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Reading: NCERT Solutions for Class 7 Chapter 6 सकल्प: सिद्धिदायक Hindi Translation
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Sanskrit Dhara Vahini > Class 7 > Class 7 Sanskrit > NCERT Solutions for Class 7 Chapter 6 सकल्प: सिद्धिदायक Hindi Translation
Class 7Class 7 Sanskrit

NCERT Solutions for Class 7 Chapter 6 सकल्प: सिद्धिदायक Hindi Translation

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NCERT Solutions for Class 7 Chapter 6 सकल्प: सिद्धिदायक Hindi & English Translation

NCERT Solutions for Class 7 Chapter 6 सकल्प: सिद्धिदायक | Sanskrit Chapter 6 class 7 Solution | Class 7 Sanskrit Chapter 6 Question and Answer

Contents
NCERT Solutions for Class 7 Chapter 6 सकल्प: सिद्धिदायक Hindi & English Translation Sanskrit Class 7 Chapter 6 Question and Answer

सकल्प: सिद्धिदायक – सकल्प: सिद्धिदायक इस पाठ में दृढ़ इच्छाशक्ति से किए गए कार्य में हमें निश्चित सिद्धि मिलती है। पार्वती ने अपने दृढ़ संकल्प से तप करके शिवजी को प्राप्त किया है। इसका विवेचन किया गया है।

सकल्प: सिद्धिदायक
NCERT Solutions for Class 7 Chapter 6 सकल्प: सिद्धिदायक

(पार्वती शिवं पतिरूपेण अवाञ्छत् । एतदर्थं सा तपस्यां कर्तुम् ऐच्छत् । सा स्वकीयं मनोरथं मात्रे न्यवेदयत् । तत् श्रुत्वा माता मेना चिन्ताकुला अभवत् ।)

मेना – वत्से ! मनीषिताः देवताः गृहे एव सन्ति । तपः कठिनं भवति । तव शरीरं सुकोमलं वर्तते । गृहे एव वस । अत्रैव तवाभिलाषः सफलः भविष्यति ।

पार्वती अम्ब! तादृशः अभिलाषः तु तपसा एव पूर्ण: भविष्यति । अन्यथा तादृशं पतिं कथं प्राप्स्यामि । अहं तपः एव चरिष्यामि इति मम सङ्कल्पः ।

मेना – पुत्रि ! त्वमेव मे जीवनाभिलाषः । 

पार्वती सत्यम् । परं मम मनः लक्ष्यं प्राप्तुम् आकुलितं वर्तते । सिद्धिं प्राप्य पुनः तवैव शरणम् आगमिष्यामि । अद्यैव विजयया साकं गौरीशिखरं गच्छामि । (तत: पार्वती निष्क्रामति)

हिन्दी अनुवाद – (पार्वती शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी । इसके लिए वह तपस्या करना चाहती थी। उसने अपने मनोरथ को माँ से निवेदन किया । उसको सुनकर माता मेना चिन्तित हो गई ।)

मेना – बेटी ! मन की इच्छा पूरी करने वाले देवता घर में ही हैं । तप कठिन होता है । तुम्हारा शरीर अत्यन्त कोमल है। घर में ही रहो । यहाँ ही तुम्हारी इच्छा सफल होगी । पार्वती – माँ ! वैसी इच्छा तो तप से ही पूरी होगी । नहीं तो वैसा पति कैसे प्राप्त करूँगी ? मैं तप ही करूँगी, यह मेरा दृढ़ निश्चय (संकल्प) है ।

मेना – बेटी ! तुम ही मेरे जीवन की अभिलाषा ( चाह) हो । पार्वती सच । लेकिन मेरा मन लक्ष्य (ध्येय) को प्राप्त करने के लिए व्याकुल (लालायित) है। सफलता प्राप्त करके फिर तुम्हारी ही शरण में आ जाऊँगी । आज ही विजया के साथ गौरी शिखर पर जाती हूँ । (तब पार्वती निकल जाती है ।)

(पार्वती मनसा वचसा कर्मणा च तपः एव तपति स्म । कदाचिद् रात्रौ स्थण्डिले, कदाचिच्च शिलायां स्वपिति स्म । एकदा विजया अवदत् । )

