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Reading: Hindi Vitan Class 12th Chapter 3 अतीत में दबे पॉव Question & Answer
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Hindi Vitan Class 12th Chapter 3 अतीत में दबे पॉव Question & Answer

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NCERT Solutions for Class 12 हिंदी वितान पाठ 3 अतीत में दबे पॉव

अतीत में दबे पॉव लेखक परिचय– जन्म सन् 1957 में शिक्षा-दीक्षा बीकानेर में। राजस्थान विश्वविद्यालय से व्यावसायिक प्रशासन में एम.कॉम। एडीटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के महासचिव। 1980 से 1989 तक नौ वर्ष ‘राजस्थान पत्रिका’ में रहे। ‘इतवारी पत्रिका’ के संपादन ने साप्ताहिक को विशेष प्रतिष्ठा दिलाई। सजग और बौद्धिक समाज में इतवारी पत्रिका ने अपने दौर में विशिष्ट स्थान बनाया। अपने सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं। अभिनेता और निर्देशक के रूप में स्वयं रंगमंच पर सक्रिय रहे हैं।

साहित्य, कला, सिनेमा, वास्तुकला, पुरातत्त्व और पर्यावरण में गहन दिलचस्पी रखते हैं। अस्सी के दशक में सेंटर फॉर साइंस एनवायरमेंट (सीएसई) की फेलोशिप पर राजस्थान के पारंपरिक जल स्रोतों पर खोजबीन कर विस्तार से लिखा। पत्रकारिता के लिए अन्य पुरस्कारों के साथ गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार प्रदत्त। 1999 से संपादक के नाते दैनिक जनसत्ता दिल्ली और कलकत्ता के संस्करणों का दायित्व संभाला। पिछले 17 वर्षों से इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ में संपादक के रूप में कार्यरत ।

पाठ-परिचय-— ओम थानवी’ की यह रचना यात्रा वृत्तान्त और रिपोर्ताज का मिला रूप है। लेखक ने विश्व की प्राचीनतम नगर सभ्यता ‘सिंधु घाटी’ के प्रमुख शहर मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के खण्डहरों का जीवन्त शैली में वर्णन किया है।

प्रश्न 1. सिंधु सभ्यता साधनसम्पन्न थी पर उसमें भव्यता का आडम्बर नहीं था । कैसे ? “

उत्तर-सिंधु सभ्यता साधनसम्पन्न थी। उसके दो शहर मोहनजोदड़ो और हड़प्पा इसके प्रमाण हैं। खुदाई में प्राप्त अवशेष बताते हैं कि इन नगरों में भट्ठी में पकी हुई एक विशेष आकार की ईंटों का प्रयोग भवन निर्माण, स्नानागार बनाने, कुओं के निर्माण तथा नालियों एवं भण्डारगृहों के बनाने में किया जाता था। चौड़ी सड़कों पर बैलगाड़ियाँ माल ढोती थीं। अनेक वस्तुओं का आयात-निर्यात होता था, उन्नत खेती थी।

स्वास्थ्य की दृष्टि से स्नानघरों से पानी की निकासी ढकी हुई नालियों से होती थी। स्वच्छ जल के लिए कुओं का निर्माण किया गया था, अजायबघर में प्रदर्शित वस्तुएँ इसकी समृद्धि की कहानी कहती हैं। यहाँ के लोग ताँबा आदि धातुओं से परिचित थे। चॉक पर बने मिट्टी के बड़े-बड़े बर्तनों पर चित्र बनाये जाते थे, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तोल के पत्थर, पाटों वाली चक्की, मिट्टी की बैलगाड़ी, पत्थरों के मनकों के हार, सोने के ये सब चीजें एक साधन-सम्पन्न सभ्यता की निशानी हैं।

परन्तु एक सादगी से भरी सभ्यता होने के कारण इसको भव्य नहीं माना गया। छोटे मकान, राजाओं, महंतों की विशाल समाधियों,राजप्रासादों और भव्य मन्दिरों का अभाव, नरेश के सिर का छोटा मुकुट, छोटी नावें आदि इसे भव्यता के आडंबर से रहित बनाती हैं। यह सभ्यता राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाजपोषित थी। अतः साधनसम्पन्न होते हुए भी यह भव्य नहीं कही जा सकती। इसकी सम्पन्नता की बात इसलिए चर्चा में अधिक नहीं रही क्योंकि यहाँ भव्यता का आडंबर कतई नहीं था।

प्रश्न 2. सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य-बोध है जो राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाजपोषित था। ऐसा क्यों कहा गया ?

