Class 10 Sanskrit Chapter 7 विचित्र साक्षीHindi & English Translation
विचित्र साक्षी :- कथा बंगला के सुप्रसिद्ध साहित्यकार बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा न्यायाधीश के रूप में दिये गये एक फैसले पर आधारित है। इसके रचयिता श्री ओमप्रकाश ठाकुर हैं। चटर्जी जितने महान् साहित्यकार थे, उतने ही प्रसिद्ध न्यायाधीश भी रहे। नीर-क्षीर विभागार्थ वे कभी-कभी ऐसी युक्तियों का प्रयोग करते थे कि गवाह के अभाव में भी न्याय हो सके। इस कथा में भी विद्वान् न्यायाधीश ने एक ऐसी ही युक्ति का प्रयोग करके न्याय करने में सफलता पायी है।
कश्चन निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमु- पार्जितवान् तेन स्वपुत्रं एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलो जातः । तत्तनयः तत्रैव छात्रावासे निवसन् अध्ययने संलग्नः समभूत् एकदा स पिता तनूजस्य रुग्णतामाकर्ण्य व्याकुलो जातः पुत्रं द्रष्टुं च प्रस्थितः परमर्थ्यकार्थेन पीडितः स. बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत् ।
पदातिक्रमेण संचलन् सायं समयेऽप्यसौ गन्तव्याद् दूरे आसीत् । निशान्धकारे प्रसृते विजने प्रदेशे पदयात्रा न शुभावहा । एवं विचार्य स पार्श्वस्थिते ग्रामे रात्रिनिवासं कर्त्तुं कञ्चिद् गृहस्थमुपागतः करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत् ।
हिन्दी – अनुवादः – किसी गरीब व्यक्ति ने बहुत परिश्रम करके कुछ धन कमाया । उससे वह अपने बेटे को एक महाविद्यालय में प्रवेश दिलाने में समर्थ हो गया । उसका बेटा वहीं छात्रावास में रहता हुआ अध्ययन में संलग्न हो गया । एक दिन वह पिता बेटे की बीमारी (की बात सुनकर व्याकुल हुआ और बेटे को देखने के लिए चल दिया, परन्तु धन के अत्यधिक अभाव के कारण खिन्न हुआ वह बस को छोड़कर पैदल ही चल पड़ा।
पैदल ही लगातार चलते हुए सायंकाल को भी वह अपने गन्तव्य से दूर रहा (था) रात का अँधेरा फैलने पर ‘एकान्त प्रदेश में पैदल यात्रा हितकारी (कल्याणकारी) नहीं’ इस प्रकार सोचकर वह पास में बसे गाँव में रैन बसेरा करने के लिए किसी गृहस्थ के पास आया । करुणामय घर के मालिक ने उसे सहारा (आश्रय) प्रदान किया ।
English translation: – Some poor person earned some money by working very hard. This enabled him to enroll his son in a collage. Engaged in studies while living in his son’s hostel. One day his father got sick of his son (distraught after hearing about this and went to see the son, but was upset due to extreme lack of money) he left the bus and started walking.
Walking continuously on foot, he stayed away from his destination in the evening as well. When the darkness spread at night, thinking that ‘traveling on foot in a lonely region is not beneficial’, he went to a nearby village to sleep with a householder. came to The compassionate householder provided him with shelter.
