NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Questions Answers
Class 12 Hindi Aroh chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर | NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh chapter 3 कविता के बहाने, बात सीधी थी पर
कुँवर नारायण –कवि परिचय
कवि कुँवर नारायण का जन्म 19 सितम्बर सन् 1927 ई. में हुआ। हिन्दी में ‘नई कविता’ का दौर चल रहा था। कुँवर नारायण ने अपनी रचनाओं ने ‘तीसरे तारसप्तक’ नामक नई कविता के कवियों के काव्य संग्रह में प्रमुख स्थान प्राप्त किया। कुँवर नारायण केवल कवि ही नहीं हैं।
उन्होंने कहानियाँ, लेख तथा फिल्मों पर समीक्षाएँ भी लिखी हैं। कविता के प्रति कुँवर नारायण का दृष्टिकोण यथार्थवादी है। वे भावुकता से बचकर काव्य-रचना करते रहे। 15 नवम्बर 2017 को आपका निधन हो गया।
रचनाएँ- कुँवर नारायण के प्रमुख कविता-संग्रह हैं-चक्रव्यूह, अपने सामने, इन दिनों, परिवेश हम तुम, कोई दूसरा नहीं। उन्होंने ‘वाजश्रवा के बहाने’ तथा ‘आत्मजयी’ नामक दो खण्ड काव्य भी लिखे हैं। ‘आकारों के आस-पास’ इनका कहानी संग्रह है। ‘आज और आज से पहले’ आपका समालोचना संग्रह है।
कविता के बहाने
कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर इस घर उस घर
कविता के पंख लगा उड़ने के माने
चिड़िया क्या जाने ?
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। इस अंश में चिड़िया के बहाने से कविता की असीम संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है।
व्याख्या– कवि कहता है कि कविता कवि के विचारों तथा भावनाओं की कल्पना के पंखों की सहायता से भरी गई उड़ान है। जिस प्रकार चिड़िया पंखों के सहारे उड़ती है, उसी प्रकार कवि भी कल्पना के सहारे कविता में अपने मनोभावों को प्रकट करता है। कवि की कल्पना असीम और अनन्त होती है। उस पर देश और काल का कोई बन्धन नहीं होता। वह अपनी कल्पना के सहारे सम्पूर्ण धरती पर ही नहीं, असीम आकाश में भी उड़ता है। चिड़िया अपने पंखों से उड़ती तो है
परन्तु उसकी उड़ान की एक सीमा है। वह एक घर से दूसरे घर के बाहर और भीतर तक ही उड़ती है। कविता जब कल्पना के पंखों से उड़ती है उसमें बाहर-भीतर की कोई सीमा नहीं होती। कविता की इस असीमित विस्तार वाली उड़ान की तुलना चिड़िया की उड़ान से नहीं की जा सकती।
विशेष– (i) कवि ने कविता की असीम संभावनाओं की ओर संकेत किया है।
(ii) लक्षणा प्रधान कथन-शैली के साथ ही कविता में ‘वक्रोक्ति’ ‘मानवीकरण’ तथा ‘अनुप्रास अलंकारों का सौन्दर्य भी है।
कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर
इस घर उस घर
बिना मुरझाए महकने के माने
फूल क्या जाने ?
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। कवि कविता की तुलना में फूल और उसकी सुगंध को बहुत सीमित प्रभाव वाला दिखा रहा है।
व्याख्या– कविता की तुलना फूल के खिलने से नहीं की जा सकती। फूल जब खिलता है तो उसकी सुगन्ध उसके निकटवर्ती स्थान तक ही फैलती है। कविता के सरस प्रभाव की कोई सीमा नहीं है। कविता का रसात्मक आनन्द समस्त विश्व को सुख देता है।
कुछ दिनों के बाद फूल मुरझा जाता है और उसकी सुगन्ध भी नष्ट हो जाती है, किन्तु कविता की सरसता अनन्त काल तक सम्पूर्ण संसार को आनन्द का अनुभव कराती रहती है।
विशेष– (i) कविता अजर-अमर है। देश-काल से अप्रभावित होती है। यह संदेश दिया गया है।
(ii) कथन में विचित्रता है। अनुप्रास, यमक तथा व्यतिरेक अलंकार हैं।
कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।
संदर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। कवि कविता की तुलना बच्चों के खेल से कर रहा है।
व्याख्या– कवि कहता है कि कविता बच्चों के खेल के समान है। बच्चे घर के बाहर तथा अन्दर एक घर से दूसरे घर तक बेरोक-टोक खेलते हैं। वे अपने खेल द्वारा सभी घरों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। खेल द्वारा सभी भेदभावों को मिटाकर सच्ची एकता पैदा करने की क्षमता बच्चों में ही होती है।
कविता भी बच्चों के खेल की तरह ही है। कवि अनेक भावों और विचारों की कल्पना करके उनके साथ खेलता है। उसकी कविता का प्रभाव सभी श्रोताओं तथा पाठकों पर होता है। कविता का आनन्द देश-काल की सीमाओं में नहीं बँधता ।
सच्ची कविता सभी कालों में तथा सभी देशों में लोगों को प्रभावित करती है। दूरियाँ मिटाकर संसार में वास्तविक एकता कविता ही ला सकती है।
