचार बदला। उक्त विचार बदलने का अन्य कारण यह भी व्यंजित हुआ है कि प्रेमचन्द का जीवन अर्थाभाव से ग्रस्त रहा। इस कारण उनके पास पोशाकों को भी कभी रही होगी और वे अलग-अलग पोशाकें नहीं पहन सके होंगे। एक महान साहित्यकार के जीवन में यह विडम्बना की बात थी।
प्रश्न 5. आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौनसी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ को पढ़कर लेखक की निम्नलिखित बातें आकर्षित करती हैं-
(1) लेखक सफल व्यंग्यकार है, वह प्रेमचन्द जैसे महान् साहित्यकार पर व्यंग्य करने से नहीं डरता है।
(2) लेखक ने सरल एवं सजीव भाषा का प्रयोग कर सुन्दर शब्द-चित्र उपस्थित किया है तथा प्रेमचन्द के स्वभाव का सहजता से उद्घाटन किया है।
(3) लेखक ने दोहरा व्यक्तित्व रखने वालों पर तथा स्वाभिमान का ध्यान न रखने वालों पर आक्षेप किया है।
(4) लेखक स्पष्टवादी एवं सत्यवादी है। वह महान् साहित्यकारों की आर्थिक दशा को लेकर चिन्तित दिखाई देता है।
(5) लेखक को वर्तमान काल की अवसरवादी प्रवृत्ति एवं दिखावे की प्रवृत्ति का पूरा ज्ञान है और वह ऐसी स्थिति पर व्यंग्य करना चाहता है।
प्रश्न 6. पाठ में ‘टीले ‘ शब्द का प्रयोग किन सन्दर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ में ‘टोले’ से तात्पर्य है मार्ग की रुकावटें अथवा बाधा उपस्थित करने वाले लोग, सामन्तवादी और पुरातनपंथी लोग टीले पर ठोकर मारने का उल्लेख करने से लेखक ने बाधक तत्वों जैसे- तत्कालीन समाज में व्याप्त शोषण की प्रवृत्ति, अन्याय, छुआछूत, जाति-पांति आदि बुराइयों को ध्वस्त करने का संकेत किया है। सुविधाभोगी लेखक ऐसे तत्त्वों से समझौता कर लेते हैं, या उन्हें अनदेखा कर बगल से आगे निकल जाते हैं, लेकिन प्रेमचन्द का स्वभाव समझौतावादी नहीं था, ये तो सामने से ठोकर मारकर बाधक तत्त्वों को ध्वस्त करना चाहते थे। रचना और अभिव्यक्ति-
प्रश्न 7. प्रेमचन्द के फटे जूते को आधार बनाकर परसाईजी ने यह व्यंग्य लिखा है आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर- स्वदेशी आन्दोलन को लक्ष्य कर गांधीजी ने नेताओं से खदर पहनने के लिए कहा। फलस्वरूप तय से स्वयं को सच्चा गांधीवादी जनसेवक दिखाने के लिए शक सफेद खदर पहनने की परम्परा बन गई है। वस्तुतः जनता को दिखाने के लिए नेतागण सफेद बेदाग कपड़े पहनते हैं, परन्तु जनसेवा के नाम पर वे कितने काले कारनामे करते हैं, कितनी भेंट-पूजा डकार जाते हैं, यह अब आम जनता को मालूम है। वे संसद में किसी की माँग या समस्या को उठाने के लिए मोटी रकम चुपचाप डकार लेते हैं जन-कल्याण के कार्यक्रमों के लिए आवष्टित धन को काले तरीकों से हजम कर जाते हैं। इस तरह के अन्दर से काले, स्वार्थी एवं भ्रष्ट रहते हैं. जबकि बाहर से उजले, जनहितकारी एवं बेदाग खदरधारी बनते फिरते हैं। ऐसे नेताओं का चरित्र तो अन्दर से कुछ और बाहर से कुछ और रहता है।
प्रश्न 8. आपकी दृष्टि से वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर- आज वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में काफी परिवर्तन आया है। वस्तुतः वेश-भूषा से व्यक्तित्व का पता चलता है; उसके स्वभाव, आचरण, आर्थिक एवं सामाजिक प्रतिष्ठा, मानसिक स्थिति, रुचि आदि का पता चलता है। आजकल लोग वेश-भूषा के प्रति अधिक सतर्क रहते हैं। यथासम्भव अच्छी काट के और नये फैशन के कपड़े पहनते हैं, जूतों के पहनावे में भी काफी सतर्कता दिखाते हैं। सामान्य गरीब लोग भी जितना सम्भव हो, ठीक-ठाक ढंग की वेशभूषा अपनाने का प्रयास करते हैं। अब लोग वेश-भूषा को आर्थिक सम्पन्नता, शिष्ट आवरण एवं सभ्यता से जोड़कर देखते हैं, तो कुछ लोग दिखावा भी करते हैं। आज वेशभूषा केवल व्यक्ति की जरूरत न होकर उसके व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग बन चुका है।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 9. पाठ में आये मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर- पाठ में काफी मुहावरे प्रयुक्त हुए हैं, यथा- कुर्बान होना, जूता आजमाना, हौसले पस्त होना, दृष्टि अटकना, रो पड़ना, परदा होना, पछतावा होना, टीला खड़ा होना, पहाड़ फोड़ना, उँगली से इशारा करना, चक्कर काटना जूते घिसना, व्यंग्य मुसकान, बाजू से निकलना, रास्ते पर खड़ा होना इत्यादि। इनमें कुछेक वाक्य प्रयोग- कुर्बान होना न्यौछावर होना।
जब भारतवासी अपने देश पर कुर्बान हुए, तभी हमें आजादी मिली। ठोकर मारना- चोट मारना, अपमानित करना। व्यक्तिगत सुख भोग की लालसा को ठोकर मारने वाले ही महापुरुष बनते हैं। पहाड़ फोड़ना – बाधाएँ नष्ट करना। नदियों की तरह पहाड़ फोड़कर आगे बढ़ने वाले ही जीवन में प्रगति कर पाते हैं। हौसले पस्त होना उत्साह कम होना। निरन्तर बढ़ती महंगाई को देखकर अब मध्यमवर्ग के हौसले पस्त हो रहे हैं। टीला खड़ा होना-बाधाएँ आना, रुकावट आना । वर्तमान में मानव सभ्यता के विकास में अनेक टोले खड़े हो रहे हैं।
प्रश्न 10. प्रेमचन्द के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है, उनकी सूची बनाइए।
उत्तर- प्रेमचन्द के लिए विशेषण-साहित्यिक पुरखे महान् कथाकर, उपन्यास सम्राट, युग प्रवर्तक, मेरी जनता के लेखक ।
पाठेतर सक्रियता-
महात्मा गाँधी भी अपनी वेश-भूषा के प्रति एक अलग सोच रखते थे, इनके पीछे क्या कारण रहे होंगे? पता लगाइए।
उत्तर- महात्मा गाँधी जीवन में सादगी और मितव्यय को बहुत महत्त्व देते थे। उस समय भारत में बहुत से लोगों के पास तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं थे। इसी कारण गाँधीजी स्वयं भी कम वस्त्र पहनते थे। देश के गरीब लोगों के प्रति सहानुभूति रखने के लिए वे अधिक वस्त्र पहनना गलत मानते थे। वे स्वयं चरखे पर सूत कातकर उससे बने वस्त्र-धोती और चादर धारण करते थे।