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Sanskrit Dhara Vahini > Class 12 > Class 12 Hindi vyaakaran > शब्द शक्ति परिभाषा, अर्थ, प्रकार | Shabd Shakti
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शब्द शक्ति परिभाषा, अर्थ, प्रकार | Shabd Shakti

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Rbse Class 12 Hindi Vyakaran shabd shakti

Shabd Shakti

Contents
Rbse Class 12 Hindi Vyakaran shabd shakti Rbse Class 12 Hindi Aniwaray Vyakaran शब्द-शक्तिShabd Shakti शब्दशक्ति-परिभाषा,अर्थ, प्रकार, उदाहरण, महत्वपूर्ण प्रश्न

शब्द शक्ति की परिभाषा 

शब्द के अर्थ को जिस माध्यम से ग्रहण किया जाता है, वह माध्यम शब्द-शक्ति कहलाता है । भारतीय काव्यशास्त्र के प्रकांड विद्वान् मम्मट ने अपनी पुस्तक ‘काव्यप्रकाश’ में तीन प्रकार के शब्द और तीन प्रकार के अर्थ का निर्देश किया है। उन्होंने वाच्य, लक्ष्य और व्यंग्य तीन प्रकार के अर्थ माने हैं। शब्द के उपर्युक्त विभाजन को हम इस प्रकार समझ सकते हैं-

(1) वाचक शब्द (वाच्य अर्थ)- वक्ता द्वारा बोले गये वाक्य का सीधा अर्थ ग्रहण करना । जैसे-4 राजस्थानी हूँ।’ इसमें वक्ता के इस वाक्य का सीधा (वाय) अर्थ होगा कि वह राजस्थान का रहने वाला है।

(2) लक्षक शब्द (लक्ष्य अर्थ)- जहाँ वक्ता द्वारा बोले गये शब्द का लक्षणों के आधार अर्थ ग्रहण किया जाए।जैसे- मैं राजस्थानी हूँ। इस वाक्य में यदि ‘राजस्थानी’ को राजस्थान की संस्कृति का द्योतक माना जाय तो यह शब्द होगा और राजस्थानी संस्कृति इसका लक्ष्यार्थ होगा ।

(3) व्यंजक शब्द (व्यंग्य अर्थ)- जहाँ वक्ता का भाव लक्षणों द्वारा भी अभिव्यक्त नहीं हो पाता और अन्य अर्थ की कल्पना करनी होती है, यहाँ शब्द व्यंजक होता है जैसे (सावधान) मैं राजस्थानी हूँ।’ राजस्थानी’ शब्द का अभिप्रेत अर्थ लक्षणों से प्राप्त नहीं होता है, किन्तु इससे राजस्थान के वीरों को वीरता व्यंजित होती है अत: यह शब्द व्यंजक है और इसका व्यंग्य अर्थ है- ‘बोर पुरुष’।

Rbse Class 12 Hindi Aniwaray Vyakaran शब्द-शक्ति

शब्द के विभाजन के आधार पर शब्द की क्रमशः तीन शक्तियाँ मानी गई है। वे निम्नलिखित है-(1) अभिधा शक्ति (2) लक्षण शक्ति (3) व्यंजना शक्ति

अभिधा – शक्ति किसे कहते हैं-

बाच्यार्थ (मुख्यार्थ) का बोध कराने वाली शक्ति को अभिधा शक्ति कहा जाता है। अभिधा का संबंध शब्द का एक ही अर्थ ग्रहण करने से है।उदाहरण-(1) ‘किसान फसल काट रहा है।’ इस वाक्य में अभिधा शब्द-शक्ति के माध्यम से यही प्रकट होता है कि फसल किसान द्वारा काटी जा रही है ।(2) ‘बिल्ली भाग रही है।’ इस वाक्य में केवल बिल्ली का भागना ही प्रकट होता है अतः वाच्यार्थ का ही ग्रहण होने से अभिधा शब्द शक्ति प्रकट होती है ।(3) ‘जयपुर राजस्थान की राजधानी है।’ यहाँ भी वाच्यार्थ का सीधे ही अर्थ ग्रहण हो रहा है। अतः अभिधा शब्द शक्ति है ।

