NCERT Solutions for Class 12 Chapter 9 रुसवाईयां व गज़ल Questions and Answer
कवि परिचय – फ़िराक गोरखपुरी का जन्म गोरखपुर में 28 अगस्त 1896 में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका मूलनाम रघुपति सहाय था। उनकी — शिक्षा अरबी, फारसी और अंग्रेजी में हुई।
फिराक ने परंपरागत भावबोध और शब्द भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उनके यहाँ सामाजिक दुख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर शायरी में ढला है। इंसान के हाथों इंसान पर जो गुजरती है उसकी तल्ख सच्चाई और आने वाले कल के प्रति एक उम्मीद, दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फिराक ने अपनी शायरी का अनूठा महल खड़ा किया। उर्दू शायरी अपने लाक्षणिक प्रयोगों और चुस्त मुहावरेदारी के लिए विख्यात है। मीर और गालिब की तरह फिराक ने भी कहने की इस शैली को साधकर आम आदमी या साधारण-जन से अपनी बात कही है।
महत्त्वपूर्ण कृतियाँ : गुले नग्मा, बज्मे जिंदगी : रंगे-शायरी, उर्दू गजलगोई ।
सम्मान : गुले नग्मा के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड। इनका निधन सन् 1983 में हुआ था।
सप्रसंग व्याख्याएँ
1. रुबाइयाँ
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ की कविता ‘रुबाइयाँ’ शीर्षक से लिया गया है। इस अंश में बालक को गोद में लेकर झुलाती माँ का वात्सल्यपूर्ण सजीव वर्णन है।
व्याख्या– माँ अपने सुन्दर शिशु को लेकर आँगन में खड़ी है। वह उसे गोद में लेती है और हाथों से उठाकर झुलाती है। वह बार-बार उसको हवा में उछालती है। इससे बच्चा खिलखिलाकर हँसता है और उसकी हँसी की आवाज घर में चारों ओर फैल जाती है।
विशेष– (i) माँ द्वारा बच्चे को झुलाने तथा हवा में उछालने का सहज-स्वाभाविक वर्णन है। बच्चे के मुँह से किलकारी निकलना स्वाभाविक प्रक्रिया है।
(ii) भाषा गतिशील एवं चित्रात्मक है। आम बोलचाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग है। वात्सल्य रस की छटा काव्यांश में दृष्टव्य है। मुहावरे और अलंकारों के प्रयोग ने भाषा को सजीवता प्रदान की है।
2
नहला के छलके छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े।
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ की कविता’ रुबाइयाँ’ से लिया गया है। इस अंश में माँ द्वारा बालक को नहलाने, बाल सँवारने और कपड़े पहनाने का वर्णन है।
व्याख्या– माँ अपने शिशु को स्वच्छ पानी से छलका छलकाकर स्नान करा रही है। उसके बाद उसने उसके उलझे हुए बालों को कंघी से सुलझाया है। बाद में वह अपने दोनों घुटनों के बीच पकड़कर उसे कपड़े पहनाती है। बच्चा इस बीच अपनी माँ के मुँह की ओर प्यार से देखता रहता है।
विशेष– (i) माँ बेटे को नहला रही है, बालक छलकते हुए जल के कारण बहुत प्रसन्न, उमंगित और तरंगित है। (ii) नहाने के बाद माँ बालों में कंघी करती है, अपने घुटनों पर बैठाकर कपड़े पहनाती है। बालक भी माँ को प्यार में निहार रहा है।
(iii) माँ और शिशु के अत्यंत नैसर्गिक, सहज और मनोरम रूपों का सजीव वर्णन है। वात्सल्य रस की सृष्टि हुई है। अलंकार और दृश्य बिम्ब की प्रधानता है।
3.
दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए
सन्दर्भ तथा प्रसंग– उपर्युक्त काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ की कविता ‘रुबाइयाँ’ से लिया गया है। इस अंश में दीपावली की प्रसन्नता का वर्णन है।
व्याख्या– दीपावली का त्यौहार है। शाम का समय है। घर को रंग-रोगन करके सजाया गया है। घर में खाँड़ के खिलौने तथा धान की खीलें लाई गई हैं। रूपवती गृहस्वामिनी का चेहरा खुशी के कोमल प्रकाश से चमक रहा है। वह घर में तथा बच्चे के घरौंदे में दीपक जला रही है।
विशेष– (i) दीपावली की जगमग सज्जा, नया रंग-रोगन, खिलौने, दीपक जलाना आदि दृश्य दीपावली के उत्सव को आँखों के सामने साकार कर देते हैं।
(ii) माँ की ममता, कोमलता और दमक बहुत सुंदर और स्वाभाविक बन पड़ी है।
(iii) लोक प्रचलित हिन्दी तथा उर्दू शब्दों का प्रयोग है।
4.
आँगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है।
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ की कविता ‘रुबाइयाँ’ से लिया गया है। इस अंश में माँ अपने बालक को चाँद दिखाने की जिद पर दर्पण देखकर बहला रही है।
व्याख्या– बच्चा चन्द्रमा को लेना चाहता है और उसको पाने के लिए जिद कर रहा है। वह आँगन में खड़ा मचल रहा है। माँ बच्चे को बहलाने के लिए शीशे में चन्द्रमा का प्रतिबिंब दिखा रही है। इस प्रकार वह बच्चे के हाथों में चन्द्रमा को पकड़ाकर उसे खुश कर रही है।
विशेष– (i) बालक स्वभाव से ही चंचल और जिद्दी होते हैं।
(ii) माँ आकाश में खिलते हुए चाँद का प्रतिबिम्ब दर्पण में उतारती है।
(iii) बालक की जिद और तुनक का अत्यंत स्वाभाविक वर्णन हुआ है ‘जिदयाया है” ललचाया है’ जैसे शब्दों के प्रयोग ने भाषा-सौन्दर्य में वृद्धि की है।
5.
रक्षाबन्धन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि ‘फिराक गोरखपुरी’ की कविता’ रुबाइयाँ’ से लिया गया है। इस अंश में रक्षाबंधन के त्योहार पर भाई-बहिन की उमंग व प्रसन्नता का वर्णन कवि कर रहा है।
व्याख्या- रक्षाबन्धन के त्यौहार का सवेरा है। आकाश में हल्के बादल छाए हुए हैं। सुन्दर मूर्ति के समान रसभरी मधुर बातें करने वाली छोटी बहन अत्यन्त आकर्षक लग रही है। उसने पैरों में चाँदी के लच्छे पहने हुए हैं जो बिजली के समान चमक रहे हैं। वह अपने भाई की कलाई पर चमकती हुई राखी बाँध रही है।
विशेष– (i) कवि ने आकाश में बादल छाने तथा बिजली चमकने का वर्णन करके सजीवता प्रदान की है। रक्षाबंधन वर्षा ऋतु में मनाया जाता है। कवि ने वर्षा की पृष्ठभूमि पैदा कर रक्षाबंधन के वर्णन को सजीव बना दिया है।
(ii) ‘रस की पुतली’ प्रसन्न बालिका के लिए, पाँवों के लच्छों का बिजली की तरह चमकना प्रभावी प्रयाग है। (iii) भाषा रसमयी, प्रवाहमयी और सरल है। पुनरुक्ति प्रकाश तथा उपमा अलंकारों का प्रयोग है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तरी
प्रश्न 1. शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता है ?
उत्तर– शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह बता रहा है। इस प्रकार उसने यह भाव व्यक्त किया है कि राखी के धागे बिजली की तरह स्वच्छ और पवित्र हैं। वे बादल और बिजली की तरह भाई और बहन के अटूट सम्बन्ध के सूचक हैं। उनकी चमक भाई और बहन के मन में अनन्त प्रेम तथा उत्साह पैदा करती है।
प्रश्न 2. खुद का परदा खोलने से क्या आशय है ?
उत्तर– जब कोई व्यक्ति किसी की बुराई और निन्दा करता है तो इस काम द्वारा वह अपने चरित्रगत दोषों को भी लोगों के सामने प्रकट कर देता है। उसकी असलियत से परदा हट जाता है। लोग समझ लेते हैं कि वह अच्छा आदमी नहीं है। इस प्रकार वह अपना परदा अपने आप खोल देता है। वह अपने ईष्यालु स्वभाव को जग जाहिर कर देता है।
प्रश्न 3. ‘किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं’-इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तना-तनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा कीजिए।
उत्तर– शायर अपनी खराब किस्मत का रोना रोता है तो उसकी किस्मत भी माथा ठोकती है कि वह किसके पाले पड़ गई। दोनों ही एक-दूसरे से असंतुष्ट हैं। उनमें आपस में तनातनी का रिश्ता है। यह तनातनी कभी भी खत्म नहीं होने वाली है क्योंकि शायर और उसकी किस्मत का साथ भी कभी टूटने वाला नहीं है।
टिप्पणी करें
(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता ।
(ख) सावन की घटाएँ व रक्षाबंधन का पर्व ।
उत्तर– (क) गोदी के चाँद से तात्पर्य अपने पुत्र से है। गगन के चाँद से गोदी के चाँद का पुराना रिश्ता है। उसे चन्दा मामा कहा जाता है। बच्चे माँ से चन्दा को लेने तथा उस खिलौने से खेलने की जिद करते रहे हैं और माँ उसकी परछाई पानी में या दर्पण में दिखाकर बच्चों को खुश करती रही है।
(ख) वर्षा ऋतु के दूसरे महीने सावन के अन्तिम दिन पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के अटूट पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है, माथे पर रोली का तिलक लगाती है तथा उसको मिष्टान्न भेंट करती है। भाई भी बहन को उपहार तथा दक्षिणा देता है और संकट में उसकी रक्षा करने का वचन देता है। सावन में घटाएँ आकाश में छाई रहती हैं। तभी यह त्यौहार मनाया जाता है।
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