विशेष– (i) कविता की तुलना बच्चों के खेल से करते हुए कवि संदेश देना चाहता है कि जैसे बच्चे निष्पक्ष भाव से एक घर से दूसरे में खेलने चले जाते हैं, इसी प्रकार, एक अच्छी कविता भी बिना किसी पक्षपात के सभी का मनोरंजन करती है।
(ii) बच्चे जिस प्रकार अपने खेलों से एक घर को दूसरे से जोड़ते हैं, कवि भी उसी प्रकार अपनी कविता से समाजों और देशों को एक-दूसरे को समझने का अवसर देता है। उन्हें परस्पर मिलाता है।
(iii) काव्यांश की भाषा सरल है और प्रवाहपूर्ण है। गहरे भावों को सहजता से व्यक्त करती है।
(iv) ‘बाहर-भीतर’, ‘यह घर वह घर’ तथा ‘बच्चों के बहाने’ में अनुप्रास अलंकार है।
(v) काव्यांश पाठकों को सभी भाषाओं के काव्यों के अनुशीलन के लिए प्रेरित करता है।
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा-पलटा
तोड़ा मरोड़ा घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए
लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
संदर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। कवि इस अंश में उन रचनाकारों पर मधुर व्यंग्य कर रहा है, जो अपनी कविता को प्रभावशाली बनाने के लिए क्लिष्ट भाषा का प्रयोग किया करते हैं।
व्याख्या– कवि कहता है कि बात सीधी और सरल थी परन्तु वह उसे प्रभावपूर्ण भाषा में व्यक्त करना चाहता था। भाषा को आकर्षक बनाने पर ध्यान देने के कारण कथ्य की सरलता ही नष्ट हो गई।
वह दुरूह हो गई। कवि ने बात की सरलता को नष्ट होने से बचाने के लिए भाषा में संशोधन किया, शब्दों को बदला और वाक्य रचना में फेरबदल किया।
उसने प्रयास किया कि बात की सरलता बनी रहे तथा भाषा की क्लिष्टता और दिखावटी स्वरूप से छुटकारा मिले परन्तु इससे बात व भाषा और अधिक उलझती चली गई।
विशेष– (i) कवि का कहना है कि भाषा की सजावट पर अधिक बल देने से कथ्य (भाव या विचार) का संदेश और सहजता अस्पष्ट हो जाती है।
(ii) कवि ने आम भाषा का प्रयोग करते हुए भी एक गहरा संदेश सफलता से प्रस्तुत किया है।
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबासी और वाह वाह।
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।
संदर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। इस अंश मैं कवि क्लिष्ट शब्दों की कविता में अनुपयोगिता बता रहा है।
व्याख्या– कवि कहता है कि उसने सीधी-सादी बात को व्यक्त करने के लिए आकर्षक और कठिन भाषा का प्रयोग करने की भूल की। इससे कविता में निहित भाव अस्पष्ट हो गया। कवि ने इस कठिन समस्या पर धैर्यपूर्वक सोच-विचार नहीं किया।
बजाय इसके कि वह ‘बात’ पर भाषा के कसाब को ढीला करता, उसे सरल बनाता; वह उसे और अधिक कसता जा रहा था। कवि के इस प्रयास पर तमाशा देखने वाले लोग उसकी प्रशंसा और वाह-वाही कर रहे थे। इस शाबाशी से भ्रमित कवि भाषा के पेंच को और कसता जा रहा था।
परिणाम यह हुआ कि कथन उसी प्रकार निष्प्रभावी हो गया जिस प्रकार पेंच को जबरदस्ती कसने पर उसकी चूड़ी मर जाती है और वह कसने के स्थान पर बेकार ही घूमने लगता है।
हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक-ठाक
पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत !
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा
“क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”
संदर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। इस अंश में कवि कहना चाहता है कि भाव को जोर-जबरदस्ती से कठिन भाषा में ठोंक देने से वह प्रभावहीन हो जाता है। सरल भाषा में भी मार्मिक भाव प्रकाशित किए जा सकते हैं।
व्याख्या- कवि कहता है कि जब वह चमत्कारपूर्ण भाषा का प्रयोग बलपूर्वक करके भी अपने सरल मनोभावों को व्यक्त नहीं कर पाया तो निराश होकर उसने भावों को उसी क्लिष्ट भाषा में भर दिया। उसका यह कार्य ऐसा ही था जैसे कि कोई पेंच की चूड़ी मर जाने पर उसे कील की तरह हथौड़े से ठोंक दे।
इससे वह पेंच ऊपर से तो ठीक लगता है परन्तु अन्दर से उसकी पकड़ में मजबूती तथा कसाव नहीं होता। ठीक इसी प्रकार क्लिष्ट भावहीन भाषा में व्यक्त मनोभावों में सौन्दर्य, आकर्षण तथा पाठक को प्रभावित करने की शक्ति नहीं होती। अपनी असफलता पर कवि निराश था और बेचैन होकर बार-बार पसीना पोंछ रहा था।
यह देखकर उसके मन के भाव किसी शरारती बच्चे की तरह उसे छेड़ने लगे। उन्होंने कवि से पूछा कि क्या वह सरल भावों की व्यंजना के लिए सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग नहीं सीख पाया है?
