उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा, उदाहरण, अर्थ
उत्प्रेक्षा अलंकार परिभाषा – जहाँ उपमेय में किसी उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यद्यपि दोनों (उपमेय एवं उपमान) में भिन्नता होती है, तथापि समान धर्म होने के कारण ऐसी सम्भावना व्यक्त की जाती है।सम्भावना व्यक्त करने के लिए ‘मानो’, ‘मनु’, ‘मनहुँ’, जनहुँ’, ‘जानो’, ‘ज्यों, ‘मनो’, ‘यथा’, ‘जनु’ आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण 1.
‘लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मदहिं पिए । ‘ प्रस्तुत काव्य पंक्ति में उपमेय ‘लट लटकनि’ में उपमान ‘मत्त मधुपगन’ की सम्भावना व्यक्त की गई है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण 2.
‘जनक बाम दिसि सोह सुनयना। हिमगिरि संग बनी जनु मयना।’ प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में उपमेय (जनक एवं सुनयना) में उपमान (हिमगिरि एवं मयना) की सम्भावना व्यक्त की गई है, अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण 3.
‘उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा। मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा। ‘उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में उपमेय ‘क्रोध’ में उपमान ‘हवा के वेग’ की तथा उपमेय ‘तनु’ में उपमान ‘सागर’ की सम्भावना व्यक्त की गई है, अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण 4.
‘मानो भाई घनधन अंतर दामिनि। घन दामिनि दामिनि घन अंतर, सोभित हरि-बृज भामिनि ।।‘उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में रामलीला का सुन्दर दृश्य दर्शाया गया है। रास के समय हर गोपी को लगता था कि श्रीकृष्ण उसके साथ नृत्य कर रहे हैं। गोरी गोपियाँ और श्याम वर्ण कृष्ण मंडलाकार नाचते हुए ऐसे लगते हैं, मानो बादल और बिजली, बिजली और बादल साथ-साथ शोभायमान हो रहे हों। अतः यहाँ गोपिकाओं में बिजली की और कृष्ण में बादल की संभावना व्यक्त की गई है। अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उदाहरण 5.
‘सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात। मनहुँ नीलमनि सैल पर आतप पर्यो प्रभात ।।उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में श्रीकृष्ण के सुन्दर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की और उनके शरीर पर शोभायमान पीतांबर में प्रभात की धूप की मनोरम की गई है।
उदाहरण 6.
‘कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गये। हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये ।।‘इन पंक्तियों में उत्तरा के अनुपूर्ण नेत्रों (उपमेय) में ओस जल-कण युक्त पंकज (उपमान) की संभावना की गई है। ‘मानो’ वाचक शब्द का प्रयोग किया गया है।
उदाहरण 7.
‘चमचमात चंचल नयन, विच घूँघट पट छीन मनहुँ सुरसरिता विमल, जल उछरत जुग मीन ।।यहाँ झीने घूँघट में सुरसरिता के निर्मल जल की और चंचल नयनों में दो उछलती हुई मछलियों की अपूर्व संभावना की गई है। अतः उत्प्रेक्षा का यह अति सुन्दर उदाहरण है।
उत्प्रेक्षा के भेद, प्रकार, उदाहरण, अर्थ, कक्षा 12 हिंदी व्याकरण उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्प्रेक्षा के भेद-उत्प्रेक्षा अलंकार के निम्नलिखित तीन भेद हैं-
वस्तूत्प्रेक्षा-जहाँ उपमेय वस्तु में उपमान वस्तु की सम्भावना की जाती है, अर्थात् एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है, वहाँ वस्तूत्प्रेक्षा होती है, जैसे-‘प्राणप्रिया मुख जगमगै, नीले अंचल चीर मनहुँ कलानिधि झलमलै, कालिन्दी के नीर ।।उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में ‘मुख’ में ‘कलानिधि’ की तथा ‘नीले अंचल चीर’ में ‘कालिन्दी के नीर’ की सम्भावना की गयी है, अतः यहाँ वस्तूत्प्रेक्षा है।
हेतूत्प्रेक्षा-जहाँ अहेतु में हेतु की सम्भावना की जाए, अर्थात् अकारण को कारण मान लिया जाए, वहाँ हेतूत्प्रेक्षा होती है, जैसे- ‘मनहुँ कठिन आँगन चली ताते राते पाँय ।प्रस्तुत काव्य पंक्ति में कवि ने नायिका के पैरों के लाल होने का कारण कठिन आँगन पर चलना माना है, जो कि वास्तविक नहीं है। सुकुमार स्त्रियों के चरण (पैर) तो स्वाभाविक रूप से ही लाल होते हैं। अतः यहाँ अहेतु में हेतु की सम्भावना कारण हेतूत्प्रेक्षा है।
फलोत्प्रेक्षा-जहाँ अफल में फल की सम्भावना की जाती है, अर्थात् जो फल या उद्देश्य नहीं होता, उसे ही फल या उद्देश्य मान लिया जाता है, वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है, जैसे- नित्य ही नहाता क्षीरसिन्धु में कलाधर है, सुन्दर ‘ तवानन की समता की इच्छा से । यहाँ कलाधर (चन्द्रमा) द्वारा क्षीरसिन्धु में स्नान करने का उद्देश्य, प्रयोजन या फल नायिका के मुख की समानता प्राप्त करना माना गया है, जबकि चन्द्रमा के क्षीरसागर में नहाने का प्रयोजन यह है कि चंन्द्रमा की उत्पत्ति ही क्षीरसागर से हुई है। अतः यहाँ अफल में फल की सम्भावना के कारण फलोत्प्रेक्षा अलंकार है ।
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