NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Chapter 9 पर्यावरणम् Hindi & English Translation
पर्यावरणम् – वर्तमान समय में प्रदूषित वातावरण मानव जीवन के लिए भयंकर अभिशाप बना हुआ है। नदियों का जल, वन वृक्षों से रहित हो रहे हैं, मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है, कर कारखानों और वाहनों से निकलने वाला काला धुंआ से विषैली गैस से वातावरण प्रदुषित हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में हमारा कर्तव्य है कि हम पर्यावरण के संरक्षणार्थ कुछ कुछ उपाय करें ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को कोई खतरा नहीं है।
प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते । इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, तर्पयति च सुखसाधनैः । पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः, आकाशश्चास्याः प्रमुखानि तत्त्वानि । तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आव्रियते परितः समन्तात् लोकोऽनेनेति पर्यावरणम् । यथाऽजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितस्तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ । परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणमस्मभ्यं सांसारिकं जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति । प्रकृतिकोपैः आतङ्कितो जनः किं कर्तुं प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्रः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम् ?
हिन्दी अनुवाद – प्रकृति सभी प्राणियों के संरक्षण के लिए प्रयत्न करती है। यह सभी को विभिन्न प्रकार से पुष्ट करती है और सुख-साधनों से तृप्त (संतुष्ट) करती है। पृथिवी, जल, तेज, वायु और आकाश इसके प्रमुख तत्त्व हैं। ये पाँचों ही मिलकर या पृथक् रूप से हमारे पर्यावरण का निर्माण करते हैं। जिसके द्वारा यह संसार सभी ओर से आच्छादित है, वही पर्यावरण है। जिस प्रकार से अजन्मा शिशु माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है,
उसी तरह से मनुष्य पर्यावरण के गर्भ में सुरक्षित रहता है। सब प्रकार से शुद्ध और प्रदूषण से रहित पर्यावरण हमारे लिए सांसारिक जीवन के सुख, सद्विचार, सत्यसंकल्प और मंगलदायक सामग्री प्रदान करता है। प्रकृति के कोप से आतङ्कित (पीड़ित) व्यक्ति क्या कर बाढ़, अग्निकाण्ड, ड, भूकम्प, आँधियाँ (बवण्डर) और उल्कापात आदि से पीड़ित मनुष्य का मंगल (सुख- समृद्धि) कहाँ है? अर्थात् कहीं नहीं।
English translation – Nature tries to protect all living beings. It nourishes everyone in different ways and satisfies them with pleasures. Earth, water, fire, air and sky are its main elements. All these five together or separately make up our environment. That by which this world is covered from all sides is the environment.
Just as the unborn child is safe in the womb of the mother, in the same way man is safe in the womb of the environment. An environment that is pure and free from pollution in all respects provides us with the pleasures of worldly life, good thoughts, true determination and auspicious material. What can a person who is terrified (victim) of nature’s wrath do? That is, nowhere.
अतएव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति । प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने एव सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म । विविधा विहगाः कलकूजितैस्तत्र श्रोत्ररसायनं ददति । सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति । वृक्षाः लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति । शीतलमन्दसुगन्ध-वनपवना औषधकल्पं प्राणवायुं वितरन्ति ।
हिन्दी अनुवाद – इसलिए हमारे द्वारा प्रकृति की रक्षा की जानी चाहिए। और उसी से पर्यावरण की रक्षा होगी। प्राचीन काल में लोक कल्याण को चाहने वाले ऋषि वनों में निवास करते थे। क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था। विभिन्न प्रकार के पक्षी अपने मधुर कल-कूजन से कर्णामृत प्रदान करते हैं। नदियाँ और पहाड़ी झरने अमृत के समान स्वादिष्ट निर्मल जल प्रदान करते हैं। वृक्ष व लताएँ फल, फूल तथा बहुत मात्रा में ईंधन की लकड़ियाँ हमें उपहारस्वरूप देते हैं। शीतल, मन्द और सुगन्धित वन की वायु हमें औषधि के समान प्राणवायु (ऑक्सीजन) देती है ।
English translation – That’s why nature should be protected by us. And that will protect the environment. In ancient times, sages who wanted public welfare used to reside in forests. Because safe environment was available only in the forest. Different types of birds provide Karnamrit with their sweet cooing. Rivers and mountain springs provide pure water that tastes like nectar. Trees and creepers give us fruits, flowers and a lot of fuel wood as a gift. The cool, mild and fragrant forest air gives us oxygen like medicine.