विजया – सखि ! तपः प्रभावात् हिंस्रपशवोऽपि तव सखायः जाताः । पञ्चाग्नि-व्रतमपि त्वम् अतपः। पुनरपि तव अभिलाषः न पूर्णः अभवत् ।

पार्वती – अयि विजये ! किं न जानासि ? मनस्वी कदापि धैर्यं न परित्यजति। अपि च मनोरथानाम् अगतिः नास्ति । 

विजया – त्वं वेदम् अधीतवती । यज्ञं सम्पादितवती । तपः कारणात् जगति तव प्रसिद्धिः । ‘अपर्णा’ इति नाम्ना अपि त्वं प्रथिता । पुनरपि तपसः फलं नैव दृश्यते ।

हिन्दी अनुवाद – (पार्वती ने मन, वचन और कर्म से तप ही तपा अर्थात् तपस्या ही की । कभी रात में जमीन पर और कभी चट्टान (शिला) पर सोती थी । एक दिन विजया (ने कहा) बोली- )

विजया – सखि ! तप के प्रभाव से हिंसक पशु भी तुम्हारे मित्र हो गए हैं । पञ्चाग्नि व्रत भी तुमने तपा । फिर भी तुम्हारी अभिलाषा पूरी नहीं हुई ।

पार्वती अरी विजया ! क्या नहीं जानती हो ? दृढ़ संकल्पी कभी धैर्य नहीं त्यागता । और मनोरथों की बुरी गति नहीं होती है ।

विजया – तुमने वेद को पढ़ा । यज्ञ भी सम्पन्न किया। तप के कारण ही जगत् में तुम्हारी ख्याति (प्रसिद्धि) है । अपर्णा नाम से भी तुम प्रसिद्ध हुई हो । फिर भी तप का परिणाम दिखाई नहीं देता है ।

पार्वती – अयि आतुरहृदये ! कथं त्वं चिन्तिता

(नेपथ्ये- अयि भो ! अहम् आश्रमवटुः । जलं वाञ्छामि।) (ससम्भ्रमम्) विजये ! पश्य कोऽपि वटुः आगतोऽस्ति । (विजया झटिति अगच्छत्, सहसैव वटुरूपधारी शिवः तत्र प्राविशत्) 

विजया – वटो ! स्वागतं ते । उपविशतु भवान् । इयं मे सखी पार्वती । शिवं प्राप्तुम् अत्र तपः करोति । 

वदुः हे तपस्विनि ! किं क्रियार्थं पूजोपकरणं वर्तते, स्नानार्थं जलं सुलभम्, भोजनार्थं फलं वर्तते ? त्वं तु जानासि एव शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। (पार्वती तूष्णीं तिष्ठति) 

वटुः हे तपस्विनि ! किमर्थं तपः तपसि ? शिवाय ? (पार्वती पुनः तूष्णीं तिष्ठति)

विजया – (आकुलीभूय) आम्, तस्मै एव तपः तपति ।

हिन्दी अनुवाद – पार्वती – अरी (हे !) व्याकुल हृदय वाली ! तुम कैसे चिन्तित हो ? । (पर्दे के पीछे से अरी ओ! मैं आश्रम का ब्रह्मचारी हूँ । पानी चाहता हूँ।) (हड़बड़ाहट के साथ) विजया ! देख कोई ब्रह्मचारी आया हुआ है । (विजया शीघ्र चली गई, अकस्मात् ब्रह्मचारी वेशधारी शिव वहाँ प्रवेश हुए।)

विजया – ब्रह्मचारी ! तुम्हारा स्वागत है । आप विराजिए (बैठिए)। यह मेरी सहेली पार्वती है। शिव को प्राप्त करने के लिए यहाँ तप कर रही है ।

वटु – हे तपस्या करने वाली ! क्या (आपके पास) पूजा कार्यों के लिए पूजा की सामग्री है ? (क्या) स्नान (करने) के लिए पानी आसानी से मिल जाता है ? (क्या) भोजन के लिए फल हैं? तुम तो जानती ही हो कि शरीर ही धर्म आदि का (प्रथम प्रमुख) साधन है । (पार्वती चुप बैठी रहती है ।)

वटु – हे तपस्या करने वाली ! किस कारण (के लिए) तपस्या करती हो ? (क्या) शिव के लिए ? (पार्वती फिर चुप रहती है।) 

विजया (बेचैन होकर) हाँ, उसी के लिए तपस्या कर रही है ।

(वटुरूपधारी शिवः सहसैव उच्चैः उपहसति)

वटुः – अयि पार्वति ! सत्यमेव त्वं शिवं पतिम् इच्छसि ? (उपहसन्) नाम्ना शिवः अन्यथा अशिवः । श्मशाने वसति । यस्य त्रीणि नेत्राणि, वसनं व्याघ्रचर्म, अङ्गरागः चिताभस्म, परिजनाश्च भूतगणाः । किं तमेव शिवं पतिम् इच्छसि ? 

