विरोधाभास अलंकार किसे कहते हैं, परिभाषा, उदाहरण, अर्थ
विरोधाभास अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर विरोध न होने पर भी विरोध की प्रतीति होती है, अर्थात् कवि शब्दार्थ की योजना इस प्रकार करता है कि सुनते ही पदार्थों में विरोध प्रतीत होने लगता है, किन्तु अर्थ स्पष्ट होते ही विरोध शांत हो जाता है, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे-तंत्री – नाद, कवित्त- रस, सरस राग रति-रंग ।अनबूड़े बूड़े, तिरे, जे डूबे सब अंग ।।
प्रस्तुत दोहे की द्वितीय पंक्ति में बताया गया है कि वाद्य संगीत, कवित्त का रस, मधुर राग और प्रेम के रंग में जो नहीं डूबे वे डूब गए तथा जो डूब गए वे तिर गए । यहाँ विरोध प्रतीत हो रहा है, परंतु वास्तविक अर्थ है- जिन्होंने गहराई में बैठकर आनंद लिया, उनका जीवन सफल हो गया तथा जो गहराई में गोता नहीं लगा सके, उनका जीवन निष्फल गया। अतः ‘विरोधाभास’ अलंकार है।
उदाहरण 1.
“मीठी लगै अँखियान लुनाई।”
आशय यह है कि आँखों का लावण्य मीठा प्रतीत होता है। लुनाई का शब्दार्थ है- लवणयुक्त अर्थात् खारा। खरापन यहाँ मीठा लग रहा है, यह विरोध- कथन है, परन्तु लुनाई का तात्पर्य यहाँ पर सुन्दरता के रूप में प्रकट होने से विरोध समाप्त हो गया है।
उदाहरण 2.
विसमय यह गोदावरी, अमृतन के फल देत ।
केसव जीवन हार कौ, दुख असेस हरि लेत । प्रस्तुत पंक्तियों में गोदावरी को विसमय बताया गया है, जो विरोध प्रकट करता है । परन्तु विस का अर्थ ‘जल’ प्रकट होने पर विरोध समाप्त हो जाता है। अतः विरोधाभास अलंकार है।
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