NCERT Solutions for Class 12th Sanskrit Chapter 3 प्रजानुरञ्जको नृपः Hindi Translation & Questions Answers
इस पोस्ट में हमने Sanskrit Class 12th Chapter 3 प्रजानुरञ्जको नृपः हिंदी अनुवाद में हमने सम्पूर्ण अभ्यास प्रश्न को सरल भाषा में लिखा गया है। हमने Bhaswati Sanskrit Class 12th Chapter 3 प्रजानुरञ्जको नृपः के Questions and Answer बताएं है। इसमें NCERT Class 12th Sanskrit Chapter 3 Notes लिखें है जो इसके नीचे दिए गए हैं।
1. | Class 12th All Subject Solution |
2. | Class 12th All Subject Notes |
त्यागाय सम्भृतार्थानां सत्याय मितभाषिणाम्। यशसे विजिगीषूणां प्रजायै गृहमेधिनाम् ॥1॥
हिंदी अनुवाद:- स्वावलंबी के त्याग के लिए, मर्यादित-भाषण के सत्य के लिए। संतान को जीतने की इच्छा रखने वाले गृहस्थों की प्रसिद्धि के लिए।
शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम् । वार्द्धके मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुत्यजाम् ॥2॥
हिंदी अनुवाद:- उन्होंने बचपन में विद्या सीखी और युवावस्था में वे कामुक सुखों से ग्रस्त हो गये। तपस्वियों के बुढ़ापे में मैंने अपने जीवन के अंत में योग द्वारा अपना शरीर त्याग दिया।
रघूणामन्वयं वक्ष्ये तनुवाग्विभवोऽपि सन् । तद्गुणैः कर्णमागत्य चापलाय प्रचोदितः ॥3॥
हिंदी अनुवाद:- अब मैं रघुवंश के परिणामों का वर्णन करूंगा, यद्यपि मैं शरीर और वाणी से शक्तिशाली हूं। अपने गुणों के कारण वह कर्ण के पास आये और उसे चंचल होने के लिए प्रोत्साहित किया।
वैवस्वतो मनुर्नाम माननीयो मनीषिणाम् । आसीन्महीक्षितामाद्यः प्रणवश्छन्दसामिव ॥4॥
हिंदी अनुवाद:- वैवस्वत मनु नामक मनु विद्वानों द्वारा आदरणीय हैं। वह चंदों के ओंकार जैसे राजाओं में से पहले थे।
तदन्वये शुद्धिमति प्रसूतः शुद्धिमत्तरः । दिलीप इव राजेन्दुरिन्दुः क्षीरनिधाविव ॥5॥
हिंदी अनुवाद:- इसके परिणामस्वरूप, वह एक शुद्ध मन में पैदा हुआ और अधिक शुद्ध हो गया। हे राजा, चंद्रमा दिलीप के समान है और चंद्रमा दूध के भंडार के समान है
आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञया सदृशागमः । आगमैः सदृशारम्भ आरम्भसदृशोदयः ॥6॥
हिंदी अनुवाद:- बुद्धि आकार की तरह है, और बुद्धि बुद्धि की तरह है। शुरुआत आगम की तरह है और उत्थान शुरुआत की तरह है।
प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमग्रहीत् । सहस्त्रगुणमुत्स्त्रष्टुमादत्ते हि रसं रविः ॥7॥
हिंदी अनुवाद:- लोगों के कल्याण के लिए उन्होंने उनसे प्रसाद स्वीकार किया। सूर्य स्वाद को हजार गुना बढ़ाकर छीन लेता है।
ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघाविपर्ययः । गुणा गुणानुबन्धित्वात्तस्य सप्रसवा इव ॥8॥
हिंदी अनुवाद:- ज्ञान में मौन बल में क्षमा है और त्याग स्तुति के विपरीत है प्रकृति के गुण, प्रकृति के गुणों से जुड़े होने के कारण, मानो बच्चों के साथ हों।
प्रजानां विनयाधानाद्रक्षणाद्भरणादपि । स पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः ॥ १ ॥
हिंदी अनुवाद:- उसने अपनी प्रजा को नम्र किया, उनकी रक्षा की और उन्हें खाना खिलाया। वह पिता ही उनके जन्म का एकमात्र कारण है।
द्वेष्योऽपि सम्मतः शिष्टस्तस्यार्तस्य यथौषधम्। त्याज्यो दुष्टः प्रियोऽप्यासीदङ्गुलीवोरगक्षता ॥10॥
हिंदी अनुवाद:- नफ़रत करने वाले को भी स्वीकार किया जाता है और विनम्रता दुखित के लिए औषधि के समान है। उसे त्याग दिया जाना था और दुष्ट तथा प्रिय को सांप की उंगली की तरह घायल किया जाना था।
स वेलावप्रवलयां परिखीकृतसागराम् । अनन्यशासनामुर्वी शशासैकपुरीमिव ॥11॥
हिंदी अनुवाद:- उसने समुद्र में एक गड्ढा खोदा जो किनारे से ऊबड़-खाबड़ था। उसने पृथ्वी पर विशिष्ट शासन के साथ शासन किया जैसे कि यह एक ही शहर हो
अभ्यास प्रश्न
- एकपदेन उत्तरत-
(क) केषाम् अन्वयः कालिदासेन विवक्षितः ?