विशेष– (i) कवि का निष्कर्ष और परामर्श है कि भाव पर भाषा को हावी नहीं होने देना चाहिए। सरल और स्पष्ट भाषा में भी गम्भीर भाव व्यक्त किए जा सकते हैं। (ii) भाषा में उर्दू शब्दों का मुक्त भाव से प्रयोग
(iii) काव्यांश में “कील की तरह…… हुआ है। • ठोंक दिया” तथा “बात ने …… खेल रही थी” में उपमा अलंकार तथा मानवीकरण अलंकार भी है।
Class 12 Hindi Aaroh Chapter 3 Kavita ke Bahane, Baat Sidhi Thi Par
कविता के साथ
प्रश्न 1. इस कविता के बहाने बताएँ कि “सब घर एक कर देने के माने” क्या है ?
उत्तर– ‘सब घर एक कर देने के माने’ का अर्थ है सभी प्रकार के भेदभाव दूर करके एकता स्थापित करना। बच्चों के खेल में जाति, धर्म, रंग आदि का कोई भेद-भाव नहीं होता। वे अपने खेल से सच्ची एकता पैदा करते हैं। कविता भी समस्त भेदभाव भुलाकर निष्पक्ष होकर मानवता के दुख-दर्दों को व्यंजित करती है।
प्रश्न 2. ‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है ?
उत्तर– चिड़िया पंखों के सहारे उड़ती है तो कविता कल्पना के सहारे उड़ती है। इस तरह कविता का ‘उड़ने’ से सम्बन्ध यह है कि वह कल्पना के माध्यम से दूर-दूर तक लोगों को प्रभावित कर सकती है। फूल खिलता है। ‘खिलने’ का कविता से सम्बन्ध उसके विकसित होने से है। विकसित होने पर फूल सुगन्ध बिखेरता है। कुछ समय बाद वह मुरझा जाता है, परन्तु कविता अनन्तकाल तक लोगों को आनन्दित करती है।
प्रश्न 3. कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर– बच्चे खेलते हैं तो सब घर एक कर देते हैं। वे किसी विशेष घर तक सीमित नहीं रहते वरन् सभी घरों को अपने खेल का स्थल बनाते हैं। कविता भी बच्चों के खेल के समान ही होती है। कवि अपनी कविता का विषय समाज के प्रत्येक वर्ग और देशकाल से चुनता है। कविता भी बच्चों के खेल की तरह लोगों में एकता की स्थापना करती है। इस कारण कविता और बच्चे को समानान्तर रखा गया है।
प्रश्न 4. कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं ?
उत्तर– फूल जब तक खिला रहता है तब तक महकता है। मुरझाने पर उसकी महक समाप्त हो जाती है। कविता की महक अर्थात् उसका प्रभाव सदैव बना रहता है। कविता कभी पुरानी नहीं पड़ती। उसका आनन्द लोग सभी देश-कालों में ले सकते हैं। कविता के संदर्भ में बिना मुरझाए महकने का यही अर्थ है।
प्रश्न 5. ‘भाषा को सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर– भाषा को सहूलियत से बरतने से अभिप्राय यह है कि कवि को भावानुकूल भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। सीधी-सरल बात को सरल, सुबोध भाषा में व्यक्त करना ही उचित होता है। अनावश्यक दुरूह भाषा का प्रयोग करने से भावों का सौन्दर्य, स्वाभाविकता तथा मौलिकता नष्ट हो जाती है।
प्रश्न 6. बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किन्तु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है’ कैसे ?
उत्तर– कवि जब किसी विषय का वर्णन करता है तो उसके अनुरूप भाषा भी उसके मन में उदित होती है। किन्तु कभी-कभी कवि पांडित्य प्रदर्शन के चक्कर में दुरूह, क्लिष्ट और बनावटी भाषा का प्रयोग किसी बात को कहने के लिए करता है। भाषा की दुरूहता के कारण। भावों की नैसर्गिकता मिट जाती है तथा पाठक कविता के मर्म को समझ ही नहीं पाता। इस प्रकार दुरूह भाषा के प्रयोग से सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है।
प्रश्न 7. बात (कथ्य) के लिए नीचे दी गई विशेषताओं का उचित बिंबों / मुहावरों से मिलान करें।
बिंब / मुहावरा