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Reading: Class 12 Hindi Aniwarya Chapter 2 आलोक धन्वा 2023
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Class 12 Hindi Aniwarya Chapter 2 आलोक धन्वा 2023

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Ncert Solutions Class 12 Hindi chapter 2 Hindi Vyakhya | Hindi Aaroh Class 12 chapter 2 Aalok dhanva patng

आलोक धन्वा 

आलोक धन्वा – कवि परिचय :-

कवि आलोक धन्वा का जन्म सन् 1948 ई. बिहार राज्य के मुंगेर में हुआ था। सातवें आठवें दशक में कवि आलोक धन्वा ने बहुत छोटी अवस्था में अपनी चुनी कविताओं से अपार लोकप्रियता अर्जित की। सन् 1972-1973 में प्रकाशित इनकी आरंभिक कविताएँ हिन्दी के काव्य प्रेमियों को जयानी पाट रही है। आलोक धन्वा ने कभी थोक के भाव में लेखन नहीं किया। सन् 72 से लेखन आरंभ करने के बाद उनका पहला और अभी तक का एकमात्र काव्यसंग्रह सन् 1998 में प्रकाशित हुआ।

Contents
Ncert Solutions Class 12 Hindi chapter 2 Hindi Vyakhya | Hindi Aaroh Class 12 chapter 2 Aalok dhanva patng आलोक धन्वा आलोक धन्वा – कवि परिचय :-Class 12 Hindi Aaroh Chapter 2 आलोक धन्वा Questions answers कविता के साथ

काव्य संग्रह के अलावा वे पिछले दो दशकों से देश के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने जमशेदपुर में अध्ययन-मंडलियों का संचालन किया और रंगकर्म तथा साहित्य पर कई राष्ट्रीय संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता के रूप में भागीदारी की है।

आलोक धन्वा

आपकी प्रमुख रचनाएँ हैं-जनता का आदमी, गोली दागते पोस्टर, कपड़े के जूते, भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनो की बेटियाँ दुनिया रोज बनती है। आलोक धन्या को साहित्यिक क्रियाकलापों के लिए राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, पहल सम्मान आदि पुरस्कार प्राप्त हुए।

1.

सबसे तेज बौछारें गयी भादों गया 

सवेरा हुआ 

खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा 

शरद आया पुलों को पार करते हुए 

अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए 

घण्टी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से 

चमकीले इशारों से बुलाते हुए 

पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को 

चमकीले इशारों से बुलाते हुए और 

आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए 

कि पतंग ऊपर उठ सके 

दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सके 

बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके

कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और 

तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया

सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि आलोक धन्वा की कविता ‘पतंग’ से लिया गया है। कवि यहाँ वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद ऋतु के प्रारंभ का वर्णन प्रतीकों के माध्यम से कर रहा है।

व्याख्या– कवि कहता है कि वर्षा ऋतु समाप्त हो गई है। भादों के महीने का अन्त हो रहा है। अब तेज बौछारें गिरने की सम्भावना नहीं है। आकाश से बादल हट जाने से अब सवेरा अधिक चमकीला तथा प्रकाश से परिपूर्ण दिखाई दे रहा है। वह खरगोश की आँखों की तरह लाल है।

वर्षा के पानी से भरे नदी-नालों को पुल से पार करके शरद ऋतुरूपी बालक अपनी नई चमकदार साइकिल को तेज दौड़ते हुए जोर-जोर से घण्टी बजाते हुए अपने आगमन की सूचना देता हुआ आ पहुँचा है। यहाँ साइकिल प्रकाशपूर्ण दिन तथा स्वच्छ आकाश का प्रतीक है। रास्ते स्वच्छ हो गए हैं और उनमें भरा पानी और कीचड़ सूख गए हैं। आकाश साफ हो गया है।

स्वच्छ आकाश में पतंग उड़ाने के लिए संकेत के साथ यह बालक अन्य बच्चों को बुला रहा है। वह जानता है कि स्वच्छ आकाश में पतंग खूब ऊँची उड़ेगी। पतंग रंगीन और पतले कागज से बनी है। उसमें बाँस की पतली लचीली खपच्ची लगी है। वह बहुत हल्की है। जब यह पतंग आकाश में उड़ेगी तो बच्चे खुशी से चिल्लाएंगे तथा सीटियाँ बजाएँगे। आकाश में उड़ती हुई रंग-बिरंगी पतंगें तितलियों के समान प्रतीत होंगी।

विशेष– (i) पतंग के बहाने बालसुलभ इच्छाओं और उमंगों का सुन्दर चित्रण किया है। 

(ii) पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है। 

(iii) पद्यांश की भाषा सरल प्रवाहमयी खड़ी बोली है। चित्रात्मक शैली है।

2

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास

पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास 

जब वे दौड़ते हैं बेसुध 

छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए

जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं 

डाल की तरह लचीले वेग से अकसर 

छतों के खतरनाक किनारों तक 

उस समय गिरने से बचाता है उन्हें 

सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत 

पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे

सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि आलोक धन्वा की कविता ‘पतंग’ से लिया गया है। इस अंश में कवि पतंग उड़ाते बालकों के विभिन्न क्रियाकलापों का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या– कवि कहता है कि बच्चे जन्म से ही कपास के समान कोमल होते हैं। वे अत्यन्त साहसी और चंचल होते हैं। उनमें चोट-फेंट को सहने की अद्भुत क्षमता होती है। लगता है वे धरती पर नहीं दौड़ते बल्कि पृथ्वी ही घूमती हुई उनके चंचल पैरों के पास आ जाती है।

पतंग उड़ाते हुए ये बच्चे पतंगों के पीछे धूप, गर्मी, कठोर छत, छत के किनारे आदि की परवाह न करते हुए दौड़ते। हैं। उनको छतों की कठोरता का पता ही नहीं चलता। उनके कदमों की आहट को सुनकर लगता है कि दिशाएँ मृदंग की तरह बज रही हैं।

वे पतंग की डोर के सहारे पॅग बढ़ाते और झूला झूलते से चलते हैं। किसी पेड़ की लचीली डाल की तरह ये बच्चे तेजी से छतों के खतरनाक कोनों पर पहुँच जाते हैं। उस समय उनका रोमांचित शरीर ही उन्हें गिरने से बचाता है। ऐसा लगता है कि आकाश में उड़ती पतंग ने अपनी डोर का सहारा देकर उनको गिरने से बचा लिया है।

विशेष– (i) कवि अपने काव्य कौशल से बिम्बों की नई दुनिया दिखा रहा है। जहाँ बालकों की रंगीन दुनिया है। दिशाओं के मृदंग बजते हैं। 

(ii) छतों के खतरनाक किनारों से गिरने का भाव है, तो दूसरी और भय पर विजय पाते

3.

पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं

अपने रंध्रों के सहारे 

अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से और बच जाते हैं तब तो 

और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है 

उनके बेचैन पैरों के पास।

सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि आलोक धन्वा की कविता ‘पतंग’ से लिया गया है। यहाँ कवि ने पतंग उड़ाते निर्भीक बालकों का मनोहारी चित्रण किया है।

व्याख्या– पतंग उड़ाते बच्चों का पूरा ध्यान पतंग पर ही टिका होता है। जिस प्रकार पतंग डोर के सहारे आकाश में उड़ती है उसी प्रकार वे भी अपने रोमांच के सहारे पतंग के साथ-साथ उड़ते हैं। अपने ध्यान में मग्न वे छत के किनारे पर जा पहुँचते हैं।

वैसे तो वे कभी नीचे गिरते ही नहीं हैं, परन्तु यदि कभी गिर भी जाते हैं और चोटिल होने से बच जाते हैं तो वे पहले की अपेक्षा और अधिक निर्भीक हो जाते हैं। वे निर्भयतापूर्वक उछलकर सुनहरे सूर्य को छू लेना चाहते हैं। वे और भी तेज गति से पृथ्वी पर दौड़ लगाते हैं। वे निर्भीक होकर अपने लक्ष्य को पा लेते हैं।

विशेष– (i) पतंग उड़ाने में तन्मय बच्चे पतंग के साथ उड़ते दिखाई देते हैं। 

(ii) पतंग उड़ाते समय छत पर इधर-उधर तेजी से बच्चे दौड़ रहे हैं। 

(iii) पद्यांश में लाक्षणिक शैली का प्रयोग है। भाषा सरल, भावानुकूल और अलंकारों से युक्त है।

Class 12 Hindi Aaroh Chapter 2 आलोक धन्वा Questions answers

कविता के साथ

प्रश्न 1. ‘सबसे तेज बौछारें गयी, भादों गया’ के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।

उत्तर– भादों वर्षा ऋतु के चार महीनों में से एक है। उस समय तेज हवा के शौकों के साथ वर्षा होती है। इसके बाद वर्षा नहीं होती या कम हो जाती है। वर्षा ऋतु के पश्चात् शरद ऋतु आती है। दिन को चमक बड़ जाती है। सवेरा खरगोश की आँखों के समान लाल और चमकीला प्रतीत होता है। आसमान साफ हो जाता है। रास्तों का पानी तथा कीचड़ सूख जाता है।

प्रश्न 2. सोचकर बताएं कि पतंग के लिए सबसे हल्की और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया है?

उत्तर- पतंग के साथ इतने विशेषणों का प्रयोग करके कवि पतंग के हल्केपन और नाजुकपन का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन कर रहा है। पतंग को कवि ने ये विशेषण इसलिए दिए हैं ताकि वह शरद ऋतु द्वारा आकाश को मुलायम बनाए जाने पर विशेष बल दे सके। शरद ने आकाश को इतना कोमल बना दिया है कि पतंग जैसी अत्यंत हल्की और नाजुक वस्तु भी उसमें उड़ सकती है।

प्रश्न 3. बिंब स्पष्ट करें

सबसे तेज बौछारें गयीं भादों गया 

सवेरा हुआ 

खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा 

शरद आया पुलों को पार करते हुए 

अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए।।

प्रश्न 4. जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास कपास के बार में सोचें कि कपास से बच्चों का क्या सम्बन्ध बन सकता है ?

उत्तर– कपास (रुई) अत्यन्त कोमल तथा लचीली रेशेदार वस्तु है। ऊंचाई से गिरने पर भी वह टूटती फूटती नहीं। बच्चे भी जन्म से ही कोमल होते हैं। उनका शरीर लचीला तथा मुलायम होता है। कभी यदि के ऊँचाई से गिर पड़ते हैं तब भी उनको चोट लगने की सम्भावना बहुत कम होती है।

कवि ने बच्चों की इसी विशेषता को ‘जन्म से ही अपने साथ लाते हैं कपास’-पंक्ति में व्यक्त किया है।

प्रश्न 5. पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं-बच्चों का उड़ान से कैसा सम्बन्ध बनता है ?

उत्तर– पतंग की उड़ान के साथ बच्चों की तन्मयता का सम्बन्ध बनता है। पतंग आकाश में डोर के सहारे ऊँचा उड़ती है। वह तेजी से ऊपर उठती है तथा कभी इधर तो कभी उधर लहराती है। बच्चे जब त पर चढ़कर पतंग उड़ाते हैं, तो वे छत पर इधर से उधर भागते हैं।

छतों की कठोरता का उन्हें पता नहीं चलता। उनको अपने शरीर का भी होश नहीं रहता। वे पतंग के साथ इतना जुड़ जाते हैं कि लगता है ये पतंग के साथ उड़ रहे हैं।

प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए 

(क) छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं की मृदंग की तरह बजाते हुए

(ख) अगर वे कभी गिरते हैं छर्ती के खतरनाक किनारों से और बच जाते हैं तब तो

और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं।

प्रश्न :

(क) दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है ? (ख) जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है ?

(ग) खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं ?

उत्तर- (क) जब बच्चे पतंग उड़ाते समय पक्की छतों पर इधर से उधर तेजी से दौड़ते हैं, तब उनके कदमों की धमक से छतों से ‘धम धम’ की आवाजें आने लगती हैं। ये आवाजें प्रतिध्वनित होकर चारों दिशाओं में गूँजने लगती हैं। ऐसा लगता है कि दिशाएँ एक मृदंग है जिसे ये बच्चे उत्साहपूर्वक बजा रहे हैं।

(ख) जब पतंग सामने होती है तो हमारा (पतंग उड़ाने वाले का) पूरा ध्यान उसी की ओर रहता है। हम छतों पर इधर-उधर भागते हैं तो हमें यह पता ही नहीं चलता कि छत कठोर पत्थर की बनी है। उस समय तो कठोर पथरीली छत भी हमें कोमल प्रतीत होती है।

(ग) जब हम अपने जीवन में किन्हीं खतरनाक परिस्थितियों का सामना कर चुके होते हैं, तब उसके बाद हमको दुनिया की चुनौतियाँ भयभीत नहीं करती हैं। हम हरेक चुनौती का सामना हिम्मत से करते हैं तथा उसे दृढ़ता के साथ ललकारते हैं।

👉 इन्हें भी पढ़ें

  • तीसरा पाठ
  • पहला पाठ आत्मपरिचय
आलोक धन्वा
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