पार्वती – (क्रुद्धा सती) अरे वाचाल ! अपसर । जगति न कोऽपि शिवस्य यथार्थं स्वरूपं जानाति । यथा त्वमसि तथैव वदसि ।(विजयां प्रति) सखि ! चल । यः निन्दां करोति सः तु पापभाग् भवति एव, यः शृणोति सोऽपि पापभाग् भवति । (पार्वती द्रुतगत्या निष्क्रामति । तदैव पृष्ठतः वटो: रूपं परित्यज्य शिवः तस्याः हस्तं गृह्णाति । पार्वती लज्जया कम्पते)

शिवः – पार्वति ! प्रीतोऽस्मि तव सङ्कल्पेन । अद्यप्रभृति अहं तव तपोभिः क्रीतदासोऽस्मि ।(विनतानना पार्वती विहसति)

हिन्दी अनुवाद – (ब्रह्मचारी का रूप धारण किए हुए शिव अकस्मात् उच्च स्वर से उपहास करते हैं ।)

वटु –अरी पार्वती ! (क्या) सचमुच तुम शिव को पतिरूप में चाहती हो ? (उपहास करते हुए) नाम से तो शिव (शुभ) है, अन्य प्रकार से (वास्तव में) अशिव (अशुभ) है। श्मशान (मरघट ) में रहता है । जिसके तीन नेत्र हैं । (जिसका) वस्त्र बाघ की खाल है, विलेपन चिता की राख है, भूतों के समूह परिवारीजन हैं। क्या उसी शिव को पति (रूप में) चाहती हो ?

पार्वती – (क्रोधित हुई) अरे बातून ! दूर हट संसार में कोई भी शिव के वास्तविक स्वरूप को नहीं जानता है । जैसे तुम हो वैसे ही बोल रहे हो ।

(विजया से) सहेली! चल। जो निन्दा करता है वह तो पाप का भागी होता ही है (परन्तु) जो सुनता है वह भी पाप का भागी होता है।

(पार्वती तीव्र गति से निकल जाती है । तभी पीछे से ब्रह्मचारी के रूप को त्याग कर शिव उसका हाथ पकड़ लेते हैं। पार्वती लाज़ से काँपने लगती है ।)

शिव – हे पार्वती ! मैं तुम्हारे (दृढ़ संकल्प से प्रसन्न हूँ । आज से मैं तुम्हारे तप से खरीदा हुआ दास हो गया हूँ । (नीचे मुख की हुई पार्वती मुस्कराती है ।)

Sanskrit Class 7 Chapter 6 Question and Answer

1. उच्चारणं कुरुत — (उच्चारण कीजिए) 

अभवत्, अकथयत्, अगच्छत्, न्यवेदयत्, अपूजयत्, स्वपिति, तपति, प्राविशत्, अवदत् वदति स्म, वसति स्म, रक्षति स्म, वदति, चरति स्म, करोति स्म गच्छति स्म, अकरोत् पठति स्म,पूजयतः स्म, कुरुतः स्म।

2. उदाहरणम् अनुसृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत- (उदाहरण का अनुसरण करके रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए) –

एकवचनम्द्विवचनम्बहुवचनम्
पूजति स्मपूजत: स्मपूजन्ति स्म
रक्षति स्मरक्षत: स्मरक्षन्ति स्म
चरति स्मचरत: स्मचरन्ति स्म
करोति स्मकुरुत: स्मकुर्वन्ति स्म
प्रथम पुरुषअकथयत्अकथयताम्अकथयन्
प्रथम पुरुषअपूजयत्अपूजयताम्अपूजयन्
मध्यम पुरुषअवस:अवसतम्अवसत
मध्यम पुरुषअपूजय:अपूजयतम्अपूजयत
मध्यम पुरुषअचर:अचरतम्अचरत
उत्तम पुरुषअलिखम्अलिखावअलिखाम
उत्तम पुरुषअरचयम्अरचयावअरचयाम

3. प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन जो लिखत- (प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखिए – )

(क) तपः प्रभावात् के सखायः जाताः ? (तप के प्रभाव से कौन मित्र हो गए हैं ? )

उत्तर हिंस्रपशवः।

(ख) पार्वती तपस्यार्थं कुत्र अगच्छत् ? (पार्वती तपस्या के लिए कहाँ गई ? )

उत्तर गौरीशिखरम्।

(ग) कः श्मशाने वसति ? (कौन मरघट में रहता है ? 

