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Reading: Class 10 Sanskrit Chapter 6 सौहार्द प्रकृते: शोभा Hindi Translation
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Class 10 Sanskrit Chapter 6 सौहार्द प्रकृते: शोभा Hindi Translation

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NCERT Solutions Class 10 Sanskrit Chapter 6 सौहार्द प्रकृते: शोभा Hindi & English Translation

सौहार्द प्रकृते: शोभा

सौहार्द प्रकृते: शोभा पाठ- परिचय -यह पाठ परस्पर स्नेह एवं मैत्री भाव से पूर्ण व्यवहार हो, इसका बोध कराता है। अब हम देख रहे हैं कि समाज में लोग आत्माभिमानी हो गये, वे आपस में तिरस्कार करते हैं। स्वार्थपूर्ति में लगे हुए वे दूसरों के कल्याण के विषय में कुछ भी नहीं सोचते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य अब यह हो गया है- नीच, उच्च और अति नीच उपायों से फल ही सिद्ध होना चाहिए।

Contents
NCERT Solutions Class 10 Sanskrit Chapter 6 सौहार्द प्रकृते: शोभा Hindi & English Translation शौहार्द प्रकृते: शोभा Chapter 6 Class 10 Questions Answers NCERT 10 SANSKRIT CHAPTER 7 सौहार्द प्रकृते शोभा Hindi Translation

अतः समाज में आपस में स्नेह की वृद्धि के लिए इस पाठ में पशु-पक्षियों के माध्यम से समाज में व्यवहार किया हुआ, आत्मसम्मान दिखाते हुये प्रकृति माता के माध्यम से अन्त में निष्कर्ष स्थापित किया कि समय पर सभी का महत्व होता है, सभी एक-दूसरे पर आश्रित है अतः हमें अपने कल्याण के लिए आपस में प्रेम और मैत्रीपूर्ण व्यवहार से रहना चाहिए।

वनस्य दृश्यं समीपे एवैका नदी वहति । एकः सिंहः विश्राम्यते तदैव एकः वानरः आगत्य तस्य पुच्छं धुनाति । क्रुद्धः सिंहः तं प्रहर्तुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा वृक्षमारूढः तदैव अन्यस्मात् वृक्षात् अपरः वानरः सिंहस्य कर्णमाकृष्य पुनः वृक्षोपरि आरोहति।

हिन्दी अनुवाद:- जंगल का दृश्य है। पास में ही एक नदी बह रही है। एक शेर आराम से विश्राम कर रहा है। तभी एक वानर आकर उसकी पूँछ हिलाता (मरोड़ता) है। नाराज हुआ शेर उस पर प्रहार करना चाहता है परन्तु बन्दर तो उछलकर पेड़ पर चढ़ जाता है। तभी दूसरे पेड़ से दूसरा बन्दर सिंह के कान को खींचकर वृक्ष पर चढ़ जाता है।

एवमेव वानराः वारं वारं सिंहं तुदन्ति क्रुद्धः सिंहः इतस्ततः घावति, गर्जति परं किमपि कर्तुमसमर्थः एव तिष्ठति । वानराः हसन्ति वृक्षोपरि च विविधाः पक्षिणः अपि सिंहस्य एतादृशी दशां दृष्ट्वा हर्षमिश्रितं कलरवं कुर्वन्ति ।

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च– यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी’ के ‘सौहार्द प्रकृतेः शोभा’ पाठ से लिया गया है। इस गद्यांश में सिंह के साथ बन्दरों की क्रीड़ा का वर्णन है।

हिन्दी अनुवाद:- इस प्रकार बन्दर बार-बार सिंह को परेशान करते हैं। नाराज हुआ सिंह इधर-उधर दौड़ता है, दहाड़ता है। परन्तु कुछ भी करने में असमर्थ है। वानर हँसते हैं और वृक्ष के ऊपर विविध प्रकार के पक्षी भी सिंह की ऐसी स्थिति देखकर प्रसन्नता से मिला कलरव करते हैं।

निद्राभङ्गदुःखेन वनराजः सन्नपि तुच्छजीवैः आत्मनः एतादृश्या दुरवस्थया श्रान्तः सर्वजन्तून् दृष्ट्वा पृच्छति- सिंहः – (क्रोधेन गर्जन्) भोः ! अहं वनराजः किं भयं न जायते ? किमर्थं मामेवं तुदन्ति सर्वे मिलित्वा ?

