Sanskrit Dhara VahiniSanskrit Dhara VahiniSanskrit Dhara Vahini
Notification Show More
Font ResizerAa
  • Home
  • Class 12
  • Class 11
  • Class 10
  • Class 9
  • Class 8
  • Class 7
  • Class 6
  • Class 1-5
  • Grammar
    • Hindi Grammar
    • English Grammar
    • Sanskrit Vyakaran
  • Free Notes
Reading: कारक प्रकरण – कारक की विभक्ति, भेद karak in Sanskrit Vyakarana
Share
Sanskrit Dhara VahiniSanskrit Dhara Vahini
Font ResizerAa
  • Home
  • Class 12
  • Class 11
  • Class 10
  • Class 9
  • Class 8
  • Class 7
  • Class 6
  • Class 1-5
  • Grammar
  • Free Notes
Search Class notes, paper ,important question..
  • Classes
    • Class 12
    • Class 11
    • Class 10
    • Class 9
    • Class 8
  • Grammar
    • English Grammar
    • Hindi Vyakaran
    • Sanskrit Vyakaran
  • Latest News
Have an existing account? Sign In
Follow US
© 2022 Foxiz News Network. Ruby Design Company. All Rights Reserved.
Sanskrit Dhara Vahini > Sanskrit Vyakaran > कारक प्रकरण – कारक की विभक्ति, भेद karak in Sanskrit Vyakarana
Sanskrit Vyakaran

कारक प्रकरण – कारक की विभक्ति, भेद karak in Sanskrit Vyakarana

Share
20 Min Read
SHARE

Karak in Sanskrit Vyakarana | कारक संस्कृत में विभक्ति चिह्न,भेद

Karak in sanskrit | Karak Prakaran | Karak Chinh | Karak ke Udhaharan | Karak ki Paribhaasha | karak Vibhakti Sanskrit Grammar | कारक के भेद | संस्कृत में कारक-विभक्ति | संस्कृत कारक प्रकरण

Contents
Karak in Sanskrit Vyakarana | कारक संस्कृत में विभक्ति चिह्न,भेद कर्ता कारक किसे कहते हैं | karak in Sanskritकर्म कारक किसे कहते हैं | karak in Sanskritकरण कारक किसे कहते हैं सम्प्रदान कारक किसे कहते हैं 
karak in Sanskrit

Karak in Sanskrit – हेल्लो दोस्तों आज हम संस्कृत के सबसे महत्वपूर्ण प्रकरण का अध्ययन करने वाले हैं। आप संस्कृत में कारक (karak in Sanskrit) प्रकरण से पहले भी अवगत होंगे। इस ब्लोग पोस्ट में कारक विभक्तिः को जीरो लेवल से बताया गया है।

संस्कृत में कारक विभक्तियों के उदाहरण हिन्दी और संस्कृत दोनों भाषाओं में दिये गये है जिससे आपको यह प्रकरण बेहद सरल लगे और आसानी से समझ में आ जाएगा। यदि आप संस्कृत कारक के साथ उपसर्ग (संस्कृत में उपसर्ग) भी पढ़ना चाहते हो तो उपसर्ग पर लिंक करके इसे भी अवश्य पढ़ें। ब्लॉग पोस्ट अच्छा लगे तो नीचे कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरुर दे। भगवान आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे।

कारकस्य परिभाषा

क्रियाजनकं कारकम् अथवा क्रियां करोति इति कारकम्। (क्रिया का जनक कारक होता है अथवा क्रिया को करता है वह कारक है ) अर्थात् यः क्रियां सम्पादयति अथवा यस्य क्रियया सह साक्षात् परम्परया वा सम्बन्धो भवति सः कारकम्’ इति कथ्यते। (अर्थात् जो क्रिया को सम्पादित करता है अथवा जिसका क्रिया के साथ साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध होता है वह ‘कारक’ कहा जाता है

क्रियया सह कारकाणां साक्षात् परम्परया व सम्बन्धः कथं भवति इति बोधयितुम् अत्र वाक्यमेकं प्रस्तूयते । यथा (क्रिया के साथ कारकों का साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध कैसे होता है यह जानने के लिए यहाँ एक वाक्य प्रस्तुत किया जा रहा है- हे मनुष्याः! नरदेवस्य पुत्रः जयदेवः स्वहस्तेन कोषात् निर्धनेभ्यः ग्रामै धनं ददाति। अत्र क्रियया सह कारकाणा सम्बन्धं ज्ञातुम् एवं प्रकारेण प्रश्नोत्तरमार्गः आश्रयणीय:- (यहाँ क्रिया के साथ कारकों का सम्बन्ध जानने के लिए इस प्रकार से प्रश्नोत्तर मार्ग का आश्रय लेना चाहिए )

प्रश्नउत्तरम्कारकम्विभक्ति:
क: ददातिजयदेव:कर्ताप्रथमा
किम् ददातिधनम्कर्मद्वितीया
केन ददातिस्वहस्तेनकरणम्तृतीया
केभ्य: ददातिनिर्धनेभ्य:सम्प्रदानम्चतुर्थी
कस्मात् ददातिकोषात्अपादानम्पंचमी
कुत्र ददातिग्रामेअधिकरणम्सप्तमी

एवमेव जयदेवः इति कर्तृकारकस्य तु क्रियया सह साक्षात् सम्बन्धः अस्ति अन्येषां कारकाणां च परम्परया सम्बन्धः अस्ति । अतः इमानि सर्वाणि कारकाणि कथ्यन्ते । परन्तु अस्य एव वाक्यस्य हे मनुष्याः, नरदेवस्य च इति पदद्वयस्य ‘ददाति’ इति क्रियया सह साक्षात् परम्परया वा सम्बन्धो नास्ति । अतः इदं पदद्वयं कारकम् नास्ति ।

सम्बन्धः कारकं तु नास्ति परन्तु तस्मिन् षष्ठी विभक्तिः भवति । (इसी प्रकार ‘जयदेव’ इस कर्त्ता कारक का तो क्रिया के साथ साक्षात् सम्बन्ध है और दूसरे कारकों का परम्परा से सम्बन्ध है। अतः ये सब कारक कहे जाते हैं। परन्तु इस वाक्य का “हे मनुष्याः, नरदेवस्य” इन दो पदों का ‘ददाति’ क्रिया के साथ साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध नहीं है। अतः ये दो पद कारक नहीं हैं। सम्बन्ध कारक तो नहीं हैं परन्तु उसमें षष्ठी विभक्ति होती है।) 

कारकाणां संख्या– इत्थं कारकाणां संख्या षड् भवति । यथोक्तम्- (इस प्रकार कारकों की संख्या छः होती है। जैसा कहा है-) कर्त्ता कर्म च करणं च सम्प्रदानं तथैव च ।अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणि षट्।। 

अत्र कारकाणां विभक्तीनां च सामान्यपरिचयः प्रस्तूयते – (यहाँ कारकों और विभक्तियों का सामान्य परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है-)

ध्यातव्य:-

संस्कृत में प्रथमा से सप्तमी तक सात विभक्तियाँ होती हैं। ये सात विभक्तियाँ ही कारक का रूप धारण करती हैं। सम्बोधन विभक्ति को प्रथमा विभक्ति के ही अन्तर्गत गिना जाता है। क्रिया से सीधा सम्बन्ध रखने वाले शब्दों को ही कारक माना गया है। षष्ठी विभक्ति का क्रिया से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है, अतः ‘सम्बन्ध’ कारक को कारक नहीं माना गया है। इस प्रकार संस्कृत में कारक छः ही होते हैं तथा विभक्तियाँ सात होती हैं। कारकों में प्रयुक्त विभक्तियों तथा उनके चिह्नों का विवरण इस प्रकार है-

कारकविभक्तिचिह्न
कर्ताप्रथमाने
कर्मद्वितीयाको
करणतृतीयासे, द्वारा
सम्प्रदानचतुर्थीके लिए, को
अपादानपंचमीसे (अलग होने के अर्थ में)
सम्बन्धषष्ठीका, की, के, रा, रे, री
अधिकरणसप्तमीमें, पर
सम्बोधनसम्बोधनहे! अरे ! ओ !

कर्ता कारक किसे कहते हैं | karak in Sanskrit

प्रथमा विभक्तिः ( कर्ता कारक:)

(1) यः क्रियायाः करणे स्वतन्त्रः भवति सः कर्त्ता इति कथ्यते (स्वतन्त्रः कर्त्ता)। उक्तकर्तरि च प्रथमा विभक्तिः भवति । यथा-रामः पठति । (जो क्रिया के करने में स्वतन्त्र होता है, वह कर्त्ता कहा जाता है। (स्वतन्त्र कर्त्ता) और कर्त्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे- रामः पठति ।)

(2) कर्मवाच्ये कर्मणि प्रथमा विभक्तिः भवति। (कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है।) यथा मया ग्रन्थः पठ्यते । 

(3) सम्बोधने प्रथमा विभक्तिः भवति (सम्बोधने च) ((सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है।) यथा- हे बालकाः! यूयं कुत्र गच्छथ?

कर्म कारक किसे कहते हैं | karak in Sanskrit

द्वितीया विभक्तिः

1. कर्तुरीप्सिततमं कर्म

कर्त्ता क्रियया यं सर्वाधिकम् इच्छति तस्य कर्मसंज्ञा भवति । कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति (कर्मणि द्वितीया ) कर्त्ता क्रिया से (क्रिया के द्वारा) जिसे सबसे अधिक चाहता है उसकी कर्म संज्ञा होती है। “कर्मणि द्वितीया” और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।) यथा-

(1) रामः ग्रामं गच्छति ।

(2) बालकाः वेदं पठन्ति । 

(3) वयं नाटकं द्रक्ष्यामः ।

(4) साधुः तपस्याम् अकरोत् ।

(5) सन्दीपः सत्यं वदेत् ।

2. तथायुक्तं अनीप्सितम् – 

कर्ता जिसे प्राप्त करने की प्रबल इच्छा रखता है, उसे ईप्सितम् कहते हैं और जिसकी इच्छा नहीं रखता उसे अनीप्सित कहते हैं। अनीप्सित पदार्थ पर क्रिया का फल पड़ने पर उसकी कर्म संज्ञा होती है। जैसे- ‘दिनेश: विद्यालयं गच्छन्, बालकं पश्यति’ (‘दिनेश विद्यालय को जाता हुआ, बालक को देखता है) इस वाक्य में ‘बालकं’ अनीप्सित पदार्थ है, फिर भी ‘विद्यालय’ की तरह प्रयुक्त होने से उसमें कर्म कारक का प्रयोग हुआ है।

3. अधोलिखितशब्दानां योगे द्वितीयाविभक्तिः भवति । यथा-

अभितः / उभयतः = राजमार्गम् अभितः वृक्षाः सन्ति ।

परितः/सर्वतः = ग्रामं परितः क्षेत्राणि सन्ति। 

समया / निकषा = विद्यालयं निकषा देवालयः अस्ति ।

अन्तरेण / विना – प्रदीपः पुस्तकं विना / अन्तरेण पठति ।

अन्तरा = रामं श्यामं च अन्तरा देवदत्तः अस्ति ।

धिक् = दुष्टं धिक् ।

हा = हा दुर्जनम् !

प्रति = छात्राः विद्यालयं प्रति गच्छन्ति ।

अनु = राजपुरुषः चौरम् अनुधावति

यावत् = गणेशः वनं यावत् गच्छति ।

अधोऽधः = भूमिम् अधोऽधः जलम् अस्ति ।

अध्यधि = लोकम् अध्यधि हरिः अस्ति ।

उपर्युपरि = लोकम् उपर्युपरि सूर्यः अस्ति ।

4. अधिशीड्स्थासां कर्म योगे द्वितीयाविभक्तिः

उपसर्गपूर्वक-शीङ्-स्था-आस् धातूनां प्रयोगे एषाम् आधारस्य कर्मसंज्ञा भवति, कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति (अधि शीस्थासां कर्म) । उदाहरणार्थम्- (“अधिशीस्थासां कर्म” ‘अधि’ ‘उपसर्गपूर्वक शीङ् (सोना), ‘स्था’ (ठहरना) एवं ‘अस्’ (बैठना) धातुओं के प्रयोग में इनके आधार की कर्म संज्ञा होती है। और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।

अधिशेते = सुरेशः शय्याम् अधिशेते ।

अधितिष्टति = अध्यापकः आसन्दिकाम् अधितिष्ठति ।

अध्यास्ते = नृपः सिंहासनम् अध्यास्ते ।

5. अभिनिविशश्च योगे द्वितीयाविभक्तिः

उपसर्गपूर्वक-वस् धातोः प्रयोगे अस्य आधारस्य कर्मसंज्ञा भवति, कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति (उपान्वध्याङ्वासः) । (उपान्वध्याङ्वास” उप, अधि, आङ् (अ) उपसर्गपूर्वक ‘वस्’ धातु के प्रयोग में इसके आधार की कर्म संज्ञा होती है। अर्थात् वस धातु से पहले उप, अनु, अधि और आङ् (आ) उपसर्गों में से कोई भी उपसर्ग लगता हो, तो वस् धातु के आधार की कर्म संज्ञा होती है अर्थात् सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति ही लगती है। और कर्म में द्वितीया विभक्ति लगती है।)

उपलब्धता = श्यामः नगरम् उपवसति ।

अनुवसति = कुलदीपः गृहम् अनुवसति ।

अधिवसति = सुरेशः जयपुरम् अधिवसति ।

आवसति  = हरिः वैकुण्ठम् आवसति ।

6. ” अभि-नि’ उपसर्गद्वयपूर्वक योगे द्वितीयाविभक्तिः

विश्- धातोः प्रयोगे सति अस्य आधारस्य कर्म-संज्ञा भवति, कर्मणि द्वितीया विभक्तिः भवति (अभिनिविशश्च ) । (” अभिनिविशश्च” विश् धातु के प्रयोग के ” अधि और नि” ये दो उपसर्ग लगने पर इसके आधार की कर्म संज्ञा होती है और कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।)

अभिनिविशते = दिनेशः ग्रामम् अभिनिविशत |

7. कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे द्वितीयाविभक्तिः

(कालवाचक और मार्गवाचक शब्द में अत्यन्त संयोग होने पर गम्यमान में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।) कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे ।)

सुरेशः अत्र पञ्चदिनानि पठति । (सुरेश यहाँ लगातार पांच दिन से पढ़ रहा है।)

मोहन मासम् अधीते ।(मोहन लगातार महीने भर से पढ़ता है।) 

नदी क्रोशं कुटिला अस्ति।(नदी कोस भर तक लगातार टेढ़ी है।)

प्रदीप योजनं पठति ।(प्रदीप लगातार एक योजन तक पढ़ता है।)

करण कारक किसे कहते हैं 

तृतीया विभक्तिः ( करण कारक:)

क्रियासिद्धौ यत् सर्वाधिकं सहायकं भवति तस्य कारकस्य करणसंज्ञा भवति (साधकतमं करणम्)। कर्तरि करणे च (कर्तृकरणयोस्तृतीया इति पाणिनीय सूत्रेण) तृतीया विभक्तिः भवति। यथा- (कार्य की सिद्धि में जो सबसे अधिक सहायक होता है उस कारक की ‘करण’ संज्ञा होती है। (साधकतमं करणम् ।)

1. ‘कर्तृकरणयोस्तृतीया” इस पाणिनीय सूत्र से (भाववाच्य अथवा कर्मवाच्य के) कर्त्ताकारक में तथा करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे- 

  • जागृतिः कलमेन लिखति ।
  • वैशाली जलेन मुखं प्रक्षालयति ।
  • रामः दुग्धेन रोटिकां खादति ।
  • सुरेन्द्रः पादाभ्यां चलति ।

2. कर्मवाच्यस्य भाववाच्यस्य वा अनुक्तकर्तरि अपि तृतीया विभक्ति भवति । यथा-

  • रामेण लेख: लिख्यते। (कर्मवाच्ये) 
  • मया जलं पीयते। (कर्मवाच्ये)
  • तेन हस्यते। (भाववाच्ये)

3. सह- साकम्-समम्-साधर्म-शब्दानां योगे तृतीया विभक्तिः भवति (सहयुक्तेऽप्रधाने)। यथा-

  • जनकः पुत्रेण सह गच्छति ।
  • सीता गीतया साकं पठति ।
  • ते स्वमित्रैः सार्धं क्रीडन्ति ।
  • त्वं गुरुणा सह वेदपाठं करोषि । 

4. येन विकृतेन अङ्गएन अङ्गिनः विकारो लक्ष्यते तस्मिन् विकृताङ्गे तृतीया भवति (येनाङ्गविकारः) । यथा-

  • सः नेत्रेण काणः अस्ति ।
  • बालकः कर्णेन बधिरः वर्तते ।
  • साधुः पादेन खञ्जः अस्ति ।
  • श्रेष्ठी शिरसा खल्वाटः विद्यते ।
  • सूरदासः नेत्राभ्याम् अन्धः आसीत् ।

5. येन चिह्नेन कस्यचिद् अभिज्ञानं भवति तस्मिन् चिह्नवाचिनि शब्दे तृतीया विभक्तिः भवति (इत्थंभूतलक्षणे) । यथा- 

  • सः जटाभिः तापसः प्रतीयते ।
  • सः बालकः पुस्तकैः छात्रः प्रतीयते ।

6. हेतुवाचिशब्दे तृतीया विभक्तिः भवति (हेतौ) यथा-

  • पुण्येन हरिः दृष्टः ।
  • सः अध्ययनेन वसति ।
  • विद्यया यशः वर्धते ।
  • विद्या विनयेन शोभते ।

7. प्रकृति – आदिक्रियाविशेषणशब्देषु तृतीया विभक्तिः भवति (प्रकृत्यादिभ्यः उपसंख्यानम्) –

  • सः प्रकृत्य साधुः अस्ति ।
  • गणेशः सुखेन जीवति ।
  • प्रियंका सरलतया लिखति ।
  • मूर्खः दुःखेन जीवति ।

8. निषेधार्थकस्य अलम् इति शब्दस्य योगे तृतीया विभक्तिः भवति । यथा-

  • अलं हसितेन ।
  • अलं विवादेन ।

सम्प्रदान कारक किसे कहते हैं 

चतुर्थी विभक्तिः ( सम्प्रदान कारक:)

1. दानस्य कर्मणा कर्ता में सन्तुष्टं कर्तुम् इच्छति सः सम्प्रदानम् इति कथ्यते (कर्मणा यमभिप्रति स सम्प्रदानम्।) सम्प्रदाने च (‘चतुर्थी सम्प्रदाने) चतुर्थी विभक्तिः भवति। (दान कर्म के द्वारा कर्ता जिसको सन्तुष्ट करना चाहता है वह सम्प्रदान कहा जाता है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा-

  • नृपः निर्धनाय धनं यच्छति।
  • बालकः स्वमित्राय पुस्तकं ददाति । 
  • सः याचकेभ्यः वस्त्राणि यच्छति ।

2. रुच्यर्थानां प्रीयमाण: योगे तृतीया विभक्तिः 

रुच्यर्थानां धातूनां प्रयोगे यः प्रीयमाणः भवति तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति (रुच्यर्थानां प्रीयमाणः) (रुचि अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जो प्रसन्न होने वाला होता है उसकी सम्प्रदान संज्ञा हो है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।)यथा-

