NCERT Solutions for Class 7th: पाठ 3 कठपुतली Hindi Vasant( Kathputli ) Questions Pdf
इस पोस्ट में हम आपके लिए कठपुतली NCERT Class 7 Hindi Vasant Book के Chapter 3 कठपुतली का पाठ सार लेकर आए हैं। यह सारांश आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे आप जान सकते हैं कि इस कहानी का विषय क्या है। इसे पढ़कर आपको को मदद मिलेगी ताकि वे इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। इसके अलावा आप इस कहानी के अभ्यास प्रश्न भी पढ सकते हो। Kathputli Summary of NCERT Class 7 Hindi Vasant Chapter 3.
Class | 7th |
Subject | Hindi |
Book | NCERT |
Chapter | 3 |
Chapter Name | कठपुतली |
Class 7th | Sanskrit Solution |
Class th | Science Solution |
कठपुतली:- प्रस्तुत पाठ में कवि ने कठपुतली के माध्यम से स्वतंत्रता की अभीप्सा पर प्रकाश डाला गया है। डोरियों में बंधी दूसरे के इशारों पर नाचने वाली कठपुतलियां परतन्त्रता के बंधन से मुक्त होना चाहती है।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
कविता से-
प्रश्न 1. कठपुतली को गुस्सा क्यों आया ?
उत्तर- कठपुतली के अंग-अंग में पराधीनता के धागे बँधे हुए थे जिनका संचालन पराये हाथों में था । वह अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं कर सकती थी। अपनी ऐसी दयनीय दशा देखकर कठपुतली को गुस्सा आ गया ।
प्रश्न 2. कठपुतली को अपने पाँवों पर खड़ी होने की इच्छा है, लेकिन वह क्यों नहीं खड़ी होती ?
उत्तर- कठपुतली स्वतंत्र होना चाहती है । वह स्वावलम्बी बनना चाहती है, लेकिन स्वतंत्रता के साथ आने वाली जिम्मेदारी और अपनी क्षमता के बारे में सोचकर वह झिझकती है । अपने पैरों पर खड़े होने का तात्पर्य है- आत्मनिर्भर होना । किसी की सहायता की अपेक्षा न करना । कठपुतली बिना दूसरे की सहायता के हिल-डुल भी नहीं सकती ।
प्रश्न 3. पहली कठपुतली की बात दूसरी कठपुतलियों को क्यों अच्छी लगी ?
उत्तर- पहली कठपुतली ने पराधीनता के बंधनों से मुक्त होकर अपने बल पर जीने की इच्छा व्यक्त की थी। दूसरी कठपुतलियाँ भी पराधीनता का कष्ट भोग रही थीं । वे अपने मन की इच्छा के अनुसार जीवन नहीं बिता पा रही थीं। इसलिए पहली कठपुतली की बात उनको अच्छी लगी।
प्रश्न 4. पहली कठपुतली ने स्वयं कहा कि- ‘ये धागे / क्यों हैं मेरे पीछे-आगे ? / इन्हें तोड़ दो; / मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।’- तो फिर वह चिंतित क्यों हुई कि ‘ये कैसी इच्छा / – मेरे मन में जगी ?’ नीचे दिए वाक्यों की सहायता से अपने विचार व्यक्त कीजिए-
• उसे दूसरी कठपुतलियों की जिम्मेदारी महसूस होने लगी।
• उसे शीघ्र स्वतंत्र होने की चिंता होने लगी ।
• वह स्वतंत्रता की इच्छा को साकार करने और स्वतंत्रता को हमेशा बनाए रखने के उपाय सोचने लगी ।
• वह डर गई, क्योंकि उसकी उम्र कम थी ।
उत्तर- दूसरी कठपुतलियों द्वारा भी स्वतंत्र होने की इच्छ प्रकट किए जाने पर पहली कठपुतली सोच में पड़ गई । क्योंकि वह सोचने लगी कि क्या वह दूसरी कठपुतलियों की जिम्मेदारी उठा पाएगी ? स्वतन्त्र रहना तो हर व्यक्ति चाहता है । लेकिन जब पहली कठपुतली पर सबकी स्वतन्त्रता की जिम्मेदारी आती है तो, वह इतनी बड़ी और बिलकुल नइ जिम्मेदारी उठाने से डर जाती है। इसलिए वह सोचती है कि यह कैसी इच्छा मेरे मन में जगी ।
कविता से आगे-
प्रश्न 1. ‘बहुत दिन हुए। हमें अपने मन के छंद छुए । इस पंक्ति का अर्थ और क्या हो सकता है ? दिए हुए वाक्यों की सहायता से सोचिए और अर्थ लिखिए-
(क) बहुत दिन हो गए, मन में कोई उमंग नहीं आई ।
(ख) बहुत दिन हो गए, मन के भीतर कविता-सी कोई बात नहीं उठी, जिसमें छंद हो, लय हो ।
(ग) बहुत दिन हो गए, गाने-गुनगुनाने का मन नहीं हुआ ।
(घ) बहुत दिन हो गए, मन का दुख दूर नहीं हुआ और न मन में खुशी आई ।
उत्तर- इस पंक्ति का अर्थ यही है कि हमें मनचाहे ढंग से जीने का अर्थात् स्वतंत्र जीवन बिताने का अवसर नहीं मिला।
प्रश्न 2. नीचे दो स्वतंत्रता आंदोलनों के वर्ष दिए गए हैं। इन दोनों आन्दोलनों के दो-दो स्वतंत्रता सेनानियों के नाम लिखिए-
(क) सन् 1857
(ख) सन् 1942
उत्तर- सन् 1857 के दो स्वतंत्रता सेनानी-
(1) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (2) ताँत्या टोपे ।
सन् 1942 के दो स्वतंत्रता सेनानी-
(1) महात्मा गांधी
(2) जवाहर लाल नेहरू ।
अनुमान और कल्पना-
• स्वतंत्र होने की लड़ाई कठपुतलियाँ कैसे लड़ी होंगी और स्वतंत्र होने के बाद स्वावलंबी होने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए होंगे ? यदि उन्हें फिर से धागे में बाँधकर नचाने के प्रयास हुए होंगे तब उन्होंने अपनी रक्षा किस तरह के उपायों से की होगी ?
