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Sanskrit Dhara Vahini > Hindi Vyakaran > Anupras Alankar | अनुप्रास अलंकार की परिभाषा
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Anupras Alankar | अनुप्रास अलंकार की परिभाषा

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Anupras Alankar – भेद, प्रकार, उदाहरण, परिभाषा

Anupras Alankar किसे कहते हैं 

Contents
Anupras Alankar – भेद, प्रकार, उदाहरण, परिभाषा Anupras Alankar | अनुप्रास अलंकार, भेद, प्रकार, उदाहरण, परिभाषा अलंकारो के महत्वपूर्ण 100 उदाहरण

अनुप्रास अलंकार की परिभाषा – जहाँ काव्य पंक्ति में वर्णों की आवृत्ति एक अधिक बार हो, चाहे उसमें स्वरों की समानता हो या विषमता, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण 1.

‘भगवान ! भक्तों की भयंकर भूरि भीति भगाइये। ‘ उपर्युक्त काव्य पंक्ति में ‘भ’ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है। अतः ध्यान देने की बात यह है कि यहाँ अनुप्रास अलंकार है। यहाँ ‘भ’ वर्ण में स्वरों की विषमता है-‘भगवान,’ ‘भूरि’, ‘भीति’।

उदाहरण 2.

‘उसकी मधुर मुस्कान किसके हृदयतल में ना बसी।’

प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘मधुर मुस्कान’ में ‘म’ वर्ण का दो बार प्रयोग हुआ है, यद्यपि स्वरों में भिन्नता है। यहाँ भी अनुप्रास अलंकार का सौन्दर्य विद्यमान है।

उदाहरण 3.

‘छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की।’

उपर्युक्त काव्य पंक्ति में अंतिम वर्ण ‘ट’ और ‘र’ की एक से अधिक बार आवृत्ति होने से काव्य सौन्दर्य आ गया है।

उदाहरण 4.

‘विभवशालिनी, विश्वपालिनी दुख हर्ती है, भय निवारिणी, शांतिकारिणी सुख कर्ती है।

उपर्युक्त पंक्ति में पास-पास प्रयुक्त शब्द ‘विभवशालिनी’ और ‘विश्वपालिनी’ में अन्तिम दो वर्णों ‘ल’, ‘न’ की आवृत्ति और ‘भयनिवारिणी’ तथा ‘शांतिकारिणी’ में भी अन्तिम दो वर्णों ‘र’,’ण’ की आवृत्ति हुई है।

उदाहरण 5.

‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।’

उपर्युक्त काव्य पंक्ति में ‘त’ वर्ण को आवृत्ति पाँच बार हुई है। सभी ‘त’ वर्ण क्रमशः शब्दों के प्रारम्भ में आए हैं तथा उनके स्वर भी समान हैं, अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

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Anupras Alankar | अनुप्रास अलंकार, भेद, प्रकार, उदाहरण, परिभाषा

Anupras Alankar
Anupras Alankar

अनुप्रास अलंकार के भेद-

अनुप्रास अलंकार के चार भेद होते हैं।

  1. छेकानुप्रास
  2. वृत्यानुप्रास
  3. श्रुत्यानुप्रास
  4. अन्त्यानुप्रास

छेकानुप्रास अलंकार किसे कहते हैं। 

अलंकारो के महत्वपूर्ण 100 उदाहरण

छेकानुप्रास  अलंकार की परिभाषा :- काव्य में एक या एक से अधिक वर्णों की आवृत्ति केवल एक बार ही होती है, जैसे- ‘कानन कठिन भयंकर भारी।’ इस काव्य पंक्ति में ‘क’ वर्ण तथा ‘भ’ वर्ण केवल दो-दो बार आए हैं, अतः यहाँ छेकानुप्रास अलंकार है।

वृत्यानुप्रास अलंकार किसे कहते हैं।

वृत्यानुप्रास अलंकार की परिभाषा:- जहाँ एक या अनेक वर्णों की एक से अधिक बार आवृत्ति हो, वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है, जैसे- ‘विरति विवेक विमल विज्ञानी।’ इस काव्य पंक्ति में ‘व’ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है, अतः यहाँ वृत्यानुप्रास है।

श्रुत्यानुप्रास अलंकार किसे कहते हैं। 

श्रुत्यानुप्रास अलंकार की परिभाषा:- जहाँ ऐसे वर्णों की आवृत्ति हो, जो मुख के एक ही उच्चारण-स्थान से उच्चरित हों, वहाँ श्रुत्यानुप्रास होता है, जैसे- ‘दिनान्त था, थे दिननाथ डूबते ।’ इस काव्य पंक्ति मे एक ही उच्चारण-स्थान ‘दन्त’ से उच्चरित होने वाले अनेक वर्णों ‘त, थ, द, न’ की आवृत्ति हुई है, अतः यहाँ श्रुत्यानुप्रास है।

अन्त्यानुप्रास अलंकार किसे कहते हैं।

अन्त्यानुप्रास अलंकार की परिभाषा :– छन्द के चरणों के अन्त में जहाँ एक समान वर्णों का प्रयोग हो, वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है, जैसे- ‘काली काली अलकों में, आलस-मद-नत पलकों में।‘ उपर्युक्त काव्य पंक्तियों के अन्तम वर्ण एक समान हैं। अतः इन तुकान्त (एक जैसी तुक वाली) पंक्तियों में अन्त्यानुप्रास है।

अनुप्रास के अन्य भेद 

लाटानुप्रास अलंकार किसे कहते हैं

लाटानुप्रास अलंकार की परिभाषा 

नोट- कुछ विद्वान् अनुप्रास का एक अन्य भेद ‘लाटानुप्रास’ भी मानते हैं। 

लाटानुप्रास अलंकार में शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति होती है और उनके अर्थ में भी कोई अन्तर नहीं होता, किन्तु अन्वय-भेद से अथवा वर्ण भेद से अर्थ (तात्पर्य) बदल जाता है, जैसे-‘पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग-नरक ता हेतु ।पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ण-नरक ता हेतु। ‘उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में वाक्यांश ज्यों के त्यों दुहराए गए हैं और उनके अर्थ भी एक समान हैं, किन्तु अल्पविराम का स्थान बदलकर अन्वय करने पर दोनों पंक्तियों का अर्थ बदल जाता है अतः यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।

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