उत्तर- सिंधु घाटी सभ्यता वहाँ के निवासियों को कलाप्रेमी, सुरुचिसम्पन्न सिद्ध करती है। खुदाई में प्राप्त पुरा-अवशेष इस धारणा को पुष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं। सिंधु सभ्यता में प्राप्त नगर पूर्णतया नियोजित हैं, चौड़ी सड़कों के दोनों तरफ समांतर बनी पक्की ढकी हुई नालियाँ हैं, स्नानागारों से निकला मैल या गंदा पानी इनमें होकर बाहर बहता था।

ऊँचाई पर स्थित बौद्ध स्तूप, ज्ञानशाला, कोठार, दो मंजिला भवन, सीढ़ियाँ, सामूहिक स्नान के लिए जल तक उतरने के लिए सुन्दर सीढ़ियों वाले महाकुंड आदि उनके कला-प्रेम एवं वास्तुकला में पारंगत होने के प्रमाण हैं। चॉक पर बनाये मिट्टी के भाँडों (बर्तनों) पर पशु-पक्षियों के चित्र, माला,आदि बारीक आकृतियाँ उत्कीर्ण की हुई मुहरें, केश विन्यास और ताँबे का आईना, आभूषण और सुघड़ अक्षरों वाली लिपि, सभी वस्तुएँ उनके कला प्रेम को प्रकट करती हैं।

अतः सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौन्दर्य-बोध है जो राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाजपोषित है। यहाँ के निर्माण एवं वस्तुओं में आकार की भव्यता न होकर कला की भव्यता देखी जा सकती है जो राजमहलों या मन्दिरों में होती है और जो वास्तव में समाजपोषित ही होती है। अतः यह उन्हें कला-प्रेमी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।

प्रश्न 3. पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि – “सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”

उत्तर- सिंधु घाटी में खुदाई द्वारा प्राप्त सभ्यता के अवशेष जो अजायबघरों (संग्रहालयों) में रखे हुए हैं उनमें अनेक कलापूर्ण वस्तुओं का होना तो मिलता है लेकिन यहाँ की प्रदर्शित वस्तुओं में किसी भी प्रकार के हथियार नहीं मिलते। इससे सिद्ध होता है कि वहाँ राजतन्त्र जैसा कोई सत्ता का केन्द्र नहीं था। ऐसा प्रतीत होता है कि वहाँ स्वतः अनुशासन था, जो ताकत के बल पर नहीं हो सकता। पुरातत्व के विद्वान मानते हैं कि वहाँ कोई सैन्य सत्ता नहीं थी, मगर अनुशासन जरूर था

जैसा कि वहाँ की नगर- र-योजना, वास्तुशिल्प, मुहरें, पानी की निकासी और स्वच्छता का बोध आदि सामाजिक व्यवस्थाओं की एकरूपता को देखकर अनुभव होता है। दूसरी सभ्यताओं के पुरा – अवशेषों में राजतंत्र की ताकत को दिखाने वाले राजप्रासाद, मन्दिर, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। यहाँ ये वस्तुएँ नहीं मिली हैं। यहाँ की मूर्तियाँ और औजार, नावें आदि छोटी हैं। यहाँ के नरेश के सिर का मुकुट भी छोटा है। अतः सिंधु सभ्यता ताकत से अनुशासित न होकर समझ से अनुशासित सभ्यता थी।

प्रश्न 3, पुरातत्व के किन चिह्नों के आधार पर आप यह कह सकते हैं कि- “सिंधु सभ्यता ताकत से शासित होने की अपेक्षा समझ से अनुशासित सभ्यता थी।”

उत्तर- सिंधु घाटी में खुदाई द्वारा प्राप्त सभ्यता के अवशेष जो अजायबघरों (संग्रहालयों) में रखे हुए • हैं उनमें अनेक कलापूर्ण वस्तुओं का होना तो मिलता है लेकिन यहाँ की प्रदर्शित वस्तुओं में किसी भी प्रकार के हथियार नहीं मिलते। इससे सिद्ध होता है कि वहाँ राजतन्त्र जैसा कोई सत्ता का केन्द्र नहीं था। ऐसा प्रतीत होता है कि वहाँ स्वतः अनुशासन था, जो ताकत के बल पर नहीं हो सकता। पुरातत्व के विद्वान मानते हैं कि वहाँ कोई सैन्य सत्ता नहीं थी, मगर अनुशासन जरूर था जैसा कि

वहाँ की नगर-योजना, वास्तुशिल्प, मुहरें, पानी की निकासी और स्वच्छता का बोध आदि सामाजिक व्यवस्थाओं की एकरूपता को देखकर अनुभव होता है। दूसरी सभ्यताओं के पुरा-अवशेषों में राजतंत्र की ताकत को दिखाने वाले राजप्रासाद, मन्दिर, मूर्तियाँ और पिरामिड आदि मिलते हैं। यहाँ ये वस्तुएँ नहीं मिली हैं। यहाँ की मूर्तियाँ और औजार, नावें आदि छोटी हैं। यहाँ के नरेश के सिर का मुकुट भी छोटा है। अतः ● सिंधु सभ्यता ताकत से अनुशासित न होकर समझ से अनुशासित सभ्यता थी।

प्रश्न 4. “यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँअब आपको कहीं नहीं ले जातीं, वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती हैं। लेकिन इन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, यहाँ से आप इतिहास को नहीं इसके पार झाँक रहे हैं।” इस कथन के पीछे लेखक का क्या आशय है ?

उत्तर- मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई से पूर्व विश्व में मिस्र और मेसोपोटामिया (इराक) की सभ्यता को ही विश्व की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता माना जाता था। परन्तु सिंधु सभ्यता की खोज ने इसे विश्व की सर्वोच्च सभ्यता सिद्ध कर दिया है। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो यहाँ की नगर नियोजन कला अपूर्व है। यहाँ की चौड़ी और सीधी सड़कें, पक्की ईंटों के पंक्तिबद्ध मकान (कुछ मकान दो मंजिल के भी बने हैं, जहाँ तक अधूरी सीढ़ियाँ बनी हैं),’मुअनजोदड़ो’ की खुदाई में मिले घरों की सीढ़ियाँ टूट-फूट गई हैं, उन पर होकर मकान के ऊपर तक जाना सम्भव नहीं है।

किन्तु ये टूटी और अधूरी सीढ़ियाँ हमें इस सभ्यता के विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्राचीन सभ्यता होने का प्रमाण अवश्य उपलब्ध कराती है दुनिया की छत पर होने का तात्पर्य यही है कि यह संसार की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता है इतिहास में जिन सभ्यताओं का उल्लेख मिलता है, उनसे भी पूर्व यह सभ्यता विकसित हो चुकी थी। हर घर में स्नानागार, कुआँ और जल निकासी के लिए ढकी नालियाँ, रसोईघर, कोठार, उच्चवर्ग या मुखिया का बड़े आँगन और बीस कमरों का मकान और इतर वर्ग के नीचे मकान, स्तूप, महाकुण्ड, जिसके आस-पास स्नानागार बने हैं, आभूषण, औजार, बैलगाड़ी आदि सभी वस्तुओं के कारण सिंधु सभ्यता विश्व की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता सिद्ध होती है।

अतः ज्ञात इतिहास जो ईसा से पूर्व चौथी सदी तक जाता है, से पहले भी कोई सभ्यता अपनी श्रेष्ठता लिए संसार में थी, उसका प्रमाण सिंधु घाटी की खुदाई से मिलता है इसलिए लेखक का उपर्युक्त कथन सर्वथा उचित एवं समीचीन है।

प्रश्न 5. “टूटे-फूटे खण्डहर सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिन्दगियों के अनछुए समय का भी दस्तावेज होते हैं”-इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- सन् 1922 ई. में राखाल दास बनर्जी यहाँ एक स्तूप की खोज में आये लेकिन खुदाई में यहाँ एक समृद्ध सभ्यता प्राप्त हुई। यह सभ्यता विश्व के पुरातत्वविदों की दृष्टि में संसार की सर्वश्रेष्ठ सभ्यता है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में प्राप्त टूटे-फूटे खण्डहरों से सिद्ध होता है कि कभी यहाँ एक सुसंस्कृत एवं बुद्धिमान इंसान निवास करता था। आज से पाँच हजार वर्ष पहले हमारे पूर्वज कितना समृद्ध एवं कलापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे, इन खण्डहरों से हमारे मन में यही भाव जागृत होते हैं।

