NCERT Class 12 Hindi Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज
NCERT Class 12 Hindi Aroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता को ‘लोग भूल गए हैं’ काव्य-संग्रह से लिया गया है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा के साथ-साथ दूर-संचार माध्यमों के चरित्र को भी रेखांकित किया है। किसी की पीड़ा को दर्शक वर्ग तक पहुँचाने वाले व्यक्ति को उस पीड़ा के प्रति स्वयं संवेदनशील होने और दूसरों को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना चाहिए।
आज विडंबना यह है कि जब पीड़ा को परदे पर उभारने का प्रयास किया जाता है तो कारोबारी दबाव के तहत प्रस्तुतकर्ता का रवैया संवेदनहीन हो जाता है। यह कविता टेलीविजन स्टूडियो के भीतर की दुनिया को समाज के सामने प्रकट करती है। साथ ही उन सभी व्यक्तियों की तरफ इशारा करती है जो दुख-दर्द, यातना-वेदना आदि को बेचना चाहते हैं।
सार-इस कविता में दूरदर्शन के संचालक स्वयं को शक्तिशाली बताते हैं तथा दूसरे को कमजोर मानते हैं। वे विकलांग से पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं? आप अपाहिज क्यों हैं? आपको इससे क्या दुख होता है? ऊपर से वह दुख भी जल्दी बताइए क्योंकि समय नहीं है। प्रश्नकर्ता इन सभी प्रश्नों के उत्तर अपने हिसाब से चाहता है।
इतने प्रश्नों से विकलांग घबरा जाता है। प्रश्नकर्ता अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए उसे रुलाने की कोशिश करता है ताकि दर्शकों में करुणा का भाव जाग सके। इसी से उसका उद्देश्य पूरा होगा। वह इसे सामाजिक उद्देश्य कहता है, परंतु ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ वाक्य से उसके व्यापार की प्रोल खुल जाती है।
कवि परिचय :- कवि रघुवीर सहाय का जन्म उत्तरप्रदेश के लखनऊ में सन् 1929 में हुआ। रघुवीर सहाय समकालीन हिन्दी कविता के संवेदनशील ‘नागर’ चेहरा हैं। सड़क, चौराहा, दफ्तर, अखबार, संसद, बस, रेल और बाजार की बेलौस भाषा में उन्होंने कविता लिखी। पेशे से वे पत्रकार थे, लेकिन वे सिर्फ पत्रकार ही नहीं, सिद्ध कथाकार और कवि भी थे। कविता को उन्होंने एक कहानीपन और एक नाटकीय वैभव दिया। आपका निधन नई दिल्ली में सन् 1990 में हुआ।
प्रमुख रचनाएँ– अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक (1951) में, आरंभिक कविताएँ, महत्त्वपूर्ण काव्य-संकलन सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो हँसो जल्दी हँसो।
पत्रकारिता : ऑल इंडिया रेडियो के हिन्दी समाचार विभाग से संबद्ध रहे, फिर हैदराबाद से निकलने वाली पत्रिका कल्पना और उसके बाद दैनिक नवभारत टाइम्स तथा दिनमान से सम्बद्ध रहे।
सम्मान : साहित्य अकादेमी पुरस्कार।।
रघुवीर सहाय की कविताओं की विशेषता है कि वे छोटे या लघु की महत्ता स्वीकार। महज बड़े कहे जाने वाले विषयों या समस्याओं पर ही दृष्टि नहीं डालते, बल्कि जिनको समाज में हाशिए पर रखा जाता है, उनके अनुभवों को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया है।
1.
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बन्द कमरे में
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं ?
तो आप क्यों अपाहिज हैं ?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है ?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा) हाँ तो बताइए आपका दुख क्या है। जल्दी बताइए वह दुख बताइए बता नहीं पाएगा
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रघुवीर सहाय की कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की संवेदनहीन कार्यशैली पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या – दूरदर्शन का उद्घोषक बताता है कि वह (मीडिया) अत्यन्त शक्तिशाली और सामर्थ्यवान है। वह अपनी बात को प्रसारित करके दूर तक लोगों को प्रभावित कर सकता है। वह स्टूडियो के एक बन्द कमरे में कमजोर मनुष्य को बुलाएगा। उस दुर्बल व्यक्ति से कैमरे के सामने पूछेगा आप विकलांग हैं?
वह उससे पुनः पूछेगा – आप विकलांग कैसे हो गए? कोई उत्तर प्राप्त न होने पर उद्घोषक उसको प्रेरित करने के लिए पूछेगा- आपको विकलांग होने से दुख तो होता होगा ? होता है न ? उद्घोषक कैमरामैन से उस दृश्य को बड़ा करके दिखाने को कहेगा। वह उस विकलांग से पुनः पूछेगा हाँ, बताइए आपका दुख क्या है ? जल्दी कीजिए। अपने दुख के बारे में बताइए । परन्तु वह अपंग व्यक्ति अपने दुख के बारे में कुछ नहीं बता पाएगा।
विशेष– (i) मीडियाकर्मियों द्वारा अपाहिजों को कैमरे के सामने लाकर उनसे बड़े क्रूर प्रश्न पूछे जाते हैं।
(ii) कविता की शैली नाटकीय है।
(iii) भाषा सरल तथा बोलचाल के शब्दों से युक्त है।
2
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है।
कैसा
यानी कैसा लगता है
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा ?)
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे ?)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का करते हैं ? (यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा)
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रघुवीर सहाय की कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की संवेदनहीन कार्य शैली पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या– दूरदर्शन का उद्घोषक विकलांग व्यक्ति से कहेगा-अपने दुख के बारे में सोचकर हमें बताइए कि विकलांग होकर आपको कितना दुख होता है ? वह कोई उत्तर नहीं देता तो उद्घोषक स्वयं उसके दुःख का अभिनय करके संकेत से उसे बताएगा। फिर पूछेगा-आपको अपनी विकलांगता को देखकर ऐसा ही लगता है न ? कोशिश कीजिए, उत्तर दीजिए। क्या आप दूरदर्शन के लाखों-करोड़ों दर्शकों को अपना दुःख जताने का ऐसा बहुमूल्य मौका अपने हाथ से जाने देंगे ?
उद्घोषक दर्शकों को बताएगा कि तरह-तरह के प्रश्न पूछकर वह विकलांग व्यक्ति को रुलाना चाहता है। जिसे देखकर दर्शक भी रो पड़ें और कार्यक्रम सफल हो जाये। क्या दर्शक उसके रोने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह स्वगत कथन है और पूछा नहीं जायेगा।
विशेष– (i) कार्यक्रम संचालक अपाहिजों के दुख को बार-बार प्रकट करके अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना चाहता है।
(ii) पद्यांश में नाटकीय शैली का प्रयोग किया है।
(iii) कोष्ठांकित वाक्यों का प्रयोग कविता में एक नया प्रयोग है।
3.
फिर हम परदे पर दिखलाएँगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे) एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नही हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
(बस थोड़ी ही कसर रह गई)
धन्यवाद
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रघुवीर सहाय की कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने दूरदर्शनकर्मियों की संवेदनहीन कार्य शैली पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या– दर्शकों को प्रभावित करने के लिए मीडियाकर्मी अपाहिज व्यक्ति की सूजी हुई आँख को कैमरे से बड़ा करके दिखाएगा। उसके होठों पर एक प्रकार की बेचैनी भी दिखाएगा। उसको आशा है कि दर्शक इन सबको विकलांगता से उत्पन्न उसकी पीड़ा मान लेंगे। तभी कार्यक्रम संचालक दर्शकों को कुछ समय तक धैर्यपूर्वक टी.वी. देखने की कहता है। उसको विश्वास है कि उसके प्रयत्नों से दर्शक तथा विकलांग दोनों ही एक साथ रोने लगेंगे। अपने प्रयास को सफल न होते देखकर वह कैमरामैन को कैमरा चलाने से रोक देता है।
अब अधिक समय इस काम पर खर्च नहीं किया जा सकता। इसके बाद उद्घोषक मुस्कुराकर घोषणा करता है-आप अभी सामाजिक उद्देश्य से जुड़ा एक कार्यक्रम देख रहे थे। उसकी प्रस्तुति में थोड़ी-सी कमी रह गई। कार्यक्रम से जुड़े रहने के लिए आपका धन्यवाद !
विशेष– (i) अपाहिजों की विवशता और मीडिया वालों की निर्ममता का सफल चित्रण है।
(ii) नाटकीय तथा व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग है।
(iii) कोष्ठक में दिए गए वाक्य कविता को प्रभावशाली बना रहे हैं।
Class 12 Hindi Aaroh Chapter 4 कैमरे में बंद अपाहिज Questions and Answer
कविता के साथ
प्रश्न 1. कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं- आपकी समझ से इसका क्या औचित्य है ?
उत्तर-‘कैमरे में बन्द अपाहिज’ कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं, जो निम्नलिखित हैं
1. कैमरा दिखाओ इसे बड़ा बड़ा
2. हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा?
3. यह अवसर खो देंगे ?
4. यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा
5. आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे
6. कैमरा
बस करो
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है
7. बस थोड़ी ही कसर रह गई। इन पंक्तियों में तीन प्रकार के कथन हैं। एक, कार्यक्रम के संचालक के स्वगत कथन दो, कैमरामैन को दिए गए निर्देश तीन, अपाहिज व्यक्ति तथा दर्शकों को सम्बोधित कथन शैली की दृष्टि से यह कविता में एक नया प्रयोग हो सकता है परन्तु इसका काव्यात्मक सौन्दर्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। वर्णन में वास्तविकता और सजीवता लाने के लिए कवि ने यह प्रयोग किया है।
प्रश्न 2. ‘कैमरे में बन्द अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है-विचार कीजिए।
उत्तर– ‘कैमरे में बन्द अपाहिज’ कविता में एक अपाहिज मनुष्य का कैमरे के सामने साक्षात्कार दिखाया गया है। ऊपर से देखने पर तो यह कार्यक्रम उस अपाहिज की पीड़ा को दिखाकर उसके प्रति दर्शकों के मन में सहानुभूति जगाने के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है। वास्तव में तो इसका उद्देश्य दूरदर्शन के अपने चैनल को लोकप्रिय बनाना तथा विज्ञापनों द्वारा अधिकाधिक लाभ कमाना है।
अपाहिज व्यक्ति से पूछे गए कुछ प्रश्न पीड़ा को कुरेदने वाले, स्वाभिमान पर चोट करने वाले और मूर्खतापूर्ण हैं। यह भावनात्मक अत्याचार है। करुणा नहीं करुणा का पाखंड है। ‘क्या आप अपाहिज हैं? आप क्यों अपाहिज हैं ?’ जैसे प्रश्न किसी अपाहिज से कोई मूर्ख या क्रूर व्यक्ति ही कर सकता है।
प्रश्न 3.’हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएँगे” पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है ?
उत्तर– ‘कैमरे में बन्द अपाहिज’ कविता में कवि रघुवीर सहाय ने इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की सोच पर व्यंग्य किया है। दूरदर्शन पर विभिन्न चैनलों के संचालक समझते हैं कि वे सब कुछ करने में समर्थ है। ‘एक दुर्बल को लाएँगे’ की दूरदर्शन की घोषणा उसके इसी अहंकार को सूचित करती है कि वह सामर्थ्यवान और शक्तिशाली हैं तथा अन्य अशक्त और दुर्बल हैं। कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम से दूरदर्शन की इस दूषित मनोवृत्ति का चित्रण व्यंग्यपूर्वक किया है।
प्रश्न 4. यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक, दोनों एक साथ रोने लगेंगे, तो उससे प्रश्नकर्त्ता का कौन-सा उद्देश्य पूरा होगा ?
उत्तर– दूरदर्शन का उद्घोषक कैमरे के सामने अपाहिज व्यक्ति से प्रश्न करके, उसके दुख के बारे में पूछता है। वह प्रयास करता है कि अपने दुख को कहते-कहते वह रोने लगे तथा उसे रोता देखकर दयावश दर्शक भी रोने लगें। यदि ऐसा हो जाय तो उसका कार्यक्रम सफल हो जायेगा। उसकी लोकप्रियता बढ़ जाएगी तथा अधिक से अधिक दर्शकों के उसके साथ जुड़ने से उसको खूब आर्थिक लाभ भी होगा। इस प्रकार उसका धन तथा लोकप्रियता कमाने का उद्देश्य पूरा हो जायेगा।
प्रश्न 5. ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ कहकर कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नज़रिया किस रूप में रखा है ?
उत्तर– साक्षात्कार में न विकलांग अपनी पीड़ा बताता है और न रोता है, न दर्शक ही आँसू बहाते हैं। उद्घोषक अपने उद्देश्य में सफल नहीं होता तो कार्यक्रम समाप्त करने को कह देता है। दूरदर्शन पर समय की कीमत है। प्राप्त धन के अनुरूप ही दूरदर्शन पर समय दिया जाता है। कवि ने इस प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है और उसे निंदनीय माना है।