Alankar ki Paribhasha | अलंकार
Alankar :- अलंकार का अर्थ – अलंकार शब्द का सामान्य अर्थ आभूषण है।
आभूषण जिस प्रकार शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए धारण किए जाते हैं, उसी प्रकार काव्य की शोभा वृद्धि के लिए अलंकार प्रयोग किए जाते हैं। काव्यशास्त्र के आचार्य दंडी ने भी कहा है-
“काव्य शोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते।”अर्थात् काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्द हो अलंकार हैं।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल भी अलंकारों को काव्य में प्रस्तुत भाव को उत्कर्ष देने वाला मानते हैं। काव्य, शब्द तथा अर्थमय है, अतः उसका अलंकरण भी शब्द तथा अर्थमूलक रहा है। कुछ अलंकार केवल शब्द-सौन्दर पर आधारित हैं और कुछ अर्थ सौन्दर्य पर शब्द पर आधारित अलंकार एक विशेष शब्द के प्रयोग पर निर्भर रहता है। उसका पर्यायवाची प्रयोग करने पर चमत्कार या शोधा समाप्त हो जाती है। अर्धमूलक अलंकार के प्रायः तीन प्रकार है-(1) साम्यमूलक, जो दो पदार्थों की समानता पर आधारित है, (2) विरोधमूलक, जिनमें चमत्कारपूर्ण विरोध की कल्पना प्रस्तुत की जाती है और (3) वक्रोक्तिमूलक, जिसमें कथन की वक्रता से शोभा उत्पन्न होती है। इसी आधार पर शब्दालंकारों और अर्थालंकारों की स्वरूप रचना की गई है।
अलंकार के भेदअलंकार द्वारा काव्य में चमत्कार का प्रदर्शन शब्द पर अथवा अर्थ पर आधारित होता है।
अत: अलंकारों के दो प्रमुख भेद हैं-(1) शब्दालंकार तथा (2) अर्थालंकार। एक तीसरा अन्य भेद ‘उभयालंकार’ भी होता है।