एकः वानरः – यतः त्वं वनराजः भवितुं तु सर्वयाऽयोग्यः ।

राजा तु रक्षकः भवति परं भवान् तु भक्षकः । अपि च स्वरक्षायामपि समर्थः नासि तर्हि कथमस्मान् रक्षिष्यसि ? 

अन्यः वानरः किं न श्रुता त्वया पञ्चतन्त्रोक्तिः- यो न रक्षति वित्रस्तान् पीड्यमानान्परैः सदा जन्तून् पार्थिवरूपेण स कृतान्तो न संशयः ।।

हिन्दी अनुवाद नींद टूटने के दुःख से धन का राजा होते हुए भी तुच्छ जीवों द्वारा स्वयं को दुर्दशा से थका हुआ, सभी जन्तुओं को देखकर पूछता है।

सिंह (क्रोध से दहाड़ता हुआ) अरे मैं वन का राजा हूँ, तुम्हें डर नहीं लगता। तुम किसलिए मुझे इस प्रकार सब मिलकर परेशान कर रहे हो ?

एक वानर-क्योंकि तुम वनराज होने के पूर्णतः अयोग्य हो। राजा तो रक्षक होता है परन्तु आप तो भक्षक हैं और तो और अपनी रक्षा करने में भी समर्थ नहीं हो तो हमारी रक्षा कैसे करेंगे?

अन्य वानर-क्या तुमने पंचतंत्र का कथन नहीं सुना जो विशेष रूप से डरे हुओं और पीड़ित होते हुए दूसरे प्राणियों की रक्षा नहीं करता, वह निःसंदेह राजा के रूप में यमराज है।

काक:आम् सत्यं कथितं त्वया-वस्तुतः वनराजःभवितुं तु अहमेव योग्यः ।

पिक:-(उपहसन्) कथं त्वं योग्यः वनराजः भवितुं, यत्र तत्र का का इति कर्कशध्वनिना वातावरण- माकुलीकरोषि । न रूपम्, न ध्वनिरस्ति कृष्णवर्णम् मेध्यामेध्यभक्षकं त्वां कथं वनराजं मन्यामहे वयम् ?

अरे! अरे ! किं जल्पसि ? यदि अहं कृष्णवर्णः तर्हि त्वं किं गौराङ्गः ? अपि च विस्मर्यते किं यत् मम सत्यप्रियता तु जनानां कृते उदाहरणस्वरूपा – ‘अनृतं वदसि चेत् काकः दशेत्-इति प्रकारेण अस्माकं परिश्रमः ऐक्यं च विश्वप्रथितम् । अपि च विद्यार्थी एव आदर्शच्छात्रः मन्यते ।

हिन्दी अनुवाद:- काक-हाँ, सत्य कहते हो तुम – वास्तव में वनराज होने के लिए तो मैं ही योग्य हूँ।

पिक – (उपहास करते हुए) तू वनराज होने योग्य कैसे है? जहाँ-तहाँ काँव-काँव की कर्कश ध्वनि से वातावरण को व्याकुल या बेचैन करते हो। न रूप है न ध्वनि है। काले रंग के, शुद्ध-अशुद्ध को खाने वाले तुमको हम वनराज मानें।

काक-अरे रे, तू क्यों बकवास करता है? यदि मैं काला हूँ तो तू कौन-सा गोरा है? क्या तुम लोगों के लिए मेरी सत्य- प्रियता को भूल रहे होंगे। उदाहरण के रूप में है- झूठ बोले कौवा खाये इस प्रकार से । हमारा परिश्रम और एकता विश्व प्रसिद्ध है। और भी काक जैसी चेष्टा वाला विद्यार्थी ही आदर्श छात्र माना जाता है।