उत्तर- काठ की पुतलियों द्वारा स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया जाना एक रोचक कल्पना हो सकती है। संभव है कि उन्होंने अपना एक संगठन बनाया हो और सत्याग्रह का सहारा लिया हो । सारी कठपुतलियों ने धागों के संकेत पर संचालित होने से इन्कार कर दिया हो और नचाने वालों को उन्हें स्वतंत्र कर देना पड़ा हो। फिर से पराधीनता के बंधन में न पड़ जाएँ, इस भय से कठपुतलियाँ भाग निकली हों और कहीं दूर अपनी बस्ती बसाई हो ।
भाषा की बात
प्रश्न 1. कई बार जब दो शब्द आपस में जुड़ते हैं तो उनके मूल रूप में परिवर्तन हो जाता है । कठपुतली शब्द में भी इस प्रकार का सामान्य परिवर्तन हुआ है। जब ‘काठ’ और ‘पुतली’ दो शब्द एक साथ हुए कठपुतली शब्द बन गया और इससे बोलने में सरलता आ गई। इस प्रकार के कुछ शब्द बनाइए- जैसे- काठ (कठ) से बना-कठगुलाब, कठफोड़ा
उत्तर – हथफूल, हथियार, हथगोला सोनजुही, सोन मक्खी, सोन पिटारी, मटमैला, मटका, मटमूरत।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. गुस्से में भरी पहली कठपुतली ने क्या कहा ?
उत्तर- उसने कहा कि उसे आगे-पीछे से बाँधने वाले धागों को तोड़ दिया जाय और उसे अपने पाँवों पर खड़े होने को छोड़ दिया जाय ।
प्रश्न 2. पहली कठपुतली की बात सुनकर अन्य कठपुतलियाँ क्या बोलीं ?
उत्तर – अन्य कठपुतलियों ने पहली कठपुतली की बात का समर्थन किया और कहा कि उन्हें मनचाहा जीवन न जी पाते हुए बहुत समय बीत गया है ।
प्रश्न 3. पहली कठपुतली सोच में क्यों पड़ गई ?
उत्तर – उसमें आत्मविश्वास की कमी थी । अतः वह आगे कदम बढ़ाने में हिचक रही थी ।
लघुत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न – कठपुतली की स्वतंत्र होने की इच्छा के बारे में आप क्या सोचते हैं ? अपने विचार संक्षेप में लिखिए ।
उत्तर-संसार का हर जीव स्वतंत्र रहना चाहता है । किसी और के इशारे एवं इच्छा पर जीवन बिताना अपमानजनक लगता है । कठपुतली तो एक काठ की बनी निर्जीव पुतली है। मगर उसे भी बंधन में रहना स्वीकार नहीं । वह भी स्वतंत्र होना चाहती है । अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है। लेकिन स्वतंत्र होने के लिए स्वावलंबी होना बहुत आवश्यक है । क्या वह अपने पैरों पर खड़ी हो पाएगी ? क्या वह स्वतंत्र होने पर आने वाली चुनौतियों का सामना कर पाएगी ? ये सारी शंकाएँ उसको चिंतित कर देती हैं ।
प्रश्न 1. कठपुतली क्रोधित क्यों हुई ?
उत्तर-. पराधीनता के अपमानजनक जीवन से कठपुतली को क्रोध आया ।
प्रश्न 2. कठपुतली ने क्या कहा ?
उत्तर कठपुतली ने कहा कि उसे बाँधने और नचाने वाले बंधन तोड़ दिए जाएँ । उसे अपने पैरों पर खड़ी होने की छूट दी जाए ।
प्रश्न 3. अन्य कठपुतलियाँ क्या बोलीं ?
उत्तर अन्य कठपुतलियों ने कहा कि वे भी बहुत दिन से मनचाहा जीवन नहीं जी पा रही हैं। वे भी स्वतंत्र होना चाहती हैं
प्रश्न 4. पहली कठपुतली क्या सोचने लगी ?
उत्तर पहली कठपुतली को अन्य कठपुतलियों की जिम्मेदारी का और अपनी वास्तविक स्थिति का ध्यान आया तो वह सोच में पड़ गई । उसने सोचा कि क्या उसकी इच्छा उचित है ? क्या वह स्वतंत्र जीवन बिताने की योग्यता रखती है ?