ल्यप् प्रत्यय : ल्यप् प्रत्यय – परिभाषा, उदाहरण || lyap pratyay in Sanskrit
ल्यप् प्रत्यय-जब क्रिया (धातु) से पूर्व कोई उपसर्ग जुड़ा होता है तो वहाँ ‘क्त्वा’ प्रत्यय के स्थान पर ‘ल्यप्‘ प्रत्यय जोड़ा जाता है। ‘ल्यप्’ प्रत्यय भी ‘कर’ या ‘करके’ ‘कर अर्थ में ही होता है। ‘ल्यप्’ प्रत्यय में से ‘ल्’ तथा ‘प्’ का लोप हो जाने पर केवल ‘य’ शेष रहता है।
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इस ल्यप् प्रत्यय से बनने वाला नया शब्द अव्यय शब्द होता है।
- .”ल्यप्” का “य” शेष रहता है। ल् और प् लोप हो जाता हैं।
- इस अव्यय का भूतकाल में ही प्रयोग होता है ।
- इन प्रत्यय का भी अर्थ “करके” होता है।
- इस प्रत्यय का वाक्य में इसका प्रयोग भी प्रथम और गौण क्रिया के साथ ही होता है ।
- यह प्रत्यय भी दो वाक्यों को जोडने का काम करता है।
- इस प्रत्यय का केवल एक ही परिस्थिति में प्रयोग होता है, जो महत्त्वपूर्ण है, और वह यह है कि जब धातु से पूर्व कोई उपसर्ग आ जाए तो “क्त्वा” के स्थान पर इसका (ल्यप्) प्रयोग होता है ।
क्त्वा का प्रयोगः-जब हम हस् धातु के साथ क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग करते हैं तो रुप हसित्वा बनता है, अब इसी प्रकार हस् धातु से पूर्व “वि” उपसर्ग लाते हैं तो रुप”विहस्य” बनेगा।
Lyap pratyay (ल्यप् प्रत्यय) को समझने की शोर्ट Formula
ल्यप् प्रत्यय/lyap pratyay in Sanskrit
- लोप् = ल् और प् का
- शेष = यह
- अर्थ = कर या करके के रुप में
- पहचान = धातु से पूर्व में उपसर्ग और अन्त में य।
- यह भूतकाल में होता है।
- इससे बनने वाले शब्द अव्यय होता है।
lyap pratyay के उदाहरण
उपसर्ग | धातु+प्रत्यय | ल्यप् युक्त रुप |
आ | गम्+ल्यप् | आगम्य |
वि | जि+ल्यप् | विजित्य |
आ | दा+ल्यप् | आदाय |
आ | नी+ल्यप् | आनीय |
सम् | पठ्+ल्यप् | संपठ्य |
सम् | प्रच्छ्+ल्यप् | संपृच्छ्य |
सम् | रक्ष्+ल्यप् | संरक्ष्य |
वि | स्मृ+ल्यप् | विस्मृत्य |
सम् | चित्+ल्यप् | संचित्य |
सम् | घ्रा+ल्यप् | समाघ्राय |
प्रति | ज्ञा+ल्यप् | प्रतिज्ञाय |
सम् | तृ+ल्यप् | संतीर्य |
प्र | भंज्+ल्यप् | प्रभज्य |
अनु | वद्+ल्यप् | अनुद्य |
प्र | बुध्+ल्यप् | प्रबुध्य |
नी | पा+ल्यप् | निपाय |
वि | लप्+ल्यप् | विलप्य |
वि | लिख्+ल्यप् | विलिख्य |
उप् | लभ्+ल्यप् | उपलभ्य |
नि | पत्+ल्यप् | निपत्य |
प्र | आप्+ल्यप् | प्राप्य |
सम् | आप्+ल्यप् | समाप्य |
अनु | कृ+ल्यप् | अनुकृत्य |
वि | क्री+ल्यप् | विक्रीय |
नि | क्षिप्+ल्यप् | निक्षिप्य |
वि | गण्+ल्यप् | विगण्य |
वि | हस्+ल्यप् | विहस्य |
उप् | स्पृश्+ल्यप् | उपस्पृश्य |
उप् | स्था+ल्यप् | उत्थाय |
वि | सृज्+ल्यप् | विसृज्य |
वि | ज्ञा+ल्यप् | विज्ञाय |
अधि | ई+ल्यप् | अधीत्य |
निर् | ईक्ष्य+ल्यप् | परीक्ष्य |
सम् | दृश्+ल्यप् | संदृश्य |
वि | धा+ल्यप् | विधाय |
प्र | नत्+ल्यप् | प्रणत्य |
आ | नी+ल्यप् | आनीय |
आ | दा+ल्यप् | आदाय |
अनु | ग्रह्+ल्यप् | अनुगृह्य |
संस्कृत के अन्य प्रत्यय
- क्त्वा प्रत्यय
- तुमुन् प्रत्यय
- शतृ प्रत्यय
- शानच् प्रत्यय
- तव्यत् प्रत्यय
- अनीयर् प्रत्यय
- तमप् प्रत्यय
- तरप् प्रत्यय
- पठ् धातु रुप
- लिख् धातु रुप
- भू (भव्) धातु रुप
- गम् धातु रुप
- नी धातु रुप
- हस् धातु के रुप
- वद् धातु रूप
- चल् धातु के रुप
- शक् धातु के रुप
- याच् के धातु रुप
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- ☀️‘राम’ अकारांत पुल्लिंग शब्दरुपम्
- ☀️‘बालक’ अकारांत पुल्लिंग शब्दरुपम्
- ☀️‘छात्र’ अकारांत पुल्लिंग शब्दरुपम्
- ☀️‘नर’ अकारांत पुल्लिंग शब्दरुपम्
- ☀️‘पुत्र’ अकारांत पुल्लिंग शब्दरुपम्
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- 🌼 ‘हरि’ इकारांत पुल्लिंग शब्दरुपम्
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- 💫 ‘साधु’ उकारांत पुल्लिंग शब्दरुपम्
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