साथ ही हमें अपने ऊपर गर्व भी होता है कि गत कई शताब्दियों तक गुलाम रहने वाले हम सदैव ही इतने दरिद्र और कमजोर नहीं थे। हमारे पूर्वज उस सभ्यता के प्रतिनिधि थे जो संसार में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। आज हमारा मन दुखी भी होता है कि वे कौन-सी परिस्थितियाँ थीं जिन्होंने हमारे पूर्वजों को शहरों को छोड़ पलायन करने को मजबूर किया था। यदि इस सभ्यता की निरंतरता बनी रहती तो हम आज अत्यन्त समृद्ध जीवन जी रहे होते और सारा विश्व हमें सम्मान की दृष्टि से देख रहा होता। सिंधु घाटी सभ्यता की खोज ने हर भारतीय के मन में एक आत्मगौरव का भाव भरा है।

प्रश्न 6. इस पाठ में एक ऐसे स्थान का वर्णन है जिसे बहुत कम लोगों ने देखा होगा, इससे आपके मन में उस नगर की एक तस्वीर बनती है। किसी ऐसे ऐतिहासिक स्थल, जिसको आपने नजदीक से देखा हो, का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर- मोहनजोदड़ो प्रागैतिहासिक काल सिंधु सभ्यता का एक सुनियोजित एवं समृद्धशाली नगर है, लेखक ओम थानवी ने इसका चित्रात्मक वर्णन प्रस्तुत करके हमारे मानस पटल पर इसे सजीव कर दिया है। मैं भी ऐसे ही एक खण्डहर का वर्णन करके उस मध्यकालीन ऐतिहासिक स्थल को आपके मानस में जीवन्त रूप प्रदान करना

चाहता हूँ। आगरा से 35 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित फतेहपुर सीकरी अकबर महान की द्वितीय राजधानी रहा है। अकबर ने अपनी दक्षिण विजय की स्मृति को अक्षुण्ण बनाने के लिए इस स्थान पर एक ऊँचा दरवाजा बनाया जो उसके राज्य में निवास करने वाले एक फकीर शेख सलीम चिश्ती की दरगाह का मुख्य द्वार बना हुआ है।

बुलन्द दरवाजा नाम से विख्यात यह दरवाजा संसार का सबसे ऊँचा दरवाजा माना जाता है। यह धरती की सतह से ऊँची एक पहाड़ी पर स्थित है। पृथ्वी से सैकड़ों फुट ऊँचे इस दरवाजे तक पहुँचने के लिए तीन तरफ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं जिनकी संख्या लगभग 70 है। ऊपर एक चौड़ा चबूतरा है जिस पर एक साथ हजारों दर्शक खड़े हो सकते हैं। दरगाह में जूते ले जाने की आज्ञा नहीं है। अतः हमें वहाँ दरवाजे के बाहर ही जूते उतारकर जाना पड़ा, उनकी देखभाल के लिए कई लोग वहाँ बैठे थे जो कि टोकन देकर कुछ पैसों के बदले जूतों की रक्षा करते थे।

भीतर एक लम्बे बरामदे में उस महान सन्त का सफेद संगमरमर का स्मारक दिखाई दे रहा था। बीच में कोई हजार फीट लम्बा और इतना ही चौड़ा एक दालान था जो पत्थरों से ढका था, चारों और लम्बे-लम्बे हजारों फीट में फैले बरामदे थे। उस पत्थर जड़े दालान में दरगाह के तीन और के दरवाजों से समाधि तक पहुँचने के लिए लम्बी-लम्बी टाट पट्टियाँ बिछी हुई थीं जो गर्मी, सर्दी की मौसमी मार से दर्शकों के पैरों के तलवों की रक्षा करती थीं।

दरगाह के सामने एक 30-40 फुट लम्बा एवं इतना हो चौड़ा एक जल से भरा तालाब था, आने वाले दर्शक उसके जल में हाथ-पैर धोकर पवित्र मन से शेख सलीम चिश्ती की समाधि के दर्शन करने जाते थे। आगे चन्द सीढ़ियों के बाद एक चबूतरा था जिस पर वह विश्व प्रसिद्ध स्मारक बना हुआ था। कहा जाता है

कि भारत के तत्कालीन सम्राट निःसंतान अकबर ने उनकी दुआ से ही सलीम नामक पुत्र का मुख देखा था तथा अपने उस इकलौते पुत्र का नाम शहजादा सलीम भी उसी सन्त के नाम पर रखा था। किंवदन्ती तो यहाँ तक है कि सम्राट को दुआ देने के बाद उस सन्त ने देह त्याग दी थी और शायद वे ही उस सम्राट अकबर के पुत्र के रूप में जन्मे थे। 

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