  • भक्ताय रामायणं रोचते (भक्त को रामायण अच्छी लगती है।) 
  • बालकाय मोदका: रोचन्ते (बालक को लड्डू अच्छे लगते हैं।)
  • गणेशाय दुग्धं स्वदते। (गणेश को दूध पसन्द है।)

3. क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोप: योगे तृतीया विभक्तिः

क्रुधादि-अर्थानां धातूनां प्रयोगे यं प्रति कोपः क्रियते तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्ति: भवति। ( क्रुधदुहेर्थ्यासूयार्थानां यं प्रति कोपः ।) (क्रुद्ध आदि अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जिसके ऊपर क्रोध किया जाता है उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति आती है।)

  • क्रुध् = पिता पुत्राय क्रुध्यति ।
  • द्रुह् = किंकरः नृपाय द्रुह्यति ।
  • ईर्ष्य = दुर्जनः सज्जनाय ईर्ष्यति ।
  • असूय = सुरेशः महेशाय असूयति ।

4. स्पृहेरीप्सित: योगे तृतीया विभक्तिः

स्पृह (ईप्सायां ) धातोः प्रयोगे यः ईप्सितः भवति तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति (स्पृहेरीप्सितः) । यथा-

  • स्पृह बालकः पुष्पाय स्पृहयति ।

5. स्वस्तिस्वहास्वधालंवषड्योगाश्च चतुर्थी विभक्तिः 

नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट्, इति शब्दानां योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति ( नमः स्वस्तिस्वाहास्व- धालंवषड्योगाच्च । यथा-

  • नमः = रामाय नमः ।
  • स्वस्ति = गणेशाय स्वस्ति । 
  • स्वाहा = प्रजापतये स्वाहा।
  • स्वधा = पितृभ्यः स्वधा । 
  • वषट् = सूर्याय वषट् ।
  • अलम् = दैत्येभ्यः हरिः अलम् ।

6. धारेरुत्तमर्ण: योगे चतुर्थी विभक्तिः 

धृञ् (धारणे) धातोः प्रयोगे यः उत्तमर्णः (ऋणदाता) भवति तस्य सम्प्रदान संज्ञा स्यात्, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति (धारेरुत्तमर्णः)। यथा- 

  • देवदत्तः यज्ञदत्ताय शतं धारयति ।

7. तादर्थ्ये चतुर्थी विभक्तिः 

यस्मै प्रयोजनाय या क्रिया क्रियते तस्मिन् प्रयोजनवाचिनि शब्दे चतुर्थी विभक्तिः भवति (तादर्थ्ये चतुर्थी वाच्या) । यथा-

  • स: मोक्षाय हरिं भजता।
  • बालक: दुग्धाय क्रदन्ति।
अपादान कारक किसे कहते हैं 

पंचमी विभक्तिः ( अपादान कारक:)

अपादाने पंचमी विभक्तिः

1. अपाये सति यद् ध्रुवं तस्य अपादान संज्ञा भवति (ध्रुवमपायेऽपादानम्) अपादाने च (अपादाने पञ्चमी) पंचमी विभक्तिः भवति। (पृथक् होने पर जो स्थिर है उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा-

  • वृक्षा पत्रं पतति (वृक्ष से पत्ता गिरता है।)
  • नृपः ग्रामात् आगच्छति (राजा गाँव से आता है।)

2. भीत्रार्थानां भयहेतु: योगे पंचमी विभक्तिः 

भयार्थानां रक्षणार्थानां च धातूनां प्रयोगे भयस्य यद् हेतुः अस्ति तस्य आपादान संज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (भीत्रार्थानां भयहेतुः) यथा-

  • बालकः सिंहात् विभेति । 
  • नृपः दुष्टात् रक्षति/त्रायते ।

3. आख्यातोपयोगे पंचमी विभक्तिः 

यस्मात् नियमपूर्वकं विद्या गृह्यते तस्य शिक्षकादिजनस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति यथा-

