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Reading: Sanskrit Shemushi Class 10 Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Hindi Translation
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Sanskrit Shemushi Class 10 Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Hindi Translation

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NCERT Sanskrit Class 10 Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Hindi & English Translation

बुध्दिर्बलवती सदा

Class 10 chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा – संस्कृत में कथा साहित्य की समृद्धशाली परम्परा रही है। इसी परम्परा में ‘शुकसप्तति’ भी एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें एक तोते द्वारा अकेली औरत के मनोरञ्जनार्थ कही गई रोचक एवं शिक्षाप्रद कथाएँ संग्रहीत हैं, जो कालान्तर में हिन्दी भाषा में ‘किस्सा तोता-मैना के नाम से प्रसिद्ध हुई। प्रस्तुत कथा ‘बुद्धिर्बलवती सदा’ इसी कथा-ग्रन्थ से संकलित है।

Contents
NCERT Sanskrit Class 10 Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा Hindi & English Translation Ncert Class 10 Sanskrit Chapter 2 Questions and Answer

इस कथा में अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ वन-मार्ग से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक स्त्री के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है। वह अपने बुद्धिकौशल से काल के समान सामने आए हुए शेर को भी भयभीत कर भगा देती है। इसी प्रकार इस कथा-ग्रन्थ में नीति-निपुण शुक-सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का विकास कराने का प्रयत्न किया गया है।

अस्ति देउलाख्यो ग्रामः । तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य आर्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता । मार्गे गहनकानने सा एक व्याघ्रं ददर्श । सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा घाट्यत् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद – ” कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः ? अयमे कस्तावद्विभज्य भुज्यताम् । पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते ।” इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्री भयाकुलचित्तो नष्टः । निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी । अन्योऽपि बुद्धिमाँल्लोके मुच्यते महतो भयात् ।। भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः शृगालः हसन्नाह “भवान् कुतः भयात् पलायितः ?”

बुद्धिर्बलवती सदा
RBSE Class 10 Sanskrit

हिन्दी अनुवाद:- देउल नाम का (एक) गाँव है । उस गाँव में राजसिंह नाम का राजपूत (राजकुमार) निवास करता था । एक दिन किसी आवश्यक कार्य से उसकी बुद्धिमती पत्नी दो पुत्रों सहित पीहर की ओर चल पड़ी । राह में सघन वन में उसने एक बाघ को देखा । उसने आते हुए बाघ को देखकर ढीठता के साथ दोनों पुत्रों को थप्पड़ मारकर कहा- “किसलिए एक-एक बाघ खाने के लिए विवाद करते हो (लड़ाई करते हो) ।

यह तो एक ही है, तो बाँटकर खा लो, इसके बाद कोई और दिखाई पड़े। ” इस प्रकार सुनकर ‘बाघ मारने वाली है’ ऐसा मानकर भय से व्याकुल- चित्त हुआ भाग गया । वह रूपवती स्त्री अपनी बुद्धि (बल) से सिंह के भय से मुक्त हो गई। दूसरे बुद्धिमान भी इस लोक में महान् डरों से मुक्त कर दिये जाते हैं । बाघ को भय से व्याकुल देखकर किसी चतुर (चालाक) गीदड़ ने हँसते हुए कहा- “आप भय से कहाँ भाग चले ?”

English translation:- There is (one) village named Deul. A Rajput (prince) named Raj Singh used to reside in that village. One day, due to some urgent work, his intelligent wife started towards Pihar with two sons. He saw a tiger in the dense forest on the way. Seeing the tiger coming, he insolently slapped both the sons and said – “Why do you quarrel (fight) to eat each tiger.

This is only one, so share it and eat it, after that someone else will appear. Hearing this, thinking that ‘the tiger is going to kill’, he ran away distraught with fear. That beautiful woman was freed from the fear of the lion with her intelligence (power). Seeing the tiger distraught with fear, a clever (clever) jackal laughingly said – “Where did you run away from fear?”

व्याघ्रः- गच्छ गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम् । यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः । शृगालः- व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि ? व्याघ्र:- प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा । जम्बुकः- स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम् । व्याघ्र ! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति । व्याघ्रः- शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात् ।

हिन्दी अनुवाद:- बाघ जा जा गीदड़ ! तू भी किसी गुप्त स्थान पर जा क्योंकि ‘बाघमारी’ जो शास्त्रों में बताई गई है वह मुझे मारने ही वाली थी लेकिन जान हथेली पर लेकर (जान बचाकर) शीघ्र ही उसके आगे से भाग आया । गीदड़ – अरे बाघ ! तुमने बड़े आश्चर्य की बात बताई कि मनुष्य से भी डरते हो । बाघ- सामने ही मैंने उसे अपने दो बेटों को ‘मुझे एक-एक खाने के लिए झगड़ते हुओं को थप्पड़ मारते हुए देखा है।’ गीदड़ – मालिक ! वह चालाक जहाँ बैठी है उस स्थान पर (हमें) जाना चाहिए। हे बाघ । फिर तुम्हारे वहाँ गए हुए के सामने भी यदि वह देखती हो, तो आप मुझे मार देना । बाघ- अरे गीदड़ ! यदि तू मुझे छोड़कर चला जाता है तो शर्त भी बेशर्त हो जाएगी ।

English translation:- Tiger go jackal! You also go to some secret place because ‘Baghmari’, which is mentioned in the scriptures, was about to kill me, but quickly ran away from her with her life in hand. Jackal – Hey tiger! You told a very surprising thing that you are afraid of humans too. Tiger- In front of me I have seen him slapping his two sons ‘for fighting to eat me one by one’. Jackal – Master! (We) should go to the place where the clever one is sitting. Oh tiger Then if she sees even in front of you who have gone there, then you kill me. Tiger – Hey jackal! If you leave me and go away, the condition will also become unconditional.

जम्बुकः यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम् । स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ । शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्रं दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम् ? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गुल्या तर्जयन्त्युवाच रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा । विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना ।। इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा । ‘व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्ध शृगालकः ।। एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत् । अत एव उच्यते बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

हिन्दी – अनुवाद:- गीदड़ – यदि ऐसा है तो मुझे अपनी गर्दन (गले) में बाँधकर-जल्दी भाग चलो । वह बाघ उसी प्रकार कुरके वन को चला गया । गीदड़ सहित फिर आते हुए बाघ को दूर से देखकर बुद्धिमती सोचने लगी- “गीदड़ द्वारा उत्साहित किए गए बाघ से कैसे बचा जाए ?” परन्तु प्रत्युत्पन्नमति (व्याघ्रमारी) गीदड़ को झिड़कती हुई (भर्त्सना करती हुई) अँगुली से डाँटती (धमकाती) हुई बोली अरे अरे वञ्चक ! (छलिया) पहले तुमने मेरे लिए तीन बाघ (लाकर) दिए थे (परन्तु) विश्वास देकर आज एक ही लाकर क्यों जा रहे हो, अब बोलो ?

ऐसा कहकर वह भयङ्कर व्याघ्रमारी दौड़ी । गले में जिसके गीदड़ बँधा हुआ है ऐसा वह बाघ भी अचानक (वहाँ से) भाग गया । इस प्रकार बुद्धिमती बाघ के भय से फिर भी मुक्त हो गई (बच गई ।) इसलिए कहा जाता है हे पतली कमर वाली (हे मैना!) सभी कार्यों में हमेशा बुद्धि ही बल से अधिक बलवान् होती है ।

English Translation:- Jackal – If it is so, tie me around your neck – run away quickly. That tiger went to Kurke forest in the same way. Seeing the tiger coming again with the jackal from a distance, Buddhimati started thinking – “How to avoid the tiger excited by the jackal?” But Pratyutpannamati (Vyaghramari) reprimanded (reprimanding) the jackal and scolded (threatened) with her finger and said, Oh, you cheater! (Chhaliya) Earlier you had given me three tigers (by bringing) (but) why are you going by bringing only one today, now tell?

Having said this, the fierce tiger ran away. The tiger which has a jackal tied around its neck, also suddenly ran away (from there). In this way, Buddhimati was still free from the fear of the tiger (survived.) That is why it is said, O thin-waisted (O Myna!) Wisdom is always stronger than strength in all actions.

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Ncert Class 10 Sanskrit Chapter 2 Questions and Answer

प्रश्न । एकपदेन उत्तर लिखत

(क) बुद्धिमती कुत्र व्याघ्रं ददर्श ?

(ख) भामिनी कया मुक्ता ?

(ग) सर्वदा सर्वकार्येषु का बलवती ?

(घ) व्याघ्र कस्मात् बिभेति ?

(ङ) प्रत्युत्पन्नमति बुद्धिमती किमाक्षिपन्ती उवाच ?

उत्तरम् – (क) गहन कानने, (ख) निजबुद्या, (ग) बुद्धि:, (घ) व्याघ्रमारीतः, (ङ) जम्बुकम् ।

प्रश्न 2. अधोलिखिताना प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत 

(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुर्गृह प्रति चलिता ?

उत्तरम् – बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता ।

(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायितः ?

उत्तरम् – व्याघ्रमारी काचिद् इयम् इति विचार्य व्याघ्रः पलायितः ।

(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते ?

उत्तरम् – बुद्धिमान् लोके महतो भयात् मुच्यते ।

(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति ?

उत्तरम् -‘ भवान् कुतः भयात् पलायितः ?’ इति वदन् जम्बुकः व्याघ्रस्य उपहासं करोति ।

(ङ) बुद्धिमती श्रृंगाल किमुक्तवती ?

उत्तरम् – रे रे धूर्त ! त्वया मह्यं पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम् । विश्वास्य (अपि) अद्य एकम् एव आनीय कथं यासि, वद इदानीम् । इति उक्तवती ।

प्रश्न 3. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माण कुरुत

(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।

(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहतवती ।

(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्।

(घ) त्वं मानुषात् बिभेति ।

(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम् ।

उत्तरम् – (क) तत्र किम् नाम राजपुत्रः वसति स्म ? 

(ख) बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहतवती ? 

(ग) कं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत् ? 

(घ) त्वं कस्मात् बिभेषि ? 

(ङ) पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रयं दत्तम् ?

प्रश्न 4 अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमेण योजयत

(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः ।

(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच ।

(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत् ।

(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत् । 

(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच- अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत ।

(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता ।

(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान् ।

(ज) गलबद्ध शृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः ।

उत्तरम् – (च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता।

(घ) मार्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत् । 

(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच- अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यत। 

(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः । 

(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।

(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा श्रृंगालं आक्षिपन्ती उवाच। 

(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनयितुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान् । 

(ज) गलबद्ध शृगालकः व्याघ्रः पुनः पलायितः ।

प्रश्न 5 सन्धि / सन्धिविच्छेदं वा कुरुत

(क) पितुर्गृहम् =……..+…………

(ख) एकैक:=…………+………..

(ग) • अन्यः + अपि=…………….

(घ) इति + उक्त्वा =…………

उत्तरम् – (क) पितुः + गृहम् (ख) एक + एक: (ग) अन्योऽपि (घ) इत्युक्त्वा (ङ) यत्रास्ते ।

प्रश्न 6. अधोलिखिताना पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत

(क) ददर्श – (दर्शितवान् दृष्टवान्)

(ख) जगाद – (अकथयत्, अगच्छत्)

(ग) ययौ – ( याचितवान्, गतवान्)

(घ) अत्तुम् – (खादितम्, आविष्कर्तुम्)

(ङ) मुच्यते – (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)

(च) ईक्षते – (पश्यति, इच्छति)

उत्तरम् – (क) ददर्श दृष्टवान् (ख) जगाद – अकथयत् (ग) ययौ गतवान् (घ) अत्तुम् – खादितुम् (ङ) मुच्यते मुक्तो भवति (च) ईक्षते पश्यति।

प्रश्न 7. (अ) पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत

(क) वनम् (ख) शृगालः (ग) शीघ्रम् (घ) पत्नी (ङ) गच्छसि ।

उत्तरम् – (क) काननम् (ख) जम्बुकः (ग) सत्वरम् (घ) भार्या (ङ) यासि

(आ) पाठात् चित्वा विपरीतार्थक पदं लिखत

(क) प्रथमः (ख) उक्त्वा (ग) अधुना (घ) अवेला

(ङ) बुद्धिहीना

उत्तराणि – (क) द्वितीयः (ख) श्रुत्वा (ग) तदा (घ) वेला (ङ) बुद्धिमती

परियोजनाकार्यम

बुद्धिमत्याः स्थाने आत्मानं परिकल्प्य तद्भावनां स्वभाषया लिखत ।

उत्तरम् – बुद्धिमती के स्थान पर यदि मैं होता तो चलते समय आगामी संभावनीय स्थिति को देखते हुए अपनी सुरक्षा के लिए कोई-न-कोई हथियार लेकर चलता/चलती तथा वन के खतरे पर विचार करके हर स्थिति से निपटने के लिये तैयार होकर जाता जाती । इसमें कोई शक नहीं कि बुद्धि अधिक बलवती होती है परन्तु बुद्धि शरीर में रहती है और उसकी रक्षा के लिए कोई शस्त्र आवश्यक है। विवेक के रक्षार्थ वीरता की भी आवश्यकता होती है .

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