पिक:-अलम् अलम् अतिविकत्थनेन । किं विस्मर्यते यत् – काकः कृष्णः पिकः कृष्णः को भेदः पिककाकयोः । वसन्तसमये प्राप्ते काकः पिकः पिकः ।।

काक:-मेरे परभृत! अहं यदि तव संततिं न पालयामि तर्हि कुत्र स्युः पिकाः ? अतः अहम् एव करुणापरः पक्षिसम्राट् काकः ।

गज:-समीपतः एवागच्छन् अरे! अरे! सर्वं सम्भाषणं शृण्वन्नेवाहम् अत्रागच्छम् । अहं विशालकायः, बलशाली, पराक्रमी च सिंहः वा स्यात् अथवा अन्यः कोऽपि, वन्यपशून् तु तुदन्तं जन्तुमहं स्वशुण्डेन पोथयित्वा मारयिष्यामि । किमन्यः एतादृशः पराक्रमी । अतः अहमेव योग्यः वनराजपदाय ।

हिन्दी अनुवाद:– पिक:-बस-बस अधिक आत्म-सराहना की आवश्यकता नहीं। क्या भूल रहे हो कि कौवा काला और कोयल भी काली, कौवे और कोयल में क्या अन्तर है। बसन्त का समय आने पर कौवा कौवा होता है और कोयल कोयल ।

काक-अरे! दूसरों द्वारा पाली हुई, यदि मैं तुम्हारी सन्तान को नहीं पालूँ तो कोयल कहाँ दोगे ? अतः मैं कौवा ही करुणामय खग सम्राट हूँ। हाथी- (पास से आता हुआ) अरे-अरे! सारा संवाद सुनता हुआ ही मैं यहाँ आया हूँ। मैं विशाल शरीरवाला, शक्तिशाली और पराक्रमी हूँ। चाहे सिंह हो अथवा कोई और हो, वन्य पशुओं को तंग करने वाले प्राणी को मैं सूँड़ से पीड़ित करके मार डालूँगा। क्या अन्य कोई भी ऐसा पराक्रमी है। अतः मैं ही वन के राजा के योग्य हूँ।

 वानरः अरे! अरे ! एवं वा (शीघ्रमेव गजस्यापि पुच्छं विधूय वृक्षोपरि आरोहति )

(गजः तं वृक्षमेव स्वशुण्डेन आलोडयितुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा अन्यं वृक्षमारोहति । एवं गजं वृक्षात् वृक्षं प्रति धावन्तः दृष्ट्वा सिंहः अपि हसति वदति च ।)

सिंहः -भोः गजः मामप्येवमेवातुदन् एते वानराः ।

वानरः-एतस्मादेव तु कथयामि यदहमेव योग्यः वनराजपदाय येन विशालकायं पराक्रमिणं, भयंकरं चापि सिंह गजं व पराजेतुं अस्माकं जातिः । अतः वन्यजन्तूनां रक्षायै वयमेव क्षमाः ।(एतत्सर्वं श्रुत्वा नदीमध्यस्थितः एकः बकः)

हिन्दी अनुवाद:– मयूर – क्योंकि मेरा नृत्य तो प्रकृति की मेहरबानी है। देखो-देखो, मेरे पंखों का अपूर्व सौन्दर्य (पूँछ को उठाकर नृत्य की मुद्रा में स्थित होकर) तीनों लोकों में कोई भी मेरे समान सुन्दर नहीं है। वन्य पशुओं पर आक्रमण करने वाले को तो मैं अपने सौन्दर्य और नृत्य से आकर्षित करके जंगल से बहिष्कार कर दूँगा। अतः मैं ही वनराज पद के योग्य हूँ। (इस समय बाघ और चीता भी नदी का जल पान करने के लिये आ गये, इस प्रकार के विवाद को सुनते हैं और कहते हैं)

