Class 12 Hindi Aniwarya Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है
Class 12 Hindi Aniwarya Chapter 5 के पाठ सहर्ष स्वीकारा है , का सम्पूर्ण विवरण..
कवि परिचय :- गजानन माधव मुक्ति बोध का जन्म 13 नवम्बर सन् 1917, श्योपुर, ग्वालियर मध्य प्रदेश में हुआ था। छायावाद और स्वच्छंदतावादी कविता के बाद जब नयी कविता आई तो मुक्तिबोध उसवके अगुआ कवियों में से एक थे।
मराठी संरचना से प्रभावित लम्बे वाक्यों ने उनकी कविता को आम पाठक के लिए कठिन बनाया लेकिन उनमें भावनात्मक और विचारात्मक ऊर्जा अटूट थी, जैसे कोई नैसर्गिक अंत:स्रोत हो जो कभी चुकता ही नहीं बल्कि लगातार अधिकाधिक वेग और तीव्रता के साथ उमड़ता चला आता है
यह ऊर्जा अनेकानेक कल्पना-चित्रों और फेंटेंसियों का आकार ग्रहण कर लेती हैं मुक्तिबोध का रचनात्मक ऊर्जा का एक बहुत बड़ा अंश आलोचनात्मक लेखन और साहित्य संबंधी चिंतन में सक्रिय रहा। वे एक समर्थ पत्रकार भी थे।
इसके अलावा राजनैतिक विषयों, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य तथा देश की आर्थिक समस्याओं पर लगातार लिखा है। 11 सितम्बर सन् 1964 में इस महान कवि व पत्रकार का नई दिल्ली में निधन हो गया।
प्रमुख रचनाएँ– चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल (कविता संग्रह); काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी (कथा साहित्य); कामायनी-एक पुनर्विचार, नयी कविता का आत्मसंघर्ष, नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, (अब ‘आखिर रचना क्यों’ नाम से) समीक्षा की समस्याएँ, एक साहित्यिक की डायरी (आलोचना); भारत : इतिाहस और संस्कृति ।
Class 12 Hindi Aniwarya पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
1
ज़िन्दगी में जो कुछ है, जो भी है,
सहर्ष स्वीकारा है,
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है ।
गरबीली गरीबी यह, ये गम्भीर अनुभव सब
यह विचार – वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है
संवेदन तुम्हारा है !!
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि गजानन माधव मुक्ति बोध’ की कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से लिया गया हैं कवि यहाँ बता रहा है कि उसके जीवन में जो भी उपलब्धियाँ है व कमजोरियाँ हैं, मुझे उन पर बहुत गर्व है।
व्याख्या– कवि अपने प्रियतम को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि उसने जीवन में जो कुछ प्राप्त किया है, उसके जीवन में सुख-दुख, भला-बुरा जो कुछ है,
उस सबको उसने प्रसन्नता के साथ स्वीकार किया है। इसका कारण यह है कि उसके पास जो कुछ है, वह उसके प्रियतम को प्यारा लगता है।
अपने प्रियतम की प्रसन्नता के लिए उसे जीवन से जो कुछ मिला है, वह सहर्ष स्वीकार है। उसे अपनी गरीबी पर गर्व है। जीवन में उसे गहरे अनुभव प्राप्त हुए हैं।
उसके पास विभिन्न प्रकार के विचारों की सम्पत्ति है। उसके इरादे मजबूत हैं। उसके मन में सरस भावनाओं की नदी बहती रहती है। यह सभी कुछ नवीनतम तथा स्वाभाविक है।
इसमें किसी प्रकार की बनावट या दिखावा नहीं है। इसका कारण यह है कि कवि के मन में हर क्षण जो भाव जागते हैं, वे निरन्तर सजग रहते हैं, कभी पलक झपकाकर नींद नहीं लेते, कभी शान्त नहीं होते। इन सब के पीछे कवि के प्रियतम की ही संवेदना है, उसी की प्रेरणा है।
विशेष– (i) कवि ने अपनी गरीबी, बौद्धिकता और गहन अनुभूतियों को उपाधि माना है तथा इसका श्रेय अपनी प्रिया को दिया है।
(ii) भाषा सभी बंधनों से मुक्त है। अनुप्रास, रूपकातिशयोक्ति तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
(iii) काव्यांश की भाषा सरल, भावानुकूल तथा स्वाभाविक है।
2
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है ?
मीठे पानी का सोता है भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!
सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि गजानन माधव मुक्ति बोध’ की कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से लिया गया हैं। इस अंश में कवि अपनी प्रिया के प्रति प्रेम को निर्झर के रूपक से व्यक्त कर रहा है।
व्याख्या– कवि अपने प्रियतम को अत्यन्त चाहता है। वह यह समझने मैं असमर्थ है कि उन दोनों के बीच यह कैसा सम्बन्ध है। वह कौन-सा रिश्ता है जिसने उसको प्रियतम से एकता की डोर से बाँध दिया है? कवि के मन में अपने प्रियतम के प्रति जो अपार असीम स्नेह भरा है, उसे वह बार-बार प्रकट करता है ।
वह जितनी बार स्नेह के जल को हृदय के बाहर उड़ेलता है, उतनी ही बार वह पुनः भर जाता है। कवि को ऐसा लगता है कि जैसे उसके हृदय में प्रेम का कोई झरना झर रहा है या स्नेह के मीठे जल का कोई स्रोत बह रहा है। इसी कारण इस स्नेह-दान में कभी कोई कमी नहीं होती।
हृदय के अन्दर प्रिय का स्नेह है और उसके ऊपर प्रिय स्वयं साक्षात् उपस्थित है। उसका खिला हुआ मुख कवि के ऊपर सदा इस प्रकार छाया रहता है जिस प्रकार पूर्णिमा का चन्द्रमा रात भर पृथ्वी के ऊपर अपनी चाँदनी की छटा बिखेरता रहता
विशेष– (i) सरल, सहज, प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली का प्रयोग
(ii) तत्सम, तद्भव तथा देशज शब्दों का प्रयोग
(iii) अतुकान्त मुक्त छन्द
(iv) अनुप्रास, रूपक तथा पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार प्रयुक्त हुए हैं। ‘गरबीली गरीबी’ अत्यन्त प्रभावशाली प्रयोग है।
3
सचमुच मुझे दण्ड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार- अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अन्तर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता
भीतर पिराती है।
कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !!
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि गजानन माधव मुक्ति बोध’ की कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से लिया गया हैं। इस अंश में कवि का प्रिय के प्रति मार्मिक वियोग प्रकट हुआ हैं प्रिय के अभाव में वह कैसे जिएगा- यह भय उसकी छाती में छटपटाहट पैदा कर रहा है।
व्याख्या- कवि अपने प्रियतम को भूल जाना चाहता है। प्रियतम को भूलना अत्यन्त कठोर दण्ड है किन्तु वह इसी दण्ड को पाने का इच्छुक है। प्रिय को भूलना दक्षिणी ध्रुव पर छ: महीने तक छाई रहने वाली अंधकारपूर्ण अमावस्या के समान है।
कवि अपने प्रिय के विस्मरण के इस अँधेरे को अपने शरीर, चेहरे और हृदय पर छा लेना चाहता है। वह विस्मरण की पीड़ा को झेलना चाहता है, उसमें नहाना चाहता है। अब तक वह अपने प्रिय की निकटता के उजाले से ढँका रहा है।
प्रिय की निकटता का उजाला बड़ा सुन्दर है। परन्तु कवि को अब वह सहन नहीं होता। मँडराते बादल जैसी प्रिय की कोमल ममता से वह सदा ढँका रहा है। यह उसके मन को पीड़ित करने लगी है। प्रिय से निरन्तर प्राप्त होने वाली ममता के संरक्षण ने उसको असमर्थ और कमजोर कर दिया है।
उसको भय लगता है कि वह भविष्य में आने वाले संकटों का सामना कैसे करेगा ? प्रियतम द्वारा उसको निरन्तर बहलाना और सांत्वना देना उसे सहन नहीं होता, क्योंकि इससे उसकी संघर्ष करने की क्षमता कम हो गई है।
विशेष– (i) कवि के लिए अपनी प्रिया को भूलने का दुख दक्षिणी ध्रुव की अमावस जैसा गहरा, घना और अंधकारमय होगा।
(ii) सहा नहीं जाता है, नहीं सहा जाता है- प्रयोग असहनीयता के प्रभाव को गहरा करता है।
(iii) भाषा सरल, सरस तथा भावों के अनुकूल है। तत्सम तद्भव तथा देशज शब्दों का प्रयोग हुआ है।
4
सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है।
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिन्दगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है,
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि गजानन माधव मुक्तिबोध’ की कविता ‘सहा नहीं जाता है’ से लिया गया है। इस अंश में कवि दंड के रूप में दूर कहीं पाताली अँधेरी गुफाओं या धुएँ के बादलों में लापता हो जाना चाहता है। कवि अपने वर्तमान को अपनी प्रिया की प्रेरणा ही मानता है।