परन्तु स्वार्थान्धो मानवस्तदेव पर्यावरणमद्य नाशयति । स्वल्पलाभाय जनाः बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति । यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते येन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो जायते । नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते । वनवृक्षा निर्विवेकं छिद्यन्ते व्यापारवर्धनाय, येन अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति । शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जातः । एवं हि स्वार्थान्धमान- वैर्विकृतिमुपगता प्रकृतिरेव तेषां विनाशकर्त्री सञ्जाता। पर्यावरणे विकृतिमुपगते जायन्ते विविधा रोगा भीषणसमस्याश्च । तत्सर्वमिदानीं चिन्तनीयं प्रतिभाति ।
हिन्दी अनुवाद – किन्तु स्वार्थ में अन्धा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे हैं। कारखानों का जहरीला पानी नदियों में गिराया जाता है, जिससे मछलियाँ आदि जल- जीवों का क्षणभर में ही नाश हो जाता है। और वह नदी का जल भी सर्वथा न पीने योग्य हो जाता है।
अपना व्यापार बढ़ाने के लिए बिना सोचे-समझे वन के वृक्षों को काटा जा रहा है, जिससे अनावृष्टि (अकाल, सूखा) बढ़ती जा रही है, और बेसहारा जंगली पशु गाँवों में आकर उपद्रव करते हैं। वृक्षों को काटने से शुद्ध वायु का भी संकट (अभाव) उत्पन्न हो गया है। इस प्रकार स्वार्थ में अन्धे हुए मनुष्यों के द्वारा विकृति (प्रदूषण) को प्राप्त प्रकृति ही उनके विनाश का कारण बन गई है। पर्यावरण के विकृत (प्रदूषित) होने पर विभिन्न रोग तथा भीषण समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए यह सब कुछ अब विचार करने योग्य प्रतीत होता है।
English translation – But the man blinded by selfishness is destroying the same environment today. People are destroying valuable things for a little profit. The poisonous water of the factories is dumped in the rivers, due to which the fishes etc. water-organisms get destroyed in a moment. And that river water also becomes totally unfit for drinking.
Forest trees are being cut down without thinking to increase their business, due to which drought (famine, drought) is increasing, and destitute wild animals create nuisance in the villages. Cutting of trees has also created a crisis (lack) of pure air. In this way, nature itself, which has been polluted by humans blinded by selfishness, has become the cause of their destruction. Various diseases and severe problems are arising when the environment is polluted. So it all seems worth considering now.
धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः । तत एवं वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्त्रोतोरूपेणाङ्गीकृतम् । कुक्कुर – सूकर-सर्पनकुलादिस्थलचरा, मत्स्यकच्छपमकरप्रभृतयो जलचराश्चापि रक्षणीयाः, यतस्ते स्थलमलापनोदिनो जलमलापहारिणश्च । प्रकृतिरक्षयैव सम्भवति लोकरक्षेति नास्ति संशयः ।
हिन्दी अनुवाद–“रक्षित धर्म ही मनुष्य की रक्षा करता है।” यह आद्य (प्राचीन) ऋषियों का वचन है। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग है ऐसा ऋषियों के द्वारा प्रतिपादित किया गया है। इसीलिए वापी (बावड़ी), कुओं तथा तालाब आदि के निर्माण, मन्दिर एवं धर्मशालाओं आदि की स्थापना को धर्म की सिद्धि के स्रोत (आधार) के रूप में स्वीकार किया गया है। हमारे द्वारा कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि थलचरों तथा मछली, कछुए, घड़ियाल आदि जलचरों की रक्षा होनी चाहिए, क्योंकि वे भूमि की गन्दगी को दूर करने वाले तथा पानी की गन्दगी को दूर करने वाले हैं। प्रकृति की रक्षा करने से ही संसार की रक्षा हो सकती है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।
English translation – “Protected religion protects man.” This is the promise of ancient (ancient) sages. Protecting the environment is also a part of religion, it has been propounded by the sages. And the construction of ponds etc., the establishment of temples and dharamshalas etc. has been accepted as the source (base) of the accomplishment of religion. We protect dogs, pigs, snakes, mongooses etc. land animals and fish, turtles, crocodiles etc. aquatic animals. There should be, because they are the ones who remove the dirt of the land and remove the dirt of the water.Only by protecting nature, the world can be protected, there is no doubt about it.
Sanskrit Class 9th Chapter 9 Questions Answers
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) मानवः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति?
उत्तर पर्यावरणकुक्षौ।
(ख) सुरक्षितं पर्यावरणं कुत्र उपलभ्यते स्म ?
उत्तर वने।
(ग) आर्षवचनं किमस्ति ?
उत्तर धर्मो रक्षति रक्षित:।
(घ) पर्यावरणमपि कस्य अङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः ?
उत्तर धर्मस्य।
(ङ) लोकरक्षा कया सम्भवति ?
उत्तर प्रकृतिरक्षयां।
(च) अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति ?
उत्तर मातृगर्भे।
(छ) प्रकृतिः केषां संरक्षणाय यतते ?
उत्तर समेषां प्राणिनाम् ।
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत (अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए-)
(क) प्रकृतेः प्रमुखतत्त्वानि कानि सन्ति? (प्रकृति के प्रमुख तत्त्व कौनसे हैं ?)
उत्तरम् – पृथिवी, जलं, तेजो, वायुः, आकाशश्च । (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ।)
(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति? (स्वार्थ में अन्धा मनुष्य क्या करता है?)
