रूपक अलंकार Roopak alankar In Hindi
रूपक अलंकार की परिभाषा
रूपक अलंकार किसे कहते हैं ?
परिभाषा—जहाँ उपमेय और उपमान में एकरूपता दिखाकर दोनों में अभेद स्थापित कर दिया जाता है वहाँ रूपक अलंकार होता है। यद्यपि रूपक में उपमेय एवं उपमान दोनों ही उपस्थित होते हैं, किन्तु अत्यधिक सादृश्य के कारण दोनों एक दिखाई पड़ते हैं। तात्पर्य यह है कि रूपक में प्रस्तुत वस्तु (उपमेय) पर अप्रस्तुत वस्तु (उपमान) को आरोपित कर दिया जाता है। इस प्रकार उपमेय और उपमान में अभेद स्थापित हो जाता है।
उदाहरण-1
‘तेरे नयन-कमल बिनु जल के।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में नयन (उपमेय) और कमल (उपमान) में अभेद स्थापित किया गया है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
उदाहरण-2
‘किसलय कर स्वागत हेतु हिला करते हैं।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में उपमेय (किसलय = पत्ते) और उपमान (कर = हाथ) में अभेद स्थापित किया गया है, अतः रूपक अलंकार है।
उदाहरण-3
‘सिर झुका तूने नियति की मान ली यह बात ।
स्वयं ही मुर्झा गया तेरा हृदय जलजात ।
उपर्युक्त पंक्तियों में हृदय जल-जात में ‘हृदय’ उपमेय पर ‘जलजात’ (कमल) उपमान का अभेद आरोप किया गया है।
उदाहरण-4
‘अपलक नभ नील नयन विशाल’
इस पंक्ति में खुले आकाश पर अपलक विशाल नयन का आरोप है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है ।
उदाहरण-5
‘मन सागर, मनसा लहरि, बूड़े- बहे अनेक । ‘
इस पंक्ति में ‘मन’ पर सागर का और ‘मनसा’ (इच्छा) पर लहर का आरोप होने से रूपक अलंकार है।
उदाहरण-6
‘विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।’
उपर्युक्त काव्य पंक्ति में विषय पर ‘वारि’ का और मन पर ‘मीन’ (मछली) का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार का सौन्दर्य है।
उदाहरण-7
उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल-पतंग | विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग ।।
उपर्युक्त दोहे में उदयगिरि पर ‘मंच’ का, रघुवर पर ‘बाल-पतंग’ (सूर्य) का, संतों पर ‘सरोज’ का एवं लोचनों पर ‘भृंगों’ (भौरों) का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार है । चरण कमल बन्दौं हरि राई । यहाँ भगवान के चरणों पर कमल का आरोप किया गया है।
रूपक अलंकार के प्रकार
रूपक अलंकार के भेद– रूपक अलंकार के निम्नलिखित तीन भेद हैं-
1.सांग रूपक– जहाँ उपमेय के अंगों पर उपमान के अन्य अंगों का भी आरोप किया जाए-
‘अम्बर- पनघट में डुबो रही, तारा-घट उषा – नागरी।’ प्रस्तुत काव्य पंक्ति में उपमेय ‘अम्बर’ में उपमान ‘पनघट’ का, उपमेय ‘तारा’ में उपमान ‘घट’ का तथा उपमेय ‘उषा’ में उपमान ‘नागरी’ का भेद रहित आरोप है। अतः यहाँ सांग रूपक अलंकार है।
2. निरंग रूपक– जहाँ उपमेय पर ही उपमान का आरोप किया जाता है- अवधेस के बालक चारि सदा; ‘तुलसी’ मन मंदिर में बिहरें ।। मन (उपमेय) पर मन्दिर (उपमान) का आरोप हुआ है, यहाँ निरंग रूपक है। परम्परित रूपक – जहाँ दो रूपक एक साथ हों ।
3. रूपक मुख्य तथा दूसरा गौण हो–
बढ़त बढ़त सम्पत्ति सलिल, मन सरोज बढ़ि जाए ॥ ‘मन’ को सरोज मानने के कारण ‘सम्पत्ति’ को सलिल माना है। अतः यहाँ परम्परित रूपक है।
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