  • शिष्यः उपाध्यायात् अधीते । 
  • छात्रः शिक्षकात् पठति ।

4. जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसंख्यानम् योगे पंचमी विभक्तिः 

जुगुप्सा-विराम प्रमादार्थकधातूनां प्रयोगे यस्मात् घृणादि क्रियते तस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति । यथा-

  • महेशः पापात् जुगुप्सते।
  • कुलदीपः अधर्मात् विरमति ।
  • मोहनः अध्ययनात् प्रमाद्यति । 

5. भुवः प्रभावः योगे पंचमी विभक्तिः 

भूधातोः यः कर्ता, तस्य यद् उत्पत्तिस्थानम्, तस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (भुवः प्रभावः) । यथा-

  • गंगा हिमालयात् प्रभवति ।
  • काश्मीरात् वितस्ता नदी प्रभवति ।

6. जनिकर्तृ: प्रकृतिः योगे पंचमी विभक्तिः 

जन् धातोः यः कर्त्ता, तस्य या प्रकृति: (कारणम् हेतुः) तस्य अपादानसंज्ञा भवति, अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति यथा- 

  • गोमयात् वृश्चिकः जायते।
  • कामात् क्रोधः जायते।
सम्बन्ध कारक किसे कहते हैं 

षष्ठी विभक्तिः (सम्बन्ध कारक:)

1. सम्बन्धे षष्ठी विभक्तिः भवति। ( पष्ठी शेषे ) (सम्बन्ध में पष्ठी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा-

  • रमेशः संस्कृतस्य पुस्तकं पठति (रमेश संस्कृत की पुस्तक पढ़ता है।)

2. यतश्च निर्धारणम् योगे षष्ठी विभक्तिः 

यदा बहुषु कस्यचित् एकस्य जातिगुणक्रियाभिः विशेषता प्रदश्यते तदा विशेषणशब्देः सह इष्टन् अथक म प्रत्ययस्य योगः क्रियते यस्मात् च विशेषता प्रदश्यते तस्मिन् पष्ठी विभक्तेः अथवा सप्तमीविभक्तेः प्रयोगः भवति ( यतश्च निर्धारणम्।) (जब बहुत में से किसी एक की जाति, गुण, क्रिया के द्वारा विशेषता प्रकट की है विशेषण शब्दों के साथ इष्ठन् अथवा तमप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है, उसमें षष्ठी विभक्ति अथवा सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है) यथा-

  • कवीनां (कविषु या) कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति।
  • छात्राणां (छात्रेषु वा सुरेश: पटुतमः अस्ति।
  • नदीनां नदीषु गङ्गा पवित्रतमा अस्ति

3. तुल्यार्थैर-तुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम् योगे षष्ठी विभक्तिः 

तुल्यवाचिशब्दानां योगे षष्ठी अथवा तृतीया विभक्तिः भवति । (तुल्यार्थैर-तुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम्) (तुल्यवाची शब्दों के योग में पष्ठी अथवा तृतीया विभक्ति होती है।) यथा- 

  • सुरेश: महेशस्य (महेशेन वा) तुल्यः अस्ति। 
  • सीता गीतायाः (गीतया वा) तुल्या विद्यते।
अधिकरण कारक किसे कहते हैं 

सप्तमी विभक्तिः (अधिकरण कारक:)

1. क्रियायाः सिद्धौ यः आधारः भवति तस्य अधिकरणसंज्ञा भवति (आधारोऽधिकरणम्।) अधिकरणे च (सप्तम्यधिकरणे च ) सप्तमी विभक्तिः भवति। (क्रिया की सिद्धि में जो आधार होता है, उसकी अधिकरण संज्ञा होती है और अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है।) यथा-

  • नृपः सिंहासने तिष्ठति । 
  • वयंग्रामे निवसामः ।
  • तिलेषु तैलं विद्यते।

2. यस्मिन् स्नेहः क्रियते तस्मिन् सप्तमी विभक्तिः भवति। (जिसमें स्नेह किया जाता है उसमें सप्तमी विभक्ति