बाघ और चीता अरे क्या वनराज पद के लिये सुपात्र चुना जा रहा है ? इसके लिए तो हम दोनों

सिंहःतूष्णीं भव भोः। युवामपि मत्सदृशौ भक्षक न तु रक्षकौ । एते वन्यजीवाः भक्षकं रक्षकपदयोग्यं न मयन्ते अतएव विचारविमर्शः प्रचलित ।

बकः– सर्वथा सम्यगुक्तम् सिंहमहोदयेन वस्तुतः एव सिंहेन बहुकालपर्यन्तं शासनं कृतम् परमधुना तु कोऽपि पक्षी एव राजेति निश्चेतव्यम् अत्र तु संशीतिलेशस्यापि अवकाशः एव नास्ति । 

सर्वे पक्षिणः (उच्चैः) – आम् आम् – कश्चित् खगः एव वनराजः भविष्यति इति

हिन्दी अनुवाद:- सिंह– अरे चुप हो जाओ। तुम भी मेरे समान ही भक्षक हो न कि रक्षक। ये जंगली जीव भक्षक को रक्षक पद के योग्य नहीं मानते। अतः विचार-विमर्श चल रहा है।

वक:- सिंह महोदय ने सर्वथा उचित ही कहा है। वास्तव में सिंह ने बहुत समय तक शासन किया है परन्तु अब तो कोई भी पक्षी राजा नियुक्त किया जाना चाहिए। इसमें कोई सन्देह नहीं है। सभी पक्षी (जोर से) हाँ हाँ कोई पक्षी ही वनराज होगा।

(परं कश्चिदपि खगः आत्मानं विना नान्यं कमपि अस्मै पदाय योग्यं चिन्तयति तर्हि कथं निर्णयः भवेत् तदा तैः सर्वैः गहननिद्रायां निश्चिन्तं स्वपन्तम् उलूकं वीक्ष्य विचारितम् यदेषः आत्मश्लाघाहीनः पदनिर्लिप्तः उलूको एवास्माकं राजा भविष्यति । परस्परमादिशन्ति च तदानीयन्तां नृपाभिषेकसम्बन्धिनः सम्भाराः इति ।)

सर्वे पक्षिणः सज्जायैः गन्तुमिच्छन्ति तर्हि अनायास एव- (अट्टहासपूर्णेन-स्वरेण) सर्वथा अयुक्तमेतत् यन्मयूर – हंस – कोकिल-चक्रवाक-शुक- सारसादिषु पक्षिप्रधानेषु विद्यमानेषु दिवान्धस्यास्य करालवक्त्रस्याभिषेकार्यं सर्वे सज्जाः। पूर्णं दिनं यावत् निद्रायमाणः एषः कथमस्मान् रक्षिष्यति । वस्तुतस्तु- स्वभावरौद्रमत्युग्रं क्रूरमप्रियवादिनम् । उलूकं नृपतिं कृत्वा का नु सिद्धिर्भवष्यिति ।। (ततः प्रविशति प्रकृतिमाता)

सन्दर्भ-प्रसङ्गश्च – यह नाट्यांश हमारी शेमुषी पाठ्य-पुस्तक के ‘सौहार्दं प्रकृतेः शोभा’ पाठ से उद्धृत है। इस नाट्यांश में सभी पक्षी मिलकर आत्मश्लाघा रहित तथा पद लोलुप न होने कारण उल्लू को राजा नियुक्त करना चाहते हैं परन्तु कौवा इसका विरोध कर देता है।

हिन्दी अनुवाद:- परन्तु कोई भी पक्षी अपने अलावा अन्य किसी को इस पद के लिए नहीं सोचता तो निर्णय कैसे हो ? तब उन सभी ने गहरी नींद में निश्चित सोते हुए उल्लू को देखकर विचारने लगे कि यह आत्म प्रशंसा रहित तथा पद से निर्लिप्त उल्लू ही हमारा राजा होगा । आपस में आदेश देने लगे तो राज्याभिषेक की सामग्री लाई जाये।