Shabd Shakti शब्दशक्ति-परिभाषा,अर्थ, प्रकार, उदाहरण, महत्वपूर्ण प्रश्न

लक्षणा – शक्ति किसे कहते हैं-

जब शब्द के वाच्यार्थ (मुख्यार्थ) का अतिक्रमण कर लक्षणों के आधार पर किसी दूसरे अर्थ को ग्रहण किया जाता है, तब उसे लक्ष्यार्थ कहते हैं। लक्ष्यार्थ का बोध कराने वाली शक्ति को लक्षणा-शक्ति कहा जाता है। जब वक्ता अपने वाक्य में मुख्यार्थ से हटकर कुछ अन्य अर्थ भरने की कोशिश करता है, तब लक्षणों के आधार पर अर्थ-ग्रहण किया जाता है। 

लक्षणा के भेद-

काव्यशास्त्र के आचार्यों ने लक्षणा के दो प्रमुख भेद माने हैं-(1) रूढ़ा लक्षणा-जब किसी काव्य-रूढ़ि (परम्परा) को आधार बनाकर लक्षणा-शक्ति का प्रयोग किया जाता है, तो वहाँ रूढ़ा लक्षणा मानी जाती है। जैसे-भारत जाग उठा इस वाक्य में 4 ‘भारत’ से वक्ता का तात्पर्य ‘भारत देश’ न होकर भारतवासी हैं। ‘भारत’ शब्द का भारतवासी अर्थ में प्रयोग कविगण तथा लेखक करते आ रहे हैं। इसी रूढ़ि को आधार बनाकर भारतवासियों के सचेत और जागरूक होने की बात कही गई। है । इसी प्रकार अन्य उदाहरण हैं-1. इंग्लैण्ड की चार विकेट से पराजय।2. भरत हंस रवि वंश तडागा।3. वहाँ लाठियाँ चल रही हैं।4. बड़े हरिश्चन्द्र बनते हो।5. कश्मीर रक्त में डूबा हुआ है।

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(2) प्रयोजनवती लक्षणा- जहाँ विशेष प्रयोजन से प्रेरित होकर शब्द का प्रयोग लक्ष्यार्थ में किया जाता है, तो वहाँ प्रयोजनवती लक्षणा मानी जाती है। जैसे- ‘तुम तो निरे गधे हो।’ इस वाक्य में ‘गधा’ शब्द का ‘मूर्ख’ के अर्थ में प्रयोग विशेष प्रयोजन से हुआ है। अतः यहाँ प्रयोजनवती लक्षणा है। इसी प्रकार अन्य उदाहरण है-1. आओ मेरे शेर।2. उसका मन पत्थर का बना है।3. हम तो गंगावासी है।4. यह ताजमहल कब तक पूरा होगा ?5. यह यमुना-पुत्र का नगर है।

व्यंजना-शक्ति किसे कहते हैं-

वाच्यार्थ (मुख्यार्थ) लक्ष्यार्थ (लक्ष्य) और संकेतित अर्थ के पश्चात् जब किसी विलक्षण अर्थ की प्रतीति होती है, उसे व्यंग्यार्थ (व्यंजनार्थ, ध्वन्यार्थ) कहते हैं। जिस शब्द शक्ति से व्यंग्यार्थ का बोध होता है, उसे व्यंजना शक्ति कहते हैं।जब यह कहा जाये, ‘क्यों क्या समय हुआ है ? ‘तो वक्ता का तात्पर्य न तो घड़ी का समय पूछना है और न समय का आभास देना है, अपितु उसका तात्पर्य है यह कोई समय है आने का ? यह अर्थ न मुख्यार्थ ग्रहण करने से प्राप्त होगा, न लक्ष्यार्थ से यही व्यंग्यार्थ है।