उत्तर रघूणाम्।
(ख) रघुवंशिनः अन्ते केन तनुं त्यजन्ति ?
उत्तर योगेन।
(ग) महीक्षिताम् आद्यः कः आसीत्?
उत्तर मन:।
(घ) कासां पितरः केवलं जन्महेतवः ?
उत्तर प्रजानाम्।
(ङ) कः प्रियः अपि त्याज्यः ?
उत्तर दृष्ट:।
(च) दिलीपः प्रजानां भूत्यर्थं कम् अग्रहीत् ?
उत्तर बलिम्।
(छ) राजेन्दुः दिलीपः रघूणामन्वये क्षीरनिधौ कः इव प्रसूत: ?
उत्तर इन्द्र: ।
- पूर्णवाक्येन उत्तरत-
(क) महाकविकालिदासेन वैवस्वतो मनुः महीक्षितां कीदृशः निगदित: ?
उत्तर महाकविकालिदासेन वैवस्वतो मनुः महीक्षिताम् आद्यः निगदितः।
(ख) कालिदासः तनुवाग्विभवः सन् अपि तद्गुणैः कथं प्रचोदितः ?
उत्तर कालिदासः तनुवाग्भिवः सन् अपि तद्गुणैः चापलाय प्रचोदितः !
(ग) के तं (रघुवंश) श्रोतुमर्हन्ति ?
उत्तर सदसद्व्यक्तिहेतवः सन्तः तं श्रोतुमर्हन्ति ।
(घ) दिलीपस्य कार्याणाम् आरम्भः कीदृशः आसीत्?
उत्तर दिलीपस्य कार्याणाम् आरम्भ आगमैः सदृशः आसीत् ।
(ङ) रवि : रसं किमर्थम् आदत्ते ?
उत्तर रविः रसं सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते ।
- रेखाङ्कितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत–
(क) सः प्रजानामेव भूत्यर्थं बलिम् अग्रहीत् ।
उत्तर कः प्रजानामेव भूत्यर्थं बलिम् अग्रहीत् ?
(ख) प्रजानां विनयाधानात् सः पिता आसीत् ।
उत्तर कासां विनयाधानात सः पिता आसीत ?
(ग) मनीषिणां माननीयः मनुः आसीत् ।
उत्तर केषां माननीयः मनुः आसीत् ?
(घ) शुद्धिमति अन्वये दिलीपः प्रसूतः ।
उत्तर शुद्धिमति कस्मिन् दिलीपः प्रसूतः ?
(ङ) पितरः जन्महेतवः आसन् ।
उत्तर के जन्महेतवः आसन् ?
