NCERT Solutions for Class 12 हिंदी वितान पाठ 2 जूझ Questions
जूझ Summary लेखक – परिचय – जन्म: 1935, कागल, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में पूरा नाम आनंद रतन यादव। पाठकों के बीच आनंद यादव के नाम से परिचित मराठी एवं संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर डॉ. आनंद यादव बहुत समय तक पुणे विश्वविद्यालय में मराठी विभाग में कार्यरत रहे। अब तक लगभग पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित । उपन्यास के अतिरिक्त कविता-संग्रह समालोचनात्मक निबंध आदि पुस्तकें भी प्रकाशित। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित नटरंग हिंदी पाठकों के बीच भी चर्चित । यहाँ प्रस्तुत अंश जूझ उपन्यास से लिया गया है जो सन् 1990 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है।
पाठ-परिचय– मराठी के प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. आनंद यादव के बहुचर्चित एवं बहुप्रकाशित उपन्यास ‘जूझ’ का एक अंश हमारी पूरक पाठ्य-पुस्तक वितान भाग-2 में संकलित किया गया है। यह मराठी ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित एक किशोर के देखे और भोगे हुए यथार्थ की जीवन-गाथा है। प्रस्तुत अंश में हर स्थिति में पढ़ने की लालसा लिए हुए एक किशोर की छटपटाहट का मर्मस्पर्शी चित्रण किया गया है।
प्रश्न 1. ‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा-नायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता
उत्तर- ‘जूझ’ का कथानायक आनंदा एक संघर्षशील व्यक्तित्व का धनी है। वह अपने पिता के जोर देने के कारण खेती के काम में लगा रहता है। उसका पिता उसकी पढ़ाई छुड़ा देता है। स्कूल जाकर पढ़ाई करने के लिए उसे संघर्ष करना पड़ता है।
इसके बाद स्कूल मैं मन लगाने, गणित विषय में पारंगत होने, मराठी भाषा में कविता रचने आदि के लिए भी उसे जूझना पड़ता है। इस प्रकार ‘जूझ’ का कथानायक अपने जीवन में विपरीत और कठिन परिस्थितियों से निरन्तर जूझता है और सफलता प्राप्त करता है।
नायक के संघर्षपूर्ण जीवन की कथा होने के कारण इसका शीर्षक कथानक की प्रमुख समस्या पर आधारित होने के कारण अत्यन्त उचित तथा सटीक है। इससे नायक के चरित्र की प्रमुख विशेषता-संघर्षशीलता भी उजागर होती है।
प्रश्न 2. स्वयं कविता रच लेने का आत्म-विश्वास लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ ?
उत्तर– मराठी भाषा के अध्यापक न.वा. सौंदलगेकर की प्रेरणा से कथानायक के मन में कविता लिखने का भाव पैदा हुआ। जिस प्रकार अध्यापक जी को अनेक कविताएँ कंठस्थ थीं उसी प्रकार लेखक ने भी अनेक कविताएँ कंठस्थ कर लीं, जिन्हें वे अकेले स्थान पर ढोर चराते समय या खेत में पानी देते समय जोर-जोर से गाया करता था।
मराठी भाषा के मास्टर सौंदलगेकर जिस प्रकार कविता पढ़ाते थे वह एकान्त में उसकी नकल करता था। वे अनेक छंदों को लय, यति-गति और ताल के साथ गाते थे फिर बैठकर अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते थे। लेखक भी उसी तरह अकेले में कविता गाता, अभिनय करता हुआ उसका भाव ग्रहण करता था।
मास्टर जी ने अनेक कवियों के संस्मरण सुनाये। इससे लेखक ने जाना कि कवि लोग भी उसकी तरह ही हाड़-मांस के आदमी होते हैं। इससे उसके मन में आत्म-विश्वास पैदा हो गया कि वह भी कविता कर सकता है। अपने आसपास, अपने गाँव में, अपने खेतों में कितने ही ऐसे दृश्य हैं जिन पर कविता लिखी जा सकती थी।
अपने दरवाजे पर छाई हुई मालती की बेल पर जब मास्टरजी कविता लिख सकते हैं, तो वह क्यों नहीं लिख सकता। लेखक के मन में इस प्रकार के विचार आने लगे। भैंस चराते समय वह जंगली फूलों पर कविता लिखता और जोर-जोर से गुनगुनाता, कागज और पेन्सिल खीसा में हर समय रखता ।
कभी भैंस की पीठ पर लकड़ी के टुकड़े से अथवा कंकड़ से सिला पर कविता लिखता और मास्टर जी को दिखाता कभी-कभी रात को ही मास्टर जी के घर जाकर कविता दिखाता, वे देखते और शाबासी देते, काव्य शास्त्र का ज्ञान कराते। इस सबसे मास्टर जी से लेखक का अपनापन हो गया, अलंकार, छंद का ज्ञान हो जाने से वह अच्छी कविता लिखने लगा।