सभी पक्षी तैयारी के लिए जाना चाहते हैं तब अनायास ही काक ने अट्टहासपूर्ण स्वर से कहा- यह पूरी तरह अनुचित है, क्योंकि मोर, हंस, कोयल, चकवा, तोता, मैना आदि पक्षियों के होते हुये भी दिन में अंधे, भयंकर मुख वाले को अभिषेक करने के लिए सभी तैयार हो। पूरे दिन तक सोता हुआ यह हमारी रक्षा कैसे करेगा। वास्तव में तो स्वभाव से क्रोधी, बहुत उग्र, कुटिल तथा कटुवादी उल्लू को राजा बनाकर तुम्हारी कौन-सी सिद्धि होगी। (तब प्रकृति माता प्रवेश करती है।)

प्रकृतिमाता – ( सस्नेहम्) भोः भोः प्राणिनः । यूयम् सर्वे एव मे सन्ततिः कथं मिथः कलहं कुर्वन्ति । वस्तुतः सर्वे

वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः सदैव स्मरत- ददाति प्रतिगृणाति, गुह्यमाख्याति पृच्छति भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्-विधं प्रीतिलक्षणम् ।।

(सर्वे प्राणिनः समवेतस्वरेण) मातः ! कथयति तु भवन्ती सर्वथा सम्यक् परं वयं भवतीं न जानीमः । भवत्याः परिचयः कः ?

हिन्दी अनुवाद:- प्रकृतिमाता- (स्नेह के साथ) अरे अरे प्राणियो !तुम सब ही मेरी सन्तान हो, क्यों आपस में कलह कर रहे हो। वास्तव में सभी वन्य जीव एक दूसरे पर आधारित हैं। सदैव याद रखो देता है, लेता है, गोपनीय को कहता है, पूछता है, खाता है, खिलाता है, ये छ: प्रकार के प्रीति के लक्षण हैं। (सभी प्राणी समवेत स्वर में) हे माँ! आप पूर्णत उचित ही कहती हैं परन्तु हम आपको जानते नहीं है, आपका परिचय क्या है ?

प्रकृतिमाता – अहं प्रकृतिः युष्माकं सर्वेषां जननी ? यूयं सर्वे एव मे प्रियाः । सर्वेषामेव मत्कृते महत्त्वं विद्यते यथासमयम् न तावत् कलहेन समयं वृथा यापयन्तु अपितु मिलित्वा एव मोदध्वं जीवनं च रसमयं कुरुध्वम् । तद्यथा कथितम्- प्रजासुखे सुखं राज्ञः, प्रजानां च हिते हितम् । नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम् । ।

हिन्दी अनुवादः – प्रकृतिमाता- मैं प्रकृति तुम्हारी सभी की जन्मदात्री हूँ। तुम सब ही मेरे प्रिय हो। यथासमय तुम सभी को मेरे प्रति महत्व है तो कलह से व्यर्थ समय मत गँवाओ, अपितु मिलकर के ही प्रसन्न रहो और जीवन को रसमय करो। तो जैसा कहा गया है-प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है, प्रजा के हित में ही राजा का हित है। राजा का हित आत्मप्रिय नहीं होता अपितु प्रजा का हित ही प्रिय होता है।

अपि च -अगाधजलसञ्चारी न गर्वं याति रोहितः । अङ्गुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुर्फुरायते ।। अतः भवन्तः सर्वेऽपि शफरीवत् एकैकस्य गुणस्य चर्चा विहाय’ – मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय वनरक्षायै च प्रयतन्ताम् । सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति मिलित्वा दृढ़संकल्पपूर्वकं च गायन्ति-प्राणिनां जायते हानिः परस्परविवादतः ।

