NCERT Solutions for Class 12th Hindi Aroh Chapter 6 बादल राग is of NCERT Solutions for Class 12th Hindi. Here we have given ncert solution for class 12 Hindi Aroh
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 6 बादल राग Questions and Answer
कवि परिचय
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
कवि परिचय :- ”निराला’ नाम से विख्यात हिन्दी के महान कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी का जन्म 21 फरवरी सन् 1896 को वसंत पंचमी के दिन पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में हुआ था आपके पिता पं. रामसहाय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला गाँव के मूल निवासी थे।
वह महिषादल राज्य (बंगाल) में सेवारत थे। निराला कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) छोड़कर लखनऊ आ गए। फिर इलाहाबाद जाकर रहने लगे तथा पत्नी मनोरमा तथा विवाहिता पुत्री सरोज के देहावसान और निर्धन्ता से त्रस्त निराला का 15 अक्टूबर, सन् 1971 को देहावसान हो गया।
साहित्यक परिचय-निराला हिन्दी काव्य की छायावादी धारा के प्रमुख स्तम्भ थे। छायावाद, रहस्यवाद तथा प्रगतिवाद को भी आपके काव्य में स्थान मिला है। उसके साहित्य में बंगाल की सांस्कृतिक और विद्रोही पृष्ठभूमि, दलितों और शोषितों के प्रति गहरी संवेदना पूँजीवाद, शोषण और सामाजिक अन्याय का प्रबल विरोध विद्यमान है।
उनकी ‘कुकुरमुत्ता’ शीर्षक कविता में उनका विरोध स्पष्ट देखा जा सकता है। निराला जो की भाषा तत्सम शब्द प्रधान एवं साहित्यिक खड़ी बोली है। उसका दूसरा रूप भी है जिस पर उर्दू तथा बोल-चाल की भाषा का प्रभाव स्पष्ट है। आप मुक्त छंद के प्रवर्तक है। कला पक्ष के साथ ही आपके काव्य का भावपक्ष भी अत्युत्तम तथा प्रभावशाली है।
रचनाएँ-निराला जी ने गद्य तथा पद्य दोनों में ही अपनी रचनाएँ की हैं अनामिका- निराला जी की छायावादी कविताओं का संग्रह है। उनकी श्रेष्ठ रचना ‘राम की शक्ति पूजा’ तथा ‘सरोज-स्मृति’ है। उनके शोकगीत इसी में संकलित है।
तुलसीदास-छायावादी शैली में लिखा गया खण्डकाव्य है। ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘अपरा’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘नये पत्ते” बेला’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’ एवं ‘गीत-गूंज’ आदि आपकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।
सप्रसंग व्याख्याएँ
पद्यांश 1.
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। इस अंश में कवि बादलों का आह्वान करता है कि वह अपने गर्जन तर्जन से दुखों से त्रस्त मानवों को शांति दे।
व्याख्या– कवि ने बादलों को क्रान्ति का प्रतीक बताया है। बादल संसार के अस्थाई सुख पर दुःख की पड़ती हुई छाया के समान है। संसार के दुःखों से जले हुए लोगों को बादल निष्ठुर क्रान्ति के मायावी स्वरूप जैसे दिखाई देते हैं। प्रतीकार्य है कि क्रान्ति होने की आशंका से सुखभोगी सम्पत्तिशाली वर्ग दुःखी होता है तथा उत्पीड़न का दुःख झेलने वाला शोषित वर्ग प्रसन्न होता है।
बादल की युद्ध की नौका, उसका गर्जन तर्जन, क्रान्ति या दलितों की दुर्दशा के विनाश की तीव्र इच्छा से भरी हुई है। उसके गर्जनारूपी युद्ध के नगाड़ों की तेज आवाज को सुनकर मिट्टी में छिपे पड़े बीज सावधान हो गए हैं और अंकुरित होकर नवजीवन पाने की आशा में सिर उठाकर बार-बार उसकी ओर देख रहे हैं। आशय यह है कि क्रान्ति ही दलितों-शोषितों को मुक्ति तथा नवजीवन देने वाली होती है।
बादल के बार-बार गरजने, मूसलाधार वर्षा करने से और बिजली गिरने से भयभीत होकर जगत के प्राणी हृदय धाम लेते हैं। आकाश को छूने की होड़ वाले सैकड़ों ऊँचे-ऊँचे पर्वतों के शरीर वज्रपात (बिजली गिरना) से टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं। भाव यह है कि क्रान्तिमयी हुंकार और कठोर प्रहार निरन्तर ऊँचे उठने की होड़ में लगे हुए पूँजीपतियों को धराशायी कर देते हैं।
विशेष– (i) कवि ने बादलों के माध्यम से शोषित और त्रस्त छोटे आदमियों को क्रांति का संदेश दिया है।
(ii) शोषण करके सुख पाने वालों का सुख छाया के समान है, यह बताया है।
(iii) काव्यांश की भाषा परिमार्जित, संस्कृतनिष्ठ, भावानुकूल तथा ओजगुण से युक्त है।
पद्यांश 2
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘बादल राग’ से अवतरित है। इस अंश में कवि बादलों के माध्यम से कह रहा है कि क्रांति का स्वर सुनकर शोषणकारी शक्तियाँ अपने विनाश की कल्पना करके भयभीत हो रहे हैं।
व्याख्या– बादल का बार-बार गरजना तथा तेजी के साथ भीषण वर्षा करना समस्त संसार को डरा देता है। लोगों को इससे भयंकर विनाश होने का भय सताने लगता है। उसकी वज्र के समान कठोर और भयानक कड़कड़ाहट से समस्त संसार आतंकित हो जाता है
अर्थात् क्रान्ति का स्वर सुनकर सम्पन्न लोग अपने विनाश की कल्पना करके भयभीत हो उठते हैं। वज्रपात होने पर पर्वतों के सैकड़ों ॐ – शिखर टूट-फूट जाते हैं अर्थात् क्रान्ति के प्रहार से सम्पन्नता की ऊँची चोटी पर पहुँचे हुए असंख्य लोगों का सर्वस्व छिन जाता है, किन्तु हल्के और छोटे पौधे उसे देखकर प्रसन्नता के साथ हँसते हैं।
ये छोटे-छोटे हरे-भरे पौधे प्रफुल्लित होकर हिलते हैं और हाथ हिलाकर तुझे बुलाते हैं। क्रान्ति की आवाज बड़ों को डराती तथा मिटाती है परन्तु छोटे उससे सुख और आनन्द का अनुभव करते हैं। इसका प्रतीकार्थ है कि क्रान्ति सम्पन्न, समर्थ और सुविधाभोगी वर्ग से उसके विशेषाधिकार को छीन लेती है तथा समाज के दलित और शोषितों को नवजीवन देकर पुरस्कृत करती है।
विशेष– (i) मूसलाधार वर्षा और घनघोर आँधी में बड़े-बड़े पेड़ धराशायी हो जाते हैं, परन्तु छोटे-छोटे पौधों को नया जीवन मिल जाता है।
(ii) शोषणकारी प्रवृत्तियों के प्रति जब क्रांति होती है, तो शोषण करने वालों का साम्राज्य ढह जाता है। शोषित वर्ग का अभ्युदय होता है।
(iii) चित्रात्मक शैली में सुन्दर बिम्ब योजना का प्रयोग हुआ है। प्रवाहयुक्त, भावानुकूल, संस्कृतनिष्ठ कोमलकान्त पदावली का प्रयोग है।
पद्यांश 3.
सन्दर्भ तथा प्रसंग– उपर्युक्त काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘बादल राग’ से लिया गया है। यहाँ कवि क्रान्ति के आह्वान से डरे-सहमे धनी वर्ग (शोषक वर्ग) तथा प्रफुल्लित निर्धन वर्ग (शोषित वर्ग) का चित्रण कर रहा है।
व्याख्या– कवि कहता है कि ऊँचे-ऊँचे भवन सच्चे अर्थ में ऊँचे नहीं हैं। इनको आतंक का भवन कहना ही ठीक है। इनमें भय और त्रास निवास करते हैं। इनमें रहने वाले लोग क्रान्ति से सदैव भयभीत रहते हैं। बाढ़ तथा विनाश तो सदा कीचड़ में ही होता है। आशय यह है कि शोषण और अन्याय के कीचड़ में सने दलित लोग ही क्रान्ति के वाहक हुआ करते हैं। जल में खिले छोटे-छोटे कमल के फूलों से सदा जलरूपी आँसू टपकते हैं।
तात्पर्य यह है कि समृद्धि में जन्मे शिशु क्रान्ति से सदा भयभीत रहते हैं। वे क्रान्ति का ताप नहीं सह पाते। इसके विपरीत दलित वर्ग के कोमल शिशु साहसी और सहनशील होते हैं, वे रोग और दुख की दशा में भी हँसते हैं। क्रान्ति की रचना करने में उन्हीं का योगदान होता है। समृद्ध लोगों का अपार धन तालों में बन्द है। वह कभी दीन-दुखियों के काम नहीं आता। उनके पास अपार धन का संग्रह है परन्तु तब भी वे संतुष्ट नहीं हैं।
क्रान्ति के बादलों का भयंकर गर्जन सुनकर वे अपनी सुन्दर स्त्रियों के शरीर से लिपटे हुए आतंक के कारण काँप रहे हैं। भयभीत होकर उन्होंने अपने नेत्र और मुख छिपा रखे हैं। अपार धन पाकर भी उनको सुख-संतोष नहीं मिलता। उनको उसकी सुरक्षा का डर हमेशा सताता रहता है।
विशेष– (i) शोषण और अन्याय से त्रस्त दमित वर्ग की क्रान्ति का स्वर बुलंद करते हैं।
(ii) पूँजीपति क्रान्ति होने की आशंका से हमेशा भयभीत बने रहते हैं।
(iii) भयानक रस की व्यंजना हुई है। अमीरों के भय का सजीव तथा प्रभावपूर्ण चित्रण है।
पद्यांश 4.
सन्दर्भ तथा प्रसंग– प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की कविता ‘बादल राग’ से अवतरित है। इस अंश में दयनीय किसान के लिए बादलों का आह्वान कवि कर रहा है।
व्याख्या– कवि कहता है- हे क्रान्तिवीर बादल ! देखो, किसान तुमको अधीर होकर बुला रहा है। उसकी भुजाएँ जर्जर और थकी हुई हैं और उसक शरीर दुर्बल हो चुका है। उसने जिस समृद्धि और सम्पन्नता का अर्जन करने के लिए अपना पूरा जीवन तथा शक्ति लगा दी थी,
उसी समृद्धि ने उसकी जीवनी-शक्ति को चूस लिया है। पूँजीपतियों ने उसका शोषण करके उसकी कमाई प अधिकार कर लिया है। अब वह केवल हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया है उसका रक्त मांस सब नष्ट हो चुका है। हे बादल, तुम जीवनदायी जल के साग हो। तुम ही जल की वर्षा करके उसकी रक्षा कर सकते हो। तुम ही क्रांति का सृजन कर उसे इस शोषण से मुक्ति दिला सकते हो।
विशेष– (i) कवि ने किसान की दुखस्था का मार्मिक वर्णन किया है।
(ii) क्रांति से ही शोषित और सर्वहारा वर्ग के सदस्य किसान की रक्षा हो सकती है।
(iii) काव्यांश पर प्रगति वादी विचारधारा का प्रभाव परिलक्षित होता है।
(iv) सरल, प्रवाह युक्त और कोमलकांत पदावली युक्त भाषा है।
हिंदी आरोह पाठ 6 बादल राग कक्षा 12 प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में छाया किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर-‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया’ पंक्ति में क्रांति की सम्भावना को दुख की छाया कहा गया है। क्रांति शोषण पर आधारित व्यवस्था को नष्ट कर देती है। इससे उन लोगों का सुख छिन जाता है, जो दूसरों के शोषण के कारण सम्पन्न बनते हैं। शोषक और पूँजीपतियों को क्रांति के कारण अपने सुख-साधनों के छिन जाने का भय निरन्तर बना रहता है। इस कारण उनके सुख की अस्थिर कहा गया है। उस पर दुख की छाया सदा मँडराती रहती है।
प्रश्न 2. ‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर पंक्ति में किसकी ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर-‘अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर’ पंक्ति में क्रान्ति के विरोधी तथा शोषण के कारण समृद्ध और सम्पत्तिशाली बने लोगों की ओर संकेत किया गया है। वे दूसरों के धन को छीनकर, उनके श्रम का शोषण करके बड़े (धनवान् तथा शक्तिशाली) तो बन जाते हैं परन्तु क्रान्ति का प्रहार उनको उसी प्रकार नष्ट कर देता है जैसे विद्युतपात होने से बड़े-बड़े पर्वतों की ऊँची तथा कठोर चोटियाँ क्षणभर में टूट-फूट जाती हैं।
प्रश्न 3. ‘विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते’ पंक्ति में विप्लव रख से क्या तात्पर्य है ? छोटे ही हैं शोभा पाते। ऐसा क्यों कहा गया है ?
उत्तर– ‘विप्लव-रव’ का अर्थ है- क्रान्ति का स्वर। जब क्रान्ति होती है तो शोषकों और पूँजीपतियों का सब कुछ छीन लेती है। क्रान्ति का लाभ समाज के दलितों तथा पिछड़ों को ही होता है। सर्वहारा किसान और मजदूर ही क्रान्ति का आशीर्वाद पाकर प्रसन्न होते हैं। उनका जाता कुछ नहीं मिलता बहुत कुछ है। ‘छोटे’ शब्द यहाँ शोषितों और सर्वहारा वर्ग का सूचक है।
प्रश्न 4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन किन परिवर्तनों को ‘बादल राग’ कविता रेखांकित करती है ?
उत्तर– बादलों के आगमन से प्रकृति में अनेक परिवर्तन होते हैं। आकाश बादलों से घिर आता है, शीतल वायु बहने लगती है, मूसलधार वर्षा होती है, बादल गरजते तरजते हैं, बिजली कड़कती है और विद्युतपात होता है। इससे ऊँचे-कठोर पर्वतों की चोटियाँ टूट जाती हैं। बड़े पेड़ धराशायी हो जाते हैं तो छोटे पौधों को नवजीवन प्राप्त होता है।