विचित्रा दैवगतिः । तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः । तत्र निहितामेकां मञ्जूषाम् आदाय पलायितः । चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धोऽतिथिः चौरशङ्कया तमन्वधावत् अग्रहणाच्च परं विचित्रमघटत चौरः एव उच्चैः क्रोशितुमारभत “चौरोऽयं चौरोऽयम्” इति तस्य तारस्वरेण प्रबुद्धाः ग्रामवासिनः स्वगृहाद् निष्क्रम्य तत्रागच्छन् वराकमतिथिमेव च चौरं मत्वाऽभर्त्सयन् । यद्यपि ग्रामस्य आरक्षी एव चौर आसीत् । तत्क्षणमेव रक्षापुरुषः तम् अतिथिं चौरोऽयम् इति प्रख्याप्य कारागृहे प्राक्षिपत् ।
हिन्दी – अनुवाद:- भाग्य की लीला बड़ी अनोखी होती है। उसी रात में उस घर में कोई चोर घर के अन्दर घुस गया। वहाँ रखी एक पेटी को लेकर वह भाग गया। चोर की पदचाप से जागा हुआ अतिथि चोर की आशंका से चोर के पीछे दौड़ा और पकड़ लिया । लेकिन एक अनोखी घटना घटी कि उस चोर ने ही जोर-जोर से चीखना आरम्भ कर दिया ।
‘यह चोर है, यह चोर है’। उसके उच्च स्वर से जागे हुए गाँव में रहने वाले लोग अपने-अपने घर से निकलकर वहाँ आ गये और उस बेचारे अतिथि को ही चोर मानकर निन्दा करने लगे । वास्तव में गाँव का चौकीदार ही चोर था। तत्काल ही उस आरक्षी (रखवाले, पुलिसवाले) ने ‘यह चोर है’ ऐसा प्रचार करके उसे बंदीगृह अर्थात् जेल में डाल दिया।
English – Translation:- The play of luck is very unique. In the same night a thief entered inside that house. He ran away with a box kept there. Being awakened by the footsteps of the thief, the guest ran after the thief fearing the thief and caught him. But a strange incident happened that the thief himself started crying loudly.
‘This is a thief, this is a thief’. Awakened by his loud voice, the people living in the village came out of their houses and started condemning that poor guest as a thief. Actually the watchman of the village was the thief. Immediately that constable (keeper, policeman) by propagating that ‘he is a thief’, put him in prison.
अग्रिमे दिने स आरक्षी चौर्याभियोगे तं न्यायालयं नीतवान् । न्यायाधीशो बंकिमचन्द्रः उभाभ्यां पृथक्-पृथक् विवरणं श्रुतवान् । सर्वं वृत्तमवगत्य स तं निर्दोषम् अमन्यत आरक्षिणं च दोष भाजनम् । किन्तु प्रमाणाभावात् स निर्णेतुं नाशक्नोत् । ततोऽसौ तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान् अन्येद्युः तौ न्यायालये स्व-स्व-पक्षं पुनः स्थापितवन्तौ तदैव कश्चिद् तत्रत्यः कर्मचारी समागत्य न्यवेदयत् यत् इतः क्रोशद्वयान्तराले कश्चिज्जनः केनापि हतः । तस्य मृतशरीरं राजमार्ग निकषा वर्तते । आदिश्यतां किं करणीयमिति न्यायाधीशः आरक्षिणम् अभियुक्तं च तं शवं न्यायालये आनेतुमादिष्टवान् ।
हिन्दी अनुवाद:- अगले दिन वह चौकीदार (रक्षापुरुष) चोरी के मुकदमे में उस (अतिथि) को न्यायालय ले गया । न्यायाधीश बंकिमचन्द्र ने अलग-अलग विवरण (बयान) सुना। पूरे वृत्तान्त को जानकर उस (न्यायाधीश) ने उस (अतिथि) को निरपराध माना और रक्षापुरुष को अपराधी (माना) लेकिन प्रमाण के अभाव में वह (न्यायाधीश) निर्णय नहीं कर सका । तब उस (न्यायाधीश) ने उन दोनों (अतिथि एवं राजपुरुष) को अगले दिन उपस्थित होने के लिए आदेश प्रदान किया ।
दूसरे दिन उन दोनों ने न्यायालय में अपने-अपने पक्ष को फिर से स्थापित किया। तभी वहाँ के किसी रहने वाले ने आकर निवेदन किया कि यहाँ से दो कोस की दूरी पर कोई आदमी किसी के द्वारा मार दिया गया है, उसकी लाश सड़क के पास (समीप) है। आदेश दीजिए, क्या करना चाहिए । न्यायाधीश ने रक्षा पुरुष (सैनिक) और अभियुक्त को, उस शव को न्यायालय में लाने के लिए आदेश दिया ।
English translation:- The next day the watchman (guard) took him (the guest) to the court in a case of theft. Judge Bankimchandra heard the different statements. Knowing the whole story, he (judge) considered him (guest) innocent and defense man (considered) guilty, but he (judge) could not decide because of lack of evidence. Then he (the judge) ordered both of them (the guest and the prince) to appear the next day.
The next day both of them re-established their respective sides in the court. Then a resident of that place came and requested that at a distance of two kos from here, a man has been killed by someone, his dead body is near the road. Give orders, what should be done. The judge ordered the defense man (soldier) and the accused to bring the body to the court.