अन्योन्यसहयोगेन लाभस्तेषां प्रजायते ।।

हिन्दी अनुवाद:- और भी अगाध जल में विचरण करने वाली रोहित मछली तो गर्व नहीं करती है (परन्तु) मात्र अँगूठे के बराबर गहरे पानी में शफरी मछली (घमण्ड से) फरफराती है। अतः आप सभी शफरी की तरह से एक-एक गुण की चर्चा त्यागकर मिल करके प्रकृति सौन्दर्य के लिए और वन की रक्षा के लिए प्रयत्न करो।

सभी प्रकृति माता को प्रणाम करते हैं, मिलकर पूर्ण (दृढ़ संकल्पपूर्वक गाते हैं-आपस में विवाद करने से प्राणियों की हानि होती है तथा एक-दूसरे के सहयोग से उनका लाभ होता है।

Saohaard Prakrte Shobha

शौहार्द प्रकृते: शोभा Chapter 6 Class 10 Questions Answers

प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत.

(क) वनराजः कै दुरवस्थां प्राप्तः ?

उत्तर वानरै:।

(ख) कः वातावरणं कर्कश ध्वनिना आकुली करोति ?

उत्तर काकः।

(ग) काकचेष्टः विद्यार्थी कीदृशः छात्रः मन्यते

उत्तर आदर्श छात्र:।

(घ) कः आत्मानं बलशाली, विशालकायः पराक्रमी च कथयति ?

उत्तर गज:।

(ङ) वकः कीदृशान् मीनान् क्रूरतया भक्षयति ?

उत्तर वराकान्

प्रश्न 2. अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत ।

(क) निःसंशय कः क्रूतान्त मन्यते ?

उत्तरम् – यः नृपः वित्रस्तान् पीड्यमानान् जन्तूनं परैः न रक्षति सः निःसंशयः पार्थिव रूपेण कृतान्त |

(ख) वकः वन्यः जन्तूनां रक्षोपायाम् कथं चिन्तयितुं कथयति ? 

उत्तरम् – अहं तु शीतले जलं बहुकालपर्यन्तम् अविचलः ध्यानमग्न स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां रक्षायाः उपायान् चिन्तमिष्यामि ।

(ग) अन्ते प्रकृति माता प्रविश्य सर्वप्रथमं किं वदति ?

उत्तरम् – भो भोः प्राणिनः यूयं सर्वे एव मे सन्ततिः कथं मिथः एव कलहं कुर्वन्ति । वस्तुतः सर्वे वन्यजीविनः अन्योन्याश्रिताः ।

(घ) यदि राजा सम्यक् न भवति तदा प्रजा कथं विप्लवेत् ?

उत्तरम् – यदि राजा सम्यक् न भवति तदा प्रजा-जलधौ अकर्णधारा नौरिव विप्लवेत्

(ङ) मयूरः कथं नृत्य मुद्रायां स्थितः भवति ?

उत्तरम् – मयूरः पिच्छान् उद्घाट्य नृत्य मुद्रायां स्थितः भवति ।

(च) ‘अन्ते सर्वे मिलित्वा’ कस्य राज्याभिषेकस्य तत्पराः भवन्ति ? 

उत्तरम् – अन्ते सर्वे मिलित्वा उलूकस्य राज्याभिषेकाय तत्पराः भवन्ति ।

(छ) अस्मिन्नाटके कति पात्राणि सन्ति?

उत्तरम् – अस्मिन्नाटके द्वादश पात्राणि सन्ति ।

प्रश्न 3. रेखाङ्कित पदमाधृत्य प्रश्न कुरुत 

(क) सिंहः वानराभ्यां स्वरक्षायाम् असमर्थः एव आसीत् ।

उत्तर सिंह वानराभ्यां कस्याम् असमर्थः एवासीत् ?

(ख) गजः पशून् तुदन्तं शुण्डेन पोथयित्वा मारयति । 

उत्तर गजः पशून् तुदन्तं केन पोथयित्वा मारयति ?

(ग) वानरः आत्मानं वनराजपदाय योग्यः मन्यते।

उत्तर वानरः आत्मानं कस्मै योग्यः मन्यते ?