उत्तरम्-स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणं नाशयति । ( स्वार्थ में अन्धा मनुष्य, पर्यावरण को नष्ट करता है।)
(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति? (पर्यावरण के विकृत होने पर क्या होता है?)
उत्तरम्-पर्यावरणे विकृते जाते विविधाः रोगाः जायन्ते । (पर्यावरण के विकृत होने पर विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं ।)
(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया? (हमें पर्यावरण की रक्षा किस प्रकार करनी चाहिए?)
उत्तरम् – अस्माभिः वृक्षारोपणै: स्थल- जलचराणां जीवानां रक्षणैः च पर्यावरणस्य रक्षा करणीया । (हमारे द्वारा वृक्ष लगाकर, थलचर और जलचर जीवों की रक्षा के द्वारा पर्यावरण की रक्षा की जानी चाहिए।
(ङ) लोकरक्षा कथं संभवति? (संसार की रक्षा किस प्रकार सम्भव है?)
उत्तरम्-लोकरक्षा प्रकृतिरक्षा संभवति। (संसार की रक्षा प्रकृति की रक्षा से ही संभव है।)
(च) परिष्कृतं पर्यावरणं अस्मभ्यं किं किं ददाति? (शुद्ध पर्यावरण हमें क्या क्या देता है?)
उत्तरम् – परिष्कृतं पर्यावरणं अस्मभ्यं जीवनसुखानि, सद्विचाराणि माझ गलिकद्रव्याणि च ददाति । (शुद्ध पर्यावरण हमारे लिए जीवन के सुखों को, सदविचारों को और कल्याणकारी द्रव्यों को देता है।)
प्रश्न 3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते।
उत्तरम् के निर्विवेक ?
(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायु प्राप्यते।
उत्तरम् कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते ?
(ग) प्रकृति: जीवनसुखं प्रददाति ।
उत्तरम् प्रकृतिः किं प्रददाति ?
(घ) अजातशिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति ।
उत्तरम् – अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति ?
(ङ) पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति।
उत्तरम् – पर्यावरणरक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति ?
प्रश्न 4. उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत
(क) स्थले चरन्ति इति | स्थलचरा: |
निशायां चरन्ति इति | निशाचरा: |
व्योम्नि चरन्ति इति | व्योमचरा: |
गिरौ चरन्ति इति | गिरिचरा: |
भूमौ चरन्ति इति | भूमिचरा: |
(ख) न वृष्टि इति | अवृष्टि: |
न सुखम् इति | असुखम् |
न भाव: इति | अभाव: |
न पूर्ण: इति | अपूर्ण: |
प्रश्न 5. उदाहरणमनुसृत्य पदनिर्माणं कुरुत
प्र+गम्+क्तिन् | प्रगति: |
दृश्+क्तिन् | दृष्टि: |
गम्+क्तिन् | गति: |
मन्+क्तिन् | मति: |
शम्+क्तिन् | शान्ति: |
भी+क्तिन् | भीति: |
जन्+क्तिन् | जाति: |
भज्+क्तिन् | भक्ति: |
नी+क्तिन् | नीति: |
प्रश्न 6. निर्देशानुसार परिवर्तयत-
(क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलं कुतः ? (बहुवचने)
उत्तरम्-सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलं कुतः ?
(ख) मानवाः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति । (एकवचने)
उत्तरम् – मानवः पर्यावरणकुक्षौ सुरक्षितः भवति।
(ग) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते । (एकवचने)
उत्तरम् – वनवृक्ष : निर्विवेकं छिद्यते ।
(घ) गिरिनिर्झराः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (द्विवचने)
उत्तरम्-गिरिनिर्झरौ निर्मलं जलं प्रयच्छतः ।
(ङ) सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति । (बहुवचने)
उत्तरम् – सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति ।
(अ) पर्यावरणरक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्च वाक्यानि लिखत ।
उत्तर (क) अहं यत्र-तत्र वृक्षारोपणं करिष्यामि ।
(ख) अहं कदापि वृक्षान् न छेत्स्यामि ।
(ग) नद्याः जले कूपे वा अवशिष्टं न क्षेप्स्यामि ।
(घ) मलमूत्राय प्रसाधनकक्षे एव गमिष्यामि ।
(ङ) कदापि प्रदूषणोत्पादकं वाहनं न चालयिष्यामि ।
प्रश्न 7. उदाहरणमनुसृत्य उपसर्गान् पृथक्कृत्वा लिखत-
उत्तरम् – (i) प्रभवति – प्र
(ii) उपलभ्यते – उप
(iii) निवसन्ति – नि
(iv) समुपहरन्ति – सम्+उप
(v) वितरन्ति – वि
(vi) प्रयच्छन्ति: – प्र
(vii) उपगता – उप
(viii) प्रतिभाति – प्रति
(अ) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्तपदानां विग्रहं लिखत-
(i) पत्रपुष्पे = पत्रम् पुष्पंच
(ii) लतावृक्षौ = लता वृक्षश्च
(iii) पशुपक्षी = पशु: पक्षी च
(iv) कीटपतङ्गौ = कीट: पतंग: च