आदेशं प्राप्य उभौ प्राचलताम् तत्रोपेत्य काष्ठपटले निहितं पटाच्छादितं देहं स्कन्धेन वहन्तौ न्यायाधिकरणं प्रति प्रस्थितौ । आरक्षी सुपुष्टदेह आसीत्, अभियुक्तश्च अतीव कृशकायः । भारवतः शवस्य स्कन्धेन वहनं तत्कृते दुष्करम् आसीत् । स भारवेदनया क्रन्दति स्म । तस्य क्रन्दनं निशम्य मुदित आरक्षी तमुवाच- ‘रे दुष्ट ! तस्मिन् दिने त्वयाऽहं चोरिताया मञ्जूषाया ग्रहणाद् वारितः । इदानीं निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व । अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे’ इति प्रोच्य उच्चैः अहसत् । यथाकथञ्चिद् उभौ शवमानीय एकस्मिन् चत्वरे स्थापितवन्तौ ।
हिन्दी – अनुवाद:- आदेश पाकर दोनों (अभियुक्त और आरक्षी) ही चल पड़े वहाँ पास जाकर लकड़ी के तख्ते पर रखे हुए कपड़े से ढके हुए (मृत) शरीर को कन्धे पर ढोते हुए न्यायालय की ओर प्रस्थान किया । चौकीदार हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला था (और) अपराधी कमजोर (दुबले-पतले शरीर वाला (था) ।
भारी लाश का कन्धे पर ढोना उसके लिए मुश्किल (कठिन कार्य) था। वह वजन की पीड़ा से चीख रहा था । उसके चीत्कार (रुदन) को सुनकर प्रसन्न हुआ चौकीदार उससे बोला-‘अरे दुष्ट! उस दिन तूने मुझे चोरी की पेटी को ले जाने से रोका था । अब अपनी करनी का फल भोग । इस चोरी के मुकदमे में तुम तीन वर्ष की कैद भोगोगे’ ऐसा कहकर वह जोर से हँसा । जैसे-तैसे दोनों ने लाश को लाकर चौराहे पर रख दिया।
English Translation:- After getting the order, both (accused and the constable) went near there and proceeded towards the court carrying the (dead) body on the shoulder covered with a cloth kept on a wooden board. The watchman was (and) the criminal was (was) weak (thin).
It was difficult (difficult task) for him to carry the heavy corpse on his shoulder. He was crying out in pain from the weight. Pleased to hear his cry, the watchman said to him – ‘O rascal! That day you stopped me from taking the stolen box. Now enjoy the fruits of your actions. You will be imprisoned for three years in this theft case’ he laughed out loud saying this. Somehow both of them brought the dead body and kept it at the crossroads.
न्यायाधीशेन पुनस्तौ घटनायाः विषये वक्तुमादिष्टौ आरक्षिणि निजपक्षं प्रस्तुतवति आश्चर्यमघटत् स शवः प्रावारकमपसार्य न्यायाधीशमभिवाद्य निवेदितवान्- मान्यवर ! एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तद् वर्णयामि त्वयाऽहं चोरितायाः मञ्जूषायाः ग्रहणाद् वारितः, अतः निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्ड लप्स्यसे’ इति न्यायाधीशः आरक्षिणे कारादण्डमादिश्य तं जनं ससम्मानं- मुक्तवान् ।
अतएवोच्यते-दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः । नीतिं युक्ति समालम्ब्य लीलयैव प्रकुर्वते ।।
हिन्दी – अनुवाद:– न्यायाधीश ने फिर से उन दोनों को घटना के विषय में बोलने का आदेश दिया । रक्षापुरुष (चौकीदार) के अपने पक्ष को प्रस्तुत करने पर अर्थात् जब चौकीदार अपना पक्ष प्रस्तुत कर रहा था, तब एक आश्चर्यजनक घटना घटी। वह लाश लवादे चादर को दूर करके (फेंककर ) [उठ खड़ी हुई तथा] न्यायाधिकारी (जज) को अभिवादन करके (पुरुष रूप से) निवेदन करने लगी- “माननीय !
