NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 11 भक्तिन – महादेवी वर्मा
लेखिका – महादेवी वर्मा
भक्तिन – परिचय -महादेवी का जन्म सन् 1907 ई- उत्तर प्रदेश फर्रुखाबाद में एक शिक्षित कायस्थ परिवार में हुआ था। आपके पिताजी गोविन्द प्रसाद भागलपुर में प्रधानाचार्य थे। आपको प्रारम्भिक शिक्षा इंदौर में हुई। प्रयाग के क्रास्थवेट कॉलेज से हिन्दी तथा संस्कृत में एम.ए. करने के बाद आप महिला विद्यापीठ प्रयाग में प्रधानाध्यापिका रहीं, 19 सितम्बर 1987 को आपका देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय-महादेवी जी ने काव्य और गद्य के क्षेत्र में समान अधिकार के साथ साहित्य सृजन किया है आप छायावाद की स्तम्भ हैं। गद्य के क्षेत्र मैं आपके संस्मरणात्मक रेखाचित्र प्रसिद्ध हैं। आप ‘चाँद’ नामक पत्रिका की सम्पादिका रही हैं। आपको अपनी काव्य-रचना ‘नीरजा’ पर मंगला प्रसाद तथा सेकसरिया पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। भारत सरकार ने आपकी साहित्य सेवा के लिए आपको ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया है। गद्य के क्षेत्र में आपने निबन्ध तथा समालोचना पर लेखन किया है। आपके संस्मरण और रेखाचित्र विशेष प्रसिद्ध हैं।
महादेवी की भाषा परिष्कृत, संस्कृतनिष्ठ, तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। उसमें सुकुमारता तथा प्रवाह है। महादेवी ने वर्णनात्मक, विचार-विवेचनात्मक तथा चित्रात्मक शैलियों का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं व्यग्य का पुट भी है।
कृतियाँ– महादेवी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं 1. संस्मरण और रेखाचित्र – अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, मेरा परिवार, पथ के साथी, संचयन आदि।
2. निबन्ध – श्रृंखला की कड़ियाँ, साहित्यकार की आस्था आदि।
3. समालोचना-हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य, विविध आलोचनात्मक निबन्ध इत्यादि ।।
4. काव्य-नीहार, रश्मि, यामा, नीरजा, दीपशिखा, सांध्य गीत इत्यादि
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी ? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा ?
उत्तर- भक्तिन का वास्तविक नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था, लक्ष्मी को धन और सौभाग्य की देवी माना जाता है। दीपावली पर उसकी पूजा होती है । भक्तिन का जीवन निर्धनता से भरा हुआ था । दुर्भाग्य ने कभी उसका पीछा नहीं छोड़ा। अपना घर-द्वार छोड़कर वह महादेवी की सेविका बनकर रह रही थी। भक्तिन को लगता था कि उसका नाम उसकी दशा से मेल नहीं खाता । इस कारण वह इस नाम को लोगों को बताना नहीं चाहती थी, वह उसे छिपाती थी ।
उसका लछमिन या लक्ष्मी नाम बचपन में उसके माता-पिता ने किसी पण्डित के सुझाव पर रखा होगा । पण्डित ज्योतिष के अनुसार जन्म के समय के ग्रह-नक्षत्रों को देखकर बच्चे का नामकरण करते हैं। लक्ष्मी के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा ।
प्रश्न 2. दो कन्या – रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी । ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं ?
उत्तर– आज भी हमारे परिवारों में पुत्रियों से पुत्रों को श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण माना जाता है। भक्तिन का अपराध भी यही था कि उसने सास-जेठानियों की तरह पुत्र पैदा न करके तीन पुत्रियों को जन्म दिया था। सास और जेठानियों ने उसे घर की नौकरानी जैसा बना दिया था । भक्तिन का पति उसे पूरा सम्मान और प्यार देता था । घर की स्त्रियाँ ही उसकी दुश्मन बनी हुई थीं । भारतीय समाज में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जहाँ स्त्री ही स्त्री को सताती है अतः हम इस कथन से सहमत हैं ।
प्रश्न 3. भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा जबरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के सन्दर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करें या न करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परम्परा का प्रतीक है । कैसे ?
उत्तर- पुरुषों की तरह स्त्रियों को भी अपनी पसंद का जीवन-साथी चुनने का अधिकार है, लेकिन पंचायत ने भक्तिन की बेटी पर आवारा तीतरबाज युवक को पति के रूप में थोप दिया । यह कोई परिस्थितिवश होने वाली घटना नहीं थी। यह पुरुष प्रधान समाज द्वारा स्त्री के मानवाधिकार को कुचलने का षड्यंत्र था । स्त्रियों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करने की यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।
प्रश्न 4. भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं-लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा ?
उत्तर- भक्तिन महादेवी की सेविका थी। उसके गुणों से परिचित महादेवी उसके अवगुणों से भी परिचित थीं। भक्तिन में निम्नलिखित अवगुण थे
1. भक्तिन दूसरों को अपने मन के अनुसार बना लेना चाहती थी परन्तु स्वयं बिल्कुल भी बदलना नहीं चाहती थी। महादेवी के लाख कहने पर भी उसने अपने आपको नहीं सुधारा ।
2. वह इधर-उधर पड़े महादेवी के रुपयों को मटकी में छुपा देती थी। अपने इस काम को वह चोरी नहीं मानती थी। उसका तर्क था- अपने घर में रखे रुपयों को सँभालकर रखना तो उसका कर्त्तव्य है ।
3. महादेवी को प्रसन्न रखने के लिए वह झूठ भी बोलती थी। वह उसको झूठ नहीं मानती थी ।
4. वह शास्त्रों की व्याख्या अपने हित में अपने अनुसार ही कर लेती थी । इन बातों के कारण ही लेखिका ने कहा होगा- उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं ।
प्रश्न 5. भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है ?
उत्तर- भक्तिन ने अपना सिर उस्तरे से मुँड़वा लिया था । लेखिका को स्त्री का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है ? का सिर मुँड़ाना अच्छा नहीं लगता। उनके मना करने पर भक्तिन ने अपने काम को शास्त्रों के अनुकूल बताया- कहा, यह शास्त्र में लिखा है। क्या लिखा है ? यह पूछने पर उसने कहा- ‘तीरथ गए मुँड़ाए सिद्ध’ । महादेवी जानती थीं कि शास्त्र में ऐसा कुछ नहीं लिखा परन्तु वह चुप रहीं और भक्तिन का सिर मुँड़ाने का काम जारी रहा ।
प्रश्न 6. भक्तिन के आ जाने से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गई ?
उत्तर- भक्तिन दूसरों को अपने मन के अनुसार बनाना चाहती थी परन्तु स्वयं नहीं बदलती थी। उसने महादेवी को मक्के से बने बासी दलिए को मट्ठे के साथ खाना, बाजरे के तिल मिलाकर बने पुओं को दूसरे दिन खाना, ज्वार के भुने भुट्टे के हरे दानों की खिचड़ी का स्वादिष्ट होना तथा सफ़ेद महुए की लपसी को संसार का सबसे स्वादिष्ट हलवा मानना क्रियात्मक रूप से सिखाया। अपनी भाषा की अनेक कहावतें उसने महादेवी को याद करा दीं । इसी कारण महादेवी मानती हैं कि वह पहले से अधिक देहाती हो गई हैं।