(घ) मयूरस्य नृत्यं प्रकृतेः आराधना ।

उत्तर मयूरस्य नृत्यम् कस्याः आराधना ?

(ङ) सर्वे प्रकृति मातरम् प्रणमन्ति ।

उत्तर सर्वे काम् प्रणमन्ति ?

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NCERT 10 SANSKRIT CHAPTER 7 सौहार्द प्रकृते शोभा Hindi Translation

प्रश्न 4. शुद्ध कथनानां समक्षम् (आम्) अशुद्ध कथनानां च समक्षं (न) इति लिखत-

उत्तरम् – (क) सिंह: आत्मानं तुदन्तं वानरं मारयति । (न)

(ख) का का इति वकस्य ध्वनिः भवति (न)

(ग) काकपिकयोः वर्णः कृष्णः भवति । (आम्)

(घ) गज: लघुकाय निर्बलश्च भवति । (न)

(ङ) मयूरः वक्रस्य कारणात् पक्षिकुलम् अवमानितं मन्यते । (आम्)

(च) अन्योन्य सहयोगेन प्राणिनां लाभः जायते । (आम्)

प्रश्न 5. मञ्जूषातः समुचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत- { स्थितप्रज्ञ, यथासमयम्, मेध्यामेध्य भक्षकः, अहिभुक्, आत्मश्लाघाहीनः, पिक: }

(क) काकः………भवति

(ख)……….परभृत् अपि कथ्यते ।

(ग) वकः अविचलं ……..इव तिष्ठति ।

(घ) मयूरः ………..इति नाम्नाऽपि ज्ञायते ।

(ङ) उलूकः ………… पदनिर्लिप्त चासीत् ।

(च) सर्वेषामेव महत्वं विद्यते ………….. ।

उत्तरम् – (क) मेध्यामेध्य भक्षकः (ख) पिकः (ग) स्थितप्रज्ञः (घ) अहिभुक् (ङ) आत्मश्लाघाहीनः (च) यथासमयम्

प्रश्न 6. वाच्य परिवर्तनं कृत्वा लिखत-

(क) त्वया सत्यं कथितम् ।

उत्तर त्व सत्यं अकथयः ।

(ख) सिंहः सर्वजन्तून् पृच्छति ।

उत्तर सिंहेन सर्वजन्तवः पृच्छ्यन्ते।

(ग) काकः पिकस्य सन्तति पालयति ।

उत्तर काकेन पिकस्य सन्ततिः पाल्यते ।

(घ) मयूर: विधात्रा एव पक्षिराज: वनराजः वा कृतः ।

उत्तर मयूरं विधाता एव पक्षिराजं वनराजं वा कृतवान् ।

(ङ) सर्वेः खगैः कोऽसि खगः एव वनराजः कर्त्तुमिष्यते स्म ।

उत्तर सर्वे खगाः कमपि खगं एव वनराजं कर्त्तुम् इच्छन्ति स्म ।

(च) सर्वे मिलित्वा प्रकृति सौन्दर्याय प्रयत्नं कुर्वन्तु ।

उत्तर सर्वैः मिलित्वा प्रकृति सौन्दर्याय प्रयत्नः कर्त्तव्य ।

प्रश्न 7.समास विग्रहं समस्तपदं वा लिखत-

(क) तुच्छ जीवै ……..। 

(ख) वृक्षोपरि ……….. |

(ग) पक्षिणां सम्राट…..।

(घ) स्थिता प्रज्ञा यस्य सः…… ।

(ङ) अपूर्वम्…………. ।

(च) व्याघ्रचित्रकौ………..।

उत्तरम् –

(क) तुच्छः च असौ जीव तैः च

(ख) वृक्षस्य उपरि

(ग) पक्षिसम्राट्

(घ) स्थित प्रज्ञा:

(ङ) न पूर्वम्

(च) व्याघ्रः च चित्रकः च

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 8 विचित्र: साक्षी

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