इस चौकीदार ने मार्ग में जो कहा था (मैं) उसका वर्णन करता हूँ- तुमने मुझे चोरी की पेटी को ले जाने से रोका था । अतः अब अपने किये हुए (करनी) का फल भोगो। इस चोरी के आरोप में तुम तीन वर्ष का कैद का दण्ड पाओगे ।” न्यायाधीश ने चौकीदार सिपाही को कैद के दण्ड का आदेश (आज्ञा देकर उस व्यक्ति (अतिथि) को ससम्मान ( सम्मान के साथ) मुक्त कर दिया । इसलिए कहा जाता है- बुद्धिमान् लोग नैतिक तरीके का सहारा लेकर कठिनाई से किये जाने योग्य कार्यों को भी खेल ही खेल में कर लेते हैं।
English translation:- The judge again ordered them both to speak about the incident. When the Rakshapurush (chowkidar) presented his side, that is, when the chowkidar was presenting his side, a surprising incident happened. She removed (throwing away) the sheet carrying the dead body [stood up and] greeted the judge (judge) and started requesting (in a male form)- “Honourable!
(I) describe what this watchman had said on the way- You had stopped me from carrying the stolen box. So now enjoy the fruits of what you have done. You will be sentenced to three years of imprisonment on the charge of this theft.” The judge released the person (guest) with respect (with respect) by ordering (ordering) the watchman soldier to be sentenced to imprisonment. That’s why it is said – wise. By taking the help of moral methods, people do even the tasks that can be done with difficulty in a game.
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Class 10 Sanskrit Chapter 7 विचित्र साक्षी Questions Answers
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(क) कीदृशे प्रदेशे पदयात्रा न सुखावहा?
उत्तर विजने प्रदेशे।
(ख) अतिथिः केन प्रबुद्धः ?
उत्तर चौरस्य पादध्वनिना।
(ग) कृशकायः कः आसीत् ?
उत्तर अभियुक्तः।
(घ) न्यायाधीशः कस्मै कारागार दण्डम् आदिष्टवान् ?
उत्तर आरक्षिणे।
(ङ) कं निकषा मृत शरीरेण आसीत् ?
उत्तर राजमार्गम् ।
प्रश्न 2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(क) निर्धनः जनः कथं वित्तम् उपार्जितवान् ?
उत्तरम् – निर्धनः जनः भूरि परिश्रम्य वित्तम् उपार्जितवान् ।
(ख) जनः किमर्थं पदातिः गच्छति ?
उत्तरम् – जनः परमर्थकायॆन पीडितः बसयानं विहाय पदातिरेव गच्छति ।
(ग) प्रसृते निशान्धकारे सः किम् अचिन्तयत् ?
उत्तरम् – सोऽचिन्तयत् यत् निशान्धकारे प्रसृते विजने प्रदेशे पदयात्रा न शुभावहा ।
(घ) वस्तुतः चौरः कः आसीत् ?
उत्तरम् – वस्तुत: चौर: आरक्षी आसीत् ।
(ङ) जनस्य क्रन्दनं निशम्य आरक्षी किमुक्तवान् ?
उत्तरम् – ‘रे दुष्ट ! तस्मिन् दिने त्वयाऽहम् चोरितायाः मञ्जूषायाः ग्रहणात् वारितः । इदानीं निज कृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व । अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे ।’
(च) मतिवैभवशालिनः दुष्कराणि कार्याणि कथं साधयन्ति ?
उत्तरम् – मतिवैभवशालिनः दुष्कराणि कार्याणि नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव साधयन्ति ।
प्रश्न 3. रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माण कुरुत-
(क) पुत्रं द्रष्टुं सः प्रस्थितः ।
उत्तरम् – कं द्रष्टुं सः प्रस्थितः ?
(ख) करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत् ।
उत्तरम् – गृही कस्मै आश्रयं प्रायच्छत् ?
(ग) चौरस्य पादध्वनिना अतिथिः प्रबुद्धः ।
उत्तरम् – कस्य पादध्वनिना अतिथिः प्रबुद्धः ?
(घ) न्यायाधीशः बंकिमचन्द्रः आसीत् ।
उत्तरम् – न्यायाधीशः कः आसीत् ?
(ङ) सः भारवेदनया क्रन्दति स्म ।
उत्तरम् – सः कया क्रन्दति स्म ?
(च) उभौ शवं चत्वरे स्थापितवन्तौ ।
उत्तरम् – उभौ शवं कुत्र स्थापितवन्तौ ?