व्याख्या– कवि अपने अज्ञात प्रिय से निवेदन करता है कि वह उसे दण्ड दे। कवि यह याचना सच्चे मन से कर रहा है। कवि चाहता है कि अपने चारों ओर घिरे हुए प्रियतम के उजाले से मुक्त होकर वह घने अंधकार से भरी पाताली गुफाओं में, सूने अँधेरे बिलों में, दरारों में, घने धुएँ से बने बादलों में लापता हो जाय, गायब हो जाय, छिप जाय।
लापता होने पर भी कवि को अपने प्रिय का सहारा रहेगा। वह अकेलेपन के इस दण्ड को अंधकार में रहकर भी अपने प्रिय की स्मृति के सहारे सरलता से झेल सकेगा।
कवि जानता है कि उसका अस्तित्व उसके प्रियतम के कारण ही है। अब तक उसने जीवन में जो कुछ पाया है अथवा जो कुछ उसे अपना होना-सा लगता है अथवा जो कुछ उसका होने की सम्भावना है- वह सब प्रियतम के कारण ही है। कवि ने जीवन में जो कार्य किए हैं, जिन कामों के लिए वह जाना जाता है, जिन कामों से वह घिरा हुआ है,
उन सब कामों का प्रेरणा-स्रोत उसका प्रिय ही है। उसके जीवन में जो कुछ पहले था तथा आज जो भी कुछ उसके पास है, उस सबको उसने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया है।
विशेष– (i) कवि अपने प्रिय के प्रति इतना आश्वस्त, मुग्ध और समर्पित है कि वह उसके उपकार क्षेत्र से दूर जाकर भी स्वयं को उसके प्रति कृतज्ञ मानता है। (ii) संबोधन शैली और आत्मानुभूति के कारण पद्यांश प्रभावशाली बन पड़ा है। (iii) संस्कृतनिष्ठ शब्दों के साथ तद्भव तथा देशज शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
Class 12 Hindi Aniwarya पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. टिप्पणी कीजिए : गरबीली गरीबी, भीतर की सरिता, बहलाती सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल ।
उत्तर– गरबीली गरीबी-कवि धन-सम्पन्न नहीं है। वह गरीब है परन्तु गरीबी के कारण वह किसी प्रकार की हीन भावना से ग्रस्त नहीं है। उसे अपनी गरीबी पर गर्व है। ‘गरबीली’ विशेषण द्वारा कवि ने ‘गरीबी’ का मानवर्द्धन किया है।
भीतर की सरिता- सरिता अर्थात् नदी में अपार जलराशि होती है, जो उसे प्रवाहित रखती है। कवि के हृदय में भी अनेक भावों का जल भरा है। इन भावों के कारण कवि का हृदय सदा सरस बना रहता है। नदी के समान मन में उठते विभिन्न भावों को ही भीतर की सरिता कहा गया है।
बहलाती-सहलाती आत्मीयता-कवि का प्रिय उसे अपना मानता है। उसके साथ उसका गहरा अपनापन है जो किसी सच्चे मित्र की तरह उसका मन बहलाता है और दुख में होने पर उसके पीड़ित हृदय को धीरे-धीरे सहलाकर उसे सुख देता है। यहाँ कवि ने आत्मीयता का मानवीकरण किया है।
ममता के बादल-कवि के प्रिय की ममता बादलों के समान है। जिस प्रकार आकाश में छाए बादल धरती पर पानी बरसाते हैं तथा लोगों को धूप-ताप से बचाते हैं, उसी प्रकार प्रिय की ममता कवि को स्नेह जल प्रदान करके दुख के ताप से मुक्त रखती है। ‘ममता के बादल’ में रूपक अलंकार का प्रयोग है।
प्रश्न 2. इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग हैं। ऐसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख कर उस पर टिप्पणी करें।
उत्तर- छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है-‘छटपटाहट’ व्याकुलता या बेचैनी को कहते हैं। प्रिय पर निर्भर रहकर कवि की आत्मा कमजोर हो गई है। उसका व्याकुल हृदय भविष्य में होने वाली घटनाओं की आशंका से भयभीत होता है। उसे डर लगता है। कि प्रियतम के स्नेह से दूर हो जाने पर उस पर क्या बीतेगी ?
पाताली अँधेरे की गुहाओं में धरती पर सूर्य और चन्द्रमा का प्रकाश है परन्तु उसके अन्दर पाताल में न सूर्य है और न चन्द्रमा । वहाँ घना अँधेरा छाया हुआ है। पाताल की अँधेरी गुफाओं से कवि का आशय प्रिय से वियोग और उसके संरक्षण से दूर होकर रहना है।
प्रश्न 3. व्याख्या कीजिए
जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है।
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है ?
मीठे पानी का सोता है।
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है !
उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार – अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है ?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या के लिए पद्यांश संख्या-2 की व्याख्या देखिए
जिस प्रकार आकाश में खिला चाँद समस्त धरती को प्रकाश से भर देता है उसी प्रकार प्रियतम का चेहरा कवि की आत्मा पर छाकर उसे अपने स्नेह से भर रहा है। निरन्तर सुख और प्रिय की समीपता से कवि को यह पता ही नहीं चल पाता कि अपने प्रिय से उसे कितना प्रेम है? वियोग ही प्रेम की कसौटी है।
कवि चाहता है कि प्रिय से दूर होकर, उसे भुलाने की चेष्टा करके, अपने प्रेम की परीक्षा ले, वियोग का अनुभव करके देखे। प्रियतम का सहारा पाकर कवि के व्यक्तित्त्व में आत्म-निर्भरता का गुण नहीं रहा है। प्रिय से वियुक्त होकर कवि आत्म-निर्भर होकर अपने व्यक्तित्त्व को निखारना चाहता है।
प्रश्न 4. तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
प्रश्न (क) यहाँ अंधकार अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता है ?
(ख) कवि ने व्यक्तिगत सन्दर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा है ?
(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली कौन-सी स्थिति कविता में व्यक्त हुई है? इस वैपरीत्य को व्यक्त करने वाले शब्द का व्याख्यापूर्वक उल्लेख करें।
(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको कविता संबोधित है कविता का ‘तुम’) को पूरी तरह भूल जाना चाहता है, इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए क्या युक्ति अपनाई है? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।
उत्तर– (क) इस कविता में ‘अन्धकार- अमावस्या’ के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी विशेषण का प्रयोग हुआ है। इससे विशेष्य अन्धकार- अमावस्या’ की सघनता और सीमा बढ़ गई है। स्मरण रहे कि दक्षिणी ध्रुव पर
छः महीने की लम्बी रात होती है।
(ख) कवि ने व्यक्तिगत सन्दर्भ में प्रिय को भूलने को अमावस्या कहा है। प्रिय के सामीप्य का उजाला सदैव कवि पर छाया रहता है। इस प्रकार प्रिय से दूरी अथवा प्रिय का वियोग ही अमावस्या है।
(ग) ‘तुम्हें भूल जाने की दक्षिण ध्रुवी अमावस्या’ से ठीक विपरीत ठहरने वाली स्थिति जो इस कविता में व्यक्त हुई है, वह है-‘तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित रहने का रमणीय यह उजेला’।
व्याख्या-कवि का जो कुछ है, जो उसे प्राप्त हो चुका है तथा जिसको पाने की संभावना है वह सब उसके प्रिय की ही देन है। कवि के व्यक्तित्व पर उसके प्रियतम के स्नेह का उजाला सदा छाया रहता है। उसका व्यक्तित्व प्रियतम के व्यक्तित्व से निरन्तर प्रेरित होता है। प्रियतम के बिना उसका अस्तित्व ही नहीं है।
इस तरह यह उजाला जहाँ प्रिय के संयोग को व्यक्त करता है वहाँ अमावस्या का अंधेरा उसके वियोग का सूचक है।
(घ) कवि अपने संबोध्य अर्थात् प्रियतम जिसको उसने कविता में तुम कहकर पुकारा है, को पूरी तरह भूल जाना चाहता है। प्रिय को भूलने को उसने दक्षिण ध्रुव पर फैले सघनतम सतत् अन्धकार में डूबने से व्यंजित किया है। प्रिय का वियोग घने अंधकार के समान है।
कवि उसमें पूर्णतः डूब जाना चाहता है। उसको सहन करना चाहता है। अंधकार में नहाने का तात्पर्य प्रिय के वियोग की पीड़ा को पूरी तरह सहन करना तथा अनुभव करना है।
प्रश्न 5. बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है-और कविता के शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है’ में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं ? चर्चा कीजिए।
उत्तर– ऊपर से देखने में ये दोनों कथन परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं।
कवि ने जीवन के हर पक्ष को सुख-दुःख, अभाव, गरीबी सबको प्रिय का प्रसाद मानकर प्रसन्नता से स्वीकार किया है। प्रिय की ममता को अपना रक्षा कवच माना है। प्रिय से ही अपना अस्तित्व सार्थक माना है फिर उसी प्रिय की आत्मीयता का बरदाश्त न होना, विपरीत सी बात प्रतीत होती है।
लगता है कवि को भय है कि प्रिय की अति ममता और समीपता के कारण उसकी आत्म-निर्भरता समाप्त न हो जाये तथा उसके मन में प्रिय के प्रति अवज्ञा का भाव न आ जाय। इसलिए वह उसके वियोग का दण्ड चाहता है ताकि उसका प्रेम और भी गहराई पा सके तथा आत्म-निर्भर होकर उसका व्यक्तित्त्व परिमार्जित हो सके।
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