संस्कृत में इन्द्रवज्रा छंद: परिभाषा, लक्षण, नियम व उदाहरण
संस्कृत भाषा की छंदशास्त्र में इन्द्रवज्रा छंद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस ब्लॉग में, हम इन्द्रवज्रा छंद के बारे में विस्तार से जानेंगे।
इन्द्रवज्रा छंद क्या है?
इन्द्रवज्रा छंद संस्कृत छंदशास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका नाम इन्द्र के वज्र से लिया गया है, जो उसकी शक्ति और महत्व को दर्शाता है। इन्द्रवज्रा छंद का नाम इन्द्र के वज्र से लिया गया है, जो उसकी शक्ति और महत्व को दर्शाता है। इस छंद का नाम इन्द्र के वज्र से लिया गया है, जो उसकी शक्ति और महत्व को दर्शाता है।
इन्द्रवज्रा छंद के लक्षण
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।
इन्द्रवज्रा छन्द की प्रकृति– यह वार्णिक छन्द है। अर्थात् जिस छन्द के प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण तथा दो गुरु वर्ण कमशः हों, उस इन्द्रवज्रा छन्द कहते हैं।
इन्द्रवज्रा छंद का उपयोग
इन्द्रवज्रा छंद का उपयोग कविता, स्तोत्र, और गीतों में किया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि यह भावनाओं और विचारों को सुंदरता के साथ व्यक्त करने में सहायक होता है। इसकी विशेषता यह है कि यह भावनाओं और विचारों को सुंदरता के साथ व्यक्त करने में सहायक होता है।
इन्द्रवज्रा छंद की संरचना
इन्द्रवज्रा छंद में प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होता है। इन्द्रवज्रा छंद में कुल १६ मात्राएं होती हैं, लक्षणानुसार इस छन्द का स्वरुप इस प्रकार से है।
ऽऽ। ऽऽ। ।ऽ। ऽऽ। = तगण तगण जगण दो गुरु
उदाहरण
इन्द्रवज्रा छंद का एक उदाहरण नीचे दिया गया है:
यः कार्याणि करोति च |
विद्यामार्गे न तिष्ठति ||
भानुः सकृद्युक्ततुरङ्ग एव रात्रिन्दिवं गन्धवहः प्रयाति। शेषः सदैववाहितभूमिभारः षष्ठांशवृत्तेरपि धर्म एषः।।
अर्थो हि कन्यापरकीय एव तामय सम्मेष्य परिग्रहीतुः । जातो ममायं विशदः प्रकामं प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा ।।
इस ब्लॉग के माध्यम से, हमने संस्कृत में इन्द्रवज्रा छंद के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश की है। आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा।
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इंद्र वज्र में कितने वर्ण होते हैं?
इन्द्रवज्रा छन्द के प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं ।
संस्कृत में छंद कितने प्रकार के होते हैं?
छंद चार प्रकार के होते हैं—मात्रिक, वर्णिक, वर्णिक वृत्त एवं मुक्त। मात्रिक छंद के तीन भेद हैं—सममात्रिक, अर्धमात्रिक एवं विसममात्रिक।
छंद के जनक कौन है?
संस्कृत के छंद के जनक अर्थात् पिता आचार्य पिंगल मुनि को माना जाता है।
इन्द्रवज्रा छंद किसे कहते हैं?
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण तथा दो गुरु वर्ण कमशः हों, उस इन्द्रवज्रा छन्द कहते हैं।
इन्द्रवज्रा छंद क्या है?
इन्द्रवज्रा छंद संस्कृत छंदशास्त्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका नाम इन्द्र के वज्र से लिया गया है, जो उसकी शक्ति और महत्व को दर्शाता है। इन्द्रवज्रा छंद का नाम इन्द्र के वज्र से लिया गया है
इन्द्रवज्रा छंद के लक्षण क्या हैं?
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।
इन्द्रवज्रा छन्द की प्रकृति– यह वार्णिक छन्द है। अर्थात् जिस छन्द के प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण तथा दो गुरु वर्ण कमशः हों, उस इन्द्रवज्रा छन्द कहते हैं।
इन्द्रवज्रा छंद में कितनी मात्राएं होती है?
इन्द्रवज्रा छंद में प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं। यति प्रत्येक चरण के अन्त में होता है। इन्द्रवज्रा छंद में कुल १६ मात्राएं होती हैं, लक्षणानुसार इस छन्द का स्वरुप इस प्रकार से है।