प्रश्न 3. श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें, जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई ।
उत्तर– श्री सौंदलगेकर पाठशाला में मराठी के शिक्षक थे। वह शिक्षक होने के साथ ही स्वयं एक कवि थे तथा काव्य रसिक भी थे। उनके अध्यापन की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं- वह कविता पढ़ाते समय उसको स्वर सहित पढ़ते थे। कविता का लय और गति के साथ वाचन करने से उसका भाव छात्रों को सरलता से समझ में आ जाता था।
वह कविता पढ़ाते समय उसको लीन हो जाते थे तथा सस्वर वाचन करने के साथ ही हाव-भाव द्वारा अभिनय करके भी उसको छात्रों के लिए बोधगम्य बना देते थे।
श्री सौंदलगेकर को मराठी के साथ ही अंग्रेजी भाषा की अनेक कविताएँ भी कंठस्थ थीं। वह छंदशास्त्र के विद्वान थे। वह स्वयं भी कविताएँ लिखते थे।
वह छात्रों को अन्य कवियों की कविताओं के साथ-साथ स्वरचित कविताएँ भी सुनाते थे। इस प्रकार छात्रों को तुलनात्मक अध्ययन का अवसर प्रदान करते थे। विषय को रोचक बनाने के लिए वह अन्य कवियों के साथ अपनी भेंट के संस्मरण भी सुनाते थे। वह अपने छात्रों को काव्य-रचना करने तथा उसका वाचन करने के लिए प्रेरित करते थे। उनके इस शिक्षण कौशल के कारण लेखक को कविताओं के प्रति रुचि जाग्रत हुई।
प्रश्न 4. कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपनके प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया ?
उत्तर- कविता के प्रति लगाव ने लेखक के जीवन पर गहरे प्रभाव डाले। इससे पहले वह खेत में पानी देते, ढोर चराते या अन्य कार्य करते हुए अकेलेपन से ऊब जाता था उसे हर समय कोई-न-कोई साथी चाहिए था जिसके साथ वह बातचीत कर सके लेकिन काव्य से प्रेम हो जाने के पश्चात् उसे अकेलापन अच्छा लगता था, अकेले में कोई कविता गुनगुनाई या जोर से गाई जा सकती थी, अभिनय किया जा सकता था और यहाँ तक कि नाचा भी जा सकता था।
इस प्रकार कविता से लगाव से पहले लेखक ने अकेले होने को बुरा माना था। लेकिन उसके बाद उसका मन अकेलेपन को पसन्द करने लगा था।
प्रश्न 5. आपके ख्याल से पढ़ाई-लिखाई के सम्बन्ध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का ? तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर– प्रख्यात लेखक’ आनंद यादव’ ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘जूझ’ में पढ़ाई के महत्त्व को रेखांकित किया है। उसके कथानायक ने पढ़ाई के बारे में अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘पाठशाला’ जाने के लिए वह तड़पता था लेकिन दादा के सामने खड़े होकर यह कहने की हिम्मत नहीं होती थी कि “मैं पढ़ने जाऊँगा”। लेखक को विश्वास था कि जन्मभर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा। यह खेती उसे गड्ढे में धकेल देगी। यदि वह पढ़ जायेगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे। बिठोवा अण्णा की तरह कुछ धंधा – कारोबार किया जा सकेगा। लेखक का यह विचार पढ़ाई के प्रति उसकी सार्थक सोच को प्रकट करता है।
लेखक अपनी माँ के साथ दत्ता जी राव के पास गया। उन्होंने लेखक के दादा को और लेखक को पाठशाला भेजकर पढ़ाने की बात कही। पढ़ाई के प्रति उनका विचार सही था।
इसके विपरीत लेखक का पिता मौज-मस्ती करने के लिए उसको खेती में लगाए रखता था और खुद बाजार में घूमता और रखमाबाई के यहाँ पड़ा रहता था। उसका रवैया सही नहीं था।
प्रश्न 6. दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता ? अनुमान लगाएँ।
उत्तर– दत्ताजी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को झूठ का सहारा लेना पड़ा। उसका पिता अपनी मौज-मस्ती की खातिर अपने पुत्र को पढ़ाई से रोकता था, उसे पाठशाला नहीं भेजता था।
लेखक की माँ ने दत्ता जी राव के यहाँ साग-सब्जी देने जाने की मनगढन्त बात कही थी। यदि वह झूठ नहीं बोलती तो दादा सच्चाई जानकर उन दोनों को प्रताड़ित करता और घर से ही निकाल देता। इसी तरह चलते समय लेखक और उसकी माता ने दत्ता जी राव से उनके यहाँ आने की बात को गुप्त रखने का भी आग्रह किया था। ये दोनों ही झूठी बातें आवश्यक थीं। यहाँ सच बोलने पर लेखक का पिता नाराज होता और उसे कभी भी पाठशाला भेजने को तैयार नहीं होता। दूसरी तरफ मारपीट आदि का भी भय था।