का प्रयोग होता है।) यथा-

  • पिता पुत्रे नियति।

3. लग्नार्थक शब्दानां चतुरार्थकशब्दानां च योगे सप्तमी विभक्तिः भवति। (संलग्नार्थक योग में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) यथा-

  • बलदेवः स्वकार्ये संलग्नः अस्ति। 
  • जयदेवः संस्कृते चतुरः अस्ति ।

4. अधोलिखितशब्दानां योगे सप्तमी विभक्तिः भवति। (निम्नलिखित शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती

है) यथा-

(i) श्रद्धा (ii) विश्वास:

  • बालकस्य पितरि श्रद्धा अस्ति। 
  • महेशस्य स्वमित्रे विश्वासः अस्ति।

5. ख़ुदा एकक्रियायाः अनन्तरं अपरा क्रिया भवति तदा पूर्वक्रियायां तस्याश्च कर्तरि सप्तमी विभक्तिः भवति । { यस्य च भावेन भावलक्षणम्) (जब एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया होती है तब पूर्व क्रिया में और उसके कर्त्ता में सप्तमी विभक्ति होती है।) यथा-

  • रामे वनं गते दशरथः प्राणान् अत्यजत् । (राम के वन जाने पर दशरथ ने प्राणों को त्याग दिया।)
  • सूर्ये अस्तं गते सर्वे बालकाः गृहम् अगच्छन् । ( सूर्य के अस्त होने पर सभी बालक घर चले गए।)

👉 इन्हें भी पढ़ें 

  • संस्कृत में उपसर्ग
  • संस्कृत में शब्दरुपाणि
  • 1 से 1000 तक संस्कृत में गिनती 
  •  Rajasthan board 

You Might Also Like

क्त्वा प्रत्यय | Ktwa pratyay in Sanskrit

खाद् धातु के रुप – Khad Dhatu Roop in Sanskrit

चुर् धातु के रुप संस्कृत में – Chur Dhatu ke Roop In Sanskrit

दीपावली पर संस्कृत में निबंध | Essay on diwali in sanskrit

नर शब्द के रूप | Nar Shabd ke Roop

TAGGED:karak in SanskritKarak sanskrit viyakranKarak VibhaktiSanskrit mein karak
Share This Article
Facebook Whatsapp Whatsapp LinkedIn Telegram Email Copy Link
Previous Article upasarg उपसर्ग प्रकरण – संस्कृत में उपसर्ग – संस्कृत व्याकरण, हिंदी
Next Article संसारसागरस्य नायका Ncert Class 8 Sanskrit Chapter 8 संसारसागरस्य नायका

Follow US

Find US on Social Medias
2.7k Like
547 Follow
1.9k Subscribe
1.2k Follow
Also Read
RRB NTPC Admit Card 2025

RRB NTPC Admit Card 2025: Sarkari Result Link, Release Date, Official Download & CBT 1 Details

RBSE Class 10 download 5 years old paper
राजस्थान बोर्ड कक्षा 11वी की अर्धवार्षिक परीक्षा का टाइम टेबल जारी 2024, RBSE 11th Class Time Table 2024: यहां से डाउनलोड करें
RBSE Class 11th Time Table Download 2024,जिलेवार कक्षा 11वीं वार्षिक परीक्षा समय सारणी डाउनलोड करें-
NEET MDS Results 2024 Download Check scorecard, नीट एमडीएस का रिजल्ट इस तारीख को होगा जारी

Find Us on Socials

Follow US
© SanskritDharaVahni. All Rights Reserved.
  • Home
  • NCERT Books
  • Half Yearly Exam
  • Syllabus
  • Web Story
  • Latest News
adbanner
AdBlock Detected
Our site is an advertising supported site. Please whitelist to support our site.
Okay, I'll Whitelist
Welcome Back!

Sign in to your account