NCERT Solution for Class 8 Sanskrit Chapter 10 नीतिनवनीतम् Haindi Translation & Question answer
नीतिनवनीतम् :- प्रस्तुत पाठ ‘मनुस्मृति’ के कतिपय श्लोकों का संकलन है जो सदाचार की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ माता-पिता तथा गुरुजनों को आदर और सेवा से प्रसन्न करने वाले अभिवादनशील मनुष्य को मिलने वाले लाभ की चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त सुख-दुख में समान रहना, अन्तरात्मा को आनन्दित करने वाले कार्य करना तथा इसके विपरीत कार्यों को त्यागना, सम्यक् विचारोपरान्त तथा सत्यमार्ग का अनुसरण करते हुए कार्य करना आदि शिष्टाचारों का उल्लेख भी किया गया है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम् ॥
हिंदी अनुवाद जो व्यक्ति विप्रों, वृद्धों आदि के अभिवादन के स्वभाव वाला है। जो नित्य ही वृद्धजनों की सेवा-सुश्रूषा करता है उस व्यक्ति के आयु, विद्या, कीर्ति और शक्ति वृद्धि को प्राप्त होती हैं ।
English Translation The person who is of the nature of the names of Vipras, old people etc. The one who regularly serves and cares for the elderly, increases the age, knowledge, fame and power of a person.
यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम् । न तस्य निष्कृतिः शक्या कर्तुं वर्षशतैरपि ॥
हिन्दी अनुवाद-उन दोनों (माता और पिता) और आचार्य का प्रतिदिन और सदैव प्रिय करना चाहिए। तीनों के ही संतुष्ट होने पर सभी तप सम्पन्न हो जाते हैं।
English translation-Both of them (mother and father) and Acharya should be loved everyday and always. When all three are satisfied, all austerities are completed.
तयोर्नित्यं प्रियं कुर्यादाचार्यस्य च सर्वदा । तेष्वेव त्रिषु तुष्टेषु तपः सर्वं समाप्यते ॥
हिन्दी अनुवाद-परतंत्र होने से सभी जगह (केवल) दुःख (प्राप्त) होता है, स्वयं के वश में होने पर अर्थात् स्वाधीन होने पर सभी जगह सुख होता है। यही संक्षेप में सुख और दुख का लक्षण जानना चाहिए।
English translation – Being dependent brings (only) sorrow everywhere, being in control of oneself means happiness everywhere. In short, the symptoms of happiness and sorrow should be known.
यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः ।तत्प्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जयेत् ॥
हिन्दी अनुवाद – जिस काम को करते हुए अन्तरात्मा को सन्तोष होता है, उसे प्रयत्नपूर्वक करना चाहिए, इसके विपरीत (कार्य को) त्याग देना चाहिए अर्थात् जिस कार्य को करने से संतुष्टि न मिले वह कार्य नहीं करना चाहिए ।
English Translation – The work which gives satisfaction to the inner soul should be done with effort, on the contrary, it should be abandoned, that is, the work which does not give satisfaction should not be done.
दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत् । सत्यपूतां वदेद्वाचं मनः पूतं समाचरेत् ॥
हिन्दी अनुवाद – दृष्टि से पवित्र कदमों को रखना चाहिए। कपड़े से पवित्र करके अर्थात् छानकर पानी को पीना चाहिए। सत्य से पवित्र वचनों को बोलना चाहिए। पवित्र मन से व्यवहार करना चाहिए।
English translation – One should keep holy steps in view. Water should be drunk after purifying it with a cloth, that is, after filtering it. Holy words should be spoken truthfully. One should behave with a pure mind.
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1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत- (नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखिए-)
(क) नृणां सम्भवे कौ क्लेश सहेते ? (मनुष्यों की उत्पत्ति में कौन कष्ट सहन करते हैं ?)