- अधोलिखितानां भावार्थं हिन्दी / आंग्ल / संस्कृतभाषया
(क) प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमग्रहीत् ।
हिन्दी-कुछ राजा अपने स्वार्थ हेतु प्रजा से बहुत अधिक कर लेते हैं जो निन्दनीय है किन्तु राजा दिलीप अपनी प्रजा से थोड़ा-सा ही कर लेता था तथा वह संचित धन को भी प्रजा की भलाई में ही लगा लेता था अपने किसी निजी स्वार्थ में नहीं यही भाव अभिव्यक्त किया गया है यहाँ ।
(ख) आगमैः सदृशारम्भः आरम्भसदृशोदयः ।
हिन्दी – प्रस्तुत पंक्ति में कवि यही कहना चाहते हैं कि राजा दिलीप ने अत्यधिक शास्त्रों का अध्ययन किया हुआ था जिसके कारण वे कार्यों का आरम्भ भी बहुत सुन्दर रूप से करते थे तथा कार्यों के उत्तम आरम्भ के अनुसार ही कार्यों का परिणाम (सफलता) भी उत्तम मिलता था।
(ग) स पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः ।
हिन्दी – राजा दिलीप अपनी प्रजा की सब प्रकार की शिक्षा, रक्षा तथा पालन पोष्ण का ध्यान रखता था। इसलिए सच्चे अर्थों में वह उनका पिता कहलाने का अधिकारी। था, उनक अपने पिता केवल जन्म देने के कारण मात्र थे । यहाँ कवि यही भाव प्रस्तुत करना चाहते हैं कि वास्तव में पिता अपनी सन्तान का पालन-पोषण, रक्षण, शिक्षण सब कुछ करता है तभी वह पिता कहलाने का अधिकारी होता है और ये सारे, कार्य राजा दिलीप अपनी प्रजा के लिए कर रहे थे अतः वह ही उनके सच्चे अर्थों में पिता कहलाने के अधिकारी थे, उनके अपने पिता नहीं ।
(घ) अनन्यशासनामुर्वी शशासैकपुरीमिव ।
हिन्दी- -राजा दिलीप चारों ओर समुद्र से घिरी हुई सम्पूर्ण पृथ्वी पर अकेले बिना किसी परिश्रम के शासन करते थे तथापि उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि जैसे वे इतने विशाल राज्य के शासक हों। उन्होंने हमेशा ऐसा अनुभव किया कि जैसे वे छोटी-सी नगरी पर शासन कर रहे हों। इस प्रकार यहाँ कवि यही कहना चाहते हैं कि इतनी विशाल पृथ्वी पर भी राजा दिलीप पल शासन कर रहे थे जैसे वे एक छोटी-सी नगरी पर शासन कर रहे हों क्योंकि उन्हें शासन में किसी प्रकार का कोई कष्ट भी अनुभव नहीं हो रहा था।
- अधोलिखितेषु विपरीतार्थमेलनं कुरुत-
उत्तर-
- यौवने = वार्धक्ये
- मौनम् = चपलताम्
- त्याज्यः = ग्राह्यः
- शशासं = शासनम् न अकरोत्
- क्षता = अक्षता ।
- अधोलिखितेषु प्रकृति-प्रत्यय-विभागः क्रियताम्- आगत्य उत्स्रष्टुम् सम्मतः, त्याज्यः शिष्टः
उत्तर-
- आगत्य = आ + गम् धातु, ल्यप् प्रत्यय।
- उत्स्रष्टुम् = उत् + सृज् धातु, तुमुन् प्रत्यय ।
- समंत = सम् + मन् धातु, क्त प्रत्यय ।
- त्याज्यः = त्यज् धातु यत् प्रत्यय ।
- शिष्टः = शास् धातु, क्त प्रत्यय।
- सन्धिम् सन्धि-विच्छेदं वा कुरुत- तनुवाग्विभवोऽपि योगेनान्ते ताभ्यः + बलिम् शशासैकपुरीमिव ।
उत्तर-
- तनुवाग्विभवोऽपि = तनुवाग्विभवः + अपि।
- योगेनान्ते = योगेन + अन्ते ।
- ताभ्यः + बलिम् = ताभ्यो बलिम् ।
- अधोलिखितस्य श्लोकद्वयस्य अन्वयं कुरुत-
प्रजानां विनयाधानाद्रक्षणाद्भरणादपि ।
स पिता पितरस्तासां केवलं जन्महेतवः ।।
अन्वयं:- प्रजानाम् विनयाधानात् रक्षणात् भरणात् अपि सः पिता, तासाम् पितरः केवलम् जन्महेतवः ।
स वेलावप्रवलयां परिखीकृतसागराम् । अनन्यशासनामुर्वी शशासैकपुरीमिव ।।