बहुब्रीहि समास की परिभाषा, अर्थ, उदाहरण
बहुब्रीहि समास ” अन्य पद प्रधानम् सः बहुव्रीहि” अर्थात् जिस समस्त पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, और समस्तपद किसी अन्य के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। इस समास में शब्द अपने अर्थ को इंगित न कर किसी ओर के लिए प्रयुक्त होते हैं।
बहुव्रीहि समास के उदाहरण
- नाकपति -वह जो नाक (स्वर्ग) का पति है इन्द्र
- विषधर – विष को धारण करने वाला साँप
- वज्रपाणि – वह जिसके पाणि (हाथ) में वज्र है- इन्द्र
- वज्रायुध – वह जिसके वज्र का आयुध- इन्द्र
- शचीपति – वह जो शची का पति है-इन्द्र
- सहस्राक्ष – वह जिसके सहस्र (हजार) अक्षि (आँखें हैं- इन्द्र
- ब्रजवल्लभ – वह जो ब्रज का वल्लभ (स्वामी) है कृष्ण
- चक्रधर – चक्र धारण करने वाला श्री कृष्ण
- नंदनंदन – वह जो नंद का नंदन (पुत्र) है – कृष्ण
- पतझड़ – झड़ते हैं पत्ते जिसमें वह ऋतु वसंत
- मुरारि – वह जो मुर (राक्षस का नाम) के अरि (शत्रु) हैं कृष्ण
- दीर्घबाहु दीर्घ हैं बाहु जिसके विष्णु
- कुसुमशर – वह जिसके कुसुम के शर (बाण) हैं- कामदेव
- पंचशर – वह जिसके पाँच (पाँच फूलों के) शर हैं- कामदेव
- पुष्पधन्वा – वह जिसके पुष्पों का धनुष है- कामदेव
- मकरध्वज वह जिसके मकर का ध्वज है – कामदेव
- रतिकांत – वह जो रति का कांत (पति) है – कामदेव पतिव्रता -एक पति का व्रत लेने वाली वह स्त्री
- आशुतोष शीघ्र (आशु) तुष्ट हो जाते हैं जो शिव
- इंदुशेखर वह जिनके इंदु (चन्द्रमा) शेखर (सिर का आभूषण) है- शिव
- तिरंगा – तीन रंगों वाला राष्ट्रध्वज
- पशुपति – पशुओं का पति (स्वामी) शिव
- अंशुमाली – अंशु है माला जिसकी सूर्य
- महेश्वर – महान् है जो ईश्वर- शिव
- महात्मा – महान् है आत्मा जिसकी ऋषि
- वाग्देवी – वह जो वाक् (भाषा) की देवी है- सरस्वती
- वक्रतुण्ड – वक्र है तुण्ड जिसकी गणेश
- पद्मनाभ -वह जिसकी नाभि में पद्म (कमल) है- विष्णु
- पुंडरीक – वह जो कमल के समान है- विष्णु
- दिगम्बर दिशाएँ ही हैं वस्त्र जिसके शिव
- गरुड़ध्वज – वह जिनके गरुड़ का ध्वज है – विष्णु
- हपीकेश – वह जो हृषीक (इंद्रियों) के ईश हैं- विष्णु/कृष्ण
- श्रीश – वह जो श्री (लक्ष्मी) के ईश हैं- विष्णु
- शेषशायी -वह जो शेष (नाग) पर शयन करते हैं – विष्णु घनश्याम जो धन के समान श्याम हैं श्रीकृष्ण
- हिरण्यगर्भ – वह जिसका हिरण्य (सोने) का गर्भ है-ब्रह्मा, चतुरानन,
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बहुव्रीहि समास की परिभाषा क्या है
” अन्य पद प्रधानम् सः बहुव्रीहि” अर्थात् जिस समस्त पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, और समस्तपद किसी अन्य के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। इस समास में शब्द अपने अर्थ को इंगित न कर किसी ओर के लिए प्रयुक्त होते हैं।
बहुव्रीहि समास के 20 उदाहरण बताइए।
नाकपति -वह जो नाक (स्वर्ग) का पति है इन्द्र
विषधर – विष को धारण करने वाला साँप
वज्रपाणि – वह जिसके पाणि (हाथ) में वज्र है- इन्द्र
वज्रायुध – वह जिसके वज्र का आयुध- इन्द्र
शचीपति – वह जो शची का पति है-इन्द्र
सहस्राक्ष – वह जिसके सहस्र (हजार) अक्षि (आँखें हैं- इन्द्र
ब्रजवल्लभ – वह जो ब्रज का वल्लभ (स्वामी) है कृष्ण
चक्रधर – चक्र धारण करने वाला श्री कृष्ण
नंदनंदन – वह जो नंद का नंदन (पुत्र) है – कृष्ण
पतझड़ – झड़ते हैं पत्ते जिसमें वह ऋतु वसंत
मुरारि – वह जो मुर (राक्षस का नाम) के अरि (शत्रु) हैं कृष्ण
दीर्घबाहु दीर्घ हैं बाहु जिसके विष्णु
कुसुमशर – वह जिसके कुसुम के शर (बाण) हैं- कामदेव
पंचशर – वह जिसके पाँच (पाँच फूलों के) शर हैं- कामदेव
पुष्पधन्वा – वह जिसके पुष्पों का धनुष है- कामदेव