उत्तर मातापितरौ।
(ख) कीदृशं जलं पिबेत् ? (कैसा जल पीना चाहिए ? )
उत्तर वस्त्रपूतम्।
(ग) नीतिनवनीतं पाठः कस्मात् ग्रन्थात् संकलित : ? (नीतिनवनीतम् पाठ किस ग्रन्थ से संकलित है ? )
उत्तर मनुस्मृतैः।
(घ) कीदृशीं वाचं वदेत् ? (कैसी वाणी बोलनी चाहिए ? )
उत्तर सत्यपूतम्।
(ङ) दुःख किं भवत्?ि (दुःख क्या होता है ? )
उत्तर परवशम्।
(च) आत्मवशं किं भवति ? (स्वतन्त्रता/स्वाधीनता में क्या है ?)
उत्तर सर्वसुखम्।
(छ) कीदशं कर्म समाचरेत् ? (कैसे कर्म का आचरण करना चाहिए ? )
उत्तर मनस्पूतम् ।
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि पूर्णवाक्येन लिखत- (नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर पूर्णवाक्य में लिखिए )
(क) पाठेऽस्मिन् सुखदुःखयोः किं लक्षणम् उक्तम् ? (इस पाठ में सुख-दुःख का क्या लक्षण है ? )
उत्तरम्-पाठानुसारम् “परवशं सर्वदुःखम् आत्मवशं च सर्वसुखम्” इति सुख दुःखयोः च लक्षणम्। (पाठ के अनुसार- ‘पराधीनता में सारे दुःख हैं और स्वाधीनता में सारे सुख हैं’ यह दुःख और सुख का लक्षण है।)
(ख) वर्ष शतैः अपि कस्य निष्कृतिः कर्तुं न शक्या ? (सौ वर्षों में भी किसका निस्तार नहीं किया जा सकता है ?)
उत्तरम्-नृणां सम्भवे मातापितरौ यं क्लेशं सहेते तस्य निष्कृतिः वर्षशतैः अपि कर्तुं न शक्या। (मनुष्यों की उत्पत्ति में माता-पिता जिस कष्ट को सहन करते हैं, उसका निस्तार सौ वर्षों में भी नहीं किया जा सकता है।)
(ग) ‘त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते’ वाक्येऽस्मिन् त्रयः के सन्ति ? (‘तीनों के सन्तुष्ट होने पर तप समाप्त हो जाता है।’ इस वाक्य में तीनों कौन हैं ? )
उत्तरम् – वाक्ये त्रयः माता, पिता, आचार्यः च सन्ति। (वाक्य में तीन माता, पिता और आचार्य हैं।)
(घ) अस्माभिः कीदृशं कर्म कर्त्तव्यम् ? (हमारे द्वारा कैसा कर्म करना चाहिए ? )
उत्तरम्-यत् कर्म कुर्वतो अन्तरात्मनः परितोषो स्यात् तत्कर्म अस्मिाभिः कर्तव्यम्। (जिस कर्म को करने से अन्तरात्मा को प्रसन्नता होती है वही कर्म हमारे द्वारा किया जाना चाहिए।)
(ङ) अभिवादनशीलस्य कानि वर्धन्ते ? (अभिवादनशील के क्या बढ़ते हैं ? )
उत्तरम्-अभिवादनशीलस्य आयुः विद्या: यशः बलं च चत्वारि वर्धन्ते। (अभिवादनशील के आयु, विद्या, कीर्ति और बल चारों बढ़ते हैं।)
(च) सर्वदा केषां प्रियं कुर्यात् ? (हमेशा किनका प्रिय करना चाहिए ? )
उत्तरम्-सर्वदा माता-पिता आचार्यस्य च प्रियं कुर्यात्। (हमेशा माता, पिता और आचार्य का प्रिय करना चाहिए।)
3. स्थूलपदान्यवलम्ब्य प्रश्न-निर्माणं कुरुत- (मोटे शब्द का आलम्ब लेकर प्रश्न निर्माण करें-)
(क) वृद्धोपसेविनः आयुर्विद्या यशो बलं न वर्धन्ते ।
उत्तर कस्य आयुर्विद्या यशो बलं न वर्धन्ते ?