प्रश्न 4. यथानिर्देशमुत्तरत-
(क) आदेशं प्राप्य उभौ अचलताम्’ अत्र किं कर्तृपदम् ?
उत्तरम् – उभौ ।
(ख) एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तदवर्णयामि ? अत्र ‘मार्गे’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम् ?
उत्तरम् – अध्वनि ।
(ग) ‘करुणापरो गृही तस्मै आश्रय प्रायच्छत् अत्र ‘तस्मै’ इति सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम् ?
उत्तरम् – अतिथये ।
(घ) ‘ततोऽसौ तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्’ अस्मिन् वाक्ये किं क्रियापदम् ?
उत्तरम् – आदिष्टवान् ।
(ङ) ‘दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिना?’ अत्र विशेष्य पदं किम् ?
उत्तरम् – कर्माणि ।
प्रश्न 5. सन्धि / सन्धिविच्छेदं च कुरुत-
उत्तरम् – (क) पदातिरेव = पदातिः + एव
(ख) निशान्धकारे = निशा + अन्धकारे
(ग) अभि + आगतम् = अभ्यागतम्
(घ) भोजनान्ते = भोजन + अन्ते
(ङ) चौरोऽयम् = चौरः+अयम्
(च) गृह + अभ्यन्तरे = गृहाभ्यन्तरे
(छ) लीलयैव = वीरता+एव
(ज) यदुक्तम् = यत् + उक्तम्
(झ) प्रबुद्धः + अतिथिः प्रबुद्धोऽतिथिः
प्रश्न 6. अधोलिखितानि पदानि भिन्न-भिन्न- प्रत्ययान्तानि सन्ति । तानि पृथक् कृत्वा निर्दिष्टानां प्रत्ययानामधः लिखत-
परिश्रम्य, उपार्जितवान्, दापयितुम्, प्रस्थितः, द्रष्टुम्, विहाय, पृष्टवान्, प्रविष्टः, आदाय, क्रोशितुम्, नियुक्तः, नीतवान्,निर्णेतुम् आदिष्टवान्, समागत्य, मुदितः
ल्यप् | क्त: | क्तवतु | तुमुन् |
परिश्रम्य | प्रस्थितः | उपार्जितवान् | द्रष्टुम् |
विहाय | प्रविष्टः | पृष्टवान् | निर्णेतुम् |
आदाय | नियुक्तः | आदिष्टवान् | दापयितुम् |
समागत्य | मुदित: | नीतवान् | क्रोशितुम् |
प्रश्न 7. (अ) अधोलिखितानि वाक्यानि बहुवचने परिवर्तयत–
(क) स बसयानं विहाय पदातिरेव गन्तुं निश्चयं कृतवान् ।
उत्तरम् – ते बसयानं विहाय पदातिरेव गन्तुं निश्चयं कृतवन्तः ।
(ख) चौरः ग्रामे नियुक्तः राजपुरुषः आसीत्
उत्तरम् – चौरा: ग्रामे नियुक्ताः राजपुरुषाः आसन् ।
(ग) कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः ।
उत्तरम् – केचन चौराः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टाः ।
(घ) अन्येद्युः तौ न्यायालये स्व-स्व-पक्षं स्थापितवन्तौ ।
उत्तरम् – अन्येद्युः ते न्यायालये स्व-स्व-पक्षं स्थापितवन्तः
(आ) कोष्ठकेषु दत्तेषु पदेषु यथानिर्दिष्टां विभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) सः ……… निष्क्रम्य बहिरगच्छत् । (गृहशब्दे पंचमी )
(ख) गृहस्थ : आश्रयं प्रायच्छत् । (अतिथिशब्दे चतुर्थी)
(ग) तौ …….. प्रति प्रस्थितौ । (न्यायाधीशशब्दे द्वितीया)
(घ)………….. चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यये ।(इदम् शब्दे सप्तमी)
(ङ) चौरस्य……..प्रबुद्धः अतिथिः । (पादध्वनि शब्दे तृतीया)
उत्तरम् – (क) सः गृहात् निष्क्रम्य बहिरगच्छत् ।
(ख) गृहस्थः अतिथये आश्रयं प्रायच्छत् ।
(ग) तौ न्यायाधीशं प्रति प्रस्थितौ ।
(घ) अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे ।
(ङ) चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धः अतिथिः ।