वृद्धि संधि (Vriddhi Sandhi) In Sanskrit | ‘‘वृद्धिरेचि’’ | वृद्धि संधि के 100 के उदाहरण
वृद्धि संधि (Vriddhi Sandhi) ‘‘वृद्धिरेचि’’ संस्कृत भाषा में एक विशेष प्रकार की व्याकरणिक संधि है जिसमें दो वर्णों के मिलन से एक नया वर्ण उत्पन्न होता है। इस संधि में प्राथमिक वर्ण के गुण या उच्चारण में परिवर्तन होता है। वृद्धि संधि का मुख्य उद्देश्य भाषा की सुधार और उच्चारण को सुगम बनाना है।
वृद्धि संधि की परिभाषा संस्कृत में
वृद्धि संधि ‘‘वृद्धिरेचि’’ सूत्र द्वारा संहिता के विषय में अ/आ वर्ण से परे ‘एच्’ (ए, ओ, ऐ, औ) होने पर पूर्व पर वर्णों के स्थान पर वृद्धि एकादेश (आ, ऐ, औ) होता है। जैसे:- जन+एकता: = जनैकता:, एक+एक: = एकैक:, आदि।
वृद्धि संधि के नियम – संस्कृत
जब अ/आ के बाद ए/ऐ आये तो ‘ऐ’ बन जाता है।
जब अ/आ के बाद ओ/औ आये तो ‘औ’ बन जाता है।
जब अ/आ के बाद ऋ/ऋ आये तो ‘आर्’ बन जाता है।
वृद्धि संधि का सूत्र:- ‘‘वृद्धिरेचि’’।
वृद्धि संधि के शौर्ट नियम
वृद्धि संधि का सूत्र:- ‘‘वृद्धिरेचि’’। |
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अ/आ + ए/ऐ = ऐ |
अ/आ + ओ/और = औ |
अ/आ + ऋ = आर् |
वृद्धि संधि के उदाहरण
गंगैषा: = गंगा+एषा: (आ+ए = ऐ)
ऊपर दिए गए गणेश उदाहरण का संधि विच्छेद किया तब प्रथम पद ‘गंगा’ के अन्तिम वर्ण में ‘आ’ और दूसरे पद ‘एषा:’ के प्रथम पद में ‘ए’ वर्ण आने पर दोनों मिलकर ‘ऐ’ बन गया है तब ‘गंगैषा:’ बना है।
वनौषधि: = वन+ओषधि: (अ+ओ = औ)
ऊपर दिए गए वनौषधि: उदाहरण का संधि विच्छेद किया तब प्रथम पद ‘वन’ के अन्तिम वर्ण में ‘अ’ और दूसरे पद ‘ओषधि:’ के प्रथम पद में ‘ओ’ वर्ण आने पर दोनों मिलकर ‘औ’ बन गया है तब ‘वनौषधि:’ बना है।
सुखार्त: = सुख+ऋत: (अ+ऋ = आर्)
ऊपर दिए गए सुखार्त: उदाहरण का संधि विच्छेद किया तब प्रथम पद ‘सुख’ के अन्तिम वर्ण में ‘अ’ और दूसरे पद ‘ऋत:’ के प्रथम पद में ‘ऋ’ वर्ण आने पर दोनों मिलकर ‘आर्’ बन गया है तब ‘सुखार्त:’ बना है।
1. अ/आ + ए/ऐ = ऐ |
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जन+एकता = जनैकता |
एक+एक: = एकैक: |
अत्र+एकमत्यम् = अत्रैकमत्यम् |
राज+एष: = राजैष: |
बाला+एषा = बालैषा |
तथा+एव = तथैव |
गंगा+एषा = गंगैषा |
सदा+एव = सदैव |
देव+ऐश्वर्यम् = देवैश्वर्यम् |
दीर्घ+ऐकार: = दीर्घैकार: |
नृप+ऐश्वर्यम् = नृपैश्वर्यम् |
महा+ऐश्वर्यम् = महैश्वर्यम् |
2. अ/आ+ओ/औ = औ |
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वन+ओषधि: = वनौषधि: |
जल+ओघ: = जलौघ: |
गंगा+ओघ: = गंगौघ: |
महा+ओजस: = महौजस: |
बिम्ब+ओष्ठी = बिम्बौष्ठी |
कृष्ण+औत्कण्ठयम् = कृष्णौत्कण्ठयम् |
तव+औदार्यम् = तवौदार्यम् |
जन+औचित्यम् = जनौचित्यम् |
राम+औत्सुक्यम् = रामौत्सुक्यम् |
महा+औषधि: = महौषधि: |
मम+औदासीन्यम् = ममौदासीन्यम् |
3. अ/आ+ऋ = आर् |
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प्र+ऋच्छति = प्रार्च्छति |
कम्बल+ऋणम् = कम्बलार्णम् |
दश+ऋण: = दशार्ण: |
सुख+ऋत: = सुखार्त: |
वसन+ऋणम् = वसनार्णम् |
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