(ख) मनुष्यः सत्यपूतां वाचं वदेत् ।
उत्तर मनुष्यः कस्य वाचं वदेत् ?
(ग) त्रिषु तुष्टेषु सर्वं तपः समाप्यते ।
उत्तर त्रिषु तुष्टेषु किं समाप्यते ?
(घ) मातापितरौ नृणां सम्भवे भाषया क्लेशं सहेते ।
उत्तर कौ नृणां सम्भवे भाषया क्लेशं सहेते ?
(ङ) तयोः नित्यं प्रियं कुर्यात् ।
उत्तर कयो: नित्यं प्रियं कुर्यात् ?
4. संस्कृतभाषायां वाक्यप्रयोगं कुरुते (संस्कृत भाषा में वाक्य में प्रयोग कीजिए-)
(क) विद्या:- विद्या विनयं ददाति। (विद्या विनम्रता देती है ।)
(ख) तपः- प्राणायाम परं तपः अस्ति। (प्राणायाम परम तप है । )
(ग) समाचरेत्- मनः पूतं समाचरेत्। (मन से पवित्र आचरण करना चाहिए।)
(घ) परितोषः- परितोषः एव परम धनम् वर्तते। (सन्तुष्टि ही श्रेष्ठ धन है ।)
(ङ) नित्यम्- नित्यं वृद्धानां सेवां कुर्यात्। (नित्य वृद्धों की सेवा करनी चाहिए। )
5. शुद्धवाक्यानां समक्षं ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं ‘नैव’ इति लिखत- (सही वाक्यों के सामने ‘आम्’ अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘नैव’ लिखिए – )
उत्तराणि- (क) अभिवादनशीलस्य किमपि न वर्धते । (नैव)
(ख) मातापितरौ नृणां सम्भवे कष्टं सहेते । (आम्)
(ग) आत्मवशं तु सर्वमेव दुःखमस्ति । (नैव)
(घ) येन पितरौ आचार्य: च संतुष्टाः तस्य सर्वं तपः समाप्यते । (आम्)
(ङ) मनुष्यः सदैव मनः पूतं समाचरेत् । (आम्)
(च) मनुष्यः सदैव तदेव कर्म कुर्यात् येनान्तरात्मा तुष्यते । (आम्)
6. समुचितपदेन रिक्तस्थानानि पूरयत- (समुचित शब्दों से रिक्तस्थान की पूर्ति करें-)
(क) मातापित्रौ : तपसः निष्कृतिःदशवर्षैरपि कर्तुमशक्या ।(दशवर्षैरपि / षष्टि: वर्षैरपि / वर्षशतैरपि)
(ख) नित्यं वृद्धोपसेविनः चत्वारि वर्धन्ते । (चत्वारि / पञ्च / षट्)
(ग) त्रिषु तुष्टेषु तप: सर्वं समाप्यते। (जप: /तप:/कर्म) (घ) एतत् विद्यात् समासेन लक्षणं सुख-दुःखयोः। (शरीरेण/समासेन/विस्तारेण)
(ङ) दृष्टिपूतं न्यसेत् पादम्। (हस्तम्/पादम् / मुखम् )
(च) मनुष्यः मातापित्रोः आचार्यस्य च सर्वदा प्रियं कुर्यात् । (प्रियम्/अप्रियम्/ अकार्यम्)
7. मञ्जूषातः चित्वा उचिताव्ययेन वाक्यपूर्तिं कुरुत- (मञ्जूषा से चुनकर उचित अव्यय से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-)
तावत् अपि एव यथा नित्यं यादृशम्
(क) तयोः नित्यं प्रियं कुर्यात् ।
(ख) यादृशं कर्म करिष्यसि । तादृशं फलं प्राप्स्यसि । (ग) वर्षशतैः अपि निष्कृतिः न कर्तुं शक्या ।
(घ) तेषु एव त्रिषु तुष्टेषु तपः समाप्यते ।
(ङ) तथा राजा तथा प्रजा ।
(च) यावत् सफलः न भवति तावत् परिश्रमं कुरु।