व्यंजना के भेद-

व्यंजना शक्ति के दो भेद होते हैं- शाब्दी व्यंजना व आर्थी व्यंजना । 

(1) शाब्दी व्यंजना– जहाँ व्यंग्यार्थ किसी विशेष शब्द के प्रयोग पर आश्रित रहता है, वहाँ शाब्दी व्यंजना होती है। इसका प्रयोग अनेकार्थवाची शब्दों के प्रयोग में होता है ।

(2) आर्थी व्यंजना- जहाँ व्यंग्यार्थ अर्थ पर ही आश्रित रहता है, वहाँ आर्थी व्यंजना होती है। उदाहरण-1. कुम्हार बोला, “बेटी, बादल हो रहे हैं”। उक्त वाक्य में भिन्न-भिन्न व्यंग्यार्थ निकल रहे हैं, जैसे-बर्तन अन्दर ले लो। मिट्टी गीली हो जायेगी । हमें बाहर नहीं जाना चाहिए।

2. उसने कहा, “संध्या हो गई ।”इसके कई व्यंग्यार्थ हैं, जैसे- गायों के आने का समय हो गया है। बत्ती जलाने का समय है। हमें मन्दिर चलना है । आदि।3. दस बज गए हैं।इस वाक्य के व्यंग्यार्थ हैं- विद्यालय की घंटी बजने वाली है । बस आने का समय हो गया है। पिताजी कार्यालय जाने वाले हैं। आदि।

अभिधा तथा लक्षणा से प्राप्त अर्थ में अन्तर

अभिधा शक्ति से शब्द का मुख्य या सामान्यतया प्रचलित अर्थ व्यक्त होता है। अभिधा से व्यक्त अर्थ को यथावत् ग्रहण किया जाता है । पाठक या श्रोता को अपनी कल्पना या अनुमान का प्रयोग नहीं करना पड़ता अभिधेयार्थ अपने आप में स्पष्ट और पूर्ण होता है, जबकि लक्षणा से प्राप्त होने वाले अर्थ को मुख्यार्थ से हटकर लक्षणों के आधार पर निश्चित किया जाता है। पाठक या श्रोता को प्रसंगानुसार अपनी कल्पना और तर्क शक्ति के उपयोग से अभीष्ट अर्थ तक पहुँचना होता है । इस प्रकार शब्द के मुख्य अर्थ से हटकर, लक्षणों के आश्रय से प्राप्त होने वाला भिन्न या नवीन अर्थ लक्षणा-शक्ति से ही व्यक्त होता है। जैसे (क) ढल रही है रात, आता है सवेरा ।

लक्षणा तथा व्यंजना शक्ति में अन्तर

मुख्य या प्रचलित अर्थ से हटकर जब अर्थ ग्रहण करना पड़ता है तो वहाँ लक्षणा शब्द-शक्ति कार्य करती है । जब ‘मुख्यार्थ और `लक्ष्यार्थ’ दोनों ही वक्ता के इच्छित अर्थ को प्रकट नहीं कर पाते, तो वहाँ प्रसंग के आधार पर अन्य अर्थ की कल्पना या अनुमान करना पड़ता है। इस प्रकार प्राप्त होने वाला अर्थ व्यंग्यार्थ होता है । यहाँ शब्द की व्यंजना शक्ति कार्य करती है। यथा-‘तन की अटरिया पै चढ़ि आई घाम’।

अभिधा तथा व्यंजना शक्ति में अन्तर

‘अभिधा’ शब्द की वह शक्ति मानी गई है, जिसके द्वारा शब्द का सामान्य प्रचलित अर्थ प्रकट होता है । जैसे- रमेश पुस्तक पढ़ रहा है यहाँ प्रत्येक शब्द का मुख्य अर्थ ही प्रकट होता है जैसे- मुर्गा बोल रहा है । इसका व्यंग्यार्थ यह है कि सवेरा हो गया, अब जाग जाओ। अर्थात् इसमें सामान्य अर्थ ग्रहण करने पर भाव प्रकट नहीं। होता है ।

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