उत्तर शिवः।

(घ) शिवनिन्दां श्रुत्वा का क्रुद्धा जाता ? (शिव की निन्दा सुनकर कौन क्रुद्ध हो जाती है ?)

उत्तर पार्वती।

(ङ) वटुरूपेण तपोवनं कः प्राविशत् ? (ब्रह्मचारी के रूप में तपोवन में कौन प्रवेश करता है ?)

उत्तर शिव:।

4. कः / का कं/ कां प्रति कथयति

(क) अहं तपः एव चरिष्यामि । ( पार्वती। मातरम् )

(ख) मनस्वी कदापि धैर्यं न परित्यजति। ( पार्वती। विजयाम् )

(ग) अपर्णा इति नाम्ना त्वं प्रथिता। ( विजया। पार्वतीम् )

(घ) पार्वति ! प्रीतोऽस्मि तव संकल्पेन। ( शिव: । पार्वतीम् )

(ङ) शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। ( वटु: । पार्वतीम् )

(च) अहं तव क्रीतदासोऽस्मि। ( शिव: । पार्वतीम् )

5. प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत (प्रश्नों के उत्तर लिखिए)-

(क) पार्वती क्रुद्धा सती किम् अवदत् ? (पार्वती क्रुद्ध होकर क्या बोली ? )

उत्तरम् – अरे वाचाल ! अपसर । जगति न कोऽपि शिवस्य यथार्थं स्वरूपं जानाति । यथा त्वमसि तथैव वदसि । (अरे वाचाल ! दूर हट । संसार में कोई भी शिव के वास्तविक स्वरूप को नहीं जानता है।) जैसे तुम हो वैसे ही बोल रहे हो ।

(ख) कः पापभाग् भवति ? (कौन पाप का भागी होता है ? )

उत्तरम् – यः निन्दां करोति सः तु पापभाग् भवति एव, यः शृणोति सोऽपि पापभाग् भवति । (जो निन्दा करता है वह तो पाप का भागी होता ही है, जो सुनता है वह भी पाप का भागी होता है।) 

(ग) पार्वती किं कर्त्तुम् ऐच्छत् ? (पार्वती क्या करना चाहती थी ? )

उत्तरम् – पार्वती तपः कर्त्तुम् ऐच्छत् । (पार्वती तपस्या करना 

(घ) पार्वती कया साकं गौरीशिखरं गच्छति ? (पार्वती किसके चाहती थी। )

उत्तरम् – पार्वती विजयया साकं गौरीशिखरं गच्छति । (पार्वती विजया के साथ गौरी शिखर पर जाती है ? )

6. मञ्जूषातः पदानि चित्वा समानार्थकानि पदानि

लिखत- (मंजूषा से शब्द चुनकर समान अर्थ वाले शब्द लिखिए 1)

माता, मौनम्, प्रस्तरे, जन्तवः, नयनानि

शिलायां प्रस्तरे ।

पशवः जन्तवः (पशु, जानवर)

अम्बा माता (जननी)

नेत्राणि नयनानि (नेत्र, आँख)

तूष्णीम् मौनम् (चुप)

7. उदाहरणानुसारं पदरचनां कुरुत- (उदाहरण के अनुसार पद रचना कीजिए – )

(क) पश्यति स्म = अपश्यत्

(ख) तपति स्म = अतपत्

(ग) चिन्तयति स्म = अचिन्तयत्

(घ) वदति स्म = अवदत्

(ङ) गच्छति स्म  = अगच्छत्

(क) अकथयत् = कथयति स्म ।

(ख) अनयत् = नयति स्म ।

(ग) अपेठत् = पठति स्म ।

(घ) अधावत् = धावति स्म ।

(ङ) अहसत् = हसति स्म ।

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