कोरोना काल और शिक्षा पर निबंध हिंदी में | कोरोना पर निबंध हिंदी में | कोरोना पर लेख
कोरोना काल और शिक्षा पर निबंध संकेत बिन्दुः- (1) प्रस्तावना (2) शिक्षा संस्थाओं पर प्रभाव (3) ऑन लाइन शिक्षा की विफलता (4) शिक्षा पर वैश्विक कुप्रभाव के प्रमाण (5) सुधार के उपाय (6) उपसंहार ।
प्रस्तावना – जिन रोगों से बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होती है और जो संक्रमण से फैलते हैं, उन्हें महामारी कहा जाता है। महामारियों से मानव समाज का पुराना परिचय रहा है। प्लेग, हैजा, चेचक, डेंगू, फ्ल्यू आदि रोगों में एक और महामारी का नाम जुड़ गया है। वह है कोविड 19 या कोरोना। इस प्राकृतिक आपदा ने लाखों लोगों को अपना शिकार बनाया है। वैसे तो सारा सामाजिक ताना-बाना इससे चरमरा गया लेकिन विश्व की शिक्षा व्यवस्था पर इस विपत्ति का गहरा प्रभाव हुआ है।
कोरोना का आरंभ चीन से माना जाता है। थोड़े ही समय में इस रोग ने लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। चिकित्सा सेवाएँ नाकाफी साबित हुईं। सतर्क देशों ने इस संकट की भयंकरता को भाँप कर लाक डाउन व्यवस्था प्रारंभ कर दी। सारी सामाजिक गतिविधियों पर विराम सा लग गया। लोग घरों में बंद हो गए। विद्यालय बंद कर दिए गए। मास्क और 6 फीट की दूरी आवश्यक बना दी गई।
शिक्षा संस्थाओं पर प्रभाव – शिक्षा संस्थाओं पर इस विपत्ति का प्रहार कई रूपों में हुआ। छात्रों को घर में रोकना कठिन हो गया। शैक्षिक वर्ष व्यर्थ जाने की आशंकाएँ मँडराने लगीं। शिक्षा संस्थाओं के कर्मचारियों का वेतन चुकाने के लाले पड़ने लगे।
ऑन लाइन शिक्षा की विफलता-छात्रों का अध्ययन चलता रहे, इसके लिए ऑन लाइन शिक्षण की व्यवस्था प्रारंभ की गई। कई कारणों से यह विकल्प संतोषजनक सिद्ध नहीं हुआ। मोबाइल फोन या कम्प्यूटर पर कक्षा जैसा वातावरण बन पाना संभव नहीं था। निर्धन परिवार के छात्र-छात्राओं के लिए स्मार्ट फोन का प्रबंध करना एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया।
शिक्षा पर वैश्विक कुप्रभाव के प्रमाण– सारे विश्व की शिक्षा व्यवस्था पर इस बीमारी का दुष्प्रभाव पड़ा है। कुछ संस्थाओं ने इसके प्रमाण जुटाए हैं। कि महामारी के कारण स्कूल बंद होने से बच्चों के शिक्षा पाने के अधिकार में बाधाएँ आई हैं। ऑन लाइन शिक्षण की सुविधाएँ हर देश अपने छात्रों को नहीं दे पाया। संस्था ने अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 तक 60 देशों में छात्रों,अभिभावकों और शिक्षकों का साक्षात्कार करके साक्ष्य जुटाए। ह्यूमेन राइट्स संस्था ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि लाखों छात्रों के लिए स्कूलों का बंद होना उनकी शिक्षा में व्यवधान नहीं है बल्कि इससे उनकी पढ़ाई दोबारा आरंभ हो पाना कठिन हो गया है। इस संस्था द्वारा एकत्र किए गए अधिकांश बयान नकारात्मक और निराशाजनक हैं।
सुधार के उपाय– अब कोरोना का प्रभाव घट गया है। शैक्षिक गतिविधियाँ प्रारंभ हो गई हैं। शिक्षा को पटरी पर लाने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। कुछ सुझाव शिक्षा – विशेषज्ञों, शिक्षकों, अभिभावकों और सरकारी विभागों से सामने आए हैं-
(i) शिक्षकों को डिजिटल तरीकों से अध्यापन करने का प्रशिक्षण दिलाया जाना चाहिए।
(ii) निर्धन परिवारों के छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा में आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
(iii) महामारी के दौरान जिन छात्रों की शिक्षा बंद हो गई है, उन्हें सरकारें पुनः स्कूलों में प्रवेश दिलाएँ।
(iv) महामारी से जिन छात्रों के अभिभावक दिवंगत हो गए, उनको विशेष आर्थिक अनुदान और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना विश्व के सभी देशों की सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
(v) ग्रामीण क्षेत्रों, जनजातीय क्षेत्रों और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के छात्रों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए।
उपसंहार – महामारी ने सारे विश्व के नागरिकों को जहाँ बुरी तरह प्रभावित किया है वहीं उसने चेतावनी भी दी है कि वह अभी गई नहीं है। कोरोना नए-नए रूप बदलकर और अधिक आक्रामक रूप में सामने आ रहा है। डेल्टा और ओमिक्रान इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। समाचार पत्र बता रहे हैं कि देश के कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण की दर बढ़ रही है। अतः यदि हम चाहते हैं कि विद्यार्थियों की शिक्षा में फिर से बाधा न आए तो